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________________ अप्रिल-२००७ 75 पून्य-पवीत्र श्रीविजयदानसूरि गुणवंत केहवां ? मुनिना गुरु छइं, भट्टारक छई। तेहनें राज्यई अरे भव्यजीवो ! तुह्मो वीतरागनी थयथुई-स्तवनां करतां दुरित-मिथ्यामति सर्व हणो / विपरीत वासनाथी ऊपना जे पाप ते टालो / माहरां मीथ्यात्वमति गुरुथी जाई / गुरु मोट प्रभू छई // 3 // इंणि परि सतरभेद पूजाविधि, श्रांवककुं जिनइं भणिओ / सकल मुनिसर काउसग्ग ध्यानइं, "चिंतवि तस फल चुणिउ रे // 4 // इंणिपरें सतरभेद-पूजानां भेद 17 कह्या , ते प्रांणी सांभलीने पूजाविधि करें / एणी प्रकारै सतरभेदी पूजानो विधि श्रावक जननई कहेवा भण्यो / जिनेश्वरई द्रव्य-पूजानों अधिकार कह्यो / जे मार्टि द्रव्य-पूजाना अधिकारी श्रावक छइ / अनें सकल मुनीश्वर पणि काउसग्ग ध्यांने / 'वंदणवत्तिया' इत्यादिक पाठई काउसग्ग, तत्प्रत्ययनो करी भावपूजाचिंतन-फल-चुर्ण, ते कहे छई / अथवा सकल ते सकलचंद्र उपाध्यायई ए पूजा करवानो प्रारंभ काउसग्गमांहि कह्यो इम पणि कहै छै, जे जणाववाने ए पद आ एक छै / कोइक ग्रांमें सकलचंद्र चोमासुं हता तिहां उपाश्रयना मा कुंभार रेहतो तेना गार्द्धम भूक्यानो काउसग कर्यो, त्यार पछी काउसग्ग पार्यो तार पछी पूजा सहु भणे छई / / इति श्री सत्तरभेद पूजाविधिसंपूर्ण // श्रीरस्तु / / छ / इति सत्तरभेदी पूजानो टबार्थ लिख्यो पं. सुखसागार]गणिई भविक प्राणीनई पूजा अर्थ सुगम थावा माटें / संवत 1800 कात्तिक शुदि 13 गुरुवासरे लखित्तं श्रीस्तंभतीर्थे श्री // 5 // 165. चित्त वित तस ब. / 166. भेदी - ब. / 167. संवत 1854 ना वर्षे चैत्र वदि 5 गुरौ लि. पं. जीवविजे० // संवत 1854 ना वर्षे चैत्रमासै कृष्णपक्ष पंचमी तिथौ गुरुवासरे आणंदपूर नगरेइं पं. श्री दोलतविजय गणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229517
Book TitleSakalchandragani krut Sattarbhedi Pooja Sastabak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDiptipragnashreeji
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages37
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size666 KB
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