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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir m जून २०१२ उपदेश सुना. प्रभु महावीर ने समझा कि यह पुरुष उपदेश का अधिकारी है. एक दिन सद्दालपुत्र कच्चे बरतन धूप में सुखा रहा था. यह देखकर प्रभु ने उससे पूछा : 'सद्दाल पुत्र! ऐसे सुंदर बर्तन तुमने कैसे बना लिए?' उसने उत्तर दिया : "भगवन् ! जंगल से मिट्टी लाकर उसे पानी में भिंगोया और फिर अच्छी तरह गूंधकर इसका पिंड बनाया एवं उसे चाक पर चढ़ाकर ये बर्तन बनाए.' प्रभुने कहा- तब तो यह सब कुछ मेहनत से ही हुआ है ना? सद्दालपुत्र गोशाला वादी था. अतएव उसने उत्तर दिया : 'भगवान् यह तो जो होना था वहे हुआ है.' ___ प्रभुने फिर पूछा : ‘क्यों, सद्दालपुत्र, कोई तेरे बरतन फोड़ दे या तेरी स्त्री को परेशान करे तो तू क्या करेगा?' उसने जवाब दिया : 'मैं उसे दंड दूंगा. प्रभु कहने लगे- इसकी क्या आवश्यकता है? होगा तो वही जो होना होगा.' सद्दालपुत्र समझ गया कि मेहनत के बिना कुछ नहीं हो सकता. महावीर प्रभुका कथन सर्वथा सत्य है. वह उसी समय से महावीर स्वामी का भक्त बन गया और आनंद के समान उसने भी व्रत ग्रहण किया. जब गोशालक को यह सब हाल मालुम हुआ तो वह सद्दालपुत्र के पास जाकर उसे अनेक प्रकार से समझाया, परंतु वह तो पुरुषार्थ की महिमा समझ चुका था, उसे किसी निकम्मे मत की आवश्यकता न थी, गोशालक को निराश होना पड़ा. आनंद और कामदेव के समान सद्दालपुत्र ने भी पवित्र जीवन बिताया. एक बार उसे भी कसौटी पर कसा जाना पड़ा था. वह भी चुल्लणी पिता के समान अपने पुत्रों का वध देखकर तो न धबराया परंतु जब उसकी स्त्री अग्निमित्रा की बारी आई तो वह विचलित हो गया. अंत में जब उसे पता चला कि वह सब देवमाय अपनी भूल का प्रायश्चित किया और फिर वह पवित्र जीवन बिताते हुए कालगति को प्राप्त हुआ. ८. महाशतक - राजगृही के एक बड़े सेठ का नाम महाशतक था. उसके पास करोड़ स्वर्णमुद्राएँ और अस्सी हजार गायें थीं. उसकी रेवती आदि पत्नियाँ थीं. रेवती अपने पिता के यहाँ से दहेज में करोड़ स्वर्णमुद्राएँ और गोकुल लायी थी. प्रभु महावीर के उपदेश से महाशतक श्रावक बना था. उसने आनंद के समान ही व्रत ग्रहण किया था. उसे धर्मचर्चा बहुत प्रिय थी, अतः उसके जीवन का अधिकांश भाग उसी में व्यतीत होता था. रेवती को यह बात पसंद न थी. उसे धन का अभिमान था और उसका स्वभाव बडा ही कठोर था. उसका हृदय मानो जहर का कुंड था. अपनी अन्य सपत्नियों से वह बहुत जलती थी. उनके विनाश के लिए वह नित्य नए-नए प्रपंच रचा करती थी. धीरे-धीरे उसने छः को विष दिलाकर परले हुँचा दिया और शेष छः को भी उसने किसी न किसी बहाने से मृत्यु के घाट उतार ही दिया. अब वह निर्विघ्न आनंद करने लगी. उसकी स्वच्छन्दता में कोई बाधक न रहा. जब मनुष्य एक बार पथभ्रष्ट हो जाता है तो फिर वह नीचे गिरता ही जाता है. रेवती का भी पतन होने लगा. उसने छुप-छुप कर मदिरा को अपनाया और फिर मांसाहार का भी शरण लिया. उन्हीं दिनों नगरपति राजा श्रेणिक ने आदेश निकाला कि कोई पशु-हिंसा न करे. इससे उस नगर में मांस बिकना बंद हो गया. परंतु रेवती को मांसाहार की आदत पड़ चुकी थी. उससे उसके बिना न रहा गया. वह हर रोज गुप्त रीति से अपने गोकुल के दो बच्चों का वध कराती और अपनी लालसा को तृप्त करती थी. किसी को उसके इस दुष्कर्म का पता न चलता था. महाशतक श्रावक ने वर्षों तक व्रत का पालन किया और फिर एकान्तवास कर धर्मध्यान में जीवन बिताने का निश्चय किया. उसने घर का सब कार्यभार अपने बड़े पुत्र को सौंपकर एक पौषधशाला में रहना शुरु कर दिया. एक बार वे ध्यानमग्न थे कि उसी समय रेवती मद्य पीकर मत्त बनी हुई वहाँ आई और उनसे सहवास करने के लिए अनेक प्रकार से प्रार्थना की. परंतु महाशतक अपने ध्यान में तल्लीन रहे. रेवती ने बार-बार आग्रह किया पर वे न डिगे. उस समय उन्हें अवधिज्ञान हो चुका था. उन्हें रेवती के सब कुकृत्यों का पता था. उन्होंने क्रोधित For Private and Personal Use Only
SR No.525267
Book TitleShrutsagar Ank 2012 06 017
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2012
Total Pages20
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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