SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वि.सं.२०६८-ज्येष्ठ परम पूज्य राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. अहमदाबाद में! प. पू. आचार्य भगवंत दिनांक १८/०६/१२ को गुजरात की महानगरी अहमदाबाद में पधारेंगे जहाँ लावण्य सोसायटी जैनसंघ द्वारा भव्य सामैया के साथ नगर प्रवेश का कार्यक्रम आयोजित किया गया है. वहाँ मंगल प्रवचन के पश्चात नूतन उपाश्रय निर्माण करने हेतु वासक्षेप पूजन आदि का कार्यक्रम भी संपन्न किया जाएगा. वहाँ से पूज्यश्री कोबा की ओर विहार करेंगे. महावीर स्वामी को सूर्य ने किया किरणों से तिलक श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र कोबा स्थित महावीरालय में मूलनायक चरम तीर्थकर महावीर स्वामी की भव्य प्रतिमा के ललाट पर २२ मई, २०१२ को दुपहर २.०७ बजे सूर्य किरणों ने तिलक किया. यह आह्लादक दृश्य देखने के लिये अहमदाबाद-गांधीनगर के हजारों लोगों के साथ देश के विभिन्न भागों से आये अनेक श्रद्धालु भी यहाँ उपस्थित थे. जैसे ही नियत समय पर सूर्य किरणें प्रभु महावीर स्वामी के ललाट पर आई वैसे ही सारा परिसर जय-जयकार से गूंज उठा. ऐसा दृश्य प्रतिवर्ष इस दिन देखने को मिलता है जो पूज्य आचार्य श्री कैलाससागरसूरिजी के पार्थिव शरीर के अग्नि संस्कार समय की स्मृति दिलाता है, मधुमती-महुवा में भट्टारक आचार्य श्री देवेन्द्रसूरि तथा आचार्य श्री विजयचंद्रसूरि के उपदेश से प्रभावित होकर श्रीश्रमण संघ के पठन-पाठन के लिये धोलका आदि के श्रेष्ठियों द्वारा मधुमती में वाग्देवता-श्रुतदेवता ज्ञानभंडार में संग्रहीत करने के उद्देश्य से अरिसिंह द्वारा विक्रम संवत १३०६ माघ शुक्ल १ गुरुवार के दिन लिखवायी गई प्रवचनसारोद्धारवृत्ति के तृतीयखंड के अंत में प्रतिलेखन पुष्पिका (प्रशस्ति) में उल्लिखित ज्ञान की महिमा : ज्ञानदानेन जानाति जंतु स्वस्य हिताहितं । वेत्ति जीवादितत्त्वानि विरतिं च समश्रुते।।१।। ज्ञानदानात्त्ववान्पोति केवलज्ञानमुज्जवलम् । अनुगृह्याखिललोकं लोकाग्रमधिगच्छति।।२।। न ज्ञानदानाधिकमत्र किंचिद् दानं भवेद् विश्वकृतोपकारम्। ततो विदध्याद् विबुधः स्वशक्त्या विज्ञानदाने सततप्रवृत्तिं ।।३।। 'सम्यग्ज्ञान का दान करने से जीवात्मा स्वयं का हित-अहित जानता है, जीव-अजीव आदि तत्त्वों को पहचानता है', विरति-वैराग्य को प्राप्त करता है. ज्ञान प्रदान करने से केवलज्ञान को प्राप्त करता है और समस्त लोक-संसार को अनुगृहीत करके लोक के अग्रभाग में सिद्धशिला मोक्ष में पहुँचता है. ज्ञान के दान से अधिक यहाँ दूसरा कोई दान नहीं है, जो विश्व के लिये उपकारी हो सके! इसलिये ज्ञानी और समझदार मनुष्य को अपनी शक्ति-सामर्थ्य तथा भक्तिभाव के अनुसार विशिष्ट ज्ञान प्रदान करने के लिये सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिए.. (वर्तमान में यह प्रत पाटण के संघवी पाडा स्थित ज्ञानभंडार में संगृहीत है.) (संकलन - बी. विजय जैन)|| For Private and Personal Use Only
SR No.525267
Book TitleShrutsagar Ank 2012 06 017
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2012
Total Pages20
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy