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________________ 68 अनुसन्धान ३९ राखीनें वजाडों । सुरति धारणी राखवी । प्रधान तंतिना वाजा मादल साथई, मादल जयँतैमान, पडताल, एकताल, इत्यादिक तालभेद । वाजीत्र पडताल जाति छै, एक तालना भेद ४८ जातिनां, एहवी आस्ता राखीनई हे स्वामी ! अमारा भवनां पातिकने आयति कहतां उत्तर कालना पातिक भविकजननां हे प्रभु -- स्वामी ! गालो कहतां टालो ॥२॥ हवें पनरमी पूजानुं गीत श्रीरागई कहै छइ : गीत : श्रीराम || १२६ "तु शुभ पार नही सूयणो, मानातीत यथा गयणो तान मान लयस्युं जिनगीतं, दुरित हरई जिम रज पवणो ॥ १ ॥ तुह्म० । गीत श्री रागेण गीयतें । अरे सुयणो ! - स्वजनो ! अरई स्वामीइंओ ! तुम्हारा शुभ क० तमारां शुभ पुन्यनों पार नहीं, जें जिनेश्वरनी भक्ति करी छै एतलै घणुं जिम गगनआकाश मानातीत छई तिम तुम्हारा पुन्यनो पार नही ते माटिं । तान माननी जें लय- लव्य संघातें एतीनई एक करी श्रीजिनना गीत गाऊं छउं । वीतरागनी भक्ति करतां पूण्यनो पार नही । दूरित - पापनें हरें, जिम पवन कहतां वायरें रज उडी जाई, वायरो रजनें हरई, तिम तुम्हारां दुरित ते पाप हरे || १ || वंश उपांग ताल सिरिमंडल, चंग मृदंग तंति वीणो । वाजति तूर जलद जिम गुहिरं, पीतांमृत परि करि लीणो ॥२॥ तुह्म० । अरे स्वामीओ ! वंस, उपांग, ताल, श्रीमंडल, इत्यादिक वाजीत्रभेद छर्इं । चंग-डफ, मृदंग-मादल, तंति वीणायंत्र, तेणें । वली वाजती कहतां वाजई, तूर कहतां वाजित्र जाणी, वाजां वाजें । कोनी परें ? जलद-मेघ जिम गुहिर गाजई, जिम वरसात गोहिरें गाज करें, तिम वाजीत्र वाजें छई । पीतां - अमृतनी परि जाणियइ छे जे लयलीन थया, पूर्ण तृप्तिवंत थया, तुष्टिवंत थया ||२|| १२५. जयमांन अ. प्रतौ पाठां नोंध ॥ १२७. तांति ब - ब. । १२६. टिप्प. किहां एक जिन शुभ पालही सुयणो इति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229517
Book TitleSakalchandragani krut Sattarbhedi Pooja Sastabak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDiptipragnashreeji
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages37
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size666 KB
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