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________________ 64 हवई तेरमी पूजानुं गीत वसंत रागई कहीइं छइ ॥ गीतं - वसंतरागेण । " जिनप आगें विरचो भविलोका जस दरिसाई शुभ होई युं रे देखत सब कोई |१| जिन० ॥ जिनप कहतां वीतराग - जिनेश्वरनां पद आगलि विरचो कहतां रचो - नीपजावो, अरे भविक लोको ! भव्य प्राणीओ ! तुमई श्री जीनेश्वरनें भजोध्याओ । जेहनां दरिशणथी मंगलीक होई, अपमंगलीक वेगलां जाई । तिम अष्टमंगलीकथी अपमंगलीक जाई । जेह श्रीवीतरागना दर्शन थकी तथा अष्टमंगलीक दीठाथी सुख थाई ते माटें । इम तुझो सहु प्रांणी देखो जाणो ॥१॥ अतुल तंदुल करी अष्टमंगल वली १ तिम रचो जिमें तुझ घरिं होई ॥जीन० ॥ अतुल क० जेहनी तुलनाइ कोई नावइ एहवा घणां तंदुलें अखंड चोखें करीनें श्रीजिननां मूख आगलई, अष्ट-आठ मंगलश्रेणि तिम रचो - तिम करो जिम फिरी तुम्हारई घरई अष्टकर्म चोर विलय जाई, आठ मंगलिक थाइ, तथा अष्टमद घात जाई, तथा अष्टकर्मना शोभाव मंगलीक धाइ तिम प्रांणी तुम घरें होयं, उपद्रव जाई, भय रहीत थाई ||२|| स्वस्तिक १ श्रीवत्स २ कुंभ ३ भद्रासन ४ नंद्यावर्त्तक ५ वर्द्धमान ६ । मत्सयुग ७ दर्पण ८ तिम वरफल गुण, तेरमी पूजा सवि कुशल निधानं ॥ २ ॥ जिन० ॥ अनुसन्धान ३९ इम अष्टमंगलीक करवा : साथीओ १, श्रीवत्स २, कामकुंभ- कलशं ३, भद्रासन ४, नंदावर्त्तकनव खूणालो साथीओ ५, वर्द्धमान ते सरावसंपूट ६, मत्स युगल - बे माछलां पद्मद्रहनां ७, आरीसो, तिम वर-प्रधान फैलसहीत 'गुणसहीत छै जिहां, ९९. जिनपद आगलिं विरच्यो ब । १०० भविजनो ब । १०१. जिम घर होई ब. । १०२. मंगलिकनी ब. । १०३. फलें ब. । १०४. गुणें - ब. Jain Education International 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229517
Book TitleSakalchandragani krut Sattarbhedi Pooja Sastabak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDiptipragnashreeji
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages37
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size666 KB
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