SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अप्रिल २००७ 69 गायति सुर गायन जिम मधुरं, तिम जिनगुंण गण मणि रयणो । सकल सुरासुर मोहन तूं जिमें, गीत कहिओ हम तुम नयणो ॥३॥ तुम० ॥ गायति क० गायइं-गाय छै रागें करी, सुरगायन क० सुर - देवताना गायन, वली देव-गंधर्वनी परि श्री वीतरागना गुण गाय छै । जिम मधुरं क० मधुर होइ तिम श्रीजिन- वीतराग मधुरे सादें वाजित्र समूह वाजतें, जिन गुणना गण क० समुदाय, तद्रूप मणी - रत्न जेहनई विषई, सकल जे समस्त सुरासुरनें मोहई, एहवा श्री जिनवरनुं स्तवन - स्तोत्र - गीत भणई - कहिउं । अहमो तुम्हारी १३ दृष्टि तुमारा नयन - तुह्यारी कृपायइं, तेणें करीनई अमें भक्ति कीधि छई ॥३॥ एतलै १५ मी पूजा गीतनी थई । इति स्तवन गीत पूजा पन्नरमी १५ ।। इति श्री गीतं स्तवनें १५ मी पूजा कही । हवई सोलमी पूजा नाटिकनी कही : राग सोरठी तथा मधुमादन ॥ सरस वयवेष मुखरूपकुच शोभिनी विविध भूषांगनी सुरकुमारी । एक शत आठ सुर कुमर कुमरी कर विविध वीणादि वाजित्रधारी ॥ १ ॥ सरस० ॥ I राग सोरठी तथा मधुमादन रार्गे कहै छै । गीतें शुद्ध कडखो छ । जिम सुरीआभ देवें तथा आंमर्लेर्केलपानगरे नाटिक कीधुं । सरिखी वयें मुख रूप - कुचें शोभती एहवी, कुंण ? विविध प्रकारनां भुषणनी धरनारी J ४ एहवी देवकुमारी । सुरभें (शोभें ?) श्रीवर्द्धमान्न स्वामीने वांदीनें आगलि जिमणी भुजा पसारीनें १०८ देवकुमर कीधा, डाबी भुंजा पसारी १०८ देवकुमरी कैरी तेनें हाथें ४८ वाजां विविध प्रकारें जे मांहोमांहि ४८ वाजता तान साथै बत्री प्रकारे नाटिक कीधुं घणा वाजित्र बाजतें । तिम बीजायै १२८. तुं जिन ब. । १२९. जिनेश्वरनुं ब. । १३०. दृष्टि- ब । १३१. आमलकप्पानगरे ब. । १३२. डावि भूजाथी ब । १३३. किधी ब. । १३४. बत्रीसबद्ध नाटिक करें ब. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229517
Book TitleSakalchandragani krut Sattarbhedi Pooja Sastabak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDiptipragnashreeji
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages37
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size666 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy