Book Title: Sakalchandragani krut Sattarbhedi Pooja Sastabak
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्रिल-२००७ 39 उ. श्रीसकलचन्द्रगणिकृत सत्तरभेदी पूजा । सस्तबक । सं. साध्वी दीप्तिप्रज्ञाश्री श्री वीतरागाय नमः ॥ दूहा । अरिहंत मुखकजवासिनी भगवती भारती देवि । समरी पूजाविधि भणुं तुं मुझ मुखकज सेवि ॥१॥ हवें स्नात्र कर्या पछी विशेषे भक्तिने हेतें सत्तरभेद, २१ भेद, १०८ भेद इत्यादिक बहुविध पूजा कही छै । पणि तेहमां सतरभेद पूजानो पाठ कहीइं छे । दूहा-दोधक छंद ।। श्री जिनेश्वरनां मुखकज कहतां मुखकमलनई विषई वासिनी क. वसनारी-रहणहारी-रहे एहवी, कुंण छई ? भगवती क. ज्ञानवती एहवी भारती-वाणी रूप जे देवी एतलें श्रुतदेवतां - ब्रह्मांणी शक्ति रूप सरस्वती नाम कहीइं छई || तेह शक्तिनुं स्मरण करीने पूजानो विधि कहुँ छु । एतला ज माटें सरस्वती ! तुझे माहारा मुखरूप कमले सेवो-तिहां वसो । किहाएक 'मुखपदसेवी' पाठ छे । तिहां मुखरूप पद-स्थांनक कहीइं छई ॥१॥ न्हवण १ विलेवण २ अंगंमी चर्खजुअलं च ३ वासपूआए ४ । पुष्पारोहणं ५ मालारोहणं ६ तह वण्णयारुहणं ७ ॥२॥ न्हवण ते स्नान जलनुं १ । चंदनादिक, विलेपन कर भगवंतनइं २ । अंगने विषई विलेपन छे । ३. चक्षुयुगलनी त्रीजी पूजा तें आंखनुं ग्रहणुं ते चक्षु करावी चक्षूयुगल । ४. वासनी पूजा चोथी, वास तें चंदन केसरनुं चूरण ते वास । छूटा फूलनी-विविध जातीनां कुसुम आरोहण ते चढाएँ, पंचवणे आगे थवी चढाववां पांच फूल ५ । विविध प्रकारनां गुंथ्या फूलनी माला चढाववी ते छठ्ठी पूजा ६ । तिम वली वर्णक - पंचवरण फूलनी रचना - श्रीवितरागने आंगी प्रमुखनुं रचवउं, मूगट कुंडल फूलना [७] । १. गुरुभ्यो नम:-ब. । २. चक्खू जूअलं - ब. । ३. पुफारोहणं - ब. । ४. सुखड - ब. । Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 40 अनुसन्धान ३९ चुन्नारोहणं ८ जिणपुंगवाणं आहरणारोहणं चेव ९ । पुप्फगह १० पुष्पपगरी ११ औरत्तिय १२ मंगलपईवो १३ ॥ ३ ॥ चूया - घनसारादिक सुगंध चूर्णनुं आरोपवउं-चूलातला भगवंतनें सुगंध चढावीइं तेनी पूजा कही छई । जिन कहेतां सामान्य केवली, तेहनां पुंगव कहतां वडेरा, तेहोनई पूजनीक छई भगवंत [८] । वली इंहां धजानु पणि आरोहण जिनेन्द्रोंने जिननें धजा चढावी, वस्त्रनी पूजा । ए नवमी पूजा आभरणनुं आरोपण थापवुं आभरण पेरावीने ९ । जिनेस्वरनें फूलनुं घर रचवुं, फुलघर कीजई १० । पंचवरणी घरकाजें घर | फूलनो 'पगर भरवो । पंचवरण कुसुमनो मेघ वरसाववो ११ । जिन आगलें अष्टमंगलीक आलेखन आलेखीइं । तथा आरती ऊतारवी । त्यार पछी आरती ऊतारीनई जिननें आगलें मंगल दीपक इत्यादिक करिई ए १३ मी पूजा ||३|| दीवो धूवुक्खेवो नेवेंज्जं सुहफलाण ढोयणया १४ । गीयं १५ नट्टं १६ वज्जं १७ पूया भेया इमे सतर ॥४॥ मंगल दीपक करिइ । धूपघटी धूप उखेववी । नैवेद्य असनांदिक, अबोट लापसी, खीर, वडां इत्यादिकनुं, भला - शुभ फल श्रीफलादिकनुं ढोणुं ढोवुं श्री जिनेश्वरनई मुख आगलई ढोवा ए पूजा १४ मी । गीत गावांनी ע १५ मी पूजा । नाटिक करवांनी सोलमी पूजा १६ । सकल - सघलां वाजित्रना शब्द पूरवानी - वजाडवानी पूजा १७ मी । ए सतरभेद पूजांनां जांणवा । अनई केत लाएक सतरमी पूजामां धूप, आरती, मंगल दीवों कहे छई, पिण नैवेद्य १४ मी पूजामां कह्युं तिवारे ते पहेलां आरती मंगलदीवो पूर्वोक्त । ते माटे बहुश्रुत वचन प्रमाण । ए पूजा सर्व श्रावकनी करणी छें ॥ राग देशाख । ढाल रत्नमालानी । प्रथम पूरवदिशि कृत शुचि स्त्रांनको, दंतमुखशुद्धिको धौतराजी । कनकमणि मंडितो विशदगंधोदकं, भरीय मणि कनकनी कलस राजी ॥ १ ॥ पहिलां ब्रह्ममुहतई जागीनें सर्व करणी श्रावकदिनकृत्य तथा श्राद्धविधि ५. आभरणारोहणं चेव ९ ब । ६. पुप्फगेहं १० पुप्फपगरो ११ ब. । ७. आरति १२ मंगलो पईवो १३ ब । ८. भार ब. । ९. दीव ब. 1 १०. नेवेज्जं० ब. । - - 1 - - Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओप्रिल-२००७ प्रमुख ग्रंथानुसारइ यथोक्त सर्वविध साचवी । प्रथम पूरव दीशै संमुखें करी सरीरनो सर्व मेंल टालवा द्रव्यस्नान करवू, अनैं भावमल टालवानें वितराग पूजा - विविध लक्षण शुभाशय छै एहवो । मुख "शुद्ध करीनई, श्रीवितरागनी पूजा सारु दंत-मुखादि पवीत्र करीनें मुखे आठपडो मूखकोश बांधीनें निर्मल धोतीक परिधान करवी, धोतीइंआ पेंहरी । एहवो थईनई एहवी विधे पूजा करखी । कनक मणीनें-सुवर्णरत्नतणे मंडित-विशेष भूषणे, तें पहेरीने वेढवेंटी पेहरवी । ग्रहणे भूषीत हुंतो निर्मल सुगंध पांणीइं करी शरीर नवरावीई। भर्या छई मणि-कनकादिकना कलशानी श्रेणिई रहीनई कलश ४ अबोट पाणीइं भर्या, कलश १ दूधनो एवं नंग ५ कलशा जेणई एहवो हुँतो ॥१|| जिनपभवनं गतो भगवदालोकने, नमति तं प्रथमतो माजतीशं । दिवि यथेंद्राद्रिका तीर्थ-गंधोदकिं स्नपयति श्रावको तिम जिनेशं ॥२॥ जिनप क. जिनेश्वरना श्रीवितरागना, भवनं क. प्रसादने प्रतें - विर्षे, गतो क. पोहतो थको, भगवदालोकनें क. भगवंत प्रति देखीनई जिनने देखीनें “निसी" एवो पाठ कहीनई, प्रथम-पहिलो नमई-नमस्कार करइंप्रणाम करई । ते भगवंत प्रतइं प्रणमीनें पछई पूंजणीइं पूंजई -वितरागनं सरिर पूंजें । जिम इंद्र ईश कहतां स्वामीना बिम्ब प्रतइं दिवि क. देवलोकनै विषइ पूजे छई, तिम भाव राखवा । यथा क. इंद्रादिकें देवताइं स्वामी ऊपरई तीर्थ, पदमद्रह-गंगादीकनां सुगंध पाणीइं करी न्हवरावइ, तिम स्त्रपयति कहतां सुगंध पाणीइं न्हवरावई श्रावक-भव्य प्राणी, जिनेश क. जिनेश्वर प्रतई पूजा करतां ॥२॥ राग-अडाणो । मलार-केदारो मिश्रित । हवें एहवइं एहज भावनुं गीत कहे छई । अडाणे रागई तथा मल्हार रागें केदारामिश्रित रागें कहे छई । भवि तुम्हे देखो अब तुझे देखो, सतर भेद जिन भगती । अंग उपांग कही जिन गणधरि, कुगति हरैइ दिई मुगती ॥१॥ तुझे। अरे भवि क. भव्य जीवो-मुक्तिगमन योग्य जांणी प्राणीओ ! हवणां तुम्हे निरखो-जूओ | सतर भेदइ जिनेश्वरनी भक्ति-पूजानी विधि विविध ११. सुगंध ब. । १२. हरि ब. । Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 42 अनुसन्धान ३९ १७ प्रकारनी रचना छई अंग आचारांगादिक, उपांग रायपसेणीप्रमुखमांहैं, जिन भगवानई तथा गणधरई कही । ए श्रीजिनपूजा केहवी छै ? नरकादिक कुगतिनई हरइ, अनें मुगतिनई आपइ । एहवी पूजा तुझे निरखो || १ || शुचि तनु धोति धरी गंधोदकं, भैणी ( भरीय) मणिनी कलसाली । जिन दीठइ नमी पूजी पखाली, दिइ निज पातिक गाली ॥२॥ तुह्ये० । तुम्हे पूजाना फल जूओ । शरीर शुचि पवित्र निर्मल करीनें, निर्मल धोतीयां पहिरी, गंधोदकं क० सुगंध पाणी भरी, मणि- कनकादिकनी कलशनी श्रेणिई करीनें । जेणई श्री जिन-जिनेश्वरनें देखीनई नमी - प्रणमीनई, मोरनें (?) पूंजणीइं पूंजीने, पाणीइं न्हवण करीनई - पखालीनई, एहवो थको पूजक- पूजनारो पोताना पातिक गालई दिई - मोक्षनां सुख आपई एहवी पूजा उज्ज्वल ॥२॥ समकित शुद्धि करी दुखहरणी, विस्ताविरती करणी | योगीर्सेर पणि ध्यानें समरी, भवसमुद्रकी तरणी ॥३॥ तुम्हे० ॥ वली पूजा केहवी छ ? समकितनई शुद्धिनी करणहारी । समकिति नरगई न जाय तें माटें शुद्धनी करनारी । दुर्गतिनी दुखनी चुरणहारी । विरताविरती कहतां जे श्रावक तेहनी एह करणी छ । योगीश्वरई पणि ए पूजा पिंडस्थ - पदस्थादि ध्यानमांहि संभरी छइ । पूजा संसार समुद्रनी तारणहारी - भवसमुद्रमांहि तरवानइं नावा सरीखी छै ते पूजा । वली ए पूजा केहवी छे ? ॥३॥ देखावती नही कबही वेतरणी, कुमतिकुं रवि भरणी । सकल मुनीसरकुं शुभ लहरी, शिवमंदिर नीसरणी ॥ भवि तुम्हे ० ||४|| ए सतरभेदी पूजा कहेवी छें ? ए पूजा किवारै वैतरणी नदी नरकमांहे छई ते देखावई नहीं । तेनुं दूख देखावें नही । वली कुमतिनई दीटई थिकै रवि - भरणीना योगनी परि थाई । एतलें पूजा थकी कुमतिनो योग - जोर जाई, "भरणी भास्करे देयात्" इति वचनात् । सकल- समस्त मुनीश्वरनई, तथा ग्रंथकर्तानुं नाम उ. श्री सकलचंद जणाव्युं । जें ए सकल १३. भरीय मणी कनककी कलस आली । ब । १४. योगीसर पिण० ब. । Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्रिल-२००७ ____43 शुभ योगनी लीलालहरि छइ । वली ए पूजा कहेवी ? शिवमंदिरनी-मोक्षमंदिरे जावा नीसरणी छई ॥४॥ अहो भव्य प्रांणी, तूमे जिननें पूजो । एतलै प्रथम पूजा न्हवणनी थई । इहां भगवंतने नमण करावई ॥१॥ ॥ इति प्रथम न्हवण पूजा ॥१॥ राग-रामगिरी । ढाल-जयमालानी । हवइं बीजी पूजा कहे , रामगिरि रागें पूजा छे तें कहीश ! ढाल जयमालानी देशीयई कहे छई । बावना चंदन सरस गोसीसमां, घसीय घनसारस्युं कुंकुमा ए । कनकमणि भाजनां सुरभिरस पूरियां, तिलक नव प्रभु करो अंगमा ए॥१॥ मलयाचलर्नु बावनाचंदन वली रसइं सहित गोशीर्षचंदनमांहिं घसीइं । वली घसीनई घनसार क. बरास-कपूर एकठो करीने कुंकुम कहतां केसर साथई कृष्णवाडीनुं खाटी कुंकूशब्द कष्णो छई । वली स्यूं सोनानां कचोला, रूपानां प्याला, तें (ने) कनकमणिनां भाजनमां चंदने भयूँ छई । ते पणि सुगंध द्रव्यनइं रसई एहवां भाजनमाहिथी चंदन लेईनें भली व्यु(यु)गति तिलक नव प्रभुना अंगर्ने विषई करी, नव वाडी विशुद्धि नव ठामें विसुद्ध सुशीलना, तथा नव अशुभ निदान टालवानी भावनाइ । ते नव तिलक कुण कुण ठामई ते कहई छई । चरण १ जानु २ कर ३ अंस ४ सिर ५ भालि ६ गलि ७, कंठि हृदि ८ उदरे ९ जिननें दीजीइं ए । देवना देवनुं गात्र विलेपता, हरि प्रभो दुरित कही लीजीइ ए ॥२॥ बे अंगूठा चरणना पगनो डाबो जमणो । ढींचण बे पगना डाबु जमणुं २ । वे हाथ, डाबू जमणुं ३ । अंसे बे खभा-डाबो जिमणो ४ । सिर तेह समें द्वार तिलक ५ । भाल ते निला. तिलक करें ६ । गलि, कंठि Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ३९ ते गर्नु तिलक करे ७ । हृदि ते होउं, हिइं तिलक करे ८ । उदर ते पेटई तिलक करई ९ । इम सृष्टई तथा समकालें एहवां नव तिलक कीजें, जिननें नव अंग । तें ए देवनो देव ते जे वितराग तेहनो गात्र ते शरीरं विलेपतांपूजतां पछइं समग्र लेपीई तिलक करे ए भावना भावीइं प्रभो ! स्वामी । तुह्मे सदा शीतल-सांत सुद्ध सहजभावइ छो, पणि है अनादि कालनो विषय क्रोध कषायें थाइं तप्त छु । दुरित कर्म-रजइ गुडित-जूत छु । माटें तुमें दूरीत-पाप, प्रभो ! स्वामी ! टालों । ते प्रभुनी पूजा थकी उपसांत थाउं। ।।२।। हवें बीजी पूजानुं गीत । दुआलं । राग तोडी अथवा वैराडी । राग तोडी तथा वैराडीइं रागमां स्तवनां कहइ छ । तिलक करो प्रभु नव अंगई, कुंकुमचंदन घसी शुचि घनसार । प्रभु पगि जानु कर, अंस सिर भाल गलि, कंठि दि उदर सार, अहो भाल थल कंठ रिदय उदरि च्यार, सय पूजाकार ।।१॥ तिलक० तिलक करो प्रभु श्रीवीतरागनई नव अंगनई विषइ । पूर्वे कही ते जाणवा स्यै करीनई ? कुंकुम कहतां केशर-चंदन, ते आज सुकडि साथई शुचि घसी अंबर क० बरास कपूरमांहे भेलवीइं बावना चंदनस्यूं । एतले ए घोलमां वर्ण, गंध नै शीतलता ए त्रिण्य ऋण्य भावें करीने हुता, तेहनो ए भाव केसर सुकडि बरास मेल्यि थाई । प्रभुनई चरणे १, जानुइं २, हाथई ३, अंश क. खभइ ४, शिर क. मस्तकें ५, भाल ते निलाड ६, गलकंठि ते गलि ७, हृदि क० हीयें ८, उदरि ते पेट ९, एहवा नव अंगई सार-प्रधान तिलक कीजई । अने इहां पूजानो कार-करनार स्वयें वीतराग पूज्या पेलां च्यार तिलक करई ते किहां ? प्रथम भालस्थलैं, कपोले, आज्ञा धारवानी भावनाई ते १ । कंठे प्रभु गुणस्तवनां घोषवानी भावनाई २ । हृदये प्रभुगुणचिंतन धारवारूपइं तें भावें ३ । उदरई प्रभु गुणनी अतृप्तिपणे ४ । एवं च्यार तिलक करइ । कपूर, अगुरु, कस्तूरि, चंदन द्रव्ये मिश्रित विलेपने । ते यक्षकद्दम कहीइं ॥१॥ १५. अमे- ब. । १६. तप्ती छीइं-ब. । Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्रिल २००७ करीय यक्षकर्दम अगर चूओ मर्दन, लेपो मेरे जगगुरु गात । हरि जिम मेरु परिं ऋषभकी पूजा करिं, देखावति कौतिक उर उर भाति ॥ २ ॥ तिलक० ॥ ते यक्षकर्दम करीनइं अथवा ते यक्षकर्दम ते गोसीसचंदन, रक्तचंदन, रांजणी प्रमुखनइ कहे छै । तथा अगर चूओ भेलो मर्दीनई मर्दन करीनई, तेणें घोली करी । ते घोलनुं कचोलुं भरीनें माहरो स्वामी- मारो जगगुरुजगतगुरु भगवाननुं गात्र ते शरीर लेपों पूजो, जिननई एतलें विलेंपन करो । ते केहनी परि ? जिम हरि क० इंद्र चोसट्ठि मेरु उपरे - मेरु पर्वतने शिखरें ऋषभदेवनी पूजा करई, तें भाव आणीनई । देखाडइ नवा कौतिक, भक्तिरचनानी विचित्रता नवनवी भांति विविध प्रकारनी रचना उर उर भांति - रचनाई करीनई ॥२॥ हम तु तनुं लींप्यो तो ही भाव नही छीप्यो, हीरो हम ताप । ऐँ दूजी पूजा विलेपनकी, देखो प्रभु विलेपन की बात । 45 और हरि दुरितकुं, शुचि कीनो गात ॥ ३ ॥ तिलक० हे प्रभो ! अह्मे तुम्हारुं तनुं क. शरीर चंदनादिकनें घोलें लीप्यो, ते स्यूं नवें अंगई तिलक कर्यु । अने वली तो ही प्रभु भाव नथी छीप्यो कहतां पूर्ण नथी थयो । उल्लास वधतो छ तेह शो भाव थयो ? हे स्वांमी ! अमें तुमें उल्लाश थइनें पूजो तें विलेपननी वात दृष्टान्त देखो प्रभु, ते जोओ स्वामिन्! हरी क० टालो भवनां जे पातिक ते कर्म आठ तेनां जे पातिक, हम क० अम्हारो भवभवना कर्मनौ ताप हरो । तें बीजी पूजा विलेपननी । बीजुं वली भगवंतनुं हृदयस्थल लींपतां भवभवनां पातिक दुरितनई हरि क० टालो, एम बीजी पूजाई विलेपननें कहीनें आत्मास्युं शरीर मिलें शुचि - पवित्र कीधां । एवी रीतें वीतराग पूजें ते सुलभबोधी थाई । ए गीत कह्युं ॥३॥ तिलक० ॥ I इति बीजी पूजा विलेपननी ||२|| १७. ए दुजी पूजा विलेपनकी अघहरि ताकुं शुचि कीनो गात ॥३॥ ब. Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 46 अनुसन्धान ३९ एतलई ए बीजी पूजा बावनाचंदनई विलेपननी थइ । बावनाचंदन भावनाई थइनई पूजो तें विलेपननी वात दृष्टान्त ॥२॥ हवई त्रीजी पूजा चक्षु युगलनी कहे छ : राग-रामगिरी ॥ तिमिर संकोचनां स्यणना लोचनां, इम कही जिन मुखि भविक थापो । केवलज्ञान में केवलदर्शन, लोचन दोय ए देव आपो ॥१॥ तिमिर क. अज्ञाननई संकोचकारी क० टालणहार एहवां रत्नजडित लोचन प्रभूनां छई, इंम कहीनइं प्रभुमुखई अरें भविक प्राणीओ ! भव्य जीवो! चायुगल जडावनां थापो । ते देखीनई तिहां सी भावना करइ ? प्रभु जिम तुह्मारइं अक्षय केवलज्ञांन १, अक्षय केवलदर्शन २, रूप ए बे लोचने करी सहित एहवो तूं छई, तिम ते लोचन अमनइ पणि हे देव ! आपों। ए भावना ॥१॥ अथवा वली पाठांतरि त्रीजी पूजामां अंगलूणां २, तेहनी पूजा कहीं छइं : अहव पाठंतरि त्रीजीय पूजामां, भुवन विरोचन जिनप आगई । देव चीवर समु वस्त्र युग पूजतां, सकल सुख स्वामिनी लील मागइं ॥२॥ त्रिभुवननई विषइ-विरोचन कहतां सूर्य समान एहवा जिनप आगे कहतां जिनेश्वर आगई-आगलें देवचीवर कहतां देवताना वस्त्रयुगलने बे वस्त्रनी पूजा करतां ए भावना भावइ: सकल सुख जे मोक्षनां तेनी प्रभुतानी जे लीला, जन्म-जरा वीगर तेनी लीला, स्वामी पासई मांगई छई जाणीइं । ___ गीतं । राग-अधरस । रयण नयण करी दोय माणिक लेके मेरे जिनमुखई दीजई । केवलज्ञान में केवलदरसन हमु परि कृपा करी प्रसाद कीजै ॥१॥ ए त्रीजी पूजा- अधरस रागें कहई छई गीत प्रतई । स्यण क० रत्नजडित नयण करी एतलई चक्षुयुगल, एहवां बें माणिक ते लेइनई मेरे Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्रिल २००७ कहतां माहरा जिननें स्वामीनई मुखई दीजई । ते ना (नेत्र किहां ? केवलज्ञांन ए पेहलुं नेत्र अनई बीजुं केवलदर्शन । ए बेऊं नेत्र, तेणई हमुपरि क० अ ऊपरि कृपा करीनें स्वामी ! तुमे ते बें नेत्र प्रसाद करीई एतलें आपीइं मुझने ज्ञान- दीवो ॥१॥ देवदूष्य वस्त्र सम वस्त्र जोडि लेकें, हवई त्रीजी पूजा कीजई । उपसम रस भरि नयन कटोडिं, देखि देखि जिन मुख रस पीजई ॥ २ ॥ रय० । देवदूष्य वस्त्र सम क० देवदृष्य वस्त्र सरीखा बे वस्त्रनी" जोडली करीनई स्वामीनी त्रिजी पूजा कीजें । तां थकां उपसमतारसभर्या स्वांमी सामुं जोतां जोतां जिनरूपसुं जिनने अंग लुहो ए वस्त्रयुगल ते ए सुभ भावें करीनें पूजा कर । उपशम क. समतारस भरी नयनरूप कटोरी - कचोली तिणें करीनें निरखें । अमृतलो ए पीजें । जोइ जोइ जिनमुखरूप सुधारस पीजीई ॥२॥ एतलई ए भाव आपणें त्रीजी पूजा चक्षुयुगलनी तथा देवदूष्य वस्त्र बेनी तें अंगलूहणां २, तेनी पूजा ॥३॥ इति त्रीजी पूजा चक्षूयुगलनी ॥ 47 हवें चोथी पूजा वासनी । राग - रामगिरीइं कहे छई राग - रामगिरी नंदनवनतणां बावनाचंदनां वासविधि चूरणां विरंचियां ए । जाइ मंदारस्युं शुद्ध घनसारस्युं सुरभि सम कुसुमस्युं चिरचिया ए ॥१ ॥ नंदनवन, ते मांहि ऊपनां एहवा बावनाचंदन, तेहनां काष्ट आंणीने तेहनां चूरण कीधा ते वास । तें चूर्णादिकई करी, विधियुक्त नीपजाव्या एहवा उत्तम चूर्णनो जे वास तेणें, पूज्या । जाति- जायनां फूल, मंदार ते कल्पवृक्षनुं फूल, शुद्ध-निर्मल घनसा[ ] ते बरास साथै भेलो कीधो, एहवां जे फूल, तेणें सुरभि-सुगंध कुसुमने संघातई विरचित - कीधो जे वास - परिमल वासना करतो, तेणें जिननें पूज्या ॥१॥ १८. वस्त्र जोडीनें- ब. । १९. भवन ब. । २०. चिरचिआ ए, ब. ! Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ३९ चोथीय पूजमां गंध-वासई करी जे जिन सुरपति अरचीआ ए । प्रभुतणई अंगि मनरंगि भरि पूजता आज ऊचाट सवि खरचीया ए ।।२।। चोथी पूजामां एहवा सुगंध वासई करी वासपूजा करतां थिकां सुगंध-परिमल देवी, नीमां (?) वस्तुइं । जे जिननइं सुरपति क० जे जिननें इंद्रई चोस४ि अरच्या-पूज्या छे श्रीसुमेरु पर्वत पंडुशिलाई, तिणि परि प्रभुनई अंगि मननें बहु प्रमोदपणे करी - घणो प्रमोद आंणीनई, मनरंगे भरी पूजतां थकां ए भाव आणइं:आज सघलाई कर्मना ऊचाट - उपायलो (?), वासपूजा करतां ते सर्व खरच्यां ने नांख्या-खपाव्यां । जे माटई वासपूजाथी धर्मनी वासना निर्मल थइ तिणे करी आर्तध्यानादिक विकल्प टलें ॥२॥ हवें ए पूजानुं गीत कहै छै गीतं- राग टौडी -रामगिरी ॥ सुणो जिनराज तव मेहनं, इंद्रादिक परि किम हम होवत तो भी तुह्म सब सहनं ॥१॥ सुणो० ॥ हे जिनराज ! ताहरु महन कहतां ताहरी पूजा ते भक्तिभाव, ताहरो महिमा, मनुष्य थकां ते इंद्रादिकनी परि हम कहतां अह्मथी किम होवत क० किम थाई- किम होइं ? जे भणी इंद्रादिकनें तो दिव्य शक्ति छे, अचिंत्यनीय छई । तो हि पणि तुह्मो सर्व सहो छौ । रंक-राजाइं समानदृष्टितुल्य छौ । ते माटें सर्व सहज्यौ ॥१॥ सतरभेदई द्रुपद रायकी कुमरी पूजति अंगि । जिम सूर्याभसुरादिक प्रभुनई पूजति तिम भवि मनरंगई ॥२॥ सुणो०॥ सुणो जिनराज ! मारी मेंनत । सतरभेदई पूज्या द्रुपदी-द्रुपदरायनी कुयरी जिम पूजई ते कही छे । तेणें सतरभेदी पूजाइं पूज्या ज्ञाताधर्मकथांग, तेहनें विषई । वली जिम सूर्याभौदिक देवता प्रभुनइं पूजई छई, जिम रायपसेणी सूत्रमाहे कह्यु छई, तिम मैंव्य प्राणिई मनरंगि कहतां मननें उछरंगेमन उच्छाहई करीनइं पूँजई छइ ॥२॥ २१. तोडी-ब । २२. महन्नं-ब । २३. पिण तुम्हो-ब. । २४. पूजा-ब. । २५. बेटी-ब. | २६. सूरिआभदेवता-ब. । २७. भवि प्राणि-ब. । २८. पूजवा-ब. । Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्रिल २००७ विविध सुगंधित चूरणवासं मोचति अंग ऊवंगिं । चउथी पूजा करति मनि जानति मेलावतिआं सुखसंगइ ॥३॥ सुणो० ॥ विविध क० अनेक प्रकारना सुगंध छै जेहनें विषई एहवा चूरणना वास प्रतई वासना करई । मोचति क० मूके छइ प्रभुने अंगै ते मस्तकादिके, उपांग ते करादिकने विषें, अंग- उपांगमांहि पण कयूं छइं । चोथीई पूजा वास पूजा करतां भविक - भव्यजन मनमां इंम जाणीइं जे श्रीवितरागनें मेलावतिआं कहतां मेलावो स्वर्गनो होई, मेलाववानुं हेतु ए चूर्ण छ । एहवी वासपूजानो भाव भावई । स्या प्रति ? सुखना संग प्रत पामई ॥३॥ इति श्री चौथीय सुंगंध-वास पूजा ॥४॥ हवें पांचमी फूलनी पूजा सादर आसाउरी रागें कहइ छ । राग आसाउरी सादो || मोगर लाल गुलाल मालती चंपक केतकी वेली । कुंद प्रियंगु नागवर जाती बोलसिरी शुचि मेली ॥ १ ॥ - मोगरानां फूल धोला, रक्त अशोकादिकनां फूल रातें रंगे, गुलाबना फूल, वली मालतीनां फूल, वली पीला फूल, चंपकैना फूल, केतकीनां फूल, वेलिपुष्प- जातिनां वेलना फूल, धोलां कुंद क० मचकुंद धोलें रंगई जातिना फूल, प्रियंगु - नीलो, अंग तें वृक्षविशेषनां वर-प्रधान जातिनां फूलनां, वृक्षनां फूल, जांबुनां फूल, तथा बोलसिरीनां फूल, ते सुचि - पवित्र, इत्यादिक फूलनी जाति मेलीनें- भेला करीनई ॥१॥ 49 भूमंडल जल मोर्केलई फूलई ते पणि शुद्ध अखंड | जिन पद पंकज जिउ हरि पूजई तिण परिं तिउं भवि मंडई ॥२॥ मो० । भूमंडल क० पृथवीनां ऊपनां फूल तथा जलनां ऊपनां फूल, पद्मद्रहादिक । ते सर्व एकठां घणां फूल, मोकला क० ते सर्व जातिनां घणां, ते वली शुद्ध वर्ण-गंध-रस-फरस सुठाममां ऊपनां, तेणें सहित सुध - खंडित नही, कीड़ें करड्या नही, भूँइ पड्या नहि, मलिन दुगंछनीय नही, एहवे फूलै २९. भांतिना सुगंधी छें ब. । ३०. कहीइं छई चंपाना ब । ३३. मोकले ब. । - ब । ३१. मोगर ब. । ३२. Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 50 अनुसन्धान ३९ श्रीवितरागनी भक्ति करीने जिम जिनचरणकमल हरि क० चोसट्ठि इंद्रइं पूज्या-अरच्या छे, ते भाव आंणी तेणी परई हे भविक ! तूं पणि इम करों। भव्यलोक श्रीजिनपदपंकजनें पूजे छई तेहवो भाव निर्मल आंणीनई ॥ मोगर० ॥२॥ गीत पूर्ण छई ॥ ___एतलें जिनचरणे कुसुम थापी हवें फूलनी पांचमी पूजानुं गीत कहस्यूं । गीतं० "नृत्यकी - आसाउरी - नट्टसिरी" || पारग तेरे पद पंकजोपरि विविध कुसुम सोहइं, हारे विवि० । औरॅनकुं आक धतूरे तुम सम नवि कोहे.... ॥१॥ पारग० ॥ हे पारग ! क. पारना पोहचनारि एतले भविजननें अपार संसार तेनो पार पमाडवें समर्थ ते माटें पारग ! तारा चरणे, हे वीतराग ! ताहरा चरण कमल ऊपरि विविध जातिनी उत्तम वृक्षनां कुसुम फूल तें ता[रा] चरणे शोभे छइं । वली पाछली रागनी वलण केहवी । ओर-बीजा जे देव रागी स्त्रीयादिकना मोह्यां, दोसी देवनें आकनां धतुरनां कणयरादिकनां, बीलीनां पत्र, वेली प्रमूख फूल शोभई । जे मार्टि श्रीअरिहंत तुंम सरिखां कांइ नही निरागी, तुह्म सम कोइ अपर देव छइं नही ते भणी-ते माटई पारग ॥१॥ तेरे०॥ ऐहवी विविध कुसुम जातिसुं जव पांचमी पूजा पूजई । तव भविजन रोग सोग सवि उपद्रव धूजइं ॥२॥ पारग० ॥ एहवी प्रकारई विविध भांतिनां जे फूल तेणें करीने, नाना प्रकारना कुसुमजाति करीनई तुमनें जिवारई पांचमी पूजा पूजई कहतां करई, फूल चढावई, तिवारइं तेहनइं सकल भविजनने - भव्य प्रांणीने रोग सोगपणुं सर्व वेगलूं जाई, चिंता-फिकर सर्व उपद्रव उपशमई, विघन सर्व प्राणीनां धूजईअंगथी नाशई ॥२॥ इति पांचमी छूटा फूलनी पूजा ॥५॥ ३४. नृतकी - ब. | ३५. नटसिरी - नटरागई ब. । ३६. पदपंकज परि । ३७. उर देवकुं आक धतुरे ब. । ३८. प्रकारनां - ब., । ३९. एह विविध ब. । ४०. ज्यारई ब. । Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्रिल-२००७ 51 एतलई ए छूटा फूलनी पांचमी पूजा थई ॥ हवै छट्ठी पूजा फूलनी मालानी देशाख रागें कहे छई : राग - देशाख ॥ चंपगासोग पुन्नाग वर मोगरा केतकी मालती महमहंती । नाग प्रियंगु शुचि कमलस्युं बोलसिरी वेलि वासंती ए दमन जाती ॥१॥ चंपक वृक्षना चापाना फूल पंचवर्ण, अशोकवृक्षनां फूल, नांगपुन्नाग वृक्षना फूल, वर-प्रधान मोगराना फूल, केतकीनां फूल, तथा मालतीनां फूल, सुगंध महकती, महमहाट करती दश दिशई, नाग वृक्षना फूल, प्रियंगुवृक्ष "पुप्फेसरसी प्रीयंग(प्रीयंगु)वनइंति" राजादनि पवित्र एहवां कमल साथइ-कमलनां फुल, शतपांखडी, सहस्रपांखडी, बोलसिरीनां फूल, कालुवरि वृक्षना वेलि, वासंती चमेलिनां फुल, दश दिशें मसमसाट करतां दमानाकनी जातिनां-दमणो-मरुओ ए फुलनी जातिना फूल । कुंद मचकुंद नव मालिका वालको पाडलांकोल शुचि कुसुम गूंथी । सुरभि कुसुममाल जिन कंठि बेठी वदई भमर मिसि हो तुझे सुखी यमूथी ॥२॥ ___ कुंद अनैं मचकुंद, रवि-धवल सुगंध-पुष्पनी जाति, तेना फूलनी माला, तेज नवमालिका नवी मालती फूलनी माला, ते जूहीनई कहीइं । तथा कुसुमना गुछनें कहीइ, ते वली सुगंध पांनडा वेल प्रमुख, पाडलां-पाडला फूलनी माला गुंथी, जासुल, अंकोल वृक्ष- जातिना फुल, कोरंटकादि, ए सर्व गुच्छना जाति-शुचि कुसुम क० पवित्र कुसुम साथे गुंथीनई, हार-लक्ष फूलनां टोडर गूंथी करीनइं, एहवां सुरभि क० सुगंध मनोहर जे फूल अनेक जातिना कुसुम, तेहनी माला जिननि - श्री जिनेश्वरने कंठि थापई - आरोपी थकी शोभायमांन दीसे छई 1 जिन कंठे बेठी कहे छई ती जाणीयई । भमर गूंजारव करे ,, भमरना शब्दने गुंजारवनइं मिसि कहे छई । भविकनै ते कहे छे : अरे भव्यलोको ! तुमे जिननां चरण आराही-स्येवा करो । जे ए जिन ४१. आसोपालव ब. । ४२. मसमसाट करतां ब. । ४३. चेलनां ब. । ४४. कोल वृक्ष - ब. । ४५, फूल - ब. । Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ३९ सेव्याथी मुझथी पणि सुखी थाओ । सुर-देवताई गुंथी माला लोकनें कहे छई । अथवा भमरा गूंजतां मालानें कहे छै अह्मे थकी पणि तुमें सुखी थाओ। जे माटें जिनने कंठइ बेठी छे ।।२।। छट्ठी पूजा फूलमालानी तेहनु गीत सबाफ रागें कहे छइ : गीतं - राग - सबाफ ॥ कंठ पीठई दाम दीठई प्रभु मेरे पाप नीठइं जिउं शशि देखत जाइ जन तनु ताप । पंचवरण सब कुसुमकी गलइ ठवी गगनि सोहती जेसई सुरपति चाप ॥१॥ कंठ० ॥ कंठ पीठई क० जिननां कंठपीठनें विर्षे, दाम क० फूलनी माला, देखता थिकां हे प्रभो ! मेरे क० माहरा सर्व पाप नीठई क० मिटई-जाईक्षय थाइ । जिउं क० जिम चंद्रमानें दीठे - निरखतां प्राणीओना-सर्व वस्तुनां जन्मना परिताप जाइं । जे शरीर तेहना ताप जाइं । पंचवरणी सब कुसुमकी क० सर्वकुसमी- फूलनी माला जिनगलैं ठवी-थापी केहवी शोभइ छई ते कहे छई । गगनि क० आकाशमार्गे-आकाशनें विषं, सोहती क० शोभई, जेसई क० जिम, सुरपति क० इंद्र, तेहy चाप क० धनुष-केतुं सोभे? तिम-तेहनी परें शोभा, तिम जनि(जिन)ना कंठे फूलमाला शोभई । लाल चंपक गुलाल वेली जाती मोगर दमन भेली । गूंथी विविध कुसुमकी जाति । छट्ठी रे माला चड्ई दसदिस वासती तव सुरवधू परि नरवधू गात ॥२॥ कंठ० ॥ लाल पाडलनां फूल, चांपानां फूल, गुलाबना फूल, वेलनां फूलनी माला, जाइना फूल, मोगराना फूल, दमणानां मरुयादिकई सहित भेलीनईकरीनई टोडर गूंथ्युं, गूंथीने विज्ञानई करी रची विविध प्रकारना कुसुमनी जातिइं एतलई पंचवरणी जातिनां टोडर । छट्ठी पूजा फूलमाला चढाववानी ४६. जनमतनु ब. । ४७. अरिहंतनई गलें - ब. । ४८. लाल गुलाब चंपकवेलि, जाइ मोगरो दमणो भेली ब. । ४९. फुलनी ब, । Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्रिल-२००७ 53 श्रीजिननें कंठे पूर्व-पछिम-उत्तर-दक्षिण-उर्ध्व-अधो ए दश दिशई सुगंध वासती । तिवारे ते वेलाई सुरवधु क० अपच्छरानी परें नरवधू क० मनुष्यनी वधु-नारीओना वृंद पणि गीतगान गाती-करती छे ॥२॥ इति छट्ठी फूलमालानी पूजा ॥६॥ इतिश्री छट्ठी फूलनी माला चढाववानी विधि कही । हवें सातमी पूजा पंचवरण कुसुमजातिनी आंगीरंचना पूजा कहे छे गोडी रागई । राग - गोडी सादो ॥ सातमी पूजमां वरणक फूलस्युं भवि करई ए । चंपक दमणलो मरुओ जासूलस्युं चीतरिओ ए ॥१॥ पूजा पंचवरणी फुलनी आंगीनी । गोडी राग । सातमी पूजामां फूल साथई चरणकमलें भवि प्राणी रचना करइ । ते आंगी केहवी भव्यजीव रचइं ? चंपा-चांपना पीला फूल, दमणो नीलवर्णे, मरुओ गुलाबरंगी, रातां फूल जासुलनां रक्तवर्णइ, धोलो जास्यूं, ते सार्थे चीतों-रच्यो हुँतो पूजा करतां चीत वस्यूं प्रांणीनुं ॥१॥ 'अंगीय केतकी विचिं विचिं शोभती देखीई ए । आंगीय मिसि शिवनारिनइं कागल लेखीइं ए ॥२॥ अंग कक्षाने विषई आंगी विचई केतकी मूंकी, आंगी माहि विचइ विचइ पंचवरण नी कुसुमनी शोभाई शोभावंत, देखीई छइ ते जाणीइ । आंगी रचनानई - आंगीने मसें - मिसइ "शिवरूप नारीनई कौगल लिखइं छई । ए द्रव्य पूजा थकी एहवो भाव लीधो ए में पिण मोक्षनां सुख पांमस्यइं एहवो लेख फूलें मोक्षने लिख्यो छे ॥२॥ हवई पूजा सातमीनुं गीत मालवी गौड रागै कहै छई । ५०. स्त्री - ब. । ५१. जालस्युं चीतY ए ब. । ५२. आंगीय आंगीय विच विच केतकी सोभती देखीइं ए ब. । ५३. पंचवर्णी विच फुल शोभई ब. । ५४. देखीनई ब. । ५५. मोक्षरूपणी स्त्रीने - ब. । ५६. लेख लखें - ब. । Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ३९ गीतं ॥ राग - मालवी गोडी ।। कुसुम जाति आंगी मनि खंति, पंचवरणनी जाति रे । माहिं विविध कथीपा भांति रे ॥१॥ कुसुम० सातमी पूजा, गीत कहे छई । तिमज ए फूल विविध प्रकारनां लेइ कुसुमनी जातिनी आंगी रचीई । वली केवी ? मननें हर्षे करी-कीधी । पंचवर्णी फूलनी जातिथी आंगी रचीई छे । वली केहवी ? मांहिं जाणीइं छे विचि विचि विविध प्रकारना कथीपानी भांतइं केवी दीसे तेहवी आंगीनी शोभा दीसई छई जेहनी ॥१॥ पंचवरण अंगी प्रभु अंगई, रचयति ज्युं सुर रामा रे । ऋषभकूट चक्कि-नामा रे ॥२॥ कुसु० ॥ पंचवर्ण फूलनी आंगी प्रभु ते जिनेश्वरनें अंगई आंगी रचयति कहतां रचई केवी शोभे छई ? जिम सुररामा क० देवांगना-इंद्राणीओ, तेणें आंगी रची तिम रचे-नीपजावें । कुंण दृष्टांते सोभे छई ? जिम ऋषभकूट पर्वतनई विषई चक्री दिग्विजय करी पोतें नाम लिखें, तिम भविक-भवि प्राणी पणि मिथ्यात्वादिकनो जय करी चक्रीनी पर आंगीरचना मिसै ऋषभकूटें नामो लिखतो छ, तिम जिनेश्वरें दिग्विजयनी आंगी रचीइं छै ॥२॥ चंपकस्युं दमणो मन रमणो संझ-रागस्युं सामा रे । सूर्याभादि करइ जिनपूजा सकल सुरासुर गातई रे ॥३॥ चांपाना फूल साथें-दमणो मनने गमतो; दमणानां पत्र केवा ? मननई खुस्याल करई एहवां । जिम संध्या रागें मिलती श्यामा रात्रि शोभइ छई तिम वली आंगी शोभई छ । वली सूरयाभादिक सुर-देवतां जिम जिननी पूजा करइ तिम । वली कुंण पूज्यइं ? सकल क. समस्त सुरासुर गाँतई हुंतइं तिम ए कुसुम पूजा शोभई छई ॥३॥ ए सातमी पूजा विविध जाति पुष्पादिकई करी आंगी करवानी ॥७॥ ए पंचवरण कुसुम जातिनी आंगी रचना पूजा सातमी कही ते माटे हिवणां संप्रदाई विविध जातिनी आंगी करता दीसइ छड़ ॥७॥ ५७. गातें थकें - ब. । Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्रिल-२००७ राग गाथा सातमी पूजा विविध प्रकारनां फूलनी आंगीनो अधिकार कह्यो संपूर्णम् ॥७॥ हवें आठमी पूजा चूर्णनी राग केदारै तथा कमोद कल्याण कहे" छई - राग-केदारो तथा कमोद कल्याण ॥ घनसारादिक चूरणं मनोहर पावन गंध ।। जिनपति अंगसु पूजतां जिनपद करइ भवि बंध ॥१॥ घनसार कहतां बैरास-चंदन्नादिक सुगंध वस्तुनुं सूक्ष्म चूरण कीधुं छई, ते चूर्णनो सुगंध, अतिसुंदर पवित्र गंध छइ जेहनो एहवो । जिनपतिजिनेन्द्र तेहने अंगई सुपूजतां कहतां भली प्रकारे पूजता थका स्यूं करई ? भवि प्राणी जिनपद नामकर्मनो बंध करई ॥१॥ अगर चूओ अति मरदीओ हेमवालुका समेत । दस दिसई गंधई वासतो पूजा जिनपद हेति ॥२॥ अगर उत्तम जातिनो, तथा चूओ प्रधान वस्तुनउं अति पवीत्र, तेणें शरीर मर्दन कीजई । ते माहि हेमवालुका क० बरास-कपूर मरदी-चोलीनेकपूरमांहि भेलोनै ते संघाते चूर्ण भेलवू ज । ते चूर्णसहित करी दस दिसई सुगंध वासइ तिम, सुगंधता परिमल वासतो थकी पूजा करई, जिनपद बांधवानो ए हेतु छै ॥२॥ (यद्यपि वासपूजा पहिलां कही छै ते वास चंदननो जाणवो) ए पूजानो गीत कानडे रागे कहै छै ॥ गीतं - राग कनडों ॥ पूरो रे माई चूरो रे माई जिनवर अंगई सार कपूर । सब सुख पूरण चूरण चरचित तनु भरि आणंद पूरो रे माई ॥जिन० १ ॥ अरे माई ! ते उत्तम संबोधने । हे भाई ! प्राणीउ ! मनोरथ पूरउ । ५८. चूर्णादिकनी - ब. । ५९. कहीस - ब. । ६०. घनसारादि चूरणां ब. । ६१. जिनपति अंगस्युं ब. । ६२. बरासादिक ब. । ६३. अगरनो ब. । Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ३९ जे जिनवरतुं अंग सार बरास कपूरे पूरो, अने आपणा दुरित चूरो । अथवा घनसारादिक महमूर चूरो । हे माता ! मननी आस्या पूरो, कर्मशत्रु चूरो । माताजी ! श्री जिनेन्द्रना सरीरने विषे सोभायमांन एहवो सारो कपूर भिमसेंनी सकल सुख पूर्णे करै । सकल सुखनुं पूरण एह जे चूरण तिणें करी चरिचित क० अरचा पूजा करो । कर्म शत्रुने टले ते जिननई चर्चे । जिन तनुं सुरभर भर्यु ते जाणीई । आणंद-घमंडे करी मे सरीर भy, आणंदने पूरई भविकें पोतानो आत्मा भर्यो छै । ॥१॥ पावन गंधित चूरण भरस्युं मुंचति अंग उवंगइ । अष्टमी पूजा करत मन जाणती मेलावतीआ सुख-संगई पूरो० ॥२॥ पावन क० पवित्र, गंधित क० गंध- सुगंध चूरण, तेहनई भरस्युं क० जे भरण भरीइं, तेणें करीने शोभे छई । केवू ? मूंके । स्यूं ? प्रभुने अंग उपांगई मुंचति क० मूके-थापे । अथवा अंगउपांगई ए चूर्ण पूजोक्त छै ते भणी अंग उपांगना जे कर्म बांध्या तेने मूकावई एहवीं आठमी पूजा करतो भविक मनमां जाणतां थकां, एहवां जे भव्य प्राणी मनमांहि इम जाणीइं छई, ए चूर्ण पूजा सुख-संगने मेलावती क० संयोग करती छइं । तेहनें मेलावें मोक्षना सुखने एहवी वास पूजा छई एतलें अष्टमी पूजा सुगंध चूरणनी कही चूर्ण वासनी संपूर्ण पूजा थई । इत्यष्टमी पूजा ॥ __ हवें नवमी पूजा ध्वजनी, गौडी रागें वस्तुयइ कहे छै जाफरतालनी जाति । राग-गोडी, वस्तु - जाफरताल ॥ देवनिर्मित देवनिर्मित गगनि अतितुंग धर्मधजा जन मन हरण । कनकदंडगत सहस जोयण, रणरणति किंकणी निकर । लघु पताक युत नयन भूषण जिम जिन आगलि सुर वहई ए । तिम निज धन अनुसारि, नवमी पूजा धज करी कहें प्रभु तुह्म हम तारि ॥१॥ ६४. आठमी - ब, । Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्रिल-२००७ ___ गोडी रागण गीयते । वस्तु, जाफरताले गावू । तालीनी जाति । देवनिर्मित क० देवताई निर्मित-नीपजाव्यो । स्यूं ? आकाशनें विर्षे अत्यंत उत्तंग-मोटो-उंचो-सहस्र योजन उंचो धर्मध्वज । एहवें नौम ध्वज, भविजननां "चित्तनइं हरई छई । धर्मध्वज देखीने सुवर्णनइ दंडई आरोप्यो-थाप्यो । केहवो ? 'सहस्र योजननें मानें दंड उंचो देवताइं कीधो । रणझणाट शब्द करई छै घुघरीना समुदाय जिहां तेनां निकर, तेणे सहीत, नान्ही वली ध्वजा सहस्र, तेणें करी-तेहना परिवारे युक्त- सहीत शोभे छई। नेत्रनई भूषणजेवा योग्य एहवो ध्वज छइं । जे रीति प्रभु आगलि सकल सुर समुदाय इंद्रध्वज वहइ छइ ते रीति भविक पणि पोताना धननई अनुसारई सुख पामई ए रीतें, निज--पोताना धनने अनुसारें, संसार असार जांणीनई ए नवमी ध्वजानी पूजा करी भव्य प्राणी प्रभु प्रतें इम के छै: स्वामी ! प्रभु! अह्मने तारो, भवरूप संसार समुद्रमाहि तारो ! ॥१|| ए नवमी पूजा ध्वजानुं गीत कहे छई : गीतं-राग - गोडी ।। नट-रांमगिरि रागेण गीयते । माई सहस जोयण दंड ऊंचो जिनको धज राजइं । लघुपताक किंकणी निकर पवन प्रेरीत वाजई ॥१। माई० । गीतं गौडी रागई तथा नट्टरागई तथा रामगिरि बे रागइं ग्यांन करवू छै । माई, हे माता ! ए शब्द संबोधनई । हजार यौर्यणनो दंड छई, सुवर्णनो डंड उंचो छै । एहवो जिन आगलिं एतलें जिनराज-वीतरागनों ध्वज भूषीत सहित-युक्त छै । नांनी घुघरीउं, तेणें निकर-समूह, घूघरीना समुदाय धुत वायरई करीने प्रेरी हुंती मधुर शब्दई वाजती ॥१॥ सुरनर मनमोहन शोभित जिउं सुई धज कीनो । तिम भवि धज पूज करतां नरभव फल लीनो ॥२॥ माई० ।। सुर-देवताना, व्यंतर, दानव, वली नर ते मानवना-मनुष्यसमूहनें ६५. नामें ब. । ६६. मन हरी लीइं ब. । ६७. सुवर्णनो दंड ब. । ६८. हजार योजननो ब, । ६९. आंखिनई ब. । ७०. करतां ब. । ७१. जोजननो ब. । Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 58 अनुसन्धान ३१ मननई मोहनहार धजा शोभावत छई । जिम देवताइं ध्वज कीधो महेंद्र, चोसट्ठ इंद्रे समोसरणनी रचना करी, तिम भव्य जीव-भविजन-प्रांणी ध्वजानी पूजा करतां थकां जीवें स्यूं पून्य उपायुं ? मनुष्यना भवनुं फल लीइं, लाहो लीजीई । तीर्थकर पदवीनो लाभ पांमई ॥२॥ इति नवमी पूजा ध्वजानी ॥९॥ हवें गौडी रागई धवलनी देशी, दशमी पूजा ग्रहणानी कहे छै । राग-गोडी : धवलनी देशी । लाल वर हीरडा पाछि पीरोजडा विधि जड्या ए मोतीय नीलूया लसणिया भूषणा तिहां जड्या ए । अंगद रयणनो मुगट कंठाउलि कीजीइं ए काने रविमंडल सम जिनकुंडल दीजीइ ए ॥१॥ लाल-राता वर-प्रधान जे हीरा-रत्नजाति, तथा पाछि नीलरत्न पास प्रवाली, पीरोजा ते हीरा रत्नजातिविशेष जाणवा । ते साथे विधिस्युं जड्या कारीगरें मोतीयल-स्वेत वर्ण मुक्ताफल नीलकर इति नीले रंगई नीलूयानीलमणि लसणिया प्रसीध अभंग हीरा, इत्यादिकई ते रत्ननां भूषण ग्रहणइंवीतरागर्ने ग्रहणे जड्या छई । एहवां अंगद-अंगना-बाहुनां भूषण एहवां तथा वली रत्ननो मुकुट, तथा वली कंठावली-गलानां भूषण, वली बीजां ग्रहणां । बें काननें विर्षे केवा कुंडल छै ? रविना मंडल सरीखां दीपतां कुंडल प्रभुने - जिनेश्वरनई वेहरावीई - दीजई क. थापीइं ॥१॥ चंद्रमा-सूर्यसमान बे कुंडल जिननें कानें । इम इणि प्रकार आपीई "चंद्र रवि मंडल, सम दोय कुंडल, जिनतणइं कानि इंम दीजीइं ए"..... ए पाठांतर ॥ हवें ग्रहणानी पूजा दशमी, तेहनो गीत तोडी रागई कहे छई । ७२. सोभायमान ब. । ७३. लालवर हीरडां पास पीरोजका ब. । ७४. लसणीआ भूषणें ब. 1 Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्रिल-२००७ गीतं । राग तोडी त्रिताली ॥ मुंगेंट दीओ मुगट दीओ कनकें घड्यो विविध रयणे जड्यो जिनवर सीसि । उर वर हार रचित बहु भूषण दूषण हरो जगदीस ॥१॥ मुगुट० ॥ मस्तकें मुगट ते "थापो । सुवर्णे घड्यो- रच्यो, रतनइं करी जडाव कीधौ । वली विविध प्रकारे विचित्र जातिनई रत्नइं करी जड्य छई । तेणे सहीत श्रीजिनवरना मस्तकनई विषई घेरो-मूंको । हृदयस्थलनई विषई वरप्रधान हार । एहवां रचित घणां भूषण करी सहीत ते ग्रहणां रचीनई भुषण पेहर्या हे जगदीश ! दूषण-अमारा कर्मनां हरो । लालडे खरे हीरे पाचि मोति. रयणे जमे( डे) दोए कुंडल अंगद जडित सिंहासण चामर लिओ देउ रे आखंडल.... ॥२॥ मुगट० ॥ लाल ते खरी, वली साचा हीरा, वली पाछि प्रवाली मोती रत्न तेणई करी जड्या दोइ कुंडल कहतां बेहु कानना कुंडल सोभायमान दीशे छै । अंगद क० बाहिनां बे बाजुबंध-बाहुनां भूषण सोभे छई ते प्रतें दीउं । अथवा जडित सिंहासन चामर विजें समोसरणे स्वामी प्रभुनइं । वली दिउ इछीत आपो अनइं जिनपद लिउं । अथवा वली आखंडल के इंद्रनी पदवी लिउंपांम्यो तुमें आलो ॥२॥ इति दशमी पूजा गरहणानी ॥१०॥ ए तीर्थंकरनइं भूषणपूंजा करतां इम भावीई, एतलें दशमी पूजा ७५. मुगट दीओ कनके घड्यो ब. । ७६. थाप्यो ब. । ७७. “आगासगएणं च ... छत्तेणं सेयवर चामर धम्मभएणं सपायपीठसिंहासणेणं एस आकासै चालता होइं ए आगम पाठ छै । समवस[र]ण बिसइ तिवारई च्यार दिसई च्यार ध्वज प्रमुख सर्व चोगणा होइ" आटलो पाठ अ. प्रतिमां ( ) मां उमेरेल जोवा मळे छे. । ७८. बहु भूषणे करी ब. । ७९. पाछई ब. । ८०. इंद्रादिक - ब. । Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ३९ ग्रहणानी थई ॥ हवें इग्यारमी पूजा कुसुमघरनी राग केदारा-गौडीई कहें छइं॥ राग केदारो गौडी ॥ विविध कुसुमे रच्यो विश्वकर्मा 'रच्युं कुसुमगेहं । रुचिर सम भावस्युं सुर विमानं जिस्युं रयणरेहं ॥१॥ राग गोडी केदारौ । तिम वली विविध जातिनइं कुसुमई करी रच्यु क० रच्यु । वली विश्वकर्मा जे विधाता तेणई जाणी रच्यु-नीपजाव्युं, एहवं कुसुमर्नु घर रुचिर कहतां मनोहर-प्रधान, भावई करी देवना विमाननी परि, रतननी रेखानी परि शोभायमान छै ।। तोरण-जालस्युं कुसुमनी जातिस्युं शोभतू ए । गूंथि चंद्रोदय झूबक वृंदने घोलतूं ए ॥२॥ तोरण, जाली कहतां गोख, तोरणे सहित शोभे छई । एहवू फुलनो घर तें फूलनी जातिस्युं करीने घर धणुं शोभतुं छई । वली फूलनो चंद्रूओ गूंथ्यो छई, वली फूलना झूबकना वृंदस्यु शोभतुं छे एतले कुसुमना गोप तेहें कुसुमनें तोरणे सहित ऊपरि कुसुमनो चंद्रुओ गूंथ्यो छई । फुलघरई फूलनु झूमणुं पंचवर्णी चंद्रूआ शोभे छई ते फूलघर ।। हवें इग्यारमी पूजानुं गीत राग केदारें तथा विहागडें कहई छई ॥ गीतं - राग केदारो - विहागडो । मेरा मन रमो जिनवर कुसुमघरइं हार कुसुमघरे, मेरा० । विविध युगतिवर कुसुमकी जाति भाति जेसें अमर घरे...मेरा० ॥१॥ अरे भविको" ! एहवा कुसमना जिनवरना घरनई विषई माहरु मन रमो-रति पामो-केलाश करो । भय(भव्य) लोको कुसुमधरें मन रमो ए वालणी केहवी । ते भक्तिना घरने विषई विचित्र प्रकारनी प्रधान युगति कुसुमनी जाति तेणें सहीत हवी शोभई छई । केहबुं शोभे छे ? जे अमरघर-देवविमान ज नही साक्षात तेहवी शोभा छे कुसुमना घरनी ॥१॥ ८१. ज्योतिस्युं ब. । ८२. झूमणुं चंद्रूई सोभतुं ए ब. । ८३. चंद्रूयचंद्रूए - अ. | ८४, भविजनो ब. । ८५. भांति-ब, । ८६, ज नथी-ब. । Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्रिल २००७ कुसुम चंद्रोदय झूमक तोरण जालिक मंडप भागि । एकादशमी पूजा करतां अविचल पद भवि मागि ॥२॥ ते कुसुमना घरनी, चंद्रआ - गोख - कुसुमना झूबकनां तोरण तथा कुसुमना जालियां क. कुसुमना मंडपना भाग मध्ये मध्ये गोखनी रचना देखीनई घणुं ज जीवने खुस्याली उपजई । जाली - मांडवो, तेनो भाग तें चोका देखीनई खूस्याल । एहवूं फूलघरनी भावना श्रीजिनेश्वरनी । एम - एणें प्रकार इग्यारमी पूजा करतो भविक प्राणी अविचल जे मोक्षपद तेहनइं जाणीइं स्वांमी पाशें मागई छई, भविजन श्राविक-श्राविका ॥२॥ इति इग्यारमी पूजा कुसुमघरनी ॥ ११ ॥ एतलई इग्यारमी पूजा कुसुमना घरनी गीत सहित थई । हवें बारमी पूजा फुलहरई, कुसुमना मेघ वरसाववानी पूजा, ते मल्हार रागें कही छ । पंच वर वर्णनो विबुध जिम कुसुमनो मेघ वरसई । भमर भमरीतणा युगल रसिया परिं त्रिजग हरसई ॥१॥ 61 राग मल्हारेण गीयते । वर- प्रधान पंचवर्णी जे विविध प्रकारनो मेघ वरसें फुलघरें । श्रीजिनेश्वर फूलघरें विरच्यां तिहां फुलनो मेघ वरसई । विबुध कहतां पंडितजन ते पण भगवंत आगलि इमज कुसुमनो मेघ वरसावई । "जिम भमर - भमरीना युगल हर्ष पांमई गंध लेवानें तिम ते जिनपूजारसिक भव्य प्राणी श्री जिनेश्वरनी पूजाई खुसी थाई । तीम ते त्रिण्य जगना लोक हर्ष पाई ॥ 00 पगर जिम फूलनो पंचवरणें करी सुकृत तरसई । बारमी पूजमां हररित्र तिम जिम मिलई कनकपूरीसई ॥२॥ जिम पगर क. समुदाय फूलनो पंचवर्णनो करतां, पंचवर्णी फूल पगर भर देवता, वली मनुष्य पूजई, इम सुकृतनई जे भली करणी करतां तरसई छई उच्छाहसहित पांमे । इम पणई मननें कहै छई : अरे मन ! ८७. फूलनों - ब. । ८८. तिम ब. । ८९. खुशी ब. । ९०. हरखित तिम जिम मई कनकपूरीसरे ब. । - Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ३९ श्रीजीननी बारमी कुसुमवृष्टिनी पूजा हर्षे करतो थको शुद्धभावे करें तो, सुवर्ण-पुरिसो मिलई हर्ष पामें-तेहथी पणि अधिक हरखिवंत थाइ]॥२॥ हवई बारमी पूजानुं गीत मेघमल्हार रागई कहइं छइ । ___ गीतं - राग मेघ मल्हार ॥ मेहला जिउं मिली वरसई करी करी फूलपगर हरैसई ... मेह० पंचवरण जानु-माने समोसरणि जिन( म) सुर मिली तिम करे श्रावक लोक । द्वादशमी "पूजा तिम जनमन मुर्दै फरसइं... मेह० ॥१॥ अथ मेघमलारमा गीत । श्रीजिनेश्वरनी पूजाई मेघनी परें घणे हदै पोहचें । मेघ जिम मिली वरसई तिम तिम फूलपगर करी करी हर्षइ वरसो । जिम जिम फूलपगर इंद्रे भर्यो ते भावें वितरागने फुलपगर भरो | वलण करवी । पंचवर्णी कुसुम जानुं कहतां ढींचण प्रमाणई भरें । वली “समवसरण मांहि जिम देवता मिलीने, च्यार नीकायना देवता भेला मिलै कुसुम वृष्टि करई, तिम-तिणे प्रकारें श्रावकलोक पणि भेला थइनें जिननी भक्ति करई, इम भव्य प्रांणी जे बारमी पूजा प्रभुनई करेंस्थे तेहनें जनम-जनम पातिक जाई, अनंता सुखनी स्पाशीना करई । लोक-भविक लोक, तेहना मनमां मुद-हर्षनई फरसो ॥१॥ #मर पई कहावति जड ति, जाणुं अधोवृंत पडतई ताण अधोगतिनाहि । जे हमु परि प्रभु आगलि पडि रे हमपरि नही तस पीड । कुसुमपूजा कहइ सुख लहइं, दिन दिन जस चढतई ॥२॥ मेह० ॥ हवइ कुसुममा जे भमर गुंजारव करे छई ते जांणीइं जड-कुसुमनी ९१. करी तो- ब. । ९२. मलार- ब. । ९३. दरिसइं ब. { ९४. प्रभुपूजा ब. । ९५. सुह फरस्यें ब. । ९६. समोसरणनें विर्षे - ब. ९७. भमर पई कहिवती जडती जे हमुपरें प्रभु आगलि पडे रे । हम परिं नही तस पीड कुसुम पूजा कहे सुख लहै दिन दिन जस चडतें ॥२॥ मे० - ब. । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओप्रिल-२००७ सहावई छह: ऊधई बीटई जानु प्रमाण जायण माला ते भमरा-मुखइ इम कहावई छइ: ऊंधई बीटई जान-प्रमाणइं जोयण मानइं वृष्टि पडतां, स्यु कहै छै ? तेहनें अधोगति न होयइ । जिम फूलने इंम कहे छई । फूल भविजननइं । जेह अह्मारी परि श्रीप्रभूनां मूख आगलि रात्र-दिवस जे प्राणी पडई तेहनई भवनां बंधन जास्यइं, जिम फूल बंधन विगर थाइं । अने वली हमपरि कहतां अमारी परइं तेहनें पीडा-बाधा पणि न होइ ! बंधन-रहीत थाइं । इम कुसुम पूजा कहई छई ते अह्मारी परई सुख लहस्यइं-पांमस्यइं, दिन दिन जसवाद चढतई हुतई । कुसुमपूजा करें श्री कुमारपालनी परें कोडि ७नां फूल १८ तेणें करी पूज्या, तेना महीमाथी १८ देशें राज्य पांम्यूं पूजाथी । एतलई इति श्री बारमी पूजा छूटा फूलना वरसात वरसाववानी पूजा थई ॥१२॥ इति बारमी पूजा छूटा फूलनो मेह वरसाववानी पूजा ।। हवई तेरमी पूजा वसंत रागई अष्टमंगलिकनी कहीं छई : राग वसंत !! रयण हीरा जिस्या सारवर तंदुला वरफल्या ए स्वस्तिक १ दर्पणि २ कुंभ ३ भद्रासन ४ स्युं मिल्या ए। नंदि-आवर्तक ५ चारु श्री वत्सक ६ वर्द्धमानं ७ मत्स्ययुगलं लिखी ८ अष्टमंगल हस्यइं शोभमानं ॥२॥ रतनना हीरा सरीखा सार उज्ज्वल, रत्नमांही राजेवां सारा सोभायमांन, चोथा(खा) अखंडवर-प्रधान तंदुल, वर फलई फल्या, तेहना(मा) साथीओ प्रथम १, अरीसउ बीजें २, कलश त्रीजें ३, भद्रासन ते सिंहासन, सिंहासनें ब्येठानं चोथई ४, ए च्यार मंगलीक साथई मिल्या । नंदावर्तक पांचमे मंगलीक ५, मनोहर श्रीवत्स हीइं जिनेश्वरनें हीयें, चक्रीनई होय ६, वर्द्धमान ते सरावसंपुट सातमें मंगलीक ७, आठमें मत्सयुगल-बे माछलां ८, एहवां अष्ट मांगलिक आलेखीइं । साव रत्नमय चोखा अखंड पूरीइं, घणुं शोभायमान, तेनी ॥२॥ ९८. पडस्यै - ब. । Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 64 हवई तेरमी पूजानुं गीत वसंत रागई कहीइं छइ ॥ गीतं - वसंतरागेण । " जिनप आगें विरचो भविलोका जस दरिसाई शुभ होई युं रे देखत सब कोई |१| जिन० ॥ जिनप कहतां वीतराग - जिनेश्वरनां पद आगलि विरचो कहतां रचो - नीपजावो, अरे भविक लोको ! भव्य प्राणीओ ! तुमई श्री जीनेश्वरनें भजोध्याओ । जेहनां दरिशणथी मंगलीक होई, अपमंगलीक वेगलां जाई । तिम अष्टमंगलीकथी अपमंगलीक जाई । जेह श्रीवीतरागना दर्शन थकी तथा अष्टमंगलीक दीठाथी सुख थाई ते माटें । इम तुझो सहु प्रांणी देखो जाणो ॥१॥ अतुल तंदुल करी अष्टमंगल वली १ तिम रचो जिमें तुझ घरिं होई ॥जीन० ॥ अतुल क० जेहनी तुलनाइ कोई नावइ एहवा घणां तंदुलें अखंड चोखें करीनें श्रीजिननां मूख आगलई, अष्ट-आठ मंगलश्रेणि तिम रचो - तिम करो जिम फिरी तुम्हारई घरई अष्टकर्म चोर विलय जाई, आठ मंगलिक थाइ, तथा अष्टमद घात जाई, तथा अष्टकर्मना शोभाव मंगलीक धाइ तिम प्रांणी तुम घरें होयं, उपद्रव जाई, भय रहीत थाई ||२|| स्वस्तिक १ श्रीवत्स २ कुंभ ३ भद्रासन ४ नंद्यावर्त्तक ५ वर्द्धमान ६ । मत्सयुग ७ दर्पण ८ तिम वरफल गुण, तेरमी पूजा सवि कुशल निधानं ॥ २ ॥ जिन० ॥ अनुसन्धान ३९ इम अष्टमंगलीक करवा : साथीओ १, श्रीवत्स २, कामकुंभ- कलशं ३, भद्रासन ४, नंदावर्त्तकनव खूणालो साथीओ ५, वर्द्धमान ते सरावसंपूट ६, मत्स युगल - बे माछलां पद्मद्रहनां ७, आरीसो, तिम वर-प्रधान फैलसहीत 'गुणसहीत छै जिहां, ९९. जिनपद आगलिं विरच्यो ब । १०० भविजनो ब । १०१. जिम घर होई ब. । १०२. मंगलिकनी ब. । १०३. फलें ब. । १०४. गुणें - ब. 1 Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्रिल१-२००७ एहवी तेरमी पूजा सर्वमंगलनुं निधान है । अथवा ए फलपूजा, पणि ए पूजामां घणे ( णी?) पूजा करवानो विधि जाणिवों इंम पणि छ । अष्टमंगल करई "नालिकेरादिक, पछे फुल ढोयई । एतलें तेरमी पूजा अष्टमंगलीकनी थई । .१०८ इति तेरमी अष्टमंगलभरणपूजा ॥ यद्यपि पूजा ए पूर्वे गाथाना बंधमानथी कही जे माटें प्रथमथी पूजा मांडीयइ तिवारें ते आरती मंगलदीवो इहां करीनई पछै धूप उखेवणनैवेद्यढोकननी पूजा १४मी करई । पणि इहां केतलाएक पूर्वे स्त्रात्र करीनें आरती- मंगलदीवो करीने पछें पूजा भणावई, तिवारें आरती मंगलदीवो पूर्वे कर्यां माटि इहां अष्टमंगल थापई । सिद्धांतादिकें पणि अष्टमंगलीक लिखवां ते सर्व पछी छइं, ते माटें जिम श्रीवितरागनी भक्ति बधई अनै वली बहुश्रुतनी आज्ञा प्रमाण छे९९९ परं नित्य पूजाई पणि आरती- मंगलदीवो कैरवो जोईई, तो स्त्रात्रई तो कलशाभिषेक पूजानंतर आरती मंगलदीवो प्रगट करवो अनैं अष्टमंगलने ठामई स्वस्तिक पूरई । नैवद्य ठामई अक्षत - त्रिण पूजा करे तों नैवैद्यपूजा गणें । परं सर्व प्रत्येकें प्रत्येकें नैवेद्य च्यार आहारना करवा जोइई । पछै यथाशक्ति । अवधि आशातना लई जिम थाइ तिम प्रमाण छई । इहां कोई हठ नथी । शक्तियोगें भक्ति न लोपें । शक्तिं न सो (गो) पवे अनें भक्ति न लोपई तिम कैरई । ए सर्वत्र विधिपाठ छई ॥ ११५ हवई चौदमी पूजा धूप-दीपनी मालवी गौड रागे १६ कहै छै । ११७ राग मालवी गोडो ॥ कृष्णागरतणुं चूरण करी घणुं शुद्ध घनसारस्युं भेलीओ ए । कुंदरुको तुरुक्को सुकस्तूरिका अंबर तुंबैरस्युं मेलीओ ए ॥१॥ फुल १०५. मंगलीकनुं निधांन्न ब. । १०६. मंगलीक ब. । १०७. नार ब. । १०८. ढोई ब. । १०९. उखेववानी निवेद्य ब. ११०. सिद्धांते पिण ब. । १११. थाई ब. । ११२. को - ब. । ११४. टालतें ब. । ११७. गोडी - - 65 - ब. । ११३. अष्टमंगलीकनें ब. । ११५. करवुं - ब । ११६. रागेण गीयतई - ब. | ११८. तुंबस्यूं मलीओ ए ब. । - Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ३९ कृष्णागर-शुद्ध मावरदी, तथा विविध जातिना उत्तम अगर तेनुं पवीत्र चूरण करीनइं, ते चूरणमांहिं एतली वस्तुं भेलीइं । त्यार पछी शुद्ध-निर्मल घनसार ते खरुं बरास, मांहि भीमसेनी कपूर, भेलीनई, एतलें धूप भेलीजई, कुंदरुको सपेत कुंद, धूप-तुरुको, एहवें नामें धुप, वली तुरुक्क कहतां सेलारस, धूपविशेष, वली भमरी कस्तूरी सुगंध द्रव्य, अंबर धुप, तुंबर धूप, "चिडादिक विशेष तेणई मेलवीनई ॥१॥ रयण कंचनतणुं धूपधाणुं घणुं प्रगट प्रदीपस्युं शोभतू ए । दस दिशई महमहई धूप उखेवतां चउदमी पूज रज खोभतूं ए ॥२॥ रतननु, तथा कंचन ते सुवर्णमुं, तथा रूपानु, तथा पीतलनु, धूपधाणुं घणुं भर्यु धुपें करीनइं, देखतुं - प्रगट दीपर्क साथै जे धूपधाणुं शोभे छई, पिण केहवू ? ते धूपनो वायरो दश दशें जातां, दस दिसई सुगंधस्युं महमहइ, मसमसाट थयो रह्यो धूप उखेवीतुं हुंतो उखेवता थकां, भव्य प्रांणीने चउदमी पूजा ते करतां, रज कहतां पापरूपी जे रज तेहनें टालें-नीवारइ, पापनें खोभतं कहतां टालतुं छइ ॥२॥ हवई चौदमी पूजानुं गीत कल्याण रागै कहै छइ : गीतं - राग कल्याण ॥ अती ए धूपी धूमीली जिनमुख दाहिणावत करंता देवगति सूचति चाली ॥धूपी० ॥१॥ गीतं - राग-कल्याण रागेण गीयते वाच्य । अरे जोओ- प्रांणी ! ए धूपना धूमनी श्रेणि श्रीजीनेश्वरनें जिनवरना मुखनें आगलिं जिमणे पासई-दक्षिणभागइ आवर्त करती, एतलें सवली प्रदक्षिणा देती-शोभइ छइं, ते जाणिई जे आकाशें धूपमा(धूमा)वलि चाली, ते जाणीइं देवगति सूचइ-कहई छै भविकनें, धूप करतां भव्य प्राणीनइं धूप स्यूं कहे छइं ? अरे ! अमारा परें उर्ध्वगति जास्यो ! ए भाव कृष्णागर शुचवे छई ॥१॥ ११९. चीडादि - ब. । १२०. दिवा ब. । १२१. धमाली ब. । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्रिल २००७ छै ॥ 'कृष्णागर अंबर मृगमदस्युं भेली तिम घनसारो । धूप प्रदीप दशांग करतां चौदमी पूजा भव तारो... धूपी० ॥२॥ धुप कृष्णागर, अंबर अनई साथे वली कस्तुरी स्युं भेली, तिम वली कपूर, एहवो धूप, तथा प्रदीप । दशांग धूप करवो, वली तिम कपूरनो दीवो करीनई, एहवी भविजनई धूपपूजा, वली दीवानी पूजा करतां, सासग धुप करतां थिक, चौदमी पूजा करतां भव-संसार पार ऊतारो । कुण ? एहवी चउदमी पूजाना फलथी ||१४|| इति आरती मंगलदीवानी चौदमी पूजा || एतलाई इति श्री आरती मंगलदीवानी चौदमी पूजा पूरी कही, लिखिता च | श्री गुरवे नमः ॥१४॥ हवई पनरमी पूजा त्रिवेणी रागई गाथा - बंधई गीतनी पूजा कहीयै 67 राग त्रिवेणी गोडी, गाथाबंधई || गगननुं नही जिम मानं, तिम अनंत फल जिन गुणगानं तान मान लयस्युं करि गीतं, सुख दिई जिम अमृत पीतं ॥१॥ त्रिवेणी रागें कहीस, गोडी त्रिवेणी गीयतई गाथाबंधें । जिम गगन कहतां आकाशनुं मांन-प्रमाण नही-अनंत आकाश माहइ, तिणें दृष्टांते जिनेंश्वरना गुण गातां अनंत फल छ । श्रीजिनवरना गुण, तेहना गीतनुं तान- मान-लय ए त्रिण्येनुं एकत्र करीनई जे गीत 'गाँववु तेहनें घणुं सुख आपइ अरिहंतनी भक्तिनुं गीत । जिम अमृत पीधुं सुख दीनं तिम जिनभक्तिनुं गीत अमृत शरीरखं सुख दीनं ॥ १ ॥ वेणु वंश तल तालमुवगई, सुरत राखि वरतंति मृदंगई । जयतमान पडताल एकतालुं, आयति धरी प्रभु पातिक मा ( गा ) लो ॥२॥ वीणा - वंश, हस्तताल-कंठ (कर) ताल, वीणा - सरणाइ, हाथनी ताली, कंसाल, बीजाई तंतिना वाजां ते उपांगइ, बीजा तांतनां वाजीत्र मन धारणा १२२. धुप कृष्णागर० ब. । १२३. कस्तुरीनो धुप भेलवीनइं ब. । १२४. गाई ब. । Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 68 अनुसन्धान ३९ राखीनें वजाडों । सुरति धारणी राखवी । प्रधान तंतिना वाजा मादल साथई, मादल जयँतैमान, पडताल, एकताल, इत्यादिक तालभेद । वाजीत्र पडताल जाति छै, एक तालना भेद ४८ जातिनां, एहवी आस्ता राखीनई हे स्वामी ! अमारा भवनां पातिकने आयति कहतां उत्तर कालना पातिक भविकजननां हे प्रभु -- स्वामी ! गालो कहतां टालो ॥२॥ हवें पनरमी पूजानुं गीत श्रीरागई कहै छइ : गीत : श्रीराम || १२६ "तु शुभ पार नही सूयणो, मानातीत यथा गयणो तान मान लयस्युं जिनगीतं, दुरित हरई जिम रज पवणो ॥ १ ॥ तुह्म० । गीत श्री रागेण गीयतें । अरे सुयणो ! - स्वजनो ! अरई स्वामीइंओ ! तुम्हारा शुभ क० तमारां शुभ पुन्यनों पार नहीं, जें जिनेश्वरनी भक्ति करी छै एतलै घणुं जिम गगनआकाश मानातीत छई तिम तुम्हारा पुन्यनो पार नही ते माटिं । तान माननी जें लय- लव्य संघातें एतीनई एक करी श्रीजिनना गीत गाऊं छउं । वीतरागनी भक्ति करतां पूण्यनो पार नही । दूरित - पापनें हरें, जिम पवन कहतां वायरें रज उडी जाई, वायरो रजनें हरई, तिम तुम्हारां दुरित ते पाप हरे || १ || वंश उपांग ताल सिरिमंडल, चंग मृदंग तंति वीणो । वाजति तूर जलद जिम गुहिरं, पीतांमृत परि करि लीणो ॥२॥ तुह्म० । अरे स्वामीओ ! वंस, उपांग, ताल, श्रीमंडल, इत्यादिक वाजीत्रभेद छर्इं । चंग-डफ, मृदंग-मादल, तंति वीणायंत्र, तेणें । वली वाजती कहतां वाजई, तूर कहतां वाजित्र जाणी, वाजां वाजें । कोनी परें ? जलद-मेघ जिम गुहिर गाजई, जिम वरसात गोहिरें गाज करें, तिम वाजीत्र वाजें छई । पीतां - अमृतनी परि जाणियइ छे जे लयलीन थया, पूर्ण तृप्तिवंत थया, तुष्टिवंत थया ||२|| १२५. जयमांन अ. प्रतौ पाठां नोंध ॥ १२७. तांति ब - ब. । १२६. टिप्प. किहां एक जिन शुभ पालही सुयणो इति Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्रिल २००७ 69 गायति सुर गायन जिम मधुरं, तिम जिनगुंण गण मणि रयणो । सकल सुरासुर मोहन तूं जिमें, गीत कहिओ हम तुम नयणो ॥३॥ तुम० ॥ गायति क० गायइं-गाय छै रागें करी, सुरगायन क० सुर - देवताना गायन, वली देव-गंधर्वनी परि श्री वीतरागना गुण गाय छै । जिम मधुरं क० मधुर होइ तिम श्रीजिन- वीतराग मधुरे सादें वाजित्र समूह वाजतें, जिन गुणना गण क० समुदाय, तद्रूप मणी - रत्न जेहनई विषई, सकल जे समस्त सुरासुरनें मोहई, एहवा श्री जिनवरनुं स्तवन - स्तोत्र - गीत भणई - कहिउं । अहमो तुम्हारी १३ दृष्टि तुमारा नयन - तुह्यारी कृपायइं, तेणें करीनई अमें भक्ति कीधि छई ॥३॥ एतलै १५ मी पूजा गीतनी थई । इति स्तवन गीत पूजा पन्नरमी १५ ।। इति श्री गीतं स्तवनें १५ मी पूजा कही । हवई सोलमी पूजा नाटिकनी कही : राग सोरठी तथा मधुमादन ॥ सरस वयवेष मुखरूपकुच शोभिनी विविध भूषांगनी सुरकुमारी । एक शत आठ सुर कुमर कुमरी कर विविध वीणादि वाजित्रधारी ॥ १ ॥ सरस० ॥ I राग सोरठी तथा मधुमादन रार्गे कहै छै । गीतें शुद्ध कडखो छ । जिम सुरीआभ देवें तथा आंमर्लेर्केलपानगरे नाटिक कीधुं । सरिखी वयें मुख रूप - कुचें शोभती एहवी, कुंण ? विविध प्रकारनां भुषणनी धरनारी J ४ एहवी देवकुमारी । सुरभें (शोभें ?) श्रीवर्द्धमान्न स्वामीने वांदीनें आगलि जिमणी भुजा पसारीनें १०८ देवकुमर कीधा, डाबी भुंजा पसारी १०८ देवकुमरी कैरी तेनें हाथें ४८ वाजां विविध प्रकारें जे मांहोमांहि ४८ वाजता तान साथै बत्री प्रकारे नाटिक कीधुं घणा वाजित्र बाजतें । तिम बीजायै १२८. तुं जिन ब. । १२९. जिनेश्वरनुं ब. । १३०. दृष्टि- ब । १३१. आमलकप्पानगरे ब. । १३२. डावि भूजाथी ब । १३३. किधी ब. । १३४. बत्रीसबद्ध नाटिक करें ब. । Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 70 अनुसन्धान ३९ प्राणी नाटिक करै, बीजो प्राणी तें भाव राखई, ते भावनी पूजा कहइ छइ। सरिखी छई वय अनइं वेषइं एहवी जेहनां मुख-रूप-कुच तेणई शोभायमान, विविध भूषणवंत, तथा भूषित अंग थकी, एहवी देवकुमारी एकसो आठ, देवकुमर अनैं दैवकुमरीनां सरिखां रूप करई विविध प्रकारनां वीणादिक वाजिबना धरणहार ॥१॥ अभिनय हस्तक हावभावई करी, विविध जुगति बहु नाचकारी । देवना देवनइ देवराजा यथा, करति नृत्यं तथा भूमिचारी ॥२॥ सरस०॥ अभिनय ते हस्ततालि भेद ५४, आरभडभसोलादि नृत्त ४, हस्तकी ते हस्तसंज्ञा, हाव ते मुखना विकार, भाव ते चित्तथी उपना एवं ४ भेदई, तेना हावभाव करी देखाडे, पगले चालें करी भाव देखाडें । इम विचित्रविविध प्रकारनी जुगति करीने, वली घणा नाटिकनी नाचकारी करती थकई देवाधिदेव ते प्रभु आगलि देवराजा-देवतानी श्रेणि जिम नाटिक करइ तिम भूमिचारीई मानवी राजाइं-मानवनी श्रेणि पणि इम-तेहवां नृत्य करई, मनुष्य पण तें भाव राखीनइं करई नाटिक ॥२॥ हवई ए सोलमी पूजानुं गीतं शुद्ध नट्ट रागइ कहीयइ छई । गीतं - राग - शुद्ध नट्ट ॥ एके शत आठ नाचई देवकुमर-कुमरी १७दों दो दों दुंदुभि वाजति, नाचती दिई भमरी ॥१॥ एक० ।। गीतं शुद्ध नटरागेण गीयते । यथा एक शत आठ एतलें १०८ नाटिक करइ, एकसो ने आठ देवता ना कुमर अनें देवतानी कुमरी सर्व भेला थइनें श्रीवर्द्धमांनना मूख आगे दों दो दों एहवई शब्दई वाजतें थिके, दुंदुभिना शब्द वाजतें थिकें, वली अंग वालीनई नाचती नाचती भमरी दिई ॥१॥ १३५. अभिनव ब. | १३६. अभिनव - ब. । १३७. दो दौ दो ब. । १३८. देवतांनां कुंमर कुंमरी - ब. । १३९. दो दौ सब्द - ब. । १४०. नाचति थकी - ब. । १४१. देती विचरई - ब. । Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्रिल २००७ घन कुछ युग हार राजी कसी कंचुकी बधी" सोलस सिंगार सोभित वेंणी कुसुम बंधी ॥२॥ एक० ॥ घन जे निविड मांहोमांहि मिल्या जे कुचयुग तिहां हारनी श्रेणि शोभती छई, कसी - ताणीनई कंचुकीना बंध पणि बाध्या छइ. वली देवकुमरीना सोल सिंगारे शोभित छई एहवी देवकुमरी शोभे छै। वली माथानी नीचे वेणि ते कुसुमनी सुगंधताई वासित छई ॥२॥ १४४ नट्ट कुट्टिकं ठहु ठहु विच पट ताल वाजई देखावति जिन हस्तकों नृत्यकिं नवि लाजइ ॥ ३ ॥ एक० ॥ 71 नट (ट्ट) नाच करतां कंठि किट्टि 'तहु तहु' एहवा शब्द थातई 'ठिम ठिम' 'चिचिपट चिचिपट' एहवा शब्द थातई, घाति ताल वाजति थकै, देखाडती जिन - वितरागनई आगलि हस्तकी देखावति कहतां - देखाडतां थिकां हाथनें चालें करीन कहई नृत्य करती-नाटिकणी नाटिक करती लाजती नथी एहवी थकी वली ॥३॥ -- १४५ तिन' तिना भंति वाजड़ रणझणंति विणा ती (तांडवं जिम सुर करंति तिम करो भवि लीणा || ४ || एक० || 'तत तत तनन तन्न तनन तनतां तनतां तनतां' एहवई शब्दई तिना तिना वीणा वाजं । तांतिना वाजांना शब्द वाजतई हुंतई वीणांना रणझणाट शब्दता थइ हुंतइ, तंती - वीणा वाजतई थकें 'हे स्वांमी ! अमने तारो 'ए नाटिकम संगीत करती थकी ताडवं कहतां नारिक जिस देवता करइं तिमतिणें प्रकार भवि क० अरें भव्य प्राणीओ ! लयलीन थइनई करो, जिम देवता पूज्या तिम तुमें पण पूजों ! ||४|| ४८. इति नाटिकें पूजा १६ ॥१६॥ इति नाटिक पूजा १६मी संपूर्ण थई ||१६|| हवें सतरमी पूजौं सर्व १४२. बांधि ब. । १४३. शृंगारे सोभती ब. । १४४. चिचपट० ब. । १४५. तिना तिना तिना तंति वार्जे रणझणति ब । १४६. तानवं ब. । १४७. रणझण विणानां शब्द हर्ते थिर्के ब. । १४८. नाटिक सोलमी पूजा ब. । १४९. ए नाटिकें सोलमी पूजा संपूर्णम् ब. । १५०. पूजा कहस्यैइं ब. । Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 72 प्रकारना वाजित्रनी सामेरी रागई कहइ छइ : राग सामेरी ॥ अनुसन्धान ३९ समवसरण जिम वाजा वाजई, देव दुंदुभि अंबर गाजई । ढोल नीसाण विसालो । भुंगल झल्लार पणव नफेरी । कंसाला दडवडी वर भेरी । सिराइ रणकालो ॥१॥ सामेरी रागेण गीयतें । त्रिपदी थोयनी देशी । चोवीस तीर्थंकरनें समवसरणने विषई जिम देवता गढ़नें कांगरें ऊभा थिकां वाजा "वैजावें । देवतानी दुंदुभि आकाशनें विषई गाजई । आकाशे अंबर गाजी रहें । च्यार दरवाजई ढोल, नीसाण, नगारां मोटां तिम वाजइ । वाजते थकई भविजन सांभली भुंगल, नाल, झलरि, पर्णव कहतां ढोल, वली नफेरी, कंसाल, दुडवडी - मोटी भेरी, सकल शब्द वाजतें थकें, पाणव ने नफेरी ढोल वाजतै, मोटी कंसालना शब्द वलि भेर वाजतें थकें, इत्यादिक सरणाईना शब्द रणतूरना शब्द "काहलना सब्द वाजतें थातई ॥१॥ १५२ मरुज वंश सरती नवि मुंकई, सतरमी पूजा भवि नवि चूकइं । वेणी वंश कहई जिन जीवो, आरती साथि मंगल पईवो ॥२॥ मादल, वंशनी मूरली, सर तिनई-तीन स्वरें बोलती थकी शब्द न मूंकई । एहवी सतरमी पूजा भविक देव - मनुष्य चूक नही । जे भावखंडना न थाई । वेणी वंशवीणा शब्द, मुरली, श्री वीतरागने इंम कहै छै जे 'श्रीजिन चिरंजीवो' ! 'स्वामी ! तुं चीरंजीव' । पूज्यें पूज्य ज्यै जीव जें आरती साथइ मंगलदीवो प्रगट करई, स्वामीनें आरती मंगल ॥२॥ हवइ सतरमी पूजानुं गीत कहै छै । गीतं ॥ घणुं जीवि तूं जीव जिनराज जीवे घणुं शंख सरणाई बोलै । १५१. वाजड़ अ. । १५२. झालर ना शब्द ब. । १५३. काहली ब. । Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्रिल २००७ महुयरि फिरि फिरि देवकी दुदुही हे नहीं प्रभु ताइं कोइ तोलई ॥१॥ गणुं० ॥ गीत कडखौ । घणुं जीव तूं, अक्षयपणें जिन ! तुह्यो जीवो। अक्षय खजानो तारों, माटें स्वामी ! जीवनजी ! तूं घणुं जीवज्यें । तारो महीमा सर्वत्र व्यापी छई । संख - सरणाइ जीननें बोलती इम कहइ छइ । 'मैंहुयरनुं वानुं वली मीठे वचनें फिरिफिरि वारंवार वाजां वाजतें देवकुमरी थकी कहे छै : जे प्रभुतणई, स्वामी ! तारे तोलई - औपमानें को नथी, त्रिण भुवननो नाथ छई ॥१॥ ढोल नीसाण कंसाल सम तालस्युं झल्लरी पणव भेरी नफेरी । वाजता देव वाजित्र जाणें कहें सकल भविकुं प्रभो ! भव न फेरी ॥२॥ घणुं० ढोल वाजूं, नसाण, नगारां, कंसाल, समताल - सातई एक स्वर थाई मार्टि बन्रीशबद्ध वाजा वाजतै थकें, झलरि, पडह ते ढोल, भेरि, नफेरीइत्यादिक वाजा वाजता थकां देवताना वाजित्र वाजता 'जाणीइ इम कहे छई : सकल- समस्त भविके प्राणीने भवनी फेरी न होई जिनवरनी पूजा करतां ए वाजां इम कहे छई । सकलचंद्र मांन सकल- समस्त प्राणीने सुखनो देनार थाओ ए वांजां शब्द कहे छई ॥२॥ देव परि भविक वाजित्र पूजा करो १५७ "कहैं मुखि तूं प्रभु त्रिजग दीवो । इंद्र परिं किम हमे जिनप पूजा करो आरती साथि मंगलपईवो ॥३॥ घ० १५४. टिप्पण हांसियामा छे: तत १ घन २ शुषिर ३ आनद्ध ४ ए च्यार प्रकारें वाजित्र । मंद्र १ मध्य २, तार ३ ए ३ मान । उदात्त १ अनुदात्त २ स्वरित ३ ए ३ तान । सात स्वर । प्रशम ३ । मूर्छना २१ । लय । ताल ४९ । षट भाषा ६ । भारती १ । सात्विकी २ कोशिकी ३ आरभटी ३ वृत्ति । ए अभिनय आत्मिक १ वाचिक २ सात्विक ३ कायिक ४ १५७. कहो ब. । अ. ।। १५५. जांणीने इंम ब. । १५६. भव्य प्रांणीनें ब. । - 73 - Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 74 अनुसन्धान ३९ देवतानी परि भविक प्राणी श्राविको ! तुमें स्यूग्रह भाव आणीनई वाजिवनादपूजा करो । तुमई एहवू कहो मुखें : प्रभो ! तूं त्रिजगदीपक छौ । इंद्रनी पर हे जिनपति ! अह्मे किम पूजा करीसीई हाथै, तो हि पणि आरति साथि मंगलदीवो जिम सुर करई छई ते रीतई हु“करूं छु. इति वाजिब पूजा सतरमी ॥१७॥ एतलई सतरमी पूजा वाजिबनी गीत सहित पूर्ण थई । हवै धन्यासी रागै छेहली ढाल कलश कहे छइ, कवित्ता भावें करी : __राग धन्यासी मिश्र ॥ थुणिओ रे प्रभु तूं सुरपति जिम थुणिओ । तीन भुवन जन मोहन तूं जिन, परम हरख तव जणीओ रे ॥१॥ प्रभु० ___में इणि परि स्तव्यो जिम सुरपति क. इंद्र स्तवई तिम स्तव्यो । सत्तरभेदी पूजाइं करीने मे कविताई कल्पवृक्ष सरिखो मनकामनानो पूरनारो, त्रिण्य जे भुवनना जैन ते प्राणीउना मनना मोहन एहवा तुह्मो जिन-वीतराग । इम पूजा करतां थकां परम हर्ष ऊपनो । १७ भेदी करई ॥१॥ एक शत आठ कवित नितु अनोपम, गुणमणि गूंथी गुणिओ । जिनगुण संघभगति कर पसरी, दुरित तिमिर सब हणीओ रे ॥२॥ प्र०। एक शत आठ १०८ कवित्त नवां ते अनोपम महार्थवान श्लोक कीधां छई । तदरूप मणीआ गुंथीने माला गुंणज्यौ भविजनो ! एहवई करी गुण्यउ भक्ति श्रीजिनगुण अमें संघभक्तिरूप किरण पसर्या विस्तर्या । पसरी थकी स्यूं करें ? ! भवि प्रांणीनई तिणे करी दुरितरूप में पाप तद्प जें तिमिर, पूजा करतां-सांभलतां तें तिमर सर्व हणाणा-नास पाम्या जाइ ॥२॥ तपगछ अंबर दिनकर सरिखो, विजय दानसूरि मुणिओ । भविक जीव तुह्म थयथुइ करतां, दुरित मिथ्यामत हणीउ रे ॥३॥०॥ __ श्रीतपगच्छरूप आकाशने विषई दिनकर ते सूर्य समान एहवा महाप्रतापी १५८. सकुं - अ. । १५९. अमई - ब. । १६०. लोकनें - ब. । १६१. घणुंज - ब. । १६२. करि ब. । १६३. सो - ब. । १६४. सूर्यनई सरिखों - ब. । Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अप्रिल-२००७ 75 पून्य-पवीत्र श्रीविजयदानसूरि गुणवंत केहवां ? मुनिना गुरु छइं, भट्टारक छई। तेहनें राज्यई अरे भव्यजीवो ! तुह्मो वीतरागनी थयथुई-स्तवनां करतां दुरित-मिथ्यामति सर्व हणो / विपरीत वासनाथी ऊपना जे पाप ते टालो / माहरां मीथ्यात्वमति गुरुथी जाई / गुरु मोट प्रभू छई // 3 // इंणि परि सतरभेद पूजाविधि, श्रांवककुं जिनइं भणिओ / सकल मुनिसर काउसग्ग ध्यानइं, "चिंतवि तस फल चुणिउ रे // 4 // इंणिपरें सतरभेद-पूजानां भेद 17 कह्या , ते प्रांणी सांभलीने पूजाविधि करें / एणी प्रकारै सतरभेदी पूजानो विधि श्रावक जननई कहेवा भण्यो / जिनेश्वरई द्रव्य-पूजानों अधिकार कह्यो / जे मार्टि द्रव्य-पूजाना अधिकारी श्रावक छइ / अनें सकल मुनीश्वर पणि काउसग्ग ध्यांने / 'वंदणवत्तिया' इत्यादिक पाठई काउसग्ग, तत्प्रत्ययनो करी भावपूजाचिंतन-फल-चुर्ण, ते कहे छई / अथवा सकल ते सकलचंद्र उपाध्यायई ए पूजा करवानो प्रारंभ काउसग्गमांहि कह्यो इम पणि कहै छै, जे जणाववाने ए पद आ एक छै / कोइक ग्रांमें सकलचंद्र चोमासुं हता तिहां उपाश्रयना मा कुंभार रेहतो तेना गार्द्धम भूक्यानो काउसग कर्यो, त्यार पछी काउसग्ग पार्यो तार पछी पूजा सहु भणे छई / / इति श्री सत्तरभेद पूजाविधिसंपूर्ण // श्रीरस्तु / / छ / इति सत्तरभेदी पूजानो टबार्थ लिख्यो पं. सुखसागार]गणिई भविक प्राणीनई पूजा अर्थ सुगम थावा माटें / संवत 1800 कात्तिक शुदि 13 गुरुवासरे लखित्तं श्रीस्तंभतीर्थे श्री // 5 // 165. चित्त वित तस ब. / 166. भेदी - ब. / 167. संवत 1854 ना वर्षे चैत्र वदि 5 गुरौ लि. पं. जीवविजे० // संवत 1854 ना वर्षे चैत्रमासै कृष्णपक्ष पंचमी तिथौ गुरुवासरे आणंदपूर नगरेइं पं. श्री दोलतविजय गणी