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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जून २०१२ श्री पद्मावती स्तोत्र नवीन वी. जैन वर्तमान चौबीसी के २३ वें तीर्थंकर पुरूषादानीय श्रीपार्श्वनाथ भगवान की अनन्य उपासिका अधिष्ठात्री मातेश्वरी पद्मावती देवी की जिनभक्ति अनुपम, अवर्णनीय तथा अद्भुत है। अहर्निश प्रभु पार्श्व को मस्तक पर धारण करनेवाली मातेश्वरी एकभवावतारी हैं। प्रभु की भक्ति करनेवालों पर माँ सदा प्रसन्न रहती हैं। उनके जीवन उपवन को सुखों के सुमन से भर देती हैं। कष्टों तथा पीड़ाओं का हरण करके भक्तजनों को जिनभक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ाने में सहयोग देती हैं। ऐसी करुणावत्सल, ममतामूर्ति मातेश्वरी की आराधना से रत्नत्रयी की प्राप्ति का मार्ग भी प्रशस्त हो जाता है। पदमावती माता स्वयं श्रीपार्श्वनाथ भगवान की सेवा-भक्ति करती हैं। उनको भगवान की भक्ति अत्यंत प्रिय है और पार्श्वनाथ की भक्ति करने वालों को अवश्य सहाय करती हैं। पद्मावती माता नागलोक में रहनेवाली हैं इसलिये उनका वाहन भी नाग (सर्प) है, शतदल-सहस्रदल कमल पर बैठती हैं. और चंद्र जैसे शीतल नेत्र हैं. लाल कमल के रंग जैसे वस्त्र को धारण करने वाली, कुर्कुट मुखवाला सर्प का वाहनवाली, संकट को नाश करती हैं और ऋद्धि सिद्धि-समृद्धि को देती हैं. माता पद्मावती को सदा नमन हो. कति परिचय:-श्री पदमावती स्तोत्र. जो भक्ति प्रधान कति है, जिसमें माताजी की अनेक उपमाओं द्वारा स्तुति-प्रार्थना की गई है. प्रति के अंतर्गत प्रतिलेखक ने गाथा क्रमांक क्रमशः नहीं लिखा है, परंतु बीच-बीच के १४,२४ व अंतिम २५ गाथांक लिखा है, जिससे यह मान सकते हैं कि कृति २५ गाथा की हैं। ___ कृति के कर्ताः- तपागच्छ के मुनि श्री चारित्रसागरजी के शिष्य मुनि श्री कल्याणसागरजी म. सा. ने इस कृति की रचना की है। जिनका समय १७वीं सदी होने का अनुमान है। भाषाः- कृति मारुगुर्जर भाषा में रची गई है। श्री पदमावती स्तोत्र Ilgo Il सक्ति सदा सांनिधरो सेवक जिन साधार पओमाओ प्रगट पणें प्रणमुं स्तव उदार. ||१|| आदि सक्ति आराधतां अधिक बधै आणंद देवी दोलत द्यो सदा ज्युं वाधै सुखकंद. ||२|| मात मया करि मोहसं क्रीपा करो नित्यमेव अरियण सैंहारो सकत्ति बिगती चित धरेव. ||३|| ध्यान धरूं धिखणा धरौ पउमावै प्रगट अरज करुं आइ अल्प करो सदा गह गट, ||४|| छंद. पउमां प्रेम धरे पाये लागु बचन बिलास सरसरस मांगु भारति भगवति धरी गुंण गावू अविहड अतिघण आणंद पांओ तुं लखमी तुं भाषादेवी तुं त्रिभुवन मै रंग रमेवि तुं ब्रहमांणी गवरी गंगा; तुं जगदंबा दीसै वंगा प्राण प्रीया नागंदै केरी छपन्नकोडि तुं नवी नवरी चोसठि पीढ़ चाचर वावी भावक जनमनि तुंहीज भावी तीन(भ)तीन भवननी तुं धणीयाणी रंभा तंहीज अपछर रांणी For Private and Personal Use Only
SR No.525267
Book TitleShrutsagar Ank 2012 06 017
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2012
Total Pages20
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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