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________________ ओप्रिल-२००७ प्रमुख ग्रंथानुसारइ यथोक्त सर्वविध साचवी । प्रथम पूरव दीशै संमुखें करी सरीरनो सर्व मेंल टालवा द्रव्यस्नान करवू, अनैं भावमल टालवानें वितराग पूजा - विविध लक्षण शुभाशय छै एहवो । मुख "शुद्ध करीनई, श्रीवितरागनी पूजा सारु दंत-मुखादि पवीत्र करीनें मुखे आठपडो मूखकोश बांधीनें निर्मल धोतीक परिधान करवी, धोतीइंआ पेंहरी । एहवो थईनई एहवी विधे पूजा करखी । कनक मणीनें-सुवर्णरत्नतणे मंडित-विशेष भूषणे, तें पहेरीने वेढवेंटी पेहरवी । ग्रहणे भूषीत हुंतो निर्मल सुगंध पांणीइं करी शरीर नवरावीई। भर्या छई मणि-कनकादिकना कलशानी श्रेणिई रहीनई कलश ४ अबोट पाणीइं भर्या, कलश १ दूधनो एवं नंग ५ कलशा जेणई एहवो हुँतो ॥१|| जिनपभवनं गतो भगवदालोकने, नमति तं प्रथमतो माजतीशं । दिवि यथेंद्राद्रिका तीर्थ-गंधोदकिं स्नपयति श्रावको तिम जिनेशं ॥२॥ जिनप क. जिनेश्वरना श्रीवितरागना, भवनं क. प्रसादने प्रतें - विर्षे, गतो क. पोहतो थको, भगवदालोकनें क. भगवंत प्रति देखीनई जिनने देखीनें “निसी" एवो पाठ कहीनई, प्रथम-पहिलो नमई-नमस्कार करइंप्रणाम करई । ते भगवंत प्रतइं प्रणमीनें पछई पूंजणीइं पूंजई -वितरागनं सरिर पूंजें । जिम इंद्र ईश कहतां स्वामीना बिम्ब प्रतइं दिवि क. देवलोकनै विषइ पूजे छई, तिम भाव राखवा । यथा क. इंद्रादिकें देवताइं स्वामी ऊपरई तीर्थ, पदमद्रह-गंगादीकनां सुगंध पाणीइं करी न्हवरावइ, तिम स्त्रपयति कहतां सुगंध पाणीइं न्हवरावई श्रावक-भव्य प्राणी, जिनेश क. जिनेश्वर प्रतई पूजा करतां ॥२॥ राग-अडाणो । मलार-केदारो मिश्रित । हवें एहवइं एहज भावनुं गीत कहे छई । अडाणे रागई तथा मल्हार रागें केदारामिश्रित रागें कहे छई । भवि तुम्हे देखो अब तुझे देखो, सतर भेद जिन भगती । अंग उपांग कही जिन गणधरि, कुगति हरैइ दिई मुगती ॥१॥ तुझे। अरे भवि क. भव्य जीवो-मुक्तिगमन योग्य जांणी प्राणीओ ! हवणां तुम्हे निरखो-जूओ | सतर भेदइ जिनेश्वरनी भक्ति-पूजानी विधि विविध ११. सुगंध ब. । १२. हरि ब. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229517
Book TitleSakalchandragani krut Sattarbhedi Pooja Sastabak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDiptipragnashreeji
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages37
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size666 KB
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