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जून २०१२
उसने आकर बड़े भयंकर स्वर में कहा 'कामदेव ! किस धुन में है. यह व्रत और प्रतिज्ञाएं छोड़ दे, इस एकान्त जीवन से दूर हट, नहीं तो याद रख, बस तेरे जीवन का अन्त ही आ गया है. परंतु कामदेव पर उसकी धमकी का तनिक भी प्रभाव न पड़ा. वह तो अपने ध्यान में मग्न रहा. उस देव ने और भी अनेक भयंकर रूप धारण करके कामदेव को डराया. परंतु वह कहाँ डिगने वाला था ? अन्ततः देव ने हार मान ली और कामदेव की प्रशंसा करके क्षमा मांगी.
प्रभु महावीर ने भी कामदेव के धैर्य की प्रशंसा की और अन्य को भी उससे शिक्षा लेने का उपदेश दिया. जिसकी प्रशंसा स्वयं प्रभु ने की हो उसका चारित्र कितना उत्तम होगा ?
३. चुल्लणी पिता चुल्लणी पिता वाराणसी के निवासी थे. दे कामदेव से भी अधिक सम्पत्तिशाली थे. प्रभु महावीर का उपदेश सुनकर वे और उनकी स्त्री श्यामा आनंद श्रावक के समान व्रतधारी होकर पवित्र जीवन बिताते थे. अंतिम अवस्था में वे एकान्त जीवन व्यतीत करते थे. धर्म ध्यान करते हुए कामदेव के समान उन्हें भी कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ा था. वे एक दिन ध्यानावस्थित खड़े थे. उसी समय एक भयंकर मूर्ति उनके सामने आकर खड़ी हुई और नंगी तलवार हाथ में लेकर भयानक आवाज में बोली- बस रहने दे इस धर्म के ढोंग को. मूर्ख, यह ढोंग छोड़, नहीं तो तेरे बड़े पुत्र को मारकर उसका खून तुझ पर छिड़कूंगा. यह धमकी पत्थर हृदय को भी पिघला देनेवाली थी. परंतु चुल्लणी पिता उससे नहीं डरे, ये अडिग रहे. यह देखकर उस मूर्ति ने फिर दाँत पीसकर कहा- 'अच्छा, मेरा कहा नहीं माना? तब देख, अभी तेरे पुत्र का खून करता हूँ. यह कहकर उसने चुल्लणी पिता के बड़े पुत्र को उसके सामने लाकर मार डाला. इसके बाद दूसरे पुत्र को भी मारने की धमकी दी. परंतु चुल्लणी पिता अब भी न डिगे. तब उसने दूसरे पुत्र को भी मार दिया. इसी प्रकार उसने चार पुत्रों का खून किया और अन्त में कहा- 'अच्छा, अब भी नहीं मानता तो तेरी माता का भी यही हाल होगा.' यह सुनकर चुल्लणी पिता का धैर्य टूट गया. अब उनसे न रहा गया. उन्होंने सोचा- 'यह कितना दुष्ट है! मेरे चार पुत्रों का तो खून कर दिया अब पूज्य माताजी को भी मारना चाहता है. यह तो मैं नहीं देख सकता. यह सोचकर वे उसे पकड़ने दौड़े. परन्तु वहाँ न कोई मारने वाला था. न पुत्र. वे एक खम्भे से टकरा गए. उनकी माता की आँखें खुल गई. उन्होंने उनके पास आकर कहा- 'क्यों, बेटा ! इतनी रात गए यहाँ क्या करते हो ?' उन्होंने अपनी माता से सब हाल कह सुनाया. माता ने उन्हें विश्वास दिलाया कि यह निस्सन्देह देव-माया ही थी. घर में सब कुशलपूर्वक सो रहे हैं. उन्होंने कहा 'बेटा, चाहे जो हो धर्म से विचलित न होना चाहिए. यह तुम्हारी निर्बलता ही है. उसका प्रायश्चित करना चाहिए:
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चुल्लणी पिता ने अपनी भूल का प्रायश्चित्त किया और भविष्य में ऐसी भूल न करने की प्रतिज्ञा कर अत्यन्त पवित्र जीवन बिताने लगे. अन्त में अनशन करके देवगति को प्राप्त हुए. धन्य है ऐसी महान आत्मा.
४. सुरादेव सुरादेव वाराणसी निवासी एक धनाढ्य पुरुष थे. उनकी स्त्री का नाम धन्ना था. उन्होंने अपने परिश्रम से उन्नति की थी और कामदेव के समान धनाढ्य हो गए थे.
वे बड़ी उदारतापूर्वक दान देते थे, इससे उनकी कीर्ति सर्वत्र फैल गई थी. ये और उनकी स्त्री आनंद श्रावक की भाँति प्रभु महावीर के सत्संग से व्रतधारी हुए थे और यथाशक्ति पवित्र जीवन विताते थे. जब व्रत ग्रहण किये उन्हें एक वर्ष हो गए तो वे अपना अधिकांश समय धर्म-ध्यान में बिताने लगे.
चुल्लणी पिता के समान ही सुरादेव को भी कठिन परीक्षा का सामना करना पड़ा था. एक रात जब वे ध्यानमग्न थे, तो एक भयंकर मूर्ति आई और उन्हें धर्म ध्यान छोड़ने की धमकी दिया, उनके पुत्रों को मार डालने का भय दिखलाया. परन्तु सुरादेव अचल रहे. तब उसने उनके चारों पुत्रों को मार डाला. इस पर भी वे न डिगे तो उसने उन्हें भयंकर रोग से पीड़ित करने की धमकी दी. अब सुरादेव से अधिक सहन न हो सका. वे उस दुष्ट को अधिक उत्पात करने से रोकने के लिए उसे पकड़ने को दौड़े. परंतु वह तो देवमाया थी.
कोलाहल सुनकर उनकी स्त्री जाग उठी जब उसने सब हाल सुना तो कहा- 'नाथ! पुत्र तो सब गहरी नींद में सो रहे हैं. आप देवमाया की जाल में आ गए. आपको इसका प्रायश्चित्त करना चाहिए.' सुरादेव ने प्रायश्चित
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