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वि.सं. २०६८ - ज्येष्ठ
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किया और फिर पवित्र जीवन बिताने लगे. अन्त में अनशन करके देहत्याग किया. इतने वैभव में भी इतनी पवित्रता ! यह कोई साधारण बात नहीं है.
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५. चुल्लग शतक आलंभिका नामक नगर में एक चुल्लग शतक नामक सेठ रहते थे जो अठारह करोड़ स्वर्णमुद्राओं के मालिक थे तथा आठ हजार गायों के स्वामी थे. उनकी स्त्री का नाम बहुला था. आनंद और कामदेव के समान उन्हें भी प्रभु महावीर का पवित्र उपदेश सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था. उन्होंने भी पवित्र जीवन बिताने का व्रत लिया था और वे अपनी प्रतिज्ञा का पालन सावधानीपूर्वक करते थे. अंतिम अवस्था में उन्हें भी सुरादेव के समान कड़ी परीक्षा देनी पड़ी थी. वे पुत्रों की मृत्यु को देखकर तो विचलित नहीं हुए, परंतु जब उन्हें धन नष्ट करके भिखारी बना देने की धमकी दी गई, तो वे डर गए. अन्त में जब पता चला कि यह सब देवमाया थी. इसके बाद भविष्य में अमय रहने का निश्चय किया अन्त समय तक उन्होंने पवित्र जीवन बिताकर आत्म-कल्याण किया.
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६. कुंडकोलिक ये अत्यन्त सम्पत्तिशाली महापुरुष कांपिल्यपुर नगर के निवासी थे. उनकी पत्नी का नाम पूषा था. वह भी अत्यन्त दयावती और सद्गुण सम्पन्ना थी. उसने धर्मशिक्षा देनेवाली पाठशालाएँ स्थापित की थी और यथाशक्ति विद्या प्रचार के लिए प्रयत्न करती थी. इस दम्पति ने भी प्रभु महावीर के उपदेश से प्रभावित होकर आनंद के समान पवित्र जीवन बिताने का निश्चय किया था.
एक बार मध्याहन के समय कुंडकोलिक उद्यान में गए वहाँ की प्राकृतिक शोभा देखकर उनका मन प्रफुल्लित और शांत हो गया. पास ही पड़ी हुई एक शिला पर उन्होंने अपना उत्तरासन रख दिया और हाथ में एक नामांकित अंगूठी थी वह भी निकालकर वहीं रख दी तथा आत्मध्यान में लीन हो गए.
उस समय एक अद्भुत घटना घटित हुई. एक आकाश वाणी हुई कि कुंडकोलिक गोशालक की बात कितनी सच है. उसका सारांश यह है कि जो होना होता है वह होकर रहता है. अतएव जप-तप और परिश्रम करना व्यर्थ है. फिर तुम पुरुषार्थ क्यों करते हो ? क्यों तप में परिश्रम करते हो? इसकी क्या आवश्यकता है? इन सब बातों को छोड़कर गोशालक के मत को क्यों नहीं ग्रहण कर लेते?
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यह सुनकर कुंडकोलिक ने कहा याह, यह भी कभी हो सकता है? तुम यह तो बतलाओ कि तुम देव कैसे बने, मेहनत करके या बिना मेहनत किए? संसार का कोई भी कार्य बिना परिश्रम के नहीं होता, प्रभु महावीर ने पुरुषार्थ का जो मार्ग बतलाया है वह बिलकुल ठीक है.
इस प्रकार थोड़ी देर बाद विवाद होने के बाद पुनः आकाशवाणी हुई कि पुरुषार्थ में श्रद्धावान् कुंडकोलिक ! तुम धन्य हो यह कहकर आकाशवाणी पुना शान्त हो गई.
स्वयं महावीर स्वामी ने भी कुंडकोलिक के अचल धर्मश्रद्धा की प्रशंसा की थी. अन्त में श्रावकों के समान उन्होंने भी अनशन करके प्राण त्याग किए थे.
७. सदालपुत्र प्रभु महावीर के उपदेश ने चारों वर्णों के मनुष्यों को संयमी जीवन बिताना सिखलाया था. राजा यह नहीं मानते थे कि कुछ विशिष्ट वर्ण के लोगों को ही धर्म पालन करने दिया जाय तथा शेष वर्ण के लोग उससे वंचित रहें, अथवा धर्मपालन का अधिकार पुरुषों को ही हो और स्त्रियाँ उससे अलग रहें. धर्म तो उसी का है जो उसका पालन करे संसार के सभी मनुष्यों को आत्म-कल्याण करने का अधिकार है.
सद्दालपुत्र एक धनवान कुम्हार था. उसकी बर्तनों की पाँच सौ दुकाने थी और वह तीन करोड़ रुपये की सम्पत्ति का मालिक था. वह गोशालक के मत को मानता था. गोशालक का पक्का भक्त था,
गोशालक का यह मत था कि संसार में सब कुछ स्वभाव से ही होता है, किसी कार्य के लिए भी परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं है.
एक बार सदालपुत्र को समाचार मिला कि कल अरिहंत भगवान् पधारेंगे. उसने समझा कि उसके गुरुदेव आनेवाले हैं, उसे इस समाचार से अत्यन्त हर्ष हुआ उसने गुरुदेव की प्रतीक्षा में रात बिता दी.
दूसरे दिन प्रातःकाल ही प्रभु महावीर उस नगर में पधारे. सद्दाल वहाँ गया. वंदना करके उसने प्रभु का
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