Book Title: Aagam 38 B PANCHKALP Bhashya ev
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ' [३८/२] श्री पंचकल्प (छेदसूत्रम्) भाष्य । नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य श्रीआनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः । "पंचकल्प" भाष्यं [संघदासगणिक्षमाश्रमण-विरचितं भाष्य] व्याख्या + महत् भाष्य + लघुभाष्य [आदय संपादकः - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा.।। (किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) पुन: संकलनकर्ता- मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D.) | 12/02/2015, गुरुवार, २०७१ महा कृष्ण ८ jain_e_library's Net Publications मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [9/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) --------- भाष्यं [००००] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य NWARANANJANAVUVW पूज्य आगमोद्धारक आचार्य श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी संशोधित: संपादितश्च पचकल्प-भाष्यम मुद्रित पृष्ठरुपं - शत्रुजयतीर्थे शीलोत्कीर्ण: -सुरतनगरे तामपत्रोत्कीर्ण “आगममंजुषा"या: उद्धृत-छेदसूत्रम् वीर संवत २४६८ विक्रम संवत १९९८ सन् १९४२ पंचकल्प -छेदसूत्रस्य “टाइटल पेज" Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाष्याका: २६६५ 'पंचकल्प(भाष्य)' छेदसूत्रस्य विषयानुक्रम दीप-अनुक्रमा: २६६५ ००४ ००५ ००० भाष्यांक: विषय: पृष्ठांक: ०००१ | भद्रबाहूं-वंदना, तत्पदस्य अर्थ: | ००४ ००७८ | चारित्रस्य भेदा: ००५ ०१९७ । दीक्षादाने अयोग्या:, तद्दोषादिः ००७ ०७२५ | लोकपिंड, भोजनविधि, पूति । । ___०१८ ०९६७ । | सार्ध-पञ्चविंशतिआर्यदेशा: । ०२३ १०२२ | मासकल्प, पर्युषणा, वृद्धवास, ०२४ पर्यायकल्प, कायोत्सर्ग, प्रति क्रमण, कृतिकर्म,प्रतिलेखना १६६८ नाम-स्थापनादि २० कल्पा: । ०३७ २६६y उपसंहारः ०५४ । भाष्यांक: विषय: पृष्ठांक: ००३२ | दुःषमकालानुभाव ००८३ | निर्ग्रन्थ एवं संयत, भेद-आदि ००५ ०५५८ | प्रव्रज्या: १६ भेदा: -सदृष्टांता: ०१५ ०७८८ | उपधि-जिन-स्थवीर कल्प | ०२० ०९७४ | विहारयोग्य क्षेत्राणाम् गुणा: । | ०२३ ११६८ | सूत्रकल्प,उद्देशकल्प, वाचनाया: ૦૨૭ | गुणा: एवं विधि:, पृच्छनाकल्प | अध्यापन योग्य आचार्य-स्वरुप ૨૬૮૨ | द्रव्य-भाव आदि २० कल्पा: ०३७ ----- -------- भाष्यांक: विषय: पृष्ठांक: ००५२ | कल्प-अध्ययनस्य अभिधेयानि ०१५३ | कल्प- अर्थाः, निक्षेपा:, भेदादिः ०७०१ । | उपस्थापना विधि: ०१८ ०८५७ | उपधे: उपघाता: ०२१ ०९९० अनायतन ०२४ १२६३ | स्थित-अस्थित-जिन-स्थविर लिंग-उपधि-संभोग कल्पा: कल्प-प्रकल्प आदि १० कल्पा; २१६५ | द्रव्य-भावादि ४२ कल्प-भेदा: | ०४५ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र- [३८/२], छेदसूत्र- [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य ~2~ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [पंचकल्प' भाष्यं] इस प्रकाशन की विकास-गाथा पूज्यपाद आचार्यश्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी) के संशोधन एवं संपादन से सन १९४२ (विक्रम संवत १९९८) में ४५ आगम+वैकल्पिक दो आगम+ पांच नियुक्तिओ एवं कल्पसूत्र को मिलाकर “आगममंजुषा" नाम से करीब १३०० पृष्ठ छपे, जिसकी साइज़ 20x30 इंच थी | इस संपादनमें ६+१ छेदसूत्र भी पूज्यश्रीने मुद्रित करवाए | यहीं "आगममंजुषा" पूज्यश्री की प्रेरणा से श्री शत्रुजयतीर्थ की तलेटीमें आगममंदिरमें आरस के पट्ट पर भी उत्कीर्ण हुई और सुरतनगरमे ताम्रपत्र पर भी अंकित हुई | हमने उसी ६+१ छेदसूत्रो को फोटो-स्केन करवाया, फोटो-स्केन कोपी को पहले 'A-4' साइज़ मे लेजाकर अलग-अलग ६+१ किताबो के रुपमे रखा, फ़िर उसी को इन्टरनेट पर भी अपलोड करवाया और हमारे प्रकाशनो कि DVD मे भी उनको स्थान दे दिया | हमारा ये प्रयास क्यों? आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, ४५-आगम सटीक भी हमने ३० भागोमे १२५०० से ज्यादा पृष्ठोमें प्रकाशित करवाए है किन्त लोगो की पूज्य श्री सागरानंदसरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा आदर देखकर हमने इसी ६+१ छेदसूत्रो को प्रत-स्वरुपमें यहां सम्मिलित कर दिया, तॉकी भविष्यमे को यह न कहे कि इस संपटमें ३९ आगम हि है, और ६ आगम कम है। एक स्पेशियल फोरमेट बनवा कर हमने बीचमे पूज्यश्री संपादित पृष्ठो को ज्यों के त्यों रख दिए, ऊपर शीर्षस्थानमे आगम का नाम, फिर भाष्यगाथा के क्रमांक लिख दिए, ताकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौन सी भाष्य-गाथा चल रही है उसका सरलता से ज्ञान हो शके, बायीं तरफ आगम का क्रम और इसी प्रत का सूत्रक्रम दिया है, उसके साथ वहाँ 'दीप अनुक्रम' भी दिया है, जिससे हमारे प्राकृत, संस्कृत, हिंदी गुजराती, आदि सभी आगम प्रकाशनोमें प्रवेश कर शके | हमारे अनुक्रम तो प्रत्येक प्रकाशनोमें एक सामान और क्रमशः आगे बढ़ते हुए ही है, इसीलिए सिर्फ क्रम नंबर दिए है, प्रत में यहां सिर्फ गाथाए ही है, फ़िरभी हमने यहां सिर्फ कौंस - दिए है, गाथा के लिए यहाँ ||-|| ऐसी दो लाइन नहीं खींची है। एक विशेष बात- इस आगममें महत् भाष्य, लघुभाष्य और व्याख्यागाथा की जानकारी के लिए हमारा "आगमसुत्ताणि मूल" भाग ३८ जरुर देखे | हमने एक अनुक्रमणिका भी बनायी है, जिसमे प्रत्येक अध्ययन आदि लिख दिये है और साथमें इस सम्पादन के पृष्ठांक भी दे दिए है, जिससे अभ्यासक व्यक्ति अपने चहिते अध्ययन या विषय तक आसानी से पहँच शकता है | अनेक पृष्ठ के नीचे विशिष्ठ फूटनोट भी लिखी है, जहां उस पृष्ठ पर चल रहे खास विषयवस्तु की, मूल प्रतमें रही हुई कोई-कोई मुद्रण-भूल की या क्रमांकन-भूल सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है। अभी तो ये jain_e_library.org का 'इंटरनेट पब्लिकेशन' है, क्योंकि विश्वभरमें अनेक लोगो तक पहुँचने का यहीं सरल, सस्ता और आधुनिक | रास्ता है, आगे जाकर ईसि को मुद्रण करवाने की हमारी मनीषा है। ......मुनि दीपरत्नसागर..... । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [9/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण विरचितं भाष्य ~ 3~ Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ------------ भाष्यं [०००१] ----------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं प यसतो नाम तोयं भावाहुति प्रत ज मन्नति तस्स कारतो लो नामसगलमतं ॥२५ चरिमो अवधिमा सूत्रांक [०००१] दीप अनुक्रम [०००१] श्रीपंचकल्पभाष्यम् दामि मदमाई पाई परिमसगलसुपनानी। सुत्तत्यकास्ममिसि दसाण कणेयवहारे।..व्यास्येव ॥१॥कर्षति णामणिफणं, महत्वं बालकामतो। पारमितहमरस मत्तीच, मंगलहाएँ संघति ॥२॥ नित्यमरणमोकारो सत्यरस आइए समक्खाओ।ह पूण जेणापर्ण मिशद तस्स कीरतित ॥३॥ सत्यागि मंगलपुरस्सराणि सुइसवणमहणधरणाणि । जहा मति जति व सिस्सपत्तिस्सेहिं पचयं (खाई)॥४॥ मत्ती व सत्यकनारि तत्तो (तं कय) उपयोगगोरख सत्ये। एएण कारणेणीत आरी गमोकारो ॥५॥ बदि अभिवादयुतीए सुभसदो मेगहा तु परिगीतो। वंदण पृथग ममणं पुणणं सकारमेगवा ॥६॥ महम्ति संवरन्ति यतात्यो जत्थ (स्स) सुंदरा बाई । सो होति भरमा गोणं जेणं तु बालते ॥७॥ पाएर्ण लक्सिजाइ पेसलमाबो तु बाजुबलरसा उपवनमतो जाम तस्सेयं भरपाहुत्तिदा अग्यवि भरवाह बिसेसणं गोल(व्यगण पाणी असि पाविसिट्टे (पिय सिदे)विसमर्थ चरिमसगलमुतं ॥९॥ चरिमो अपच्चिामो खलु पोरस पुत्रा उ होति सगरमसुतं । सेसाण पुलासमा सुत्तका जायणमे। यस्स ॥१०॥किण कर्य सुरज भन्मति तस्स कारतो सो उ । मणति गणघारीहिं सबसुर्य र पुत्रकत ॥ ११॥ तत्तोचिय गिजु अणुमहहाय संपवजातीला सो(तो) सत. कारओ खल स भवति इसकपपचहारे ॥१२॥ देव भगत बहुमासुभहसाओमद पक्यणहियमुय(ह)केतुं सुषणामपभावगं धीरे।..शालपुभाय ॥१३॥ पदिसडों पुजमणिमओ तरितीनपणामगोनहिराइसरियाद गुण भगो सो से अरिथति तो भगचं ॥ ४॥ मई कहाणति य एगह तप सुचायं जस्स। सो होति सुबहभहो सोमनभरी सुमहोति ॥५॥ | खीरासयमादीणित सुभाणि महाणि तस्स तुबहुणि। साउद परोए मह तो सबतोमहो॥६॥ आमोसहादिहतह परलोए हॉवडणुत्तरमुरादी। सुहप्पत्ती बतओ ततो य पच्छा यशार्ग ७॥ मातिति महमदचा माई गानादीएहिं सो जम्हा । सो होति भरणामो कुणेति महाणि मा जम्हा ॥८॥ पश्यन वारसंग तस्स हितो कोतसोमिति। संपो त पयर्ण हितोपदेस अतो तस्स ॥९॥केतृसदो उसिए उसिय तुम तु तस तु महंतुहलोए परलोए सो भगवं होति परमसही ॥२०॥ वाषणय पभाषणया सतणाणगणा AI बजे बदति लोए। विउसपरिसाएं मको सुतगाणपभाषणा एसा ॥१॥ किं कारण तस्स कत्रो मइया मत्तीय तू णमोकारी । जम्मा तेणं जूढा अम्ह हियाय सुत इसे ॥२॥ आया-11 रसा कप्पो पहारो णयमपुरणीसंबो। चारित्तरक्सट्ठा सूयकामुपरि ठपिता ॥३॥ अंगदसा अण्णावि उपासमादीण तेच उ विसेसो। आयारवसा उहमा जेणेश्य पग्णियाऽऽवारा ॥४॥ वसकापावहारा एगसुतासंध केहाति । केई व दसा एक कप्पापहार बीर्य तु॥५॥ स्यणागस्थानीयं गवर्म पुर्व तु तस्सा नीसन्दो। परिमाल परिस्साचो एते दसकम्पपवहारा ॥६॥किं कारण शिजूदा चरित्तसारस्त रक्खगडाए। खलियरस सहि सोही कीरइ तो होवि निस्वयं ॥७॥ सूपकटुवारि ठविता जम्हातू पंचयासपरियाए। सूयकामाहिजति न तो जोग्गो होति सो तेसि ॥८॥ अनुकंपाऽनुच्छेदो कुसुमा मेरी तिमिच्छ पारिच्छा। कप्पे परिसा यतहा विद्वता आदिसुत्तम्मि॥९॥ ओसप्पिणि समणार्ग हाणि पाऊण आउन गबनाना होहितपमहकरा पुषगतम्मी पहीणमि ॥३॥३०॥ खेलस्सय कालस्स य परिहाणि गहनधारणार्ण च । बलपिरिए संघयणे सदा उमारती ॥ १॥कि सेनं कालो वा संकृयती जेण तेण परिहाणी। भनाइन संकुयंती परिहाणी तेसि तु गुणेहिं ॥२॥ मणियं तु समाए गामा होहिंनि त मसाणसमा। इस कारण (खेने) गुणहाणी कालेविन उहोनिमा हाणीसमए समए णता परिहार्यते उमणमादीया । बादीपजाया जहारतं तत्तिय चेप ॥ ४ ॥ समजनभावेन साहुजोग्गा मामा सेलाकाटेविय इग्नि-5 क्सा अभिवसन होति उमरा य॥०२॥५॥ दुसमजणुभावेण व परिहाणी होति ओसाहिबलाणं । तेणं ममुपागंपितु आउगमेहादिपरिहाणी 8.30 संचयपिय हीया ततो यहाणी य चितिथलस भवे। पिरियं सारीख सपिय परिहानि स चल०४ाहायनिय सबाओ गहणे परिष(ब)दणे य मणुयाम । उच्छाहो उजोगी अणालसतंचएगहा: ल०५॥८॥इय गाउँ परिहाणि अणुग्गहहाएँ एस साहूर्ण। णिजूढऽणुकंचाए वितहि इमेति ॥९॥ पगरणचेडणुकंपा बढविपददेहि होयगारीणं । जहओमें बीयभत्तं पणा बारिणं जायस।. ॥ एवं अन्यत्तचिय पुत्रगत केडमा हुमरिहति। तो उदारिकम ततो हेवा उत्तारियं हि ॥१॥मा यह मोच्छिनिहिनिपाणणभोगोजितेण मि। बोमिठो बहु नम्मी चरणाभापो भोजाहि ॥२॥ कह पुण तेण गहेतु दिग्णाई वरिथमो तु विद्वतो । जह कोड दुसरोहो सुसुरभिकुसुमो नुकम्पामो ॥३॥ पुरिसा के असतात आरोदण कुसुमगहणा। तेसिं अणुकंपट्टा कोइ ससत्तो समारो॥४॥ धेनुं कुसुमा सहमहणहेतुर्ग मंपिउंदले नसि। तह चोहसपुतक जारूदो महवाहू ॥५॥ अणुकपडा गबिर्ड। सूपमापरि ठसे धीरो । पुष सतोचएसेण चेच माहित ण सेण्डाए ॥६॥ अन्याह गहिए दोलो असाहस होति भागमाईन । केसवमेरीणात पासात पुत्रसामाए ॥ अना SI लिमिच्योतु ऊपहिय वापि ओलह विजा। तेहिं तु (तहिं न ) कजसिदी सिद्धी विवरीयए भवति ॥ ८॥ पारिच्छा परिच्छिन पापमादी दलनि जोगारसा परिणामादीण तपास गमारीहि जानेहि।..४९॥ पारिच्छ आदिसुले पुर्व मणिया तु जाउ विहिसुते। सेठपणादी परिसा पूरताई य भग्निहिती ॥५०॥ परिसावार मणित कापहार कमेण (२६) पपत्रकापमाबY - AVsviroeconombaree ww. anRT परनामा ~4 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-१/२ (भाष्य) ---------- भाष्यं [००५१] ------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं E जानन मयनसरीरं भविओ पुण रहेब सेहा या एवं त कपाशा आगमे चेव ॥ २॥ आगमत्रो उप प्रत सूत्रांक [००५१] REV4 दीप अनुक्रम [००५१] इदाणि। किं पुग उकमकरगं बहुचत्तति पाऊणं ॥१॥ कि पुण कपावणे पनिजाति भण्णती मुणसु तावा जे अभिहिता उ अत्था ताहियं ते ऊ समासेणं ॥२॥ कप्पे पकप्पिए च, कप्पणिजेनिआपरे। कासुए एसणिजे य, संजमे इत्तियावरे ॥..७.३॥ बालए चागए चेक, चम्मए पट्टए तहा। पम्हए किमिए चेव, धानुए मीसतेतिय ॥..८॥४॥ उपसंपया वाचरित्तस्स, परिने काविह इय?। णियंठा कति पणना, कहं समोतारणातिय ॥..९॥५॥ यवहारे कस्स पणते?. कह पडिसेवणानिय है। देखभंग कर उसे 2.साभगलियारे 11 ...१०॥६॥ पच्चिने काविहे नुत्ते, उहाणिनियावरे। पंचट्ठाणे चतुहाणे, तिद्वाणे इलियारे॥.:.११॥७॥छहाणे दसणे वुत्ते, संजमे इत्तियावरे । गाहणा य चरितस्स, एमेता पडिबत्तिओ..:.१२॥८॥कप्पो उहोति इविहो जिणकप्पो चेव थेरकप्पो या दुविहो उ कपिओ खल दधे भाचे य गायत्रो॥९॥ आगमणोआगमओ दाम्मी कपिओ भवे दुविहो। आगमतोऽणुषउतो णोआगमतो इमो होति ॥६०॥ जाणमसरीर मलिए तयतिरिने य होति गायत्रो। जाणग मयगसरीरं भविजो पुण सिक्तिही जो तु॥१॥ बतिरित्तो एगभवो पदाऊ अभिमुही व पोदयो । भावेवि होनि दुविहो आगमणोभागमे चेव ॥२॥आगमत्रो उपउत्तो णोआगमओय पिंडमाईणं । गहणमि कपिओ स्खल पावेतं च सेवाणं ॥३॥ जं जं जोग्य जतीणं आहारादी नहेब सेहा या एवं तु कप्पणिज अपरिगहणा अप्पम्मि ॥.:.१३॥४॥ आहारि पलंबादी सलोममजिणादि होति उवहीए। सेजाए दगसाला अकप: सेहा व जे अन्ने ॥५॥ केरिसय कप्पणिजं फायगं, कामुयं तु केरिसगं ?। जीवजई जं दर्ष तपि य ज एसणिज तु ॥६॥ बसदोसविपर्क गहिय पसरेल उमामादीवि। एवंत साहुजोगं गिन्हंतो संजतो होति ॥ ७॥ अहया सत्तरसविहो संजम जं वापि मुत्तदेणं । भुजति आहाराती विपरीयमसंजमो होई॥८॥आहाररस उ भेदा असणादी उबहिणो 30 पालादी। एतेसि तु परूपण यालयमादीणिमा होति।...१४॥९॥ बालेहि णिकपणं वालपमोष्णोहियादिगं होनि। केहि तु णिकवर्ण वागज सणकमादीग ।। ७०॥ चम्म चम्मपडीए पट्टो उण होतिमो मुणेयो। पारयोग्गाहपट्टा तिरीउपट्टो य एमादी॥१० पम्हज हंसगम्भादि अहवा कप्पासियं मुणेया। कोसेजपहमादी जं किमियं तु पचति ॥२॥ उन्मति वंसकरिडा कमिवि देसमि तरुणते घडए। वई नो पूरबतीत घडयं चिप्पिए मि ॥३॥ संकोहेऊण कणर्य तेहिं तम्हा उ विजए मुन। तेण पुर्य संवत्वं भणति तं धातुतं णाम ॥४॥ दुगसंजोगादीहि एएसि व वाळयादीणं । तं मीसयंति भणति जह ऊमाखो(दुहं खो०)म्हियादीयं ॥५॥ वत्तव पसदेणं भेयपभेडा उजेनिया तेसि । मुढेहेतेहिं न उनसंपप्णो हुसचरिती ॥६॥ अहवा पंचविहातो उपसंपय होतिमा समासेणं । सुब मुहदुक्से खेने मग्गे विणए य चोदना ॥ ७॥ अहवा तिविहुक्संपय णाणे तहसणे चरिते या परिपत्र कतिविहं तु पंचपिहले इमं होति ॥८॥ सामइयं छेदुवडापणं च परिहारसुद्धिय येव । ततो य मुहमरागं अहसायं चेष पोडा।॥ जहवा वयसमितादी सराग तह वीतरागमहवाचि। र खाहग खओवसमितं उपसमियं वा भवे तिविहं ॥८॥ भेदा उ चसहेणं होति इमे गाणसणाणं तु. साइब सोनसमियं दुविहं गाणं मुया ॥१॥ सइयं केवलनाणं खओपस-31 मियाई सेसणाणाई । सदयं खजोवत्समियं उपसमियं सगं निविहं ॥२॥ कम्सेतं चारितं? णियंठ तह संजयाण, ते कनिहा? पंच णियंठा पंचेच संजया हाँतिमे कमसो ॥३॥ पूलए बउस कुसीले होति नियंठे नहा सिणाए या एएसि एकेको पंचविहो होति बोचत्रो॥४॥ गाणपुलाए तह बसणे व चारित लिंग अहसुहमे । एसो पंचविहो खल पुलपणियंटो मुणे-- यत्रो ॥१॥आभोगमणाभागे नह संखुडा संपुढे जहामुहमे। एसो पंचविहो नबउसणियंतो मुगेयत्रो ॥२॥ दुपिहो होति कुसीलो पहिसवणया नहा कसाए या एकको पंचविहीं पर वणा तेतिमा होनि ॥७॥ गाणपटिसेवणाए दसण चरणे य लिंग अहसहमे। पडिसेपणाकुसीलो पंचविही एस गायत्रो दाणाग कसावकुसीले देसण चरणे य लिंग अहमुहुमो। एस कसायकुसीलो पंचविहान मुणेयको ॥९॥ परमगसमयनियंठ अपदम चरिमे वह अचरिम या लत्तो य अहासुहुने पंचमए होनि गायो॥ ९०॥ पंचविह सिणाए नृ अभावी तह असवले अफम्मसे । समुदणाणदसणधरे य होती चउत्थेत ॥१॥ अरहा जिणे य केयलि अपरिम्सावी य होति पंचमए। एते पंच किया सिणायस तु होनि गावया ॥२॥ पंचविद संजतापी सामाइय छेउबट्ट परिहारे। सुहमे य अहसाए एकेके ते पुगो दुबिहा ॥ ०१७॥३॥ इत्तरिए आवकही सामाइवसंजए भने दृषिहो । दुविहे य छेउबट्टोर सऽतिबारे भिरतियारे य ॥ल.१७॥४॥ परिहारविमुदीए णिविसमाणे नहेब निविड़े। दृषिह य मुहमरागे संकिरसते विसुज्यते ॥ल०१७२॥५॥ अहवाओविय दुविहो छउमत्यो पेव केवाली चेष। एसो तु संजतो खलु पचविहो होनि गायत्रो ॥ल. १७३ ॥ ६॥ सामाइयम्मि उकए चाउजाम अणुतरं धर्म। निविण फासयतो सामाइवसंजती स साल ॥ ल०१७४॥ ७॥ छेत्तृण तु परियागं पोराणं तो ठपेति अप्पाणं । धम्मम्मि पंचजाम छेओवडावणो स खलु ॥१७॥८॥ परिहरनि जो विसुद्ध पंचनामं अणुनरं धम्म । तिपिहेण पासर्वतो परिहास्थिसंजतो स खलु गल०१७६॥९॥ लोभम बेदिलो जो खलु उपसामओ व खपओ बा। सो मुहुमसंपराओ अहखाया ऊपओ किंचि ॥ १७७॥१०॥ १०६५ पत्रकापमाप्यं - मुनि दीपरनसामा - ~5~ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) "पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ----------- भाष्यं [०१०१] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य प्रत सूत्रांक [०१०१] पENTIOTO दीप उनसते खीणम्मि ब जो खलु कम्मम्मि मोहणिजम्मि। छउमत्यो जिणो ना जहखाओ संजतो स खलु ल०१७८०१॥ एतेसि समोतारो दुविहो सहाण तह परहाणे। वोच्छामि जाणपत्र जो जत्य समोयरति तेसि ॥२॥ जहणुवसंपजणता सवेसिं चेव पुच्छियवा उ। वाकरण जहाकमसो तेसि इगमो उ दोच्छामि ॥३॥ पुलगो तु पुलागतं जहमाणो जहा सो पुलागतं । उपसंपजे असंजम अहवावि कसायसील तु ॥४॥ उसो उ चउस्सतं जहती पडिसेपणं कसायं वा। संजमऽसजम असंजमं च पटिबजती सो तु॥५॥ पढिसेवणाकुसीलो विजइति पटिसेवणाकुसीलर्स। बाउस कसायकुसीलं पडिवज असंजम बावि ॥ ६॥ अहवावि संगमासंजमं तु पडिपजती ततो सो उ । जोवि कसायकुतीलो विजहति सोत कसायनं ७॥ पुलगंब बाउस वा अहया परिसेपणाकुसीला पहिपज णियंट या अहवावि असंजमं पावि ॥ आचा संजमजम उपसंपले तु सो पतो ततो। णिग्गंठे उणिय. ठल चिजहति तत्तो चुतो संतो ॥९॥ उपसंपज कसार्य सिणाय अहवा असंजमं बाचि। चिजति सिणायगतं सिणायगो ऊचुतो तत्तो ॥११०॥ उपसंपजाति ततो सिद्धिगति सी पही. कम्मसो । एसो तु नियंठाणं समुबारो संजयाणेत्तो॥१॥ सामादिसंजतो तु सामइयतं जहन्त किं जहति । किं वा उपसंपजे? एवं पुच्छा उसबेसि ॥२॥ सामइयत्तं जहती सामाश्यसंजते चुते तनो। छेतुबठापणियं या पडिवजाति मुहुमराग वा ॥ ल०१७९॥३॥ अहवाचि संजमासंजमं च अस्संजमं च पढिवजे । छेदुवठवणीए पुण विजहति से छेदुपट्टवर्ण ॥७० १८० ॥४॥ परिहारपिसदीय अहवाची सो तु गहमरागं तु । जसंजम संजमऽसंजमं च पडिकबती अहया। ल.१८१॥५॥ परिहारविसदीओ विजहति तत्तो तोपित चेव। उपसंपजति छेदं अनावि असंजमं सो तुल०१८२॥६॥ विजहति सुटुमसरागो ततो चुतो मुटुमसंपरायत्तं । उपसंपजाति सामातिसंजमं छेदमहवापि ॥ ल०१८३॥७॥ जहब अहवायं नु जस्संजममहब सोतु पटिवजे । अहसातसंजमो पुग जलायत बिजमाणो ॥ ल०१८४॥ ८॥ जहनि अहक्खायन उपसंपजति सो चुतो तत्तो। सुहमंच संपराग असांजम सिदिगतिमहना ।ल.१८५॥९॥ एस समोतारो खलु अगावि णियंठसंजएमुंतु। संजयनिम्गयेमु य अवरोप्परतो समोतारो ॥१२०॥ पुलगवउसाण एहपि सामइछेडेमु त समोतारो। भोसरनि कुसीने पुण आदिलेसुं चऊसुपि ॥१॥ गिगंधसिमाता पुण समोतरते तु ते अहक्लाते। एवं तु णियंठात ओतरिया संजतेसुं तु ॥२॥ पुलबउसकसी. लेसुं सामइछेदा समोतांती तु। परिहारमुहमरागा जोतरति कुलीलाएमुं तु॥३॥ ओवरति अहमखाओ गिगयसिणातएसु दोसुपि । एमेत समोवरिता अण्णोपणेसु जहाकमसो॥४॥ उत्तारे सामहायाणि नियमानु सबदम् । ण तु सवपनवेहि जम्हा सामादिए उदितं ॥५॥ पढमम्मि सबजीचा बीते चरिमे य सादगाई। सेता महाता पुण (खलु) तदेकदेशेण दवाणं ॥६॥ एतेसि गियठाणं आचपणाणं तु संजयाणं या पहारो होति दहा पच्छित्ते आमचंते या पण्ठिले पंचमिहो आगममादी उहोनि गायव्यो। कस्साभवति ण वाची? सचिनादी तु आभयो ॥८॥ सायराहिस्स ववहारो, अपराहो पटिसेनगा। पटिसेचना व कतिहा. तीसे मेवा इमे भवे ॥९॥ इप्पिया कपिया र इनिहा पडिसेवगा । जयगाइज यणा कप्पी, जयणा सुदो तु सेवतो ॥१३० ॥ जयणालेबी कप्पो दप्यो जयणाएँ अजयणाए या आवजति सहाणं वणिजति विस्थरो कप्पे ॥ १॥ पडिसवगत होनी देखभंगो व साभगो या अवराहे केरिसए देसे सवेऽपि सो होति? ॥२॥ पणगाची जा छेदो एसो खलु होनि देसभंगो तु। मूलादि उपरिमेम् गायत्रो समभयो उ ॥३॥ तस्स उ पिसुद्धिहेर्नु पनि नस्स केत्तिया भेदा। छहागादीया खल वरूपणा सिमा होति ॥४॥ सुकाएसुवएसु य उबिह एगिदियादि पंचविहं । संघट्टण परितावण उदवणे चेव निष्फणं ॥५॥ चाहा तु णामी सणवी परितपते पातलो चिपतकिचे अहवा दवाइयं चउहा ॥ ६॥ जहवा अतिकमादी चउहा कोहाइयं च पठहा तु। णाणादियारमादी होती निविहं च पनि ॥ ७॥ अहवा आहारोबहिसिजतियारे व होति तिविहं तु । उम्गम उपायण एसणा यतिविहं तु एकेकेदा आलोयण पडिकमगे तदुभयमे न होनि निविहं तु । सचिनाचिनमीसग लिविहं पदं मुणेयः ॥ ९॥ अवा सत्तविह नप इसहा बानि होनि पच्छित । आलोय पडिकमणे मीस विवंगे य बोसम्मो ॥१५० छग नये य तना सो नुपसिङ सत्तम छेदो । अडविह छेद रविहाँ देसे सो य बोबो ॥१॥णयविह सालेदो दुह संजमुनहविजनी मूलं । कालंतरमित्तरे पुण सेतो पहिं च वसमेई ॥२॥ अहवामह मिहे एगविह पावि होज णाय । रागदोरमा दोणी एगविहोऽजमो होति ॥ ३॥ उदाणे दसणेली जो काए छविहे ण सदहती। यिण णिचादी वा विहमेयं तु मिन्छनं ४॥ धम्मस्थिकायमादी कालनादिनुउनु वानि। जो नाईक सरहती ठविहमेव तुमिच्छत्तं ॥५॥ संजमों सत्तरसविहो उ सामाइयमादि अब पंचविहो । गाहणता व परिनस्स गहण थिय गाहणा होनि ॥६॥ किह पूण चरितगह होनाही? मग्णाली इमेहिं तु वेरम्मोणं हवा मिच्छत्ता होइ सम्मत्तं ७॥ सम्मत्ताउ चरितं अहवा होजा इमेहिं गहणं तु । सपणे गाण विणागे एमादी गाहण चरित ॥८॥ अहवाची उपएसो एगई होति गाहणाउत्ति । तह उबहिस्सति जाह ऊ पारितं गेहती सोतु ॥९॥ अविराहणम्मि य गुणा दोसा य विराहणे परित्तस्स । नह गाहि । १०६६ पापभाष्य मुनि दीपरतमामय अनुक्रम [०१०१] । ~6~ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-१/२ (भाष्य) ----------- भाष्यं [०१५०] ----------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं वहति देखा त । एते सामस्थलमान कप्पोटि करणे वरती कापीकच्यो त होति गमगातार कण्णानिधाण मुनेचा ॥३॥ प्रत सूत्रांक [०१५०] दीप अनुक्रम [०१५०] जति जह तं (तू) ओगाटो होति चारिते ॥१५० ॥ गाणे तह देसणे व जातिम्गहमेण संख्या एवा। एवाति माहित गाहलता बरिणता एसा ॥१॥ एमेता जा भगिता जवाब अनहारणे पसदो तापडिबत्ती उपगारो वागरण वाचि पडिवत्ती॥२॥ एतं कप्पे वरिषजती उ अजेय बहुविहा अत्या। जत्येसु अगेगेसुय कम्पभिधाणं मुनेयम् ॥३॥ सामत्येवमणाध Mकाले, दयणे करणे तहा। ओर्वमे अहिवासे य, कप्पसदो वियादिओ ॥..१५॥ ल०६४ सामत्ये अह मासे बत्तीकप्पो त होति गम्भगतोपिण्णण अज्मयणं तु कप्पिय जहमेगसाहुणे ॥५॥ काले हेमंताणं जह तु दसरायकप्पतिकते। छेदणे जह केसे तू चउरंगुलवन कप्पेहि ॥६॥ करणे बत्तीकप्पिय अहो इमेषं जहा तु पुरिसेणं आइवचंदकप्पा हति जह साहुणा धम्मी ॥७॥ सोहम्मकापवासी अहिवासे जहत होति देवा तुाएते सामत्यादी जोएयरा इहकप्पे ॥८॥ कप्पज्झयममधीत अतियार विसोहणं समस्ये उ। कतिविहपायच्छित्तस्स परूनणा वणणा होति ॥९॥ काले उडुबहाणं वासावासं च युवासं वा। वसती जहाविहं खलु उस्सग्गवायसंजुत्तं ॥१६०॥ तवसोहिमतिकतं जिंदति पणमादिएहि परियाग। कुणइ यतहा पयत्तं जहतं दिग्णं वहइ सम्म ॥१॥ ओचम्मे जिगकप्पो जाणणगहणे यसो हबति गीतो। अहिवासे मासादिसु ऊणतिरित्ते विमासा तु ॥२॥ सझेसि कल्याण पणा. वण परुवणा उणवमंमि। आसज उ सोयारं पुरागते वा इहं वापि॥.:.१६॥३॥ एवेसि सय्येसि छविह कप्पाइयाण कप्पाण। पण्णवण परुवणता णवमे पुष्यम्मि णिदिवा ॥४॥ सोतारं पुण आसज होजबह कषि आहब णवमम्मिा धारणगहणसमत्ये तहितं असमत्वे वहां तु ॥५॥ कप्पा क्लाण पुल्चगते बणित समत्तं तु । इह घोषगन्तिका पगा। माणो ण काययो॥६॥दव्ये खेने काले उम्महसंघयणधारणगुरुणं । तंपी बहु मणिबजे एगपदे पद अस्थि ।।..१७॥आ दुस्समअगुभावणं हाणी पिरियस्स ओसहीणं तु। दुलभाणि य दवाई जाई जोगाई तणुभावे ॥८॥ खेतागि प(य)हायंती विहारजोग्याई तदणुभावेण । दुम्भिक्सपउरकालो तेणणुभावेण मणुयाणं ॥९॥ लदी उम्महणम्मी संघवर्ण धारणा य परिहानि। ग य सीसायरियानं सत्ती बर्नु च सोतुं वा ॥१७॥णय संति बहू गुरवो जे बत्तारो य इंति अस्वस्त । तेविण सव्वस लहुँ पसाबमुहमा (मुडा) भयंती तु ॥१॥ इव णातुं परिहाणी जे एगपदेवि एगमस्थपद । बहु मंतव्यं तपि हु कि पुण संतेसु गेसु ॥२॥ोण पमाएयवं ग य भत्ती तू तहिंय कायचा। मुदतर उजोगो कायचो तम्मि पित्तये ॥३॥ सो पुणपंचविकायो कप्पो इह वष्णिो समासेणं । चित्वरतो पुख्वगतो तस्स इमे हॉति भेदा तु॥४॥छविह सत्तविहे य इसायिह वीसतिविह य मायाले । जस्स तुणस्थि विभागो मुदत्त जलंधकारो सो॥...१८॥५॥ विभयण विभागु भण्णाति जहेरिसो उविहो य सत्तविहो । गामादिविभागोबा जस्सेसो ग विदितो होति ॥ ६॥ सुबत्त मुट्ठ वर्त तस्स निरस वा जलमगाहे। होती सचक्खुपस्सपि जहंधकारो मणुस्सारस ॥७॥अहवा जलंधकारो मेहोत्यायमि होति गगणम्मि। अहया जलंधकारो जात्यादिचो ण बीसति तु॥८॥ एवं तु अंधकारो कप्पपकर्ण पदुम तस्स भये । अहवा सो पेव जालो भवन य से अंधकारं तु ॥९॥ कविहकप्पस्तिणमो णिक्लेवो छबिहो मुणेयत्रो। गाम ठपणा दविए खेले काले या भाषेय।१८०॥जेण परिम्महिएणं दवेणं कप्षों होति गाऽकम्पो । तं दन्नमेष कम्पो कारणकजोक्यारातो ॥१॥सो तिविहो बोन्बो जीवमजीवे य मीसतो चेष । एतेसित विभागं वोच्छामि अहापुजीए ॥२॥ विपिहो य जीवकप्पो दुपय चउप्पय तहेच अपदेहि । अहिणारी दुपदेहि तत्वपि य मणुस्सदुपदेहिं ॥ ३॥ तत्वविय कम्मभूमनुसंखिजगचासजाउएहिं तु। पव्वहतुकामएहिं तत्यपि तू होति अहिगारो ॥ ४ ॥ सो होति छव्यिहो त बोहव्यो मणुयजीवकप्पो तु । योच्छामि तस्स इणमो मेदविकप्पं समासेणं ॥५॥ पञ्चावण मुंडावण सिक्स्सायणुबह मुंज संचसणा । एसो स्व (तु) जीवकापो छम्भेदो होति णायचो..१९॥ ल०७॥६॥ अम्भुवगमों पचायण मुंडावण होति लीयकरणं तु । गहणासैवणसिम्खं सिक्खाविन्तमि सिक्खवणा ॥ ०८॥७. क्यठवणमुववना संभुंजण मंडसीएं सह भोगो । एगतको सह पासो संचसणा होति गापा । ल०९॥८॥ णाडपवाचित मुंडावणानुग यऽमुंडिए तु सिक्खवणा । एमादी तु विभासा पहावयानी तु केरिसमो? ॥९॥ सुत्तत्वतदुभयवितास्यरस संगहउवायकुसलस्त । कप्पति पावेतुं संवेगसुवतितमविस्स .:.२०॥१९०॥ मुत्तस्येण विसारएँ उमंगो एत्य होति कायो।तचेच नदुभयं खलु विसारतो जाणतो नस्स ॥१॥ बन्ने भावे संगह दो आहारमादिएहिं तु । सिक्ख -- पर्ण अगिलाए गोलणे पावि करणं तु अशा भापम्मि संगहो खलु गाणादी तं तु होति बोदयो। जाणा वडावेतुं गच्छंतु उपायकुसलो तु ॥ ३ ॥ संसारभडियो संविग्गो सो नहोरा णायचो । एतेसि तु पदाणं चउभंगो होति एकेके ॥४॥ ननुभयविसारदो खल्लु ण संगहे कुसलों एन्थ पउभंगी। तदुभयउबायकुसलो एत्यपि तु होति चउर्मगो ॥५॥ तदुभयसंविग्गेडिषि चउभंगो एवं होति कायष्यो । एवगुणजावियस्सा पवावे तु कापति तु॥६॥ पाविता भणिता अहुणा पत्रावणिज बोच्छामि। पजाए जोग्या जे या होती अजोग्या तु आपापणारिहा खलु जातीकुलकरविषयसंपण्णाजविवीयगुणा खल होनि अपवाक्याजोग्या ॥८॥ तेसि तुजे विषासातविया इतिते णियमा अहवावि इसे बीस बमित्ता | २०६७ पत्रकल्पभाष्य - मुनि द्वीपरनसागर ~7~ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ...---------- भाष्यं [०२००] ------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य प्रत सूत्रांक [०२००] सरकाoth1 दीप अनुक्रम [०२०० सेलगा जोग्या ॥९॥ बाले बुढे नपुंसे य, जड्डे की य पाहिए। तेणे रायावगारी य, उम्मले य असणे॥२१॥२०॥ दासे द्वेय मूढे य, जणत्ते जुंगिते या ओषदए य भयए, सेहणिफेडितेति य...२२॥१॥ गुत्रिणी वालवच्चा बा पवावेतुंण कप्पए। एसि पकवणा दुनिहा, उस्सम्मानकायसजुता ।।...२३॥२॥ कारगमकारणे अहब कारण जयणेतरा पुणो दुपिहा । एस परुवण दुविहा एत्तो बालादि वोच्छामि ॥ ३॥ तिबिहो य होति बालो उक्कोसो मज्झिमो जहण्णो य । एतेसि लिव्हपी पत्तेय परूवर्ण चोच्छ ॥४॥ सनगमुकोसो उप्पण मझो य चतुतिय जहष्णो। एवं बयनिष्कणं समापओ होति णय भेदा ॥५॥ जहणो जहणसभावो मज्यसभाषो तहेव उनोसो। एवं मजिाम तिण्णी उकोसायी भये तिष्णि ॥६॥छितमछिदंता तिमिवि हरितादि वारिता सैता। पुणरविय लिंदमाणा जति दिड गुरूम वडाणं ॥ ७॥ उकोसो दठूर्ण मजिनमतो ठाति पास्तिो संतो। जो पुण जहणालो हत्ये गहिमोवि वि ठाति ॥८॥ दाहिनकरम्मि महितो नामकरेण स उिड़ती ताई। मंडलगमिव धरितो चिट्ठा एवं च भणितो तु॥९॥जह भणितो तह तु ठितो पढमो बीएग फेडियं ठाणं । तइञो न ठाति ठाणे अह सम्म(मोति विस्सरं रुपति ॥२१०॥ एतेसि बालागं पव्याक्तिस्सिमं तु पष्ठितं। लिण्डपि कमेतृ बोच्छामी आणुपुष्पीए॥१॥ अङबत्तीसा नीसा उगुवीसा प निविहवालम्मि। तब छेद वीलु पदमे बिति मिस्सा ततिय छेदाती ॥२॥अउणत्तीस दिवसे सिक्लाक्तिस्स मासिब उहुर्य । उकोसगम्मि बाले सो र असिक्सणे गुरुगो ॥३॥ अग्ने अउणनीस मुकत्रो सिक्खे असिक्खि पउलया। पुणरवि अगत्तीस लडुगा सिक्खेतरे गुरुगा (गुरुगा सिफ्ले व मलाहुगा)॥४॥ अणे जउणनीसं गुरुगा सिक्ले असिक्खि छलहुगा। (अण्णे उ अउणसीसं सिक्खाक्तिस्स होति पछिल।) छातहुगा सिक्सम्मि य असिक्सि गुरुगा अउणतीस ॥५॥ अण्णे सियासिक्खे छन्गुरु मतयों छेद छमगुरू पेष। मूलऽणवटुं पारंचिगं च एकवर्ग तत्तो ॥ ६॥ अहना सो चेच नवो छेदादी मासमादिया हॉनि। रिक्सावितमासिक्से मूकदुर्ग तहेकेका ७॥ अहवा सो चेच यो छेदो पणगादि जाव छम्मासा। सिक्खावितमसिक्खे लहु गुरु एकेक उगुतीसा ॥८मूलऽणवई च तो पारंचियमेव होति एकका सिकपासिक्सपगारा उक्लोसे होति बालते ॥९॥ 2 अहवा सो व गमो दिणेहि सिक्तिस्वजिए होति मासादितबच्छेदा मूलाईया विणेकेकं ॥२२०॥ एमेच मज्झिमेऽवी णपरं दिवसा तु बीस मीस तु । एमेच जहणेऽची उगुनीशुगुचीस दिवसा तु ॥१॥ अहना मजो मीसा जहण्णछेदादि अन्नपरिवाडी। तबदगंतरिया मजिम जहणे तु भयणाए ॥शामनिममि वीस लहुओ सिक्समसिक्वम्स मासिओ छेदो। पीसष्ण छेद लाओ सिक्वमसिक्से गुरुग तबो (गो जो) ॥३॥ अड्ढोकती एवं तबठेदेतिस तु यष्वा । जा छम्मासा ताब नु परओ मूलादि एकेक ॥४॥ अणावीस जहणणे सिक्लावितस्स मासिओ छेदो। सो बिच असिक्सि गुरुओ जा छन्गुरु विग्णि परमओ तु ॥५॥ अहला ग होइ छेदो ठाने भिय मूल वह य अगवट्ठो। पारथिए य नतो एवं नयणा जहाण - स्स ॥६॥ अहवा पढमे दो दिवसे चेव हवा मूल बा। एमेच होति बीए तइए पुण होति मूलं नुआ कि कारण सोधेसा? दोसा ताहियं इमे समक्साना पारिएम नेसुन उड्डाहाई मुयना ॥८॥ भस्म वयस्स फलं जयगोले व होति छकाया। णिसिभत्तमंतराए चारग अजसो प पटिबंधो...२४॥९॥ लोगो घेती पेच्छह इणमो बनाईण न पलं नु। अयगोनोनितो रहती सो जिलिए मुको ॥२३०॥मत्त णिसि मामाणे दिले तू रातिमसनगो तु हवा अदितम्मितऽतराइयं बेड लोगो य॥१॥ चारगपाला र म जे पाला तुएष मंति। लोग जापति अजलो आहो इमे गिरणुकंपत्ति ॥२॥ तेग य परिबंधेगं पडिकमा पनि कहिंचि हिरति । जे होस पीयवासे से पार्वते व अथांना ॥ ३ ॥ अपडे' गस्थि चरणं पच्चावितोऽविमस्सई चरणा । मूलाचाहिनी खलु गारमते वाणिओ चेहूँ ॥ ४॥ उग्धायमगुग्यायं गाऊणं उम्बिह पोसम्म । एमे छेद उबिह जिगपोरसपिए दिवसा ॥..२५ ॥५॥ उग्यायमणुग्यातो मासो वर उच्च छबिह नसो। एमेव उबिहोशिय खेदो सेसाण एकेकं ॥६॥ एवं पायजिन गाउण पव्यापए नत्री बालं । णवरं पञ्चापिनी जिणचोरसपुनित्रतिसेसी ॥७॥ने जाणि गुणागुण वगुण णाऊग तेण दिवसंति के पुण जिगमानीहि निक्लिय बाला? इमे सुगम् ॥ ८ सम्याए अनिमुना मगो सिभषेण पुण्यपिदा अतिससिगा ब बतिरो उम्मासो सीहगिरिणामि ॥९॥ एते अव्यवहारी जह पव्याक्तिीह गयावासी तु। एवं इच्छ गाउँ भग्णनि इगमो णिसामहि ॥२४०॥ उपसंतान महाकु णानीयम्गे व सबिसिजनरे। अजाकारणजाते माले पानामुष्णाचा .:.२६॥१॥ पथ्यजाएं परिणए बिउलकुले तत्य बाल होजाहि । मा सने नसिकते अपांत नेण पाये। शणातीयम् यतहा टेवरचर)गमादी मम्मि संतम्मिा जणवादरमखतो सारखे आसम्मवालाई ॥३॥ एवं समितराणवि अजायविटिटिबंध परिणीए कज करेमि सथिती अदि| मे पव्यायनह बाल ॥ ४॥ एतहि कारणेहिं पाविजाहि गच्छनासी तु। पवारियाण नेसि इमेण विहिणा उ सारयणा ॥ ५॥ भत्ते पाणे धोषण सारणया पारणा निओजणया। परण करणसमाय गायत्रो पयते ॥ २७॥६॥ निदमहरेहि आउँ पुस्सति देहम्मिा पाड मेहा। अच्छति जन्य पण गजति सवादिस पीहगादीया ॥७॥ठाचेनि सालवाला पहिले हणमादिसारणमनिक्वं । वारिजए अभिकलं हरियादी जिंदमाणो य॥८॥ सामायारिं स सज्झायं पेच ऊ पयतेणं । गाहिमानि सो एवं जयणा एसा तु बालस्स ॥ ९॥ (२६७) १०६८ पाकम्पमा - मुनि दीपरमागर CRV0 ~8~ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ------------- भाष्यं [०२५०] ----------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं । T LIEN प्रत सूत्रांक [०२५०] तिविहो य होह बुड्ढो उकोसो मजिनमो जहष्णो या एतेसि तिव्हंपी पत्तेय परूषणं वोच्छं ॥२५०॥ दस आउविवागदसा इसभागे आउयं विभतिऊर्ग। दसभागे सभागे होति दसा ताइमा होति ॥१॥ बाला किड्डा मंदा बला य पण्णा य हायणि पर्वचा। पम्भार मुम्महीविय सपणी दसमा य णायच्या ॥..२८॥२॥ तहि पढमदताए अहमयरिसादि होनि दिक्खा तुसेसासु छवि दिक्ला पभारादीम साण भवे ॥३॥ बुढामुकोसो मझो गवमि इसमी य तु जहण्यो। जंतुवरि त हेहा भयणाऽप्पचलं समासन ॥४॥ केसिचित्र पंचादी बुढो उकोसगो उजा सतार। अहवसाए मझो गवमीवसमीसु य जहण्णो ॥५॥ कुरुकुयमादि गिसिदोजह मा बीयं करेदि एवंति । पुनरनि पकरेमाणो दिडो साहहि rel नाहे तू ॥६॥ उकोसो बठूर्ण मन्झिमओ ठाति वारिओ संतो। जो पुण जहणवुइटो हत्ये गहिजो परि ठानि ॥ ७॥ ठाणे य चिमत्ती जह भणियो तह ठिो भने पदमो। बी एण केडियं ते ताओ णवि ठाया हागे ॥८॥ एगणतीसा वीसा अउणापीसा य तिनिह बुझ्दम्मिा पलेय क्वछेदा पद में चिति मीस सक्छेदा ॥९॥ वह चेव विभागो तू जहवालार्ण त होति तिव्हपि । किं पुण एसाऽऽरवणा ? भष्णति इणमो णिसामेहि ॥ २६०॥ आवस्मय उवाया कुसत्य सोए व मिक्स पलिमयो। पंडिल अप्पडिलेहा पमज पाढे करणजड्डो ॥..२९॥१॥ आचस्मयं ण सको गाहे जइड्याएं सो बुड्ढो। छकाय न सरहती ण तरति ते यावि परिहरितुं ॥२॥ कुदिद्विकृसत्येहिं तु भाक्तिो निघाए तगं मोनुं । लोगस्स अणुसाहकरा चिरपुराणत्ति अम्हे मो॥३॥ अतिसायबादएणं पुढवि गिहति बहुं दवं छहटे। अपरीहत्यो मिक्तापरियं पलिमंध पातन्ही ॥४॥ पंडित गवि पास दुबलगहणी व गंतु ण चए । अणसविपाखेचो चोदक हरा चिराहणता ॥५॥ पहिलेणंण निष्हति पमजणे बानि सो भवति जड्डो। नवि तीरति पाडेत दुम्मेहो जइडबडी य॥६॥ भंजति अभिः क्समालाचगं च अण्णेसि वाचि पलिमंयो। उपही बीमारती उड्डेड व पंथि वचंतो॥७॥ उद्विवणिवेसिते कम्मते अबाउडियदोसा । चरणकरणसमाए दुक्ख बुढो ठवेतुं जे ॥८॥3 उग्यायमणुग्यायं छविह पच्छित कारणे तेण । तम्हा पुढ ण दिक्ते जिणचोहसपुबिए विक्सा ॥९॥ पारिति जिणा खल चोहसपुत्री य जे य अविसेसी। जिणमादीहिं नहिं कबरे 2 ते दिक्खिया बुढा ?॥२७० ॥ सत्याए पुत्रपिता चोहसपुत्रीण अंगुणा सपिता । मम्मेणं जणतो तु दिक्खितो रश्चियजेणं ॥१॥ एते अपवहारी इन्छामी णातु अणतिसेसी य। जह दिक्वते ? भण्णति मुणसू जह तेवि दिक्वंति ॥२॥ उपसते व महाकुले णातीवणे व सब्णिसेजतरे। अजाकारणजाते पुड्ढस्सेवं भये दिक्खा ॥३॥जह चेन य बालसा विभास नह चेव होति बुहवस्स । णवर इमो निसेसो अजाणं कारणा होति ॥४॥ अजाण गरिय कोती संचारितो तु खेतमादी तु । तेन तेसिवाए उटे संकप्प (हतसंक)पञ्चाये ॥५॥ एतेहिं कारणेहिं जति णामं होन दिनिखतो बुढो । ताहे य तस्स सारण काया इमीय तु निहीय ॥ ६॥ भन्ने पाणे सयणासणे व उवही नहेब बंदगए। चरणकरणसजमार्य अणुयत्तणया य गाहणता॥.:.३० ॥७॥जारिसतमत्तपाण समाही दिजते सि तारिसर्ग । सपनीय महा(समा)भूमी पाउंटणमादि आसणय ॥८॥ जतिय तरए बोदं सीयत्ता जत्तिएणं से। वनियमेत्तो उपही दिनति सेऽणुम्गहडाए॥९॥दगए अणुकंपा कीरति ण य सारियम्मि दावे । चरणकरणसमार्य अणुकले चरण गाहे ॥२८॥ उपजि णिमिने बोहंपिय कारणा दुग्गाणं । होहिति जुगष्पवरा दुल्हवि अट्ठा दुग्गाणं॥.३१॥१॥ ओहि मगो उचउंजिय परोक्खणाणी निमित्त चित्तूर्ण । जदि पारगतो दिक्सा जुगप्पहाणा व होहिंति से ॥२॥ दोरिणत्ति बालबुददा पुणरवि दोनम इरिथरिसा य । सुत्तत्पदुगहाए कालियपुरगयभट्टा वा ॥३॥ पुगरवि दोवामा खलु समणा समणीय होति गायत्रा । तेसि अहा दिती जाहारो नेसि होहिति ॥ ४॥ एतो पुच्छ गस सो किह पजेज जहणपुंसोनि। भग्णति ण चेव कप्पति दिक्खिनु चिहि अजागते ॥५॥ तम्हा विक्रवा गीते दिक्खने बउगुरू अगीयस्सा गीतेविअग्छिना गुरुया पुच्छा उपाएणं ॥६॥ अहं नपुंसगादी व कप्पते एव भगिते साहेजा। को वा गिजेदो ते ? भणिज भगवं! अहं ततिओ ॥७॥ अहपाविय मेला से निवेदं पुच्छिया हु साहेजा। अहवाचि लक्सणेहि मेहि गाउँ परिहरेजा ॥८॥ महिलासभावो सरवाणभेदी, मेंद महंत मउया व वाणी। ससह मुत्तमफेणगंप, एताई उप गालक्सलाई ॥९॥ गली भो पचपलोइयं च, मिदुत्तदा सीवलगत्तया याधुर्व भने दुक्खरणामधेजो, संकारपश्चंतरिओ डकारो ॥२९० ॥ गतिहत्ययस्थकडिभुमयभासविट्ठी व केसाई 1 कारो।पच्छसमजणाणिय पाणतरंचणीहारी मंद गती विक्सिवे बामहत्य, णियसेति जवाबी करिम बारिको अभिवस. सविमर्म उक्सिनए भमाओ । ॥२॥ भासतो याचिकर परिध णिवेसेति इस्थिया चेचा हीनस्सरो य जायइ चिट्ठी यसविम्ममा तस्स ॥३॥ कैसे इत्थी व जहा आमोडति इस्थिमंदणं चेवा हायति एगने या पड़ आयरबारं.४॥ पारसेम भीक महिलासु संकरी पमयकम्मकरणो या एवं बाहिरलक्सण पासवेदो भवे अंतो॥५॥ सो पुष गपुंसवेदी लिओ तिनिहेचि होति गोडमो। कह हिंगलिए भष्णति एवं एकेक वेदति ॥ ६॥ उत्सम्मलक्सर्ण खलु धीपुरिसगसगाण वेदाणं । फुफुमदवग्गिमहणगरदाहसरिता जहाकमसो ॥ ७॥ एके लिहमपणा त्वी चीसरिसा १०६९ पत्रकन्यमाच्य - मुनि दीपपनसागर काठevpWR दीप अनुक्रम [०२५० ~9~ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ----------- भाष्यं [०२९८] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं प्रत सूत्रांक [०२९८] *34atta दीप अनुक्रम [०२९८] पुरित अपुमे या इय पुरिसणसे या एकेके होति वेदतिगे ॥ ८॥ सो पुण गपुंसगो तू सोलमहा होति तू मुणेयत्रो। पंडग कीचे वानिय कुंभी ईसाल साउणी य॥९॥ तक्रम्मसेवि पक्खियमपक्खिए नह सुगंधि जासित्ते। विदित चिप्पिय मंतोलहीहि वा उपहए जे च ॥३०॥ इसिसन देवसने एतेसि पावणा इमा होति। नहियं पंडो तिषिहो लक्षण दुसी च उत्पाजो ॥१॥ पंदगालग जस्सा जायाअयमेवणेण तु गहा(गहोग।सोलावणतो पंडो दूसीपंद्रो इमोहोति ॥२॥ दृसियवेदो बुली दोसुय वेदेसुसज्जते दुसी दो सेवइ वा वेदे दोसु च सिनदी दसी ॥३॥ चूसेति सेसए ना सो दुह आसित्तो सह य तृसित्तो। सायो आसित्तो अणवबो होति ऊसित्तो ॥४॥ उपपाओविय दुविहो वेदेय नईव होनि उपकरणे। वेदो। बपायपडो णमो तहियं मुगेयत्रो - पुर्वि दुधिष्णाणं कम्माणं असुइकलविवागाणं । उदया हम्मति वेदो जीवाणं पानकम्मा ॥६॥जह हेमकुमारो तू इंदमहे गालियाणिमित्तेणं। मुच्छिय गिद्धो अतिसेवणेण वेदोवधान मतो...३३॥ एपस्स विभास इमा जह एगो रायपुत्त वष्रेणं । वापियवरहेमसरिसो तो से णामं कतं हेमो । सो अमदा कदाई इंदमहे बंडळाणपत्ताजो। णगरस बालियाओ पुष्पादीहत्य बठूर्ण ॥९॥ पुच्छति सेवापुरिले किं एया आगना उइदति । ते बिती सोही सम्मतिता परस्थीबो ॥३१॥ तो बेई एयासि इंदण वरोहु दिण्ण अहमेव। पेसूर्ण ता ते सुद्धा अंतेउरे सम्बा ॥१॥तो गागरणा राणो उपडिता मोयवेह एनाउ। तो बेति मम पुत्तो कि जामाता गरबे में? ॥२॥ तो वासु अतिपसलस तस्स पिम्मालियसनीयस्स । वेदोषघातो जातो सागारीय ग उदेति ॥ ३॥ तो नाहिं रुसियाहि सो अदागेहिं पातितो गाहे । वेदोषपातपंडो एसोऽभिहितो समासेज ॥४॥ उवहत उवगरणम्मी सेनातरमूणियाणिमिनेर्ण । तो कविलमरस बेदो बलिमो जातो दुरहियासो...३४॥५॥ उपहयाउनमरणम्मी एवं होजा पासवेदो उादोसा स वेदिण्ण धातुंग ना गायमिर्ण ॥६॥ जह पदमपाउसम्मी गोणो धातो तु हरियगतगस्स। अणुमनति कोटिचं वागणं दुम्मिगंधीयं । ७॥ एवं तु केह पुरिला मोनूणं भोयणं पतिबिसिहूं। नाव ण भवनि नुहा जायण पहिसपियो वेदो ॥८॥ सम्वणसियउवधायपंडगं सिविहमेव जो दिक्खे । पच्छित सिमुवि मूलं नोसा नाहियं इमे होति ॥९॥ नरुणादीसिह गओ चरितसमेदिणी करे चिकहा। इस्थिकहाउ कहित्ता तासि जवणं पगाखेड ॥३२०॥ समलं जानिलगंधि खेदो य ग ताणि आसार होति। सागारियं णिरिक्त्वा मलिनु हत्यहि जिघड य॥१॥ पुण्ठति सोऽपि याप्यो पपुंसगो णविति अतिमहं एवं। आसय पोसे यहा दुहाचि सेवी अहं व ॥२॥ एवं पुच्छित तओ अहनामि अपचिऊन सह सेने। गेहेजा ही समण नेण कहेयन तो गुरुमं ॥३॥ छंदिय कहिप गुरूगं जो न कहेति कहिएविय उबेहि । परपक्स सपकले बाज काहिति सो तमाचशे ॥४॥ सोसमणसुविहिएहिं परियारं कल्पती | अरुममाणो। तो सेपित पपत्तो गिहिणी तह अण्णतित्थी य॥५॥ अजसो व अकित्ती व तंमूलागं नहिं पश्यणस्म । तेसिपि होति संका सम्ये एसारिसा माणे ॥ एरिसमेनी एतारिसारि एनारिसो परति सदा । सो एसो गरि अपणो असंखई पोडमादीहिं ॥ ॥जम्हा एते दोसा तम्हा पवि डिक्समिजो पंडोह। एसो पंडोऽमिहिओ एलो किलिय पवारसामि किलिपस्स गोष्णणाम तदभियानो कलिजए जस्स। सागरिथ से गलती किलियोनी भण्णती तम्हा ३९॥ सो हणिसम्ममाणो कम्मदएणं न जायए तहओ। सम्मिपि सो र गमो पनिाने वजह पंडो ॥३३०॥ उबएण बानियस्सा सविगारं जाण होवि संपनी वणियअसंवृद्धित दिईतो जत्यिमो होति..३५॥१॥णाचारूदो नचणितो दठं आसबुराममाजिओचतिभा पुरिहि माहिति धारिमाणोऽपि ॥२॥ एखो तु बानियों हू अलमतो सेक्नुि अणाया। काठलरेण सोऽपिर मसगण परिणमति ॥ ३॥ एपिहो य होति कुमी जानीकभी य वेदकभी या जानाकुनी वायण्डिो हुसो बाएं दिक्लाए ॥४॥होइ पुण वेटकमी असेपो सुनाते सि सागरियं । सोऽविय गिरुडसपी पसगनाएं परिणमति ॥५॥बेदकरता ईसालमो र सेविजमाण बढ़ना न पाएती धास्तु जिसम्भमाणो भय तसितो ॥६॥ सरणी उकडवेजओ चहओर अभिक्स सेमए जो नासोऽविध पियवाची ग सगलाएं परिणमति ॥ ७॥ मम्मसपि जो खलु सेवियन र लिहति खाणच । सोऽपिय जपलियरतो गसगताएं परिणमति ॥ ८॥ एगे पसे उदी एगे पासम्म जस्स अपोkal नु। सो पासपक्खिओह सोवि णिस्दो भये अपुमं ॥९॥ सागारियस्स गचं जिंपति सोगंधिो भवे स खलु। कान्तरेण सोयी अन्लभनो परिणमे अपुर्व । ३४०४ विगह अप्पपेसिथ अच्छति सागारियसि आसतो। जब से भावोचसमो अलमतो सोवि अघुम भवे ॥१॥ गालिय दो भाऊगा जन्ससो बदिओ मुणेयच्यो। चिप्पिय बालस्सेव तु चिप्पिन चिराहिनो जस्स २ मतेगुवातवेदो अवापी जोसहीहि जस्स भवे । इसिसन्तदेवसचा इसिगा देवेण वा सता ॥३॥ बहियमादि उवरिमा उण गपुंसा हानि भवणिजा। जदि पडिसेविण दिक्सेजह गनि पडिसेचि तो विक्से ॥४॥ आदिडेस इसस्मुवि पप्याक्तिोर पापए मूलं। जो पुण पवायेहा बदते तस्त पागुरुगा | जे पुण उत्तुचरिमगा गव्यावितसा पागुरू तेसु । बरमाणेऽविध गुरुगा कि बदतेसो इमं मुणसु ॥६॥ पीपुरिला जह उदयं धरिति माणोजनासनियमेहि । एमपुर्मपि उदय घरेश अदि को गहि दोसो ? ॥७॥ मुनि दीपरवगागर ~10~ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) प्रत सूत्रांक [०३४८] दीप अनुक्रम [०३४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...... “पंचकल्प” - • छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) आयं (०३४८] ..... ....आगमसूत्र - [ ३८ / २ ], छेदसूत्र अहवा ततिए दोसो जायति इयरेसु किं न सो भवति । एवं तु नत्थि दिखा सवेदगाणं ण वा तित्त्वं ॥ ८ ॥ भणति श्रीपुरिसा खलु पत्तेयं दोसरहियठाणे वितीय पुण कहि ष्मति दोषी दोसा ॥ ९ ॥ संवासफासदिडीदोसा हू तस्स उभयसंवासे अप्पत्नगदित जह राय मनो अवारंतो ॥ ३५० ॥ एवदितो अहवा जह बच्छ मानद। अभिलसती मायाविय वच्छं दट्ट्ण पण्डयति ॥ १ ॥ जं वा खयं द हिलासो होति अण्णस्स सागारिथादि द एवं पुंसे भये दोसा ॥ २ ॥ तम्हा हु दिक्सा एवं भाऊणमेत दोसगणं वितियपदे दिक्खिना हमेहिं अह कारणेहिं तु ॥ ३॥ असिवे ओमोदरिए रायद्दु भए व आगाटे गेलन उत्तिम गाणे तह दंसण चरिते ॥ ३६ ॥ ४॥ रायये ताण विस्स चैव गमणा वेजो व समं तस्स व तप्परसति या गिलाणस्स ॥५॥ पडिचरगस्सऽसतीए एगागी उत्तिमहपडियण्णे अहवानी अ(कु) सहाए नेपा दिवसे ॥ ६॥ गुरु व अप्पयो वा गावादी गिन्हमाणे तपिहिति अचरणदेसा णिते तप्पे ओमासिवेहिं वा ॥ ७॥ एतेहि कारणेहिं जगादेहि तु जो तु क्खिामे पहाड़ी सोलस कपजविचिणट्टाए ॥ ८ ॥ तस्स विही होति इमो दिक्खितस्स कारणजाए। सो पुण जाणिमजानी जाणति जाणी तहा नतिओ ॥ ५॥ गवि कप्पति दिखे तमुपवेति अह एवं कप्पति दिक्खा नाणादिविराहना मा ते ॥ ३६० ॥ जो पुण न जाणएवं तस्स विही होतिमा करेया जणपथमताएं जाणतम जाणए बाचि ॥ १ ॥ कटिप मंड हिली कतार र लय परमतं पाढे धम्मक सन्नि राउल पहार विच कुजा ॥ ३२॥ कटिपड़ मंड छिली कीरति ण विधम्म अम्ह देवासी कतरि खुरेणऽणि हाणी एकेक जा लोओ ॥ ३ ॥ लोएवि कए पच्छा भिक्खुगमादीमताई पार्टिति संषिय अणिच्छमाण पाढिती उलिकवा ॥ ४ ॥ तामिविच्मिा चम्मका तावि परतदिति ताहे ससमपि ॥५॥ पिय अनिच्छमाणे उकमतो तस्स दिजए । अण्णष्णमुत्तपापपुवावर असंपदं ॥ ६ ॥ पीयारगोयरे रसंजुतो रति दुरि गाहे ममं ततो घेरा जलेग गाहिति ॥ ७ ॥ रग्गकहा विसयाण दिणा उणियिणे गुत्ता चुकखलितमि बहुसो सरोसामिया ॥ कनकता से धम्म कहिति चाहि लिंगमेयति मा हुण दुए िलए अनुष्ठता तुज्झ गो दिवखा ॥ ९ ॥ इव पष्णविओ संतो जड़ मुंचति लिंग तो उरमणिलं अह विमुंचति ताई सिजति सो इमेहिनी ॥ ३७० ॥ सष्णि लरकमितो वा भेसे कओ इस किंचियो तेसासति रायकुले यदि सो बहार मग्गिजा ॥ १ ॥ एतेहिं दिखओऽहं जतिविथ लोगो पाले कोति । जह एते तो ते विली दिक्लेमो ॥ २ ॥ अनाविषि एहिं चैव पडिसेह किं वदीयं ते? उलिहारी कति कत्थ जई कत्थ छलिताई ॥ ३ ॥ पुत्रावर वेगकरं सततमविरुद्धं पोराणमदमागमासाणियतं वति सुतं ॥४॥ जे मुत्तगुणाऽभिहिता विरीयाई गाहिओ पुद्धिं तेहिं चैव विवेगी जह एरियं भवति मुत्तं ॥ ५ ॥ [५/२] " पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं बहुपमिवाचिचम्पिए। बोसिरणं बोच्छामी बिहीए जह कीरए तस्स ॥ ६ ॥ निष्णकहाओ भई चिंतीण पटति इदं तु एरिसयं परतिथिगादिपजदि बेती तुज्झ समर्पति ॥ ७॥ इय होती मोतृण निम्मतो मिक्समादिलक्खे भिक्खुगमादी छोई विपलायंती पुणो तत्तो ॥ ८॥ कावालिए सरकले तमादिवसमा किंतु सन्ति ॥४९॥ तिचिहो होति य जो भात सरीरे य करणजड्डी य भासा जडो उहा जल एल मम्मण दुमेह ॥ ३८ ॥ ३८० ॥ जह जलवुड मासति जलमूत्र एव भास अपने जह एलगोत्र एवं एलगमृगो बलबलेति ॥ १ ॥ मम्मणजी बोडखले बाया हु अविसदा जस्स दुम्मेहस्सन फिंची पोतस्थापि ठाय हु ॥ २ ॥ दंसणणाणचरिते तवे व समिती करणजोगे य उवणि मेहति जलमृगो एलमूग व ॥ ३ ॥ णाणादिऽडा दिखा भासाजड्डो अपचलो तस्स सो व बहिरोपणियमा माण उड्डाह अहिकरणं ॥ ४॥ तिविहो सरीरजड्डी पंथे मिक्ले तहेव वंदणए एतेहिं कारणेहिं सरीरज दिलेजा ॥ ५॥ अद्धा पतिमंत्री मिक्लायरियाए अपरियो उस्सासपरकम अहिअग्गीउदगमादीसु ॥ ६॥ आगाडगिलाणस्स य असमाही वाव होल मरणं वा जडे पावि लिए अपने य भवे इमे दोसा ॥ ७ ॥ सेदेण कसमादी कुछ दोसा णत्थि गलओ य चोरो गिदिया व जनवादी ॥ ८॥ गे सरीरजड्डे एमादीया हवंति दोसा तु तम्हा तं गनि दिवसे गच्छ महले वगुणाए ॥ ९ ॥ इरियासमिईभासेसणासु आदाणसमिइगुती पनि ठाति परणकरणे कम्मुद करणजी ॥ ३९० ॥ जलमूग एलयूगो अतिथूरसरीर करण जड्डो व दिक्संतस्से गुरु से माल ॥ १ ॥ भासा जड्डे मम्मण सरीरजइट च णातिपूरं च जावजिय परिय करणे जढं तु उम्मासे ॥ २ ॥ मोतुं मिला दुम्मे वादि पाटि उम्मासे । तासेदुम्मे जीऽविय करणम्मि सो जड़दो ॥३॥ छण्हुवरि तेसि दोहषि आयरिओ अन्य गाहें उम्मासा पच्छा अण्णो ततिओ सोऽविय उम्मास परियई ॥४॥ जोऽयि तं गाती सिस्सो तस्सेव सो पति ताहे । तहविण गिव्हे जदि है कुाणसं विचिणता ॥४५॥ दुविहो य होति को अभिभूओ चे अभिभूतो अभिभूतोऽविय दुवो लिनिमंत्रणाको १०७१ मायं - मुनि दीपसागर ~ 11~ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) प्रत सूत्रांक [०३९७] दीप अनुक्रम [-१९७] “पंचकल्प” छेदसूत्र -५/२ ( भाष्य ) आयं [०३९७] ...आगमसूत्र [ ३८ / २ ], छेदसूत्र [५/२] “पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं - - मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...... ॥ ६ ॥ दुषो य अभिभूओ दिडीकीयो य सहकीयो य एतेसि विसेसमिणं वृच्छामि जहानुपुत्रीए ॥ ७॥ आलिदो जो विति इत्थीहिं एस पढमओ कीवो जो पुरा पढति निमं विउ सो होति णिमंतणाकीवो ॥ ८॥ दुनियददुष्णसम्यं णिमिणमणायारसेविणि वाचिणं जो सुम्मति दिहीकीर्य तयं विति ॥ ९ ॥ अह साहम्मी तष्णधम्मिण जव पावि मिहियाणं इत्पीओ तूर्णं सुम्मति विद्वीय फीवो सो ॥ ४०० ॥ मासारण सह गीतसद परियारसमवावि सोडणं जो सुमति सो भगति सदकीवन्ति ॥ १ ॥ मोहडाए से करे दोसे इसे निरंता सज्ज इत्थम्गणं मरणं अवादि ओहाणं ॥ २ ॥ आलिंदणिमंतणदिसिदकीवाण होति आखणा चउरु उम्गुरु छेदो मूलं च कमेणं तु ॥ ३ ॥ एवं दो आदिले जदि दिक्ले तो हु एवं परियडे जावजीवं नियमियचरितसंपातसहिएहिं ॥ ४ ॥ दिट्ठी य सदकीयो नवरं दिक्वेज उत्तिमम्मि अण् ण तेसि दिक्खा एवं कीवो समाती ||५|| रोगेण व वाहीण व अभिभूयस्सा ण कप्पती दिक्खा गंडीकोदादीओ सोलसहा हवति रोगों उ ॥६॥ वाही पुण अद्वविहो फोडा (डा) दीजो तु होति पायो रोगवाहित्वं दिक्लने ऊ इमे दोसा ॥ ७॥ उकायसमारंभो णानचरितान चैव परिहाणी पंसण पीसण पयणं दोसा एवंविहा होति ॥ ८॥ जाता अणासाला समणाविय दुक्लिया तिमिच्छता तेविय पणा संता होन व समया ण या होजा ॥ ९॥ अतिजो य तेणो पागइओ नामदेसजदाणे तकरस्वाणगतेणी परूवणा तेसिमा होति ॥ ४१० ॥ अतिओ डाडा पाओ छिराय जहप पागतिणं हस्ती मामाईणं अंतर अवाचि तेसिं तु ॥ १ ॥ तेणेव तु कम्मेणं जीवति पणेण तकरो स खलु खताई जो खणती खाणगतेो भवे स खलु ॥ २ ॥ सो पुण तेणो चउहा देशे खिते य काल नावे य एवेसि चउन्हंपी पत्तेय परूवणं वोच्छ्रं ॥ ३ ॥ सचित्ते अथित्ते मीसेऽविय होति दक्षतेनो हु सचिते दुपयादी दुपदे दासाइयं होति ॥ ४ ॥ गोमादी य पउप्पय अपदं फलधण्णमादियं होति अवित्त हिरण्णादी दुपयादि सभंड मीसम्म ॥५॥ एमादि दक्षतेनो साहम्मियअण्णधम्मियगिहीणं । वेणितो सो तिविहोउकोसो मज्झिम जहणो ॥ ६ ॥ गवमाणिकाणि यणितो तो उ उक्कोसो खतखकन्हयत्रियगोणीते तु मज्झिमओ ॥ ७ ॥ गंठीभेदग पहियजणदहारी जहणण एकसय एतो पडगपच्छिगो चेन ॥ ८ ॥ सगदेसपरचिदेसे अंतर तेथे व होति वित्तम्मि राइदियावि काले भावपि य माणवादी ॥ ९ ॥ गोविंद पा सम सुत्त हेतुसट्टा था। पारंचिमवचरमा उदाधिपगादओ चरणे ॥ ४२० ॥ दशादितेण एसो पडावे ण कप्पए सो समान व समणीण व पञ्चाविते इमे दोसा ॥ १ ॥ चण रोहण ताल दास मारणं च पाविज्ञानविस व नरिंदो फरेल संघपि सो रुट्टो ॥ २ ॥ असो व अकित्ती या तंमूलागं तहिं पवयणस्स ठाति गिट्टीणवि एवं सच्चे एयारिसा मणे ॥ ३ ॥ सग्गामपरनामे सदेशपरदेस अंतो वाहिँ था दिमकोसा मज्झिमजह इमा सोही ॥ ४॥ मूल दो गुरु पारि लगगुरुगाय गुरु लहुगो व मासो एएसि चारणा] उ इमा ॥ ५ ॥ सम्मामंती दिहे उकोसो मूल छेदों अदि काहि दिडे छेदो आदि होति गुरुगा ॥ ६॥ परगामंतो दिहे उकोसो छेदी छन्गुरुमदि चाहि दिहे गुरु अदि होति उतना ॥ ७ ॥ ससंतो दि म्गुरु आदि हाँति उउडुगा पहिदि उहुगा अदिडे होति चउगुरुगा ॥ ८॥ परदेसेतो बिहे हुगा अदि होति चतुगुरुगा पहि दि चतुगुरुगा अहि होति लगा ॥ ९ ॥ एवं ता उकोसे मज्झे छेदादि ठाति गुरुमासे उम्मुरुगादि जहणे ठाय अंतम्मिलमासे ॥ ४३० ॥ वितियपद मुकमोचिय अहवा बीसज्जितो गरिदेणं अदाण परविदेसे दिखा से उत्तिम वा ॥ १ ॥ रखो उपरोहादि संवदे तह वह जोगम्मि अम्बुडिओ विनासाय हो रायाकारी तु ॥ २ ॥ सचित्तचित्तमीसगमवकारे दूतले उपकरणं समणाण व समणीण व न कप्पते तारिसे दिखा ॥ ३ ॥ आसो हत्थी खरिया नाहीत कतकतं च कणगादी वा सहमत्ता खरियादी अवहिता होजा ॥ ४ ॥ दोषविरुद्धं च कर्त होजाहि उत्तढलेहो या पिउपुत्तभाउगादी कोई बहिओ व से होगा ॥ ५ ॥ ते तु अणुद्धिय जो पञ्चावेति होति मूलं से एगमणेग ओसा होजा पत्थरदोसा या ॥ ६ ॥ विनियपद मुकमोचिय अहवा बीसजतो गरिदेणं जाण परविदेसे विक्ला से उत्तिम वा ॥७॥ उन्मादोख दुहि खास य मोहनजो दुविचि दिविजा दोसा तु भवे इमे तस्स ॥ ८॥ अगणी आलीषणता आयचचविरागा व उड्डाही एकाय न सहती सझायाणजीगे ॥९॥ पहिणादिवित करेति समिती असमिया यानि उपदिपिण मिति तन्हा पनि दिक्ले उम्मतं ॥ ४४० ॥ दुविहो असणो खलु जाति उपघाती व पायो उपयानो पुण तिथिहो वाही उपपाड अंजनता ॥ १ ॥ एपसंवेगं थिय अपरो पीडिओ मुणेय एवेसि सोहि इमा जमे मुवा ॥ २॥ उदियणपणे वह सेसएस चीणदित तु कमलो तु गुरु चरमे दोसा तहिं दिखते इणमो ॥ ३ ॥ छक्कायविरमणता आवडणं लागुकंटमादी पंडिल पडिहा अंधरस ग कम्पती दिखा ॥ ४॥ आवहति महादोस दंसणकम्मोदण श्रीदी एगमग काही तं तु आवजे ॥ ५॥ गम्भे की जण भिक्ले सावराहि रुदे व एमादि होति दोसा ण कप्पती तारिसे दिवसा ॥६॥ राया व रायमथो कितिकम्मं संजता कुतो ठूण दुक्क्रयं स एयारिसा मण्गे ॥७॥ यह पंच उदय सिंसण दासत्तमेव पावेखा। णिसिपि परिंदो करेज संपपि सो रुडो ॥ ८॥ अजसो (२६८ मुनि १०७२ यं ~ 12 ~ - Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) "पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) .----------- भाष्यं [०४४९] ----------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं प्रत सूत्रांक TVoकाज सपको चिसयपतुडं न त व विकासापरकरचउभंगो ॥१॥ परमकरसविसयतमा बानाथ उ दमगादि पदा भवितो [०४४९] दीप अनुक्रम [०४४९] यअकित्ती या तमूलागं तहि य पययणस्स। लोगस्स होति संका सो एवारिसा पूर्ण ॥९॥ मुको व मोइओ वा अहवा बीसजितो गरिदेणं। अदाण परविदेसे दिक्वा से उनिमढे वा ॥४५॥ दुविहो व होति दुट्टो कसायवुडो य विसयदुवो या दुपिहो कसायदुट्टो सपकलपरपकलचउभंगो ॥ १ ॥ सासरणाले मुहर्णतए य उलुगन्छि सिहरिणि सपक्ते । सासवणाल सुसनिय एमेण गुरुणपणीय ॥२॥ सर्व गुरुणा खइये इयरे कोयो य लामणा गुरुणा। अणुवसमत उगणे गणि ठवेत्ताऽनहि परित्रा ॥३॥ पुण्ठतमणसाए सोबइ अण्णरस (सबगानो मंतू) कत्थ से देह । गुरुणो पुर्व कहिते दाई पडियरण दंतकहो ॥४॥ मुहर्णतगस्स गहणे एमेव य गंतु णिसि गलगहणं । समूदेणियरेणापि गलए गहितो मया दोषि ॥५॥ अन्य गतेवि सिबसि उलगन्छी उसणामि नुह अच्छी। पामगमो गरि उलगच्छीउनि ढोकड ६॥ सिहरिणि लवणियदे गुरुण सवादितति उम्गिरणा । मनपरिष्णा अण्णहिण गच्छती सो रहं गरि ॥७॥ परपसम्मि सपकले उदातिणिवमारतो जहप दुहो। सो पक्ष्यणरकवणहा णिम्भति लिग हाचूर्ण ॥ ८॥ परपक्रिस सपने पुण जाणाराया सो तु भयगिजो। तं पुण अतिसयगाणी विकसंतऽधिमारिणं णा ॥९॥ परपकसे परपसे दंडियमाची पट्ट परदेसे। उपसते वाऽमस्थ उदमगादि पद भयिनो वा ॥४६०॥ निविहो । |य विसयबुडो सलिंग गिहिलिंग अम्मलिगे थ। अषा सोवि दुहा सपासपरपक्वचउभंगो ॥१॥ परपक्वविसयही सपकरस पारचिनो तु आउहो। अठियम्मि लिंगहरणं एमेव | सपक्ख परपक्रये ॥२॥ परपकसं तु सपको बिसयपदुई ग तं तु विकसति । सजि(जिम)यमादिपदुई ग य परपल तु तत्वेष ॥३॥दबदिसवनकाले गणणा सारिकप अभिभवे वेदे। सुग्गाहणमण्णाणे कसायमने व मूक्ष्पदा म दवि दहा बहि अंतो अंतो चत्तूरगादि बहि भूमो। जापापियं ग याणति घडियाचौरस विपि ॥५॥ दिसमृद्रो परमवरं मणति खेतम्मि खेतपचास। दियरातिविषचासो काले पिंडारवि?तो ॥६॥जह कोई पिटारो खीर णिसट्टाए पाउ(रत्ति) पायुत्तो। अभयाणे उहिओं मण्णाति जह पहए रत्ती ॥ ७॥ महिसीओ पवि- IS संतो विट्ठो लोएण हसियतो ताहे। कि एवंतिय भगिय एमादी कालमूढेसो॥८॥ऊणहियं मण्णतो उझारूढो व गणणतो मूढी । सारिक्त पाणुसरिसो महतरसगामविट्ठतो ॥९॥ जह एक गामम्मी चोरा पडिया तु तत्व जुम्मिा सेणाचति तहि बहिओ सारिकवो महतरो व णितो ॥४७०॥ सो गीय घोरपति इयरो बसोय गामेण । बेतिय बोरे महतरा गाई सेणावती तुझ॥१॥तो ते चोरा विती महिओ एसो रणपिसावीते। तो णासिऊण ततो गामगतो ति तो नियगा ॥२॥ यदी सी अम्हेहि कि देवेहि जियाचितोतं सी?। इय-- सारिक्ताविमूढा दाग्णिविगामाङ घोरा य॥३॥ अभिभूती संमुज्झति सत्यम्मीवात(चोर)सावयादीहिं अम्भुइय अर्णगरती वेदमी राबवितो ॥४॥जह कोतिरावपुनो पालो अच्छीसुभ दुक्समाणासु। मादुगहसारिसारिपसंफुसण ठितो तु तुहिको ॥५॥ लखोपाउत्ति तो एवममिक्स तु ताहेसा कुणति। सोऽविय विवनमाणो सत्तो तीए तु पासम्मि॥६॥तीयपि अणुपियं चिय पितउपरमगे या नस्स रायते। तहविय तं पडिसेवति सचिवादिगिसिज्माणोचि ॥ ७॥ माहितो परेणं कजमकर्जचण मुणती जो तु। सो पुग्गाहणमूटो दिता दीवजातादी॥ ८॥ पणिवारग पिषमहिला नीव समं गमण बारिजागेन। गम्मिणि पोतविपत्ती समुदमझे कलमलम्गा॥९॥ जंवरदीवृत्तिष्णा पसूबदारम विषदितो कमसो। तेण सह लम्ग वितिरिष्ठपोतदाता सपुरं ॥४८॥ बुग्गादियनीय सुतो ण मुणति लोगेण भण्णमाणोऽपि। जह जमणि तवेसत्ती अगम्मगमणं ण वहति उ॥१॥जह वा अगसणोण मुणति युग्माहियाचाराहि मित्रावयणं हियंपी जह वाचि सुचण्णमारीणं ॥२॥ दुम्माहितो तु बोदो मा हीरजा सुक्ष्णकारेणं। तुज्स तु मोरगाई छाएमी संबएम अहं ॥३॥ लोगो य नुमं भणिहिनि हरियाई मोरगाई गोर! तुई। माहु पत्तियाही एवं च मणिजसी लोग ॥॥ जो एवं भूतत्यो तमहं जाणे कला य मासो या सोऽविय एवं भगती युग्गाहिय अहत अंधलगा ॥५॥ अंघलगम्भनगिवे सयणासणभत्तासहिमादीहि । सुपरिहितंचलगा देवि व धुत्तेण भगिता य॥६॥ अयम्मि अंधदासो अम्हंराया य अंधलगभत्तो। इह दुक्खिय ताहिं पचह जह कयपुण्णोच विचलोयं ॥ ७॥इप होवृत्ति यहि जेतुं रनितु डॉगरतेणं । बेटेका पुस्तिो साविउ ममिगलपट्टीए॥ ८॥आगह मे अस्थि एव चोराण पनिभयं ठाणे।। मेह य पत्थरमा पर्कासति देहित्य अतियितुं ॥९॥ भणिहिति चोर तुम्ने केमेते अंधला परागा तु। गिरिडोगरा पदापिय पहणह ने पत्थरेहिं तु ॥४९॥ इव पोचूण पलाओ पिचूर्ण अस्थजातयं लेसि। ते य पभाते दिहा गोवादीएहि भणिता य॥१॥ केगेते एच कता इय पुने पत्थरेहि ते पहया। मवि विति अलियाचे पुम्माहिय एपमादीया ॥२॥ वणिमहिल मूह दवे वेयम्मि यमुह होनि राया का बुगाहणमूढा पुण दीवादी सेस दवेपि ॥३॥ अण्णाणमूह इनमो वाइजत पिकारणसतेहिं । जो सम्पहं ण वाणति जयंघो पेषजह नई ॥४॥ कोहादिकसाओवयमूढो पषि जाणती मणूसो तुबह व परश्मि य लोए हिताहितं काकजंया ॥५॥ दम्वेग व भावेग य दुविहो मतो तु होति णायो । मजमदादी दवे माणडविण भावम्मि ॥६॥मोत्तण वेदमूट आविताणं तु णस्थि पडिसेहो। बुग्गाहण अण्णागे कसायमूढो पडिकहो ॥७॥ सचिन च अचित्तं मीसग जो अणं नु चारेति। समणाण २०७३पत्रकम्पभाय - मुनि दीपरजसागर ~13~ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) प्रत सूत्रांक [०४९८] दीप अनुक्रम [०४९८] “पंचकल्प” छेदसूत्र -५/२ ( भाष्य ) [०४९८] ...आगमसूत्र [ ३८ / २ ], छेदसूत्र [५/२] “पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...... goog ........... - • व समणीण वणप्पते तारिसे विकृता ॥ ८॥ जयसो व अकित्ती या तंमूलागं तहि पवयणस्स अणचोपझंझडिया स एवारिसा मरणे ॥ ९॥ वितियपद दाणतोसिय अहवा बसतो पण तु। अाण परविवेले विकखा से उत्तिम या ॥ ५०० ॥ चउरो य लुंगिया खलु जाती कम्मे य सिप्प सारीरे जातीय पाणवरुडामाणिकारमादीया ॥१॥ पोस चासोरियमा कम्मे पटकारा व परीहर (सह) रजगा कोसेजमा सिप्पे ॥ २॥ करपादकष्णणासियओडविणा व बामणा पहना खुजा पंगुलकुटा काणा एते अ दिक्लेया ॥ ३ ॥ पच्छाय होति बिगला आयरियतं ण कप्पाए तेसिं सीसो ठावे काणगमहिसोच पिण्णम्मि ॥ ४ ॥ जे पुण जातीर्जुगित कम्मे सिप्पे यतिणिनि दिवसे विपिपदे दिलेला एएहि कारणेहिं तु ॥५॥ जाहे व माहहिं परिमुत्तो कम्मसिप्पपतिविस्तो अदाग परविदेसे दिखा से जन्मपुष्णाया ॥ ६ ॥ कम्मे सिप्पे विजा मंते जोगेन चैव ओषदे। समणाण व समणीण व कम्पए तारिले दिक्वा ॥ ७ ॥ कम्मं तु उड्डमादी सिप्पं सिक्लिज्जते गुरुविवेसा। लोहारादी पुण चित्रकला मादीओ ॥ ८ ॥ अगाि ससाण मंतो पुण होति पढिपसिदो तु वसिकरणपादलेवादि ततो उ जोगा मुणेयवा ||९|| गोवालादी कम्मे ओवद्धा छिष्णछिष्ण काले। दिष्णा अदिष्णभतिया दिष्णभतीया ग कति ॥ ५१० ॥ सिप्पादी सिक्तो सिक्लावितस्त देति जा सिम्ला गहितम्मिपि सपी जमिरकालं तु ओढा ॥ १॥ चवही रोहो या विज परिताय संकिलेसो वा ओषद गामि दोला अब मुझे य परिहानी ॥ २ ॥ मुको व मोइओ वा अहवा बीसजतो परिंदेश अद्यान परविदेसे दिक्ला से अम्भणुष्णाया ॥३॥ दिवसभय व जत्ताभतीय कवाल भयग उबते । भयओ पत्रिहो ला कम्पते तारिले दिला ॥४॥ दिवसभओ उचिप्य छिमेण धमेण दिवसदेवसियं जन्ता तु होति गमणं उभयं वा एत्तिबघणेणं ॥ ५ ॥ काल उमादी इत्थमितं कम्ममेति एचिरकालेप (व) ले काय एसियनं ॥६॥ कतजगहियमो दिनले अकवाथ होति पडिसेहो पश्चार्षित गुरुगा गहिए ह मादीनि ॥ ७॥ छष्णमणेि व पणे बाबारे काल इस्सरे चैव त्तत्यजाणए अप्याबहुये तु गायत्रं ॥ ८ ॥ पावारे काल पणे निमछिष्णे व होति मंग साहिय गहिते यकते मोसेसे दिलेति ॥ ९॥ गहिए व अमहिने वा पिणे साधिते ण दिक्वंति कप्पति गहिले व अगहिते वापि ।। ५२० ॥ जन्म पुण होति विकाय होति कम्मरस तत्थ अणिस्सरदिक्खा इस्सरों" बंधेपि कारेा ॥ १ ॥ पेतुं समय समस्यो रायकुळे अत्यहाणि कढते उस तं ण कप्पति रोदोरसवीरिए भयणा ॥ २ ॥ सेहस्सा पिप्फेटिय जो सेहं तु आसियादेति। सो पुग पण केरिस ण कम्पनी आसियाडेतुं ॥३॥ अप्पणी बालो सोलसवरिगो अहम अणिषिो अम्मापतुविदियो क तस्य ष्णत्थ ॥४॥ गतियततीयारो थिम्फेटण तेपसह महणिजो तेगे य तेणतेणे पढिच्छगपच्छिगे उहा ॥५॥ ततिक्तस्सऽतियारो क्खिावितस्स सेहमवदिष्णं भवणा तेणगस होती इणमो समासे ॥ ६॥ जो सो अप्पदुणो बिरद्ववरिण अव अगिविहो। तं दिक्सितऽचिदिष्णं तेनो परतो अतेची तु ॥ ७ ॥ अहना मुदित ससिदे भइयो होत सोतु एकसय इत्तो चभंगो होइमो कमसी ॥ ८ ॥ मुंडा या उमंगो पदमवतिय अणुष्णाया से हरमाणों अनो सेसेस तु तेज होति ॥ ९ ॥ एवं पस सिपि चमंगो गुण एत्थवि तहेव एतेण कारणेणं तेगगसदी वहि भजिती ॥ ५३० ॥ अहो चउमंगो ससिगं एको पति इति एको असिम होति विति तेणा तारित इमे ॥ १ ॥ जो गन्तु सयं पोती सो तेणो होति लोगउत्तरिओ मिक्लादिगते सम्म तु हरमाणो तेणतेणोतु ॥ २ ॥ तं पुण पहिच्छमाणो पढिच्छओ तस्स जो पुणो मूला मिति एतरिओ पटिगपच्छिमोस खलु ॥ ३॥ याया एवं तिस्स होड से तु अण्णे य इमे दोसा गहणादीचा भवे तस्स ॥ ४॥ अम्मापितरो कति विपु पेण अत्थसारं तु । रायादीनं कहते कहियग्मि व गिम्हणादीया ॥ ५॥ विष्परिणमे व सणी केई संबंधिणो भवे तस्स विष्परिणयाय धम्मं मुए कुजा व गादी ॥ ६ ॥ जाय स्पिवाया कुलगग संघो तहेव धम्मो य सज्ञेवि य परिचत्ता से नियंते ॥७॥ तम्हा तुम हायहो वितियपदेणं हरेश व कयादि। होही जुगप्पाणी व दोसा तत्थ केति भवे ॥ ८ ॥ तो अतिसेसी दिक्ले ओहीमादी अमुददत्यो वा थिरहस्योप अमूढो दिलेला सो तहिं मेन ॥ ९ ॥ केति पुण मंदधम्मा वितियपदणिसेवियं पवदिति हो जहा मूलविणा चिलमा ॥ ५४० ॥ विफेडियमिच्छता रविलयमालवणं वददिति मूलविगो व वह जह चिति लम्मपादेस ॥ १ ॥ एवं तु मूल तुला साहा साकारण मिष्टी कारणओ प पढिकुट्टी ॥ २॥ जे केइ सेहयोसा बालादीता मए समक्खाता ते चैव व सविसेसा मुविणि तह वालवच्छासु ॥३॥ कह से तु संमती मम्मी सम्म वाले दिहा तु बालदोसा होज दादी असो वा ॥ ४ ॥ एवं अवसेसावी नवरं मोनूणिमे तहिं अगले बुद्धं जसरीरं तेर्ण शयावकारि च ॥५॥ दामण तहा ओवदं भतग सेणिफेटि असेस अणलदोसा मइया विणीए ॥ ६ ॥ जहचावि गुडिणीए अने दोसा हमे भवंती कायभवत्यो नि चतिकिति पयणमिव मरेजा ॥ ७॥ १०७४ कल्पायं 1 मुनि दीपरवसागर - ~ 14 ~ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ------------ भाष्यं [०५४८] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं प्रत सूत्रांक [०५४८] कहती रहागतो त हततो चोरडियो का आसंदिपस चोर दीप कीये तेणे रायावकारिबुडे य सेहणि फेडे। गत्रिणीए य जहकम बोच्छ आरोवणं इणमो ॥८॥ मूल चतुगुरु पारंचिया दुवे चउगुरूं नजो मूलं । अपाऽपकारि मोनुं सह वा सेस मूलं तु॥९॥ पारंची मूलं वा अवकारिएं सेहे होति चउमुरुमा । सेसेस ठाणएमुपगुरुगा हु मुणेयत्रा । ५५० ॥ बाले बुहवे की जो मते असणे चेवा करमादिजुगिए वा जदि पच्छा लहोज णिक्संतो ॥१॥ गच्छे संगहियाणं संचासो देसि होति णिरिडो। ण विराउ)ताणं णियमा एगहाणे व पाएण॥२॥ होजाहि गुत्रिणीयवि जह पउमचतित्र सुइटमाया वा। तृ उपस्सयम्मी भावियसइदेस या गोचे ॥३॥ जिणपवयणपडिकुडो जो पन्नाचेति लोभदोसेर्ग। चरिताडितो तपस्सी लोवेनमेषतु परितं ॥४॥ पापिओ सियत्ती सेस पणगं अणावायरणजोग। अनुचा समावस्ते पुरिमपदऽणिचारिया दोसा ॥५॥ परावण मुंडायण सिक्खावणुबह मुंज संवसगा। पदमपदहीण सेसा पंच पदा तेहिं बजेन्ति ॥६॥ पवजा तु अभिहिया सा पुण होजा कर तुपाजावितुमगाऽऽयरिओ गाहासुले इम आह ॥ ॥ छंदा रोसा परिजुण्णा, सुविणणाचा पढिस्मता । सारणिया रोगिणिया, अणादिया देवसष्णती..:३९ ल.१०॥८0 (ब)च्छाणुपंधिया (१०) अजणियकष्णिया बहुजणस्स सम्मुदिया। अक्साना संगारा बेयाकरणे सर्वदा॥..४०॥ल०११॥९॥ पति मुराऽभय देवी बह तेतलि मूग वासुदेवे या उदायण मण (१०) केसी जंबु पभव मावि सोम जिणा॥..४१॥ल०१२॥५६॥गामेगो चोर पडिया वत्थहिरण्णादि गेन्हिने या संपहिते यपति रूपवती महिलिया भणति ॥१॥किन हरह महिलाओ? चोरा चितति इच्छिया महिला। गेर्नु पाडीवतिगो उवणीया तेण परिचण्णा ॥२॥तीय धयो सबणेणं भणितो कि बंदिन प मोएसि? गंतृण र चोरवति धेरी ओलम्गए पयो॥३॥ किं ओन्लग्गति पुत्ता ! चोरेहि भारिया इहाणीया। विरहे नीए कहती इहागतो तुम भनत्ति ॥४॥ कहिए तु पोरअहिवम्मि पउत्थे भगति अज रसीए। पविसतु चोरहिबोकं पबिङ (पन्छा)सणावती आओ पाहा आसंदि पवेस चोरहि भगति पत्ति इगमो ताजदि एल मजा भत्ता तस्स तम किंकारिजासि ॥६॥ चोराहिकाह सकारात तुम देज तो करे मिउडिं। आह ततो चोरहिवो दारे यमम्मि जाये ॥ ७॥ यहिं वेटेजा नुहा सणेति हेतु संदीए। जीणेतुं योरहियो संमे बडेहि बेटेड ॥८ मुणएण खड्य बढे पासुत्ताणं च चोरत्रहिवस्स । सगअसिणा उत्तूर्ण सीस गहिरियो भण(चाल)ति ॥९॥णीणीजती सीस चोरहिवस्सा तु सा गहेऊणं । गालती ऊ महिरं अह गच्छति मगतो तस्स ॥५७०॥ जाहे जानम्मासं नाहे तीस वर्य पमोत्सूर्ण इसियाचीराईणि व साहिनिय जाति चिंधहा ॥१॥ जाहे य णिहिताई ताहे तणलियाओं बचती। वचति अप-11 याखेती पुणो पुणो मम्गतो सातु ॥२॥ गोसे च पनायम्मी सेणदिवं पाइयं ततो दटुं। लम्मा कुदेग चोरा पासंति य वाणि चिंचाणि ॥ ३॥ हिरवसिगादियाई अणिभिड़या मिजाति मन्ता । हरिवं पाये कुदिया नाणिपिय पचायकालम्मि ॥४॥ पंचस्स एगपासे ठियाणि कुदिएम जाब दिद्वाई। लेखीलेहि वितदिव्य महिल पेत्तृण ते य गता ॥५॥ ते घोरा से णे - घोराहियभाउगस्स उपणिति। साणं पढिवणा चोराहिमपहर्षचम्मि ॥६॥ इतरोवि खीलएहिं वितहडिओ अच्छतीत अडपीए। जहाहिबणिजटो अह एति अणीहतो तहियं ॥ ७॥134 तो कवितो वठूर्ण कहि मण्ये एस विठ्ठपुत्रोति। चिनेकर्ण सुचिरं संभरिता णियगजाती तु अहमेतस्स विगिच्छी आसि बिसहडोसाहीय तं मोए। सरोहिणीए तनो रोहेना गणे तस्स ॥९॥ लिहतिऽक्सरा अनिओ सोऽहं जो तयासि पुनभये । संभारिय संभिणाणतो उ तो बाणरो कहते ॥५८०॥जह जूहा पिढो साहिज मज्म कुणम वरमित्ता। आमंति नेण भगितो जूहं गतृण ते लगा ॥१॥ दोह विसेसमणातुंण किंचि कासीय सोदू साहिणं । णडो लुत्तविलुतो लिहति ततो अपसरा पुरतो ॥२॥ कि साहिजण कतं? पुरिलाह ण जाण दोहवि विसेस । तो हो वाणरतो पणमालं अप्पगो विलए॥३॥ लगे सेग पहारेण मारिनु चोरपतिमतिर्गत रति मारिय चोराहि तुने निहित इत्विं ॥४॥ सम्माम आणेशा इस्थि उपणेति सपणपगम्स वेरमासमाजुत्तो पिरत्यु इत्थीह जो भीगो ॥५॥ मजाय अच्छत सयणो जंपति तु मावसे किष्ण । किवाऽसि कहयकामो' भणती । काहऽपणो ॥६॥राणतिय धम्म सोतु पाजमम्भुवेसी या एसा उंदा भणिता अहणा रोसा त पाजा॥७॥ सीसारक्सो रणो धम् सोऊण सापओ जातो। मा मारही कंची उग्झिनु असि घरे दार ॥८॥ तपडिणिरायकहिए पिच्छामि असिंति सावएणुतं । सम्मदिड्डीदेवयसारक्सिजोत्ति तो कई ॥५॥ दिशप्पभावमायसमयं तु बठूण कुदों तो राया। मिति पचणीए सहदो तेसि तु सहा ॥५९०॥ बेति गरि अह सो मा एतेसि तु सहा तुम्ने । जं जंपिवमेतेहिं तं सर्व गवर! नहेन ॥१॥ ताहे छोटग पुणो णिकुछ असी तु गधरि दारमओ। विट्ठी परवसभेण विम्हाओ बेति किं एवं? ॥२॥ जंपति सड्ढो नाहे परवर! देवप्पसाब रोसो। पावविवजी उणरा इयंति देवाणऽमी पुजा ॥३॥ तो तुद्दो भणति णिचो सेक्सु एमेच दारुमसिणा उ। कडगादीहि य पूजितों पावितों सुमहंतमिस्सरियं ॥४॥ कालगयम्मि य सड़ने पुत्तो जामेण चंदकाहोति। पदिपणो ने भोगं सामने पुणऽकर्मसम्मि ॥५॥ पेसेति चटकन्दं गंपूर्ण पेनु सजियमाणेति। तुडो याममति राया कि देमि अहाह सो इणमो॥६॥जे खजपेजभोज गेण्हेज पुरिमित सम्पहिय। इव होतुति य १०७५पत्रकल्पमाप्यं - अनुक्रम [०५४८] ~15~ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) प्रत सूत्रांक [०५९७]] “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ------------- भाष्यं [०५९७] ------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं भणिए वारुणिपाणप्पमादेणं ॥ ७॥ रनिचिरस सगिह आगच्छति मनमातरी तस्स । इहिया जातीभो उरिषदा अण्णा रसिं ॥८॥ चिरका दार पिहए अह पदती आगतो न I सो दार। उम्पाईनो जमणि वएंसु जस्थेरिसे येले ॥९॥ उग्धाडिय दाराई सहियं वत्ति मातु सितो तु। सोहुम्याडियदामति गन्नु साहुगमयिओ ॥ ६७७ ॥ पायेहलवेई नेऽपियर 8 मनोतिकातु पाखे । विती गोसम्मम्मी पभातें पावनस्सामो॥१॥ सयमेव कुणति लोयं ताहे लिंग इलंनि जतिणो नु। पचापिती विहिणा एसा रोसान पाजा॥२॥ नमर्ग भइयं कम्म कुणमाणे बदलू सावओ पुच्छे । केवनिमतीय कम्मं करेसि ? पाएण पाह॥३॥ दाहामी पतिदिवस तव पाद गंतु साहुणो हि । साषेण पेसिओह कोजजं आणवे साह ॥४॥ जसाह भगति दमगं जो पाउं करेनि कम्मऽहं । * कारवेमुग गिहि पाइओवाजो ताहे ॥५॥ साहू भणति दिवसं पढियनं जंच देसु उपएस। एवं कम्म अम्हं सिक्स दुविपि Sमाहिति ॥ ६॥ कतिपय दिवस गतेहि अह सहदो भणति तं भतिं गेह । उकोसगमनेणं सुहितो रत्तो लवे एणमो ॥ ७॥ अतुभ हत्थे जति ता मग तदा इलेजाहि । कतिपय || दिवसे हि ततो अभिगवधम्मो उपद्विवो 10 परिजुष्णेसा भणिता सुविने देवीऍ पुष्कवृताए। नरगाण दसणेणं पनजाऽऽवस्सए वुत्ता ॥९॥ चतुरो तु गोणपाला सस्था हीणं जतिन तु अबीए। परिलमिति पहहा दोहिं दुगंछाइयं नहियं ॥ ६१०॥ दियलोगमता वत्तो चहानु दुगंछा दसणि दासतं। ततो मिगा यहंसा सोचागा चित्तसभुना ॥१॥ अगंडी तित्थगर पुच्छति कि सुलभदुलमयोहीऽम्हे। तित्थंकराह विर्य अम्मापितरो करोहिति ॥२॥ तो ओहिनाच पासितु माहयुत्तत गगरमुसुगारे। सो माहणो अपुनो पुमानि मिनिए पहले ॥३॥ते काउ समणरूर्व उसुगारपुरम्मि आगता कहए। बहुजण तीलादीणि तो पुच्छे माहगो ने उ॥४॥ होजऽम्ह किंचव पवाह या दिया त होहिति। दो जमलदारगातुर कुमारगा पहस्सति ॥५॥ मा तेसि करेजासी विम्यमवरस च तेसि पचना । होही बोनूण गता पाइर्ड उवषमया सि(सु) ॥६॥ बालनऽम्मापितरो भणति समणाण सरिसरुवर्ण। सक्सस माणुससामा भमंति वळूण ते पुत्ता ! ON मा नेसिजलिएजह बरंदरेण परिहरिजाह। मा भक्सेना ने मे तेसि बयणं पटिमणेति ॥८॥ स्वादि जत्थ पासंनि संजतेने सओ पलायति । अह अनया नगर बहिबेटे पासति बदते ॥९॥ मिति व अम्मापितरो दिवऽम्हे चेट क्षमाणा नागवि समणरूवि रक्सस भक्विंति व बेडरूयाई ॥३२॥चितेतऽम्मापितरो अनिचीसत्था इमे हु जायनि । मा पत्रएज इहनि अलियमाणा तु समणाणं ॥ १॥ सउबज्झाया एते मइयं निजतु नस्वाहिजतु। इस संचितेऊणं वश्यं गीता तनो नेहि ॥२॥ पदयाएं समीयम्मी मणानिरामो नुअस्थि वटाखो। अह अण्णदा कदाई सेतु मंता गता ताहियं ॥ ३॥ सत्था हीणा य जती निसियकिलेतात जागता तहिय। एस्थ करेमा मिक्सं पोहा पहिता नत्तो ॥४॥तो ने भयाभिभूता चेट विलम्मा तमेव बडाक्खें। जनिणोऽनिय तस्स हेडा वा परिसंति मिक्खा ॥ वरि पसिति गुरू पहियं अज्मपण गलिणगुम्मंति। ता ते सरति जाति जीयरित बंदिन विति ॥ ६॥ अम्मापितरो पुष्ठितु पवन अम्भुषमा सेस तुजह उसुगारायणे पालातं सुत्तालावे ॥ ७॥ एसा पहिस्सुना | खानु पाजा सारणी तु णानेर। चोरसमे अज्मपणे जाह नेनालि योडिला पोहे ॥८॥ पतिताणे जुबराया राहायरियाण पासि णिवतो। तगराएं तस्स भगिणी विणा जितसतरायरस ॥५॥तगरगताण कदापी उजेणीओ व आगतो साह। राहगुरुपुच्छऽनाचाह पनि पाहेति रायसुतो ॥६३०॥ पुत्लो पुरोहियरस य दोडते णिवघरम्मि पाइति। तं सोतुं जुषणिमुणी बेती मम नन्नुभो सोतु ॥१॥ सासेमिनं दुरष आधुधिय गुरु मतो उउजेनि। निरुतसगं तु पुडासचेपकहिति से जतिणो ॥२भिक्खह णिमायम्मि य भणितो अच्छाहि आगइ. स्सामो। भत्तह अत्तलामीति बेनि सेह नियोकं ॥३॥ सेतृण णियत्तो खुड्डो इयरोवर्मनु णिवजोक। सरेण महंतेणं अह कुणती धम्मलाभ तु॥४॥तो तेहिं सोतु विडो पस्तिदेहि चणेहि सो गहिजओ। मणिनी न गवसुतीय होतू वेण ते भणिता ॥५॥ गावह तुम्मे हितो ते तु पगीता पणचिजओ साहाता ते उपदचित्ता साधुणा वित्तिया दोषि ॥६॥ पुणरविबती गायम तुमं तु अम्हे उ गथिमो इव्हि। इय होतुति य मणिते पणधिना नाहे ते दोषि ॥ ७॥ पुणरचिय विश्वेता गोपालग ! पिहयेह किं एवं । भणिता ते सापूर्ण विति य कि सबसिने अम्हे ? ॥८॥देहित जुर्व अहं सविता साहुग दोष्णिवी समर्ग। आगठहसि सिम्पं तो ते आधाविता तुरित ॥५॥ आचावता यसत्तो पेनुं बाहामु दोचि साहणं। वह बिहुताऽण दुतं जह संधि विसंचिता सो॥६४०॥ उत्ताणए महीए पाडेतु णिवतो तू सो तत्तो । उगाणं गंपूर्ण शायति झार्ण गुणसमम्मो ॥१॥ अह ते इट्टुं गिहने संभंतोत्र परिजनी कहे रजी। रायाविध समती आर्गत नियतीने तु॥२॥ पुच्छे तेऽवीय जती बिति योत्थरम्ह पविसते कोई। परिको पारणओ आगतों य जाणामो॥2॥ गाहे उजाणारियणा गविसावित्रो व विडो या गंतृण सर्य राया चालणेसु विडियो जतिणी ॥४॥ई यजं इमेहि अवरवं ते समाहिसी भी पति साप जरि निक्समंति मोक्सामि तो णपरं ॥५॥सण्णाओ अपरेहि एस कुमारस्स माउलो सो उा बहुसो निबंध कते परियाणा जाहे ते दोचि ॥ ६॥ ताहे गतृण तहि दीपिणवि पेग नेण बाहामुतहणं खालसली किन जह संधी सि पुणो लगा.७॥णिक्यामेतुं दोणिनि मूरिसगास तुणीणिया नेणं । चितेद रायतणी साधु कत मातुलेण मम ॥८॥ मम हियमिईतेणं (२६९) १०७६ - vacuall मुनि दीपरतसागर दीप अनुक्रम [०५९७] - 4TPATRODE ~16~ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) प्रत सूत्रांक [०६४९] दीप अनुक्रम [०६४९ ] “पंचकल्प” छेदसूत्र -५/२ ( भाष्य ) आयं [०६४९] ...आगमसूत्र [ ३८ / २ ], छेदसूत्र [५/२] “पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं - palest - - मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...... माणे पीको बालसतह मज्झे सेयन्ती अतियारविवजितो विहरे ॥९॥ इतरो जातिमदेणं अविणयमादीणि अविगत्ताणं भोहीयनं बंधिन्तु गतो तु दियलोयं ॥ ६५० ॥ कोसंबी व इमो सेड्डी णामेव नायसो णामं मरिऊण सूबरोरग जातो पुतरस पुतो तु ॥ १ ॥ जातो जाति सरंतो विचितती किष्णु सुन्ह अम्मति । पुत्तोऽथिय बी भणामि मूयन्त वरं मे ॥ २ ॥ मरुदेवो तिथकर पुच्छति कि सुलभभबोही ऽहं भणितो दुइभमोही जं सी गुरुपरिभवकणं ॥ ३ ॥ कह बुज्झेनामिति य? भणिती कोसंविगमातृए। उहिसी महियं मृगा अनुचितो पोहो ॥ ४ ॥ ताहे आतूर्ण साहू समायति (गाति) भगति सो देवो अगं पण तो तुझं मातृएं उदरम्मि ॥ ५ ॥ उपजी इरा होति बेला किच्छप्पाणा व होहिति तु ॥ ६॥ अहंगं गिरिणीतंबे सोत्य अंबर्ग करेहामि अंबाल जसि दे अंबे देह जदि गम् ॥ ७ ॥ अग्भुवगते ससपर अंबे देखासि बाला साहूणं चल पांडेलाही अभिषि ॥८॥ किं बहुना ? तह कुजा जहऽहं साहुतणे दटो होमि संबोहिकाओ मत अने चो तु ॥९॥ मृगेण अनुमति देवी गमिण सायं पत्तो पऊन उपवनो कुच्छीए मृगमाऊ ॥ ६६० ॥ अंगडोल जाते तिमि देहहाणीए अहम्णपरिजणाणं मृगो लिनक्राणिणमा ॥ १ ॥ जदि देह मेयर ज्यं तो अंगाणि आणेमि देमित्ति अम्भुवगते ससक्समाणेति अंबाई ॥ २ ॥ तो पुष्णडोहलाए जातो दिष्णो यता से तम् उत्तणसाय में जतियो पादे पाडेति ॥ ३ ॥ अतिविस्तरं परोच्छी जाहेदिय पाहिजो उ पादेसु मुहचलणेस जतीणं मृगेणतो तु मेच्छीया ॥४॥ तुंगीवाएं तओ मृगे पाओ वे बहुपतित निक्तीगतो व दिवलो ॥४५॥ ओहीए व सुविमादिमु मोहिओ जति बुझे ताहे करेति रोगी देषोऽपि य ज ॥ ६ ॥ जदि सत्यको ममनि मए याचि जदि समं एसो तो पीरोगु करेमी पविष्णों कतो व नीरोगो ॥ ७॥ पेतॄण तं पयाओ गुरुगं से सत्यको दाये तं वमारगुरुगं बेती ण तरामि बोजे ॥ ८ ॥ सेति साधु निजदिक्सिमाहितो तेहिं मुंचामि विमुंचमि य रोगा परिवण तो मुको ॥ ९॥ क्खिते तो सम्मी देवोनि ततो तु साल पत्नी कालेषुप्पवतुं परं संपड़ितो अह सो ॥ ६७० ॥ देषेण पायतो दिट्टो विगुरुणि तो अवि कार्ड मणुस्सरूवं जह अडविं पट्टितो तत्तो ॥ १॥ सवति ततो दुबोही कि इच्छसि अप्प विनासेतु ? | जादेिव ततो णु पचाह ॥ २ ॥ तं पुण विजाणमाणो नरगादीदुक्लकिलेस तु किं पितुं तत्तो पुणरवि दुक्लाविमतीसि ॥ ३ ॥ अगणित तं व सपरं अ जगतो तो सो तु रोगाणं साहरणं भू विजागमो दिवखा ॥ ४ ॥ काले केगइ पुणो लिंग मोनू पहिलो सहिं देवेण पुणो दिट्ठो नामपलिततरा कुणति ॥ ५॥ पुणरवि मरूपी भारेण तु विसति तं गामं द वे पुराणो किं इच्छसि अप्पणो णासं? ॥ ६ ॥ जं तणभारेण तुमं विससि पलितं ततो वे देवो एवं तुमं जाणतो जस्मरणपलित संसारं ॥ ७॥ पचिसंतिष्ठसि णासं मुंचसि जं दुक्खलदियं दिवं अगणितो वचति परं गतस्स रोगं पुणो कुणति ॥ ८॥ पुणरवि तब दिवसा उप्पर व सरसम्म संपड़िए बीए तर परडिमं ॥ ९ ॥ कातुं अवण देवो अतिमहितो तु पटति हेइमुहो। पुणरवि समुपेतुं न्हवियचिज सो पुणी पडिती ॥ ६८० ॥ एवं पुणो पुगोचिप अभियमहि तो बस जाहे लवति ततो दुबोही कि पराठासो ॥१॥ देवाह जहासि तुमं वरठाणेच विओऽविण रमेसि पत्र मोतु परगावठाणं पुणवि अभिलसि ॥२॥ लवत पुराणों को तुम? देवो इसेति मृगरू से देवतं पुत्रभवं संगारे चाचि संभारे ॥ ३ ॥ तो संभरितुं जाति संवेगमुचागतो भणति देवं इच्छामो अणुस जातो' घिरी संजमे ताहे ॥ ४ ॥ रोगिणिय एस दिवसा अगाडिया रामकहपुत्रभवो उदायणसंयोही पभावती देवसम्मती ॥ ५ ॥ वच्छऽणुबंधी मणको कणाएँ अजणिओ तु केणइवि पुत्तो जायत जो तू सो होती अजणकरणी ॥६॥ वादविणिक्ता तु भानुर्भदाई अगद रायमुतो तू मिसाएं लोयऽप्पणी कुणति ॥ ७ ॥ उद्देहामि पभाते चाहो काल पडिय तीए पोल पेदागमणं जयति ते वाले ॥ ८ ॥ वीसरिया ते तस् य सिरोहा सम्म चेष ठाणम्मि तत्व य पचित्तिणी उ अहागता गाम गंतुमणा ॥ ९॥ अह ती रायदु हिया दिसा से अह तंसि उबविट्ट वरि तीए व मोउ सहसमोगादं ॥ ६९० ॥ लए सहनुं सिं जे सुकपुग्गलाइ गुज्झम्मि सनिवेसिय अह सुकं जोगिमगाट ॥ १ ॥ तो गम्मी आत अह पोहं यदि पयतं च मुनिया व सुविहिचाहिं पुडा देती तु गवि जाये ॥२॥ अतिसयमाणी बेरा व पुच्छिता तेहिं सिह जपते होही जुगपहाणी रक्त गं अप्पमादेगं ॥ ३ ॥ जम्म सकुले सहितो गोण्णणाम करा केसी एसा तु अजणकरणी पडला होति णायवा ॥ ४ ॥ बहुजणसंमुतियाए णिक्खमणं होति जंणामस्स। अक्लायाए जंबू धम्मं अक्त्यादि पभवस्स ॥ ५ ॥ संगार महिणाने सत्त शिवा कासि जह तु संगारं वेधाकरणे सोमिल पुच्छा जह बाकरे भगवं ॥ ६ ॥ सयबुद्धा तित्थगरा सोलसहा एस होति पाण्डापरिमुदग्मितु अवगत होत परजा ॥ ७॥ गोयरमचित्तमोषणसज्झायमव्हाणभूमिसिजाती अम्भुवनयम्मि दिखा रवादी सत्थे ॥८॥ सम्मादिसु 1 1 मुनि दीपनगर ~ 17 ~ - Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) "पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ------------ भाष्यं [०६९९] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं प्रत सूत्रांक [०६९९] सो। मितियपद सबसण्य ॥ ५॥ सिगा योग पासेषु । सिर वितियपाएं सबसेना चित्तदक्षिक य एनामा चेवा चिप्पलग भूतिया तहेरचा भाषणे तु दीप अनुक्रम [०६९९] तरते अणुकले विजते अहाजात सयमेव तु चिहत्यो गुरु जहणेण सिण्डहा ॥९॥ असो वा चिरहयो सामाइग तिगुण अहमहणं च। निगुर्ण पादक्खि णित्वारग गुरुमणे दी।। ७०० ॥ फासुय आहारी से अणहितं च गाहए सिक्ख । नाहे य उबहुवर्ण छत्तीवणियं उ पत्तस्स ॥१॥ अप्पने अकहेला अणभिगवऽपरिच्छतिकमे पाले । एकेक वडा कमा विसेसिया आदिमा पसे।.:.४२॥२॥ अपरं तु सुतेणं परिवाग उपद्धविनु बउगुख्या । आणादिगो व दोसा पिराहणा उण्ह कायाण ॥३॥ मुत्तत्व अपना जीवाजीचे य बंधमोसं च। उपठपणे पाउगुरुगा निराहणा जा भणिय पुत्रं ॥४॥ अणहिगतपुष्णपाचे उपहर्षितस्स चडगुरू होति। आणादिनो य दोसा मालाए होति विद्युतो ॥५॥ ससरस्सद-- गाइऽगनीपतिहिते हरितवीजमादीमा होति परिक्ला गोयर कि परिहस्तीग बाविति ।।..४३॥६॥ उच्चारादि अथंडिल योसिर ठाणादि वाचि पुढचीए । गदिमादिदगसमीचे खारादीदाह अगणिम्मि ॥ ७॥ विजणमिधारण वाते हरिए जद्द पुटपीते तसेचा एवादि परिक्खित्ता बतदाणमिमेण विहिणा सो ८॥ दबादि पसत्य बता एकेक तिगुण गोपरि हेडा। दुविहा निविहा य दिसा आयंबिल णिविगतिगो बा॥९॥ पितपुत्तागं जुबला दोग्णि तु णिवंत तस्थ एगस्स । पत्तो पिता म पुनो एगस्स उ पुनों ण त धेरो ॥ ७१०॥ ताहेतु पणचिजति डिवणार्य तुकातु मण्णतामा नेण्ह असरगाहं रातिणिओ होति एसविता ॥१॥ एवं सो पग्णवितो जदि इच्छे तो उपहनेती तामेति पंचाई ती दो तिमि वा गणगा ॥२॥वरसमावासापजाऽधीतं नाव पहिच्ाति । एवं रायत्रमचे संजतिमको महादेवी ॥३॥राया रायाणी या दोग्मिवि सम पत्त दोस पासेस सरसेडिअमचे नियम दाकुल दुवे सहडे । ४॥समयं तु अणेगेस पत्तेसु अणमिओगमापलिया। एमतो दुहतो ठविता समराइणिता जहाऊसणं ॥५॥ईसि अगोयइचा वामे पासम्मि होति आपलिया। अहिसरणभिचपदी ओसरणे सोप अच्यो बा ॥६॥ उमठावियरस एवं समुंजणता नहेब संपासो। वितियपद संबंधी ओमादिसु मा पहिमाचे ॥ ७॥ मुंजीस मए सबिवाणि । णेजति मा तु पहिवार्य । अहिसायनिक ओमे पाये जेण मुंजति ॥८॥ एमादिना तु भावं लाहे अप्प अहवऽपत्नं वा। उपठाचेतु मुंजनि अपरिणते चिनरक्सट्ठा ॥९॥ उक्टा-का निय संभुने संचासो एल्प होति कायो। बितियपाएं संचसेना अणुपदवियपिमेहिं ॥७२०॥ अण्णस्य णस्थि ठाओ अहवा होजाहि सोऽपि एमानी।ग व कप्पति एमरसा संचासो तेण संवासो ॥१॥ सचिनदवियकापो एमेसो कमिओमहत्योतु। अचित्तदपियकर्ष एतो बोमई समासेणं ॥२॥ आहारे उबहिम्मिय उपस्सए वह य परसपणए या सेन जिलेजहाणेदंडे यम्मे चिलिमिणीय (१०)।..४४०२२॥३॥ अवलेहणिया ताण घोषणे काहसोहणे घेव। पिप्पलग मूति णखाण छेदणे व सोलसमे...४५॥स.२३॥४॥आहारो खलु दुनिहो तोश्य मोडतरोयगायो। तिनिहो यलोइजो खल तत्व इमो होइ गायत्रो ॥५॥ भाषणे भोयले चेष, संजियो तहेवया भाषणेत बेरा, माहामुत्तमबाहरे ॥ ॥ सुपपरजते । भोज, मणिसेले चिलेवन। (अविवाही) पतमायास पर्व तं, पानमुहंच मिम्मते ॥ सूबोदणं जवष्णं तिषिय मंसाणि बोरसो जसो। भक्ला गुललावणिया मूल फलं हरियगडामो ..:४६॥८॥ होड सालो यतहा पाणं पाणीय पागर्ग घेव। सागं चऽद्वारसहा णिकरहती लोगपिंडो सो ॥..४९॥ मूरगहणेण महिता पंजणभेदा उ जनिया सोए। ओदणगणेणं पुण सत्तविहो ओदणी होति । ७३०॥ जानु जवणं भणति तिमि तु मंसाणि जलयरादीर्ण । गोरसों लीरावी उ मुग्गपाडोलादि जूसो तु॥१॥ मत्सपिहि जलयुक्ता गुलकत तह लावणीत बोदशा। मूलमनागमाची मूल अंबादिम कलंतु॥२॥ हरितग मूलकुढेम भूषणगादीय होति णाययो। डागो य गोरसको पजेवणादी बहुबिहागो ॥३॥दो पतपला मर पलं दहिस्स अदावर्ग मरिय वीसा। खंड तुलावसभागो एस रसालू गिवतिजोग्गो ॥४॥ संड तुादसभागो इस संपला हति गायचा ते तम्मि पक्सिवित्ता मस्जियणाम रसालोति ॥५॥ पाच मजविही उ पाणीयं चारपापियादीय। दक्खादिपाणगाई सागेणं पंजणा जे तु॥६॥ एवं अट्ठारसहा मिक्लहतो बड्वगादिपरिहीणो। ग य उपहम्मति जेणं रसादि देग वोर्ण ॥ ७॥ परिसुनले दाहिणतो क्वाणि सबाणिवामतो कुजाणिजमहुराणि पुर्व मन्झे अब दर्षताणि ॥..४८॥८॥ परिसुषसं सालणगादित गिण्ट मुदतु दाहिणकरणं। बामेण पाणमादी नेण तयं वामपासम्मि ॥९॥ अप्पाइजति वेहं पूर्व तू गिदमहुरदवेडिं। पेवावीहि णियमा केवइयं वे तु भोत्तां ॥७४०॥ जनमसणस्स सबंजनस्ल कुजा दवस्स दो भाए । वातपरियारणका उम्भागं ऊणयं कुजा ॥१॥ तं गुण एयपमाणं आदी मज्जो नहेब अपसाणे। केरिसर्थ भोत तस्स इमं गाहमाइंसु ॥२॥असतामिच संजोग मण्णा भोषणविहि उपदिसति । टावरलं दवावसाणं मजा विचितं महरमादी ।..४९॥३॥ जसता असजनादुनमा य एमट्टिताणि एपाणि । तेहिं समं जा मेत्ती संजोगेसो तुणाययो ल०१३|| गुलमहुरा उठायालेसि पुर्व करिति य पियाइ। मनोय होति मज्मा महरा विगतिं च दाएंति ॥3०१४॥५॥ कुर्वति य मासति य अवसाने तारिमाणिं जेहिं तु। जिजाति सवं सुकतं एवं किर भोवर्ण मुंजे ॥ल०१५॥६. आदीएं मिदमडुरं मजा चिचिर्त दवलुख अवसाये। तेणं विपागमेती हुजगरे, तीच अवसाणे गाल १६॥७॥ कुसला१०७८पजकत्वमाप्यं - मुनि परलसागर । कर ~18~ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) --------- भाष्यं [०७४८] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य प्रत सूत्रांक [०७४८] दीप अनुक्रम [०७४८] या मिहिएणं पुन त भोतब इमेग पिहिणा तु। असुरमुरं अचवय अडूतमविलंबियं चेव ॥ ८॥ अयमाणोऽपि विही खल भोषणशायम्मि होति णाययो । जारिसवंण भोत्तथ्य दोसा । जे पापि भुत्तस्स ॥९॥ अचुहं हणइ सं अतिअब इंदियाई उपहणति। अविलोणियं च च अतिनिदं भजते गहणि ॥ ७५०. आहारियम्मि एवं नीहारेणं अपस भपियन। तस्थ ण धारे वेग दोसा य इमे परिजते॥१॥ मुलगिरोहे चासु पचगिरोहे य जीविय हणति । उदणिरोहे कोई सुकणिरोहे भवे अपुमं ॥५०॥२॥ इक्विधूताए आहरण तत्व होइ कायव्यं । तेइच्छि मते राया पुच्छति पुत्तरिय पत्पित्ति ॥३॥णस्थित्ति अस्थि घूया राया बेती अहिजऊ सत्या पिउसंतिओ य भोगो तह चेय तीवडणुष्णातो॥४॥ मच्छरिता विजऽणे ती कि एस पाहिति पराई। निससत्व अहवा से परिच्छिउँ दिज अह भोगे॥५॥ सदावतुं पुट्टा किमचीतं नि ? तेसिसा पुरतो। तो जाए वातकम्मं सरेण करें। इसे विजा ॥॥तो भणति गि सात एते पेजा ण चेपतु णरिंदा व जागंती सत्य कहति? ती इमं सुणसु ॥७॥तिणि सता महाराष!, अस्सि देहे पाहिता पाउमुत्तारीसा, पत्तगण धारए ॥८॥निम्मुहिकता तुवेना तीए साऽविय पतिहिता तहियं । वम्हानधारएं पेर्ग पायातीर्ण तु सोसि ॥ ९॥ एवं भुत्ते समाणे जति पातादी पकोव गच्छे. जा। जाणेज सि वेलं पथमादी इमं तहियं ॥ ७६०॥ सिंभो बहति पचूसे, पदोसे पित्तमइदरत्तम्मि । मझतिए य पाओ, बदति पुवावरण्हे य॥१॥ तस्य ण पेजो पुच्छिजती तु तेसि तुबेल सच। कुपियाण अवेलाए पेच्छ(पत्त्ये)किरिया इमा सेसि ॥२॥ तितकडएहिं सिंभं जिणाहि पिन कसायमहुरेहि। मिदुन्हेहि य वार्य सेसा पाही अगसणाते ॥३॥ केरिसए कालम्मी आहारो केरिसोतु पुरिसेणं । आहारेयको खलु तत्व इमो बणितो सो या सीते उन्हं पविसजा, उन्हें सीयं पवेसए, बच्च। गिदे सक्ख पविसेजा, लुक्से निई फसाए ॥५॥जो वाही विदेणं समुहितो नस्स लक्सकिरियाए। मुमसेण मुद्विवस्स तु कायका मिडकिरिया तु॥६॥ एसोतु लोइओ खलु पिंडी तू बनिओ समासेणं। लोउत्तरिए पिटे अग्निजति पिंडणिजुत्ती ॥७॥ पिटे उम्गम उपायणेक्षणा जोपणा पमाणे या इंगाल घूम कारण अहपिहा पिंडणिजुत्ती॥.:५१०८॥ पुदवाईया भेदा वत्ता जहकमेन पिंडस्स। गनिसगमादीचापिय एसणभेदा य तह चेच॥९॥ उम्गममादी दोसा सो बजहकमेण बत्तमा। जह भणिय पिंडलीय वरि इमो पुत्तिएं बिसेसो॥७७०॥ संचय कोहग दारुय दाए तह गोरसे य लोगे या लंबण हे हिंगू दालिम तह तिनए वेवा.:५२॥१॥ अगडाराम पुत्ते तुंचे फलहीनहेर गाओ पाएतारिसमुप्पग्णे गहणं किंकरस रिसर्य' ।.".५३॥२॥ भत्ता उतारखेपो गोरसमादी तु संचतो होति। सो संपला ठवितो भा असोच्छिणि अग्गिज्झो (अविगिट्ठो) ॥३॥ अत्तहिय परिभुत्ने कप्पति भावम्मि ताहे वोच्छिण्णे। कह बोच्छि जति भायो' सोनूण अकासुदोस तु॥४. कोङग तंबुल तिढा समणवा सि कहाण कम्पति । अह दुख संजयहा आयटोयक्खडा काये ॥५॥आबढाए दुख्दा संजयजडाए तिवडण कणे। जदिऽपिय आयहाए आरंभो होति तेसि तु ॥६॥ एमेच वारसागाइयाई जाई अकासुदवाई। अनटुगिडिताई कप्पे समणद्गवि कप्पे ॥७॥ गोरसहिंगूनवादि दालिम लिएकापरवाईलंबण मुली व मणति संचियमेवादि संघवा ॥८॥ फासुगना जेतु अनोमिछमम्मि भाग तकप्पे। उपसडिया बत्तहा पोच्छिणे मा कति ॥९॥ अगवसणेजाही आराम वापि अहब रोवेजा। संजयनिमित्त कोई पाणफलाई चदाइति ॥ल०१७॥७८०॥ तत्ववि संजयजोग्गा संजपजडा कया ग कति। अत्तद्वाएं कता पुण कप्ती नंदुला जह तुल०१८॥१॥ पुन जणेज कोई आयरिओ मजा अपरिवारोति। तेसि सहातो होहिनि पक्षाचे तु सो काये ॥ १९॥२॥मायणअट्ठा तुंबिओं दावे फरदीय वरथमातहा। संजयठाए जा सुत्त अत्तहवियम्मि पुण कम्पे ॥ ल०२०॥३॥ तो संजयठाते आतडा मुत्तमादिकण कणे।जन्हा गहणजोग्यो तु संजतहाए कारिततो ॥ संजतमा वियितो आवद्वोपद्वितोय कत्तो या कप्पति जम्हा व कतो संजवजोग्गो तु आतहासमा एवं गावीओपी कोइ किणिजाहि संजयहाए। आत दुढ कप्पेसमगड्डा बूढ णो कप्पे ॥६॥ एसो पूतिपिसेसो भगितो पुर्व तु पिंडजुत्तीए। एत्तो उपहीका बोच्छामि गुरूवएसेणं आ दुविहोय होति उपही पत्ते वत्येवाओहुक्म्माहिए। जिगवेरऽजाण तहा मोच्छामि अहाणपुषीए॥८॥पाए उमामउपायणेसणा जोयणा पमाणे या इंगाल घूम कारण अपिहा पातणिजुत्ती॥९॥जहसंभव णेयना पिंडगमेणं तु पातणिजुत्ती । स तु उमामादीजहा जहा जे तु जुजति ।। ७९०॥ पातपमाणं तुइम पमाणदारम्मि होति वत्त । मज्झजण्णुकोसं बोच्यामि अहाणपुरीए॥१॥तिषिण विहत्यी चउरंगुलं च भागस्स मज्झिम | पमान। एतो हीच जहचं अतिरेगतरंतु उकोसं ॥२॥ उकोसतिसामासे दुगाउजदाणमागतो साहु । मुंजति एगहाणे एवं किर मत्तगपमाणे ॥३॥ एवं वेव पमाण अतिरेगतरं अणुगह पवतं । कतारे इम्भिक्से रोहगमादीसु भइयचं ॥४॥ई समचउरस होति चिर थापरं च वष्णं च । ९ वाताइवं भिष्णं च अधारणिजाई ॥५॥ संठियम्मि भये लाभो, पतिवा सुपतिहिए। णिवणे कित्तिमारोग, सवणे वणमादिसे ॥६॥पत्ये उम्गमउपायणेसणा जीपणा पमाणे या इंगाल घूम कारण अडविहा पत्पणिजुत्ती ॥७॥ एत्यविध जहासंभव १०७९ पत्रकापमा - मुनि दीपरतलानर || ~19~ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) प्रत सूत्रांक [०७९८] "पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) -------------- भाष्यं [०७९८] ----------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [9/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं घोसयबाई सपनाराई। पटवादिषमाणाची पमाणदारे समोतारो॥८॥ गिम्हसिसिरवासामु पडला उकोसमज्झिमजाहला । वाणेऊण कमसो पठादा पुरिस पोष्ठामि ॥९॥ एमेष यध पच्छादा परिस सेनचकालमासमा विग्णादी जा सत्तनु परिजुष्णा पाउणेजाहि ॥८००॥ परिसा असह कालो सिसि लेतं च उत्तरपहारी। निम्हेनि पारजातारिसर्य देसमासज ॥२॥ एवं तु उम्गमाविसु सुद्धो सबोचि एस उपही उपायचो थियतं अहाकटी चेच जहविहिणा ॥२॥ असनीते पुण जुत्तो जोगों ओहोयही उपग्गहितो। ठेवणभेदणकरणे जा जाहि पारोबना भणिता ॥३॥तिविह असतिलिजा सा दो काले यहोति पुरिसे या दवम्मि पास्थि पातं ओमोदरिया य कालम्मि ॥४॥ पुरिसो य उम्गर्मवो ण पिजनी एस परिसअसती नाजपा अणाले अधिरं अघुनं सन्तासती लिपिहा ॥ ५॥ अहया तिगत्ति असती अहाकटाणं तु अप्पपरिकम्म । तस्सऽसति सपरिकम्मत तविहीए इमाए तु॥..५४ || चनारि अहागडए दो मासा हॉति अप्पपरिकम्मे । तेण पर विमम्गेजा विवढमासं सपरिकम्मं ॥ ७॥ पुणसहो तिक्युत्तो विमग्गियात होति एकेक। एवं तु जुनजोगी अल-14 भने गिण्हनी सतियं ॥ ८॥ अहवा असिबोमेहि रायढे व से गुरुर्ण बा। सेहे परित्तसावयमए य ताहियपि गिण्हेजा ।..५५॥९॥ असिवादी पुच मणिता गुरुप मम्गे गुरू भ.3 णिजाहि। अच्छाहि तार जजो ! नत्य तु ते कारण विदति ॥१०॥ एवेहि कारणेहि अगटनजेग दोष्ट गहिताचं । छेदणमादी कुवं जयणाए ताहे सुद्धा तु ॥१॥गिकारगगहणेन पुण विराहणा होति संजमायाए। उदणमादीएK जा जहिं आरोषणा भणिता ॥२॥ तं पुण सपरीकम्मं जयगाए होति लिंपिया तु। एतेण तु लेसेणं लेवग्गणं तु पण्णेऽहं ॥३॥17 हरित वीजे चले जुत्ने, पच्छे साणे जलहिते। पुढपी संपाइमा सामा, महवाए महिया इमे ॥ ४॥ एवं लेवग्गाहर्ण जहकम पणितं समासेग। ओहोवहुवम्माहित उहिंगेऽहं समासे ॥५॥ जिणकपयरकप्पभजाणं घेच ओवगहित । बोच्यामि समासेर्ग जहण्णगं मजिसमुक्कोर्स ॥ ६ ॥ पत्नं पत्ताबंधो पायट्ठवणं च पायकेसरिया। पहलाई स्यनाणं च गोषडओ पायनिजोगी॥७॥ विष्णेच य पच्छागा पहरणं चेष होइ मुहपोती। एसो दुवालसविहो उवही जिगकप्पियाणं तु ॥८॥ उकोसिओ उपरहा मज्झिमग जहष्णगोऽपि पाठहा उ।12 गच्छादनिर्ग जग्गहों जियाण अह होति उकोसो ॥९॥ पडलाणि रसत्ताणं स्वहरणं पत्तध मज्झिमगो। गोच्छग पत्तवर्ण मुहर्गतग केसरि जहणो ॥ ८२०॥ जिगकप्पियाण एसो सेसाप चिणियाग एसेव। बेरार्ण जतिरेगो मत्लो तह घोलपहो य॥१॥ उकोस जाहलो तू जोचिय जिणकप्पियाण सो चेव । मझिमए अतिरेग मनो तह बोलपहोय॥२॥ एसेव चोइसधिहो पोलहाणम्मि गरि कमद तु।अजाग इमो अण्णों ओहोचहि होति गायत्रो ॥३॥ उग्गहार्णतम पट्टों अबोकमा चरणिया ब चोदया। अभितर बाहिणियसणी य तह कैचए चेव॥४॥ उठिय वेकच्छिय संघाडी व संधफरणी या ओहोचहिम्मि एत्तो अजाणं पण्णवीसंतु॥५॥ उकोसो अहविही मज्झिमतो होति तेरसबिहो तु। वह जहष्णो सोचिय जो जिणकप्पे समस्याओ॥६॥ पच्छादतियं उम्गहों मिलनऽस्मतरी य बाहिरिया। संपादि संधारणीय अट्टहा होति उकोतो 10 पलायंघो पढन्या रयहरणं पादपुंठणं ६ चेवा मते व कमट उम्गह गंते तह पहए चेष ॥ ८॥ अद्धोए पलणिया कंपन उपकच्छि सह विफच्छी या एसो तु तेरसविही मज्झिम उपही तु जनार्ण ॥९॥ एसोतु ओहिओपहिर एनो सेसो तु होतवाहिजओ। संचारपट्टमादी तु गहा होति णायो॥ ८३०॥ दुविहोवहीपि एसो जहर्म परिणतो समासेणं । एतो उ उबेतणयं योच्छामि जहाणपडीए॥१॥ मिसिगादि उसमय वासारते उ पाणत्यहेतुं । नेहारूदा विष्पहतं चिय सावेगपरसवर्ण ॥ २॥ बिस्समणमा पैराण पेप्पती एत्तों बोच्छ सेज सेना संथारो या एगई होति णाय ॥३॥सांगिया में सिजा होति असगितो तु संथारो । एगि अणेगंगी परिसादी अपरिसाही याल०२१॥४॥ एतेसि सबेसि अहहिं वारहिं मग्गणा होति। पिणिजनिगमे । गये जहसंभव सा ॥५॥ निसियमहेतु गिसेना रपहरणपमाणो गहेया। किं पुण चिप्पन सा तू मणति सुण कारणमिमेहि ॥६॥ पुरिसे पुढवि सरसे पच्छाको तहेब अचियते। बाउसपरिहरणाए संचारणिलेजऽगुण्णाना ।।.:.५६॥ ७॥राजाची पाहको भूमीएं अणंतरं गियेसंवो। विपरिणमंज लेणं संचारगिसेज पणना ॥८॥मीससचित्तपराए अदाणादीमा विराहणता। उम्हाए पुढवीए तेण णिसेजा व संथारो ॥९॥ एमेन य ससससे सथित्ते सतरं भवे जयणा। सागारियं च हरा चुलीउडियसरीरो 10५०॥ कलेग गिहिणिसे जागतम बस्थम्मि महलिए गिहिणो। उकुसणधोषणादी कारेजा पच्छकम्मं तु ॥१॥ अचिततंचा सि भये धूलीउम्ांटि पुते (३) निविष्मिा अहवा बाउसदोसा कोहिते पति या ॥२॥ठाण विविध भनित उदय पिसीयण उपाठाण च। उड़द काउस्सम्यो णिसीयण णिवेठाणं च ॥ ३॥ होति यह मिषण परिसपमजियान काया। संजणिशार्ण पा ठाणं अहवानि ठाणं तु ॥४॥ उही भातपमाणा विलहि चरंगुलेण परिहीमा। दंडतो बाहुपमाणो विदंडो कचछगपमागो॥५॥ दुपसुसाणसावदपिजलविसमेसु उदयमग्गेमु । लट्ठी सरीस्स्स्सातपसंजमसाहिगा भगिता ॥६॥ चम्मे पहियखाइगरदावी होज चम्मगहणं तु । अत्युरणपावरक्सा कुटिए तह संधणद्वादी ॥ ७॥ अरिसमगदलकण्ठ उपति गिताति अत्युरणगं तु । दुचालपाए चार अदाणादीसु तलिया तु॥८॥ फुडियपिपिचणइंगलिरक्खा खाइकोसमा होति । गज्झा ऊ संघण्टा अवाणादीसु छिष्णा य ॥९॥ (२७०) 1१०८०पत्रकल्पमा मुनि दीपाजसागर दीप अनुक्रम [०७९८] ~ 20~ Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ----------- भाष्यं [०८५०] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं प्रत सूत्रांक [०८५०] AINigh1094TAANVAth दीप रनुमयी पोत्नमयी कंबलमयि तह य दंडकटममयी। पंचविह चिलिमिणीओ बष्णिता एस पुर्वतु ॥८५७ ॥ उड़बड़े पहरणं वासावासासु पावलेहणिया । बड उपरे पिन्स्यि नम्स अलमम्मि थिचिगिया ॥१॥ उमओ णहसंठाणा सचित्ताचिनकारणा मसिणा। सचिनेगेण कुसे पासेणेगेग अचितं ॥२॥ कण्णाण सोहणं पुण करणाण मलेण संचिएणं नु। दुरजए जस्त कष्णाय सुणेज रसोतु गिम्हेजा ॥३॥पविरलदतो थेरो सित्यादीगं तु दतलगाणा लेनाहअरतिसारियरक्खडा गिव्ह सोहणय ॥४॥ अवाणोमादीम पिप्पलतो विकरण कंदाणं । माणागिवस्थादी पगासमुह भाण करणवा ॥५॥जुण्णाण संधगड्डा सई णखसवणं तु कंटा(ठाणं । उदरणह गहाण य छेदगडेवं गहयात्रं ॥६॥ उच्चारमनगादी अण्णोविय बहुविहप्पगारो ना जोवग्गहिओ मणिो उपगहा महापस । ७॥ समोवि एस उवधायदोसपरिवजिओ घरेयहो। पीसतिया उपधातो तस्स इमो होति णायनो ॥ २४॥॥ उम्गम उपायण एसणा य परिकम्मणा व परिहरणा। अभियन (चिकन)वतीयारेनहेच परियगणा विदिया .५आल०२॥९॥ उग्गमम्मि यमग्णाति, पामिवेय पवाहणे। तेरिच्छवाहए। चेच, नहा लेगाहटेति य॥..५८॥ ०२६॥८६॥ अण्णाणोवहढे वेव, मालोहा अरक्सिए। कते य कारिते वेष, बंधणे व विराहणे .:५९॥ ल०२७॥१॥ विवजकरणे चेच, एमेताव परिवनिओ। एक पलेष उपयानो, उपहिस्सतु पीसती ॥१०॥२८॥२॥ उम्मेण तु अस्मद, नहा उपायणेसणा। उवहिं उपहले जाणे, पोष्ठामि परिकमणे.६१०२९/57 ॥३॥ परिकम्मले चउर्भगो कारणे विहि वितिओं कारणे अपिही। निकारणम्मि य विही पउत्थ निकारणे अविही ॥ ०३०गग्गरवंडीवेलतिगतीलगमादी व होति अविही उ। णिकारणम्मितीय तु परिकमेवम्मि उपधातो॥५॥ भाणस विपरिकम्ब निम्मोपणलेबसिनगादी य। णिकारणमविहीए कुणमाणी होति उपधातोशल.३१॥६॥अम्भितरं तु चाहि बाहि अभिता करेमाणो। परिमोमविवजासे उपपातो होति णाययो ।ल.३२॥ ७॥ भियगोवहिपरिभोग समणुग्णाणं ण देनि कजम्मि। जो भंडमचारीयनणेण उपहिस्स उव पातो ॥१.३३ ॥८॥ पतियार परिहारिय वत्थं पाई जो गहेऊण । पुण्णेचि तम्मि काले अणपुच्छ परेंत उवपाती ॥ ३४॥९॥ लोइय लोउत्तरियं परिवट्टिय जो न गिण्डती ।। उपही। उम्गमदोसनमुच उपहनतु गाय ॥३५॥८७०॥ अण्णगणमांगतस्स तु जस्स उ उबहिस्स उम्ममी ण णजे सोडणं परिभूजति उपायतेपणायम्मि ॥80R ३६॥१॥ पामिचं उजुयगं उणि चेन होति णाया। लोइय होउत्तरियं तु उपतं तं वियाणाहिल०३७॥२॥ अण्ण बहते असते दिपणे साहुस्स अण्ण जदि वाहे । तं तु पवाह दोसा उबही तू उबहते जाणे॥७०३८॥३॥ मुगएण बागरेण वजह रूपगमावि हरिनुमानीतं । परतणागीतं (दिगंतमदिन) वा गेण्हत उपहयं जाणे ॥ल.३९॥४॥ अण्णागोवहतो खलु पत्यादि अकपिएम जो गहिओ। मालोहडोतु उवही ओलइओ जो नु बेहासे ल०४०॥ अणरक्सिओत्ति सुग्ण उपही मोजूण जो उ गच्छेजा।निक्सादीणs-- हाए सोऽपिय उबहिस्स उपपातो॥ ४१॥६॥ सयमेव करे उनही मिसेजादी सोऽपि उपहतो होति । कारेर अमेणं उपघातो सोऽपि बोवत्रो ॥ ४२॥ ७॥ धनि भिष्ण अविही मिण व घरेति सोऽपि उपधातो । मुवष्णं च दुवर्ण करेज मा तुहीरेज । ल ४३३८॥राणं पसषण विभूसहेतुं तु जो करेजाहि । उपहिउपपात एवं जदया अण्णेविमे हॉति २०४४॥९॥ पंचाय पण्णरसा सोलस बस चेव होति ठागाणि। बचारि एकगातिबारस बीस ठाणाई।..६२०४५॥८८०॥ दो खेले काले भाये पुरिसे य| होनि पञ्च । एतेसि पंचहषि परूषणा होति कायबा । ०४६॥१॥ दो अणलं अधिर अधुर्वचनहा अधारणिजचा एतेसु पाउसुंपी गेहते भंग सोलस तुल०४७॥२॥ अहवा महदगाई खित्ते कालेय अचितं जंतु।भाये जहा मिलाणी मुंजे अगिलाणों तह वाल-४८॥३॥ पुरिम असहनु जहा सहवि परि जने तहा उपही। रायादी पवइओ अहवा पुरिलो हजाही ॥४९ ॥ अहया गारवमुच्छा अविनऽतिरिन बाउसतं पापंचेते उपहिम्मी समणाणसया ग कायना । ०५७ 114 जोगमकातमहागडे जो मेहति अप सपरिकम्म बा। अहवा अमगिऊर्ण अपं मिण्हें सपरिकम् ॥ ल०५१०६॥ अपडिल्लेहिय गारच मुच्छ विभासा य होति सलमए। अचियत्ते न मा मे कोई हिचनुत्ती (होति) अहमए ॥ ल०५२॥७॥ पण्णरसुग्गमदीला असोयरमीसजायमेन तु । उच्चायणसोलसमं एसपदोसा य दसगं तु ॥ ५३॥८॥ संजोयणा पमाणे इंगाले व होति घूमेय। चत्तारिएकगा खलु एतेने हॉतिमायया ल०५४॥९॥ वारस ठाण इमे खलु वेदगमादी नहुँति उड्डाणा। आयकादी उचिय अधरण धरणाय वयातील०५५।८९०॥ वेयण बेयावो दरियनाए बसंजमहाए। तह पाणपत्तिवाए उई पुण धम्म (१०००)चिताए॥१॥ आर्यके उपसमो तिलिपसता भरगतीम् । पागिश्या ताहेत सरीरचोपडेयणहाएRI बीसं पुण पुजुत्ता ते पेव य उम्गमाविणो होति। एते सबै मिलिया गउनि खलु हॉति उपपाताल०५६॥३॥ आसीतं ठाणसतं जस्स विसोहीए होति उपलब। सो जाणती विसोहि उमपातं चापि उनहिस्सा ल०५९॥४॥ पाउति उपधाता खलु तलियमेत्तावि अणुवघाताचि । एए दोषिणवि मिलिना आसीन होति तागसतं ॥3०५७॥५॥ एवं चिप आसीयं सयं १०८रपाकम्पमाप्यं मुनि दीपरळसागर अनुक्रम INT [०८५०] ~21~ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ----------- भाष्यं [०८९६] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं Sharp4 प्रत सूत्रांक [०८९६] तमामाची तु सच्चसंजोगा। मे. जजलद । तम्भिाशणाय मो त कमलो मुणेयथयो दीप जिणधरमजउनहीहि । मुणित होहम संसा जहकमे तु ठाणार्ण ॥ स०५८॥६॥दो च सहस्साई सकसय चेष जस्स उसलाई सो जाणती विसोहि उपधात पारिणिकाये ॥७॥ दो ठाणसहस्साई पचेव सयाई होति वीसाई। सो जामती विसोहिं उपचातं बावि बेरार्ण ॥८॥ पत्तारि सहस्साई पंचेव सयाई होलि पणाई। सो जापती विसोहिं उपघात व अजाणं ॥९॥एसो उ सोलसचिहो अजीवकप्पो समासतो अणितो। एतो य मीसकर्ण बोच्छामि अहाणुपुबीए॥९००॥ एत्तो छहि सोलसहि य दोहिवि निष्फलती तु जो कप्पो। दुगसंजोगादीओ सदो सो मीसओ कप्पो ॥१॥ पवावण मुंडावण सिक्खोबहे प भुज संचासे । एते हुणायच्या आहारुवहादि सोलसयं ॥२॥ दुगसंजोगादीया सचित्तचित्तमीसकप्पाण। पत्तेय मीसमाविय गेयच्या आणपप्पीए॥३३ पचावे मुंडाये पवाये येय सइय सिक्खाये। पण्यावे उबठावे पथ्यावे व सं जे ॥४॥ पयाये संवास एवं मुंडायणा दुचरिमेहि। या दुगसंजोगा एवं सेसायि संजोगा ॥५॥ विचउपाठकजोगा एते सचिनदवियकप्पम्मि। पत्तेयं संजोगा एत्तो अबित्त बोच्यामि ॥६॥ आहारे उपाहिम्मि य आहार मह उपस्सए चेव। एवं जागफ्सछेदप ता आहारेण पारेजा ॥७॥एवं अबसेसासुवि उवधावीएसु उपरि उपरि तु । णेया बुगसंजोगा जा पच्छिमों सुविणहछेदों ॥ ८॥ एमेच सेसवाची तियगाईयापि सबसंजोगा। गेया जा सोलसगो एवं पत्तेय अचित्ते ॥९॥ चित्तेतराण दोन्हवि एतो संजोगता मुणेयवा। मीसगकणे णेया दुगमाड़ी सबसंजोगा॥९१०॥ पयाये आहारपि देह पयाचिएऽपि उबहिया पग्याचे उपस्समर्ण एवं जसवर्ण जाच ॥१॥ एतेग कमेणे सुगनिममावी तु सम्बसंजोगा। बच्चा जा पच्छिमों बावीसमो होड संजोगी ॥२॥ एतसि सध्यसि संलाणवणम्मि आणणोचाओ। पत्तेवमीसगाण य इमो तु कमसो मुणेयव्यो ॥३॥ एमादेगत्तरिया पदसंखपमागओ ठवेयमा। गुणगारमागहारा लेसि हेडा उ विपरीया | ॥४॥ पदम रूपं गुणए भागं च हरे होज जलाई । तम्मिगि पडिरासितगुणितभाइए जं भवे लखें ॥५॥ एवं ठाणं ठाणं पडिरासिवगुणितभजियलडाई। एमादीसंजोगाण होनि संल. प्पमाणाई ॥६॥ एकादीसंजोगाम होति एवं तु सबसणं दिई । एने सधे मिलिता तेसहि होनि संजोगा ॥७॥ एकगसंजोगादिस उपजते उजत्तिया भंगा । तेसि संलाणयणे करणं स इमं मुणेया ॥८॥ एकमसंजोगादिसु जत्तियमित्ता हरति ठाणा उ। तत्नियमेना दुयगा ठावेयजा कमेणं तु ॥९॥ पदिरासिय पढिरासिय अण्णोष्णेणम्भसाहिते यगा। जातिर ठाणं गणिएवं जामो संखा ॥ ९२० ॥ एक्गसंजोगादिसु एकेके भंगसंस वावतिया। सचिय एकादीहिं पुणरपि संजोगर्स गुणिता ॥१॥ पत्तेयं पत्ते एकगमादीण साजो-श मार्ण । सा होति भंगसंखा जहकमेणं मुणेया ॥२॥ कह भंग भयंतेत्य भणति दिक्लेक अहम बहुया उ। मुंटावणादि एवं इतिषठभंगाविचारणिया ॥ ३॥ पचयन सहिय पत्यारो होनि पत्थरेयतो। इमिणा लक्स तमह वोच्छ समासणं ॥४॥ भंगपमाणायामो गुरुओ लहुजी य अक्सपिक्सेलो। मना दुगुणा गुणो पत्यारे होति निक्सपो ॥५॥ एवं तक पायरिए पिण्यासु एकादिए उ संजोगे । जे जत्थ उ निवर्टति पचास ते नहिं सने ॥६॥ उकगसोलसगाणं जीचमजीवाण दोण्ह कप्पाणं । एकगसंजोगादीण संखपमाणं इमं होति । ॥७॥छ चेषय पण्णरसा नीसा पारस उक एकीया एकगसंजोगादी विहसचित्तकप्पम्मि ॥८॥ सोलस पीसं च सर्व पंचेच सवाई होति सहाई । अट्ठारस वीसाई तेयाल असहाई ॥९॥ अद्वेष सहस्साई अडहियाई अजीवछट्टम्मि । एकारस व सहस्सा चत्तारि सपा तहा पत्ता ॥९३० ॥ बारस चेष सहस्सा जद्वेष सया उसतरा होति। अहुमसंजोगम्मिपि उकमती एव जायेको॥१॥ सचिनवियफप्पो तेवही होति सहसंजोगा। पंच सता पणवीसा पाहि सहस्स अबिते ॥२॥ सचिनधिताणं एवं मणिपा तु सध्यसंजोगा। पत्तेय पत्तेयं । एलो मीसाण बोयामि॥॥अधिनायकाये संजोग पिपिहे टनेतृण । जितकप्रेषकगसंजोग गणित सिं फलामिणं न ॥ ४॥ उमाति संजोगा एगसंजोगमिमीसए कणे। सत्त सलामीसहिगा नियसंजोगाण पोरया ॥५॥ वित्तीस चेव सता सहहिगा तू चाउकसंजोगे। दस च सहस्साई गय वीसहिया य पंचमए ॥६॥ सीमसहस्साई दो पल सलाई अवअहियाई । अड्यालं च सहस्सा अहवाला होति सत्तमए॥७॥ अहहिसहस्साई उपेच सताई हॉनि चत्तारि। सत्तत्तरि सहस्सा दो चेव सया भये बीसा ॥८॥ एमेच उकमेणचि परमाउ परेण होति बोरगा। इण्हती जा सोले उचेव पवा मुगेवचा ॥९॥ एवं पणरस यवीस यदीसएण पणास्स उक एकेण। पत्तेय पत्तेयं मुणिएणं रासिणो मुणसु ॥९४०॥ दोणि सता पत्ताल अहार सवा व होति णायच्या । अदु सहस्सा पाउसय तातिए मीसम्मि संजोगा ॥१॥ सत्तावीस सहस्सा सिणि सता पेच होति णायला । पाणविसहस्साई पंच सया बीस अहिया य॥२॥ एकच सयसहस्स बीस सहस्सा सर्वच वीसहिये । एकत्तरि सहस्सा लक्सेको छरसता पेव ॥३॥ एकं च सतसहसं तेगाउन सहस्ससह य पाणासा। उकमतो सत्तेव व ठाणाई ततो व पाणरस ॥४॥ तिण्णी सता तु बीसा दोणि सहस्साई चउसयजुबाई। एकारस च सहस्सा दोणि सता चेव गायत्रा ॥ ५॥ उसीस सहस्साई चाउरो यसता यति णायचा। सत्तासीति सहस्सा तिणि सता पेप सहहिता ॥६॥ एकच सतसहस्सं सहि सहस्सा सयं च सही या दो लक्सा अडवीसा सहस्स अट्टेवय सपाई ॥७॥ दोन १७८२ पाकम्पमाप अनुक्रम [०८९६] मुगिटीपरसागर ~ 22~ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ------------ भाष्यं [०९४८] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं HERO4RANTARV8 प्रत सूत्रांक [०९४८] दीप व सयसहस्सा सनावणं भवे सहस्साई। चाउरो सय अट्ठमए ठाणा सत्तंतिमे वीसा ॥८॥जह पढमे तह पंचमे जह बीए तह पउत्पए रासी। एकगगुणकारे पुण सोलसमादीन जानेको॥९॥ अचित्तदपियकप्पे संजोगा सबपिडिता कातुं । जितकप्पेकादीहिं गुणिते फलासिणो मुणम् ॥ ९५० ॥ तिण्योच सतसहस्सा ठाणसहस्सा हति तेणउती। दो य सयाय दसहिता एकगसंजोगसंगुणिवा ॥१॥पर्व चेव सबसहस्सा लेसीति सहस्सा नहय पणुवीसा। चियसंजोगचाउकेऽवि एतिया चेव णायका॥२॥ सत्त सय बससहस्सा तेरस लपसा यश नियगसंजोगे। पंच व पढमसरिच्छा अचित्तपिंडो उ अंतिमए ॥३॥ जिवपिदेणं पिंडो अजीवकप्पस्स संगुणा नियमा। सो होति वापिंडो तस्स उ संखा इमा होति ॥४॥याल LE सतसहस्सा अट्ठावीस भये सहस्साई । सत्त सता पंचहिया ठाणाणं मीसकप्पम्मि ॥५॥ जियाजियभीसगाचं कपाणणेऽवि भंगसंजोगा। पनेय मीसगाविय गेयवा आणावीएच पञ्चायेको एक एको अणेगा अणेग एकचा गाणेगे व तहा पाउभंगो एव एकेके आएवं एक एकसि एकमनेगेवि एत्वनि नहेब। चउभंगो गयनो एक्कक्के गहन पदाणं ॥८॥ एक्केक्कसि पयाचे मुंडावे तु एक्कासि च । एत्य तु दुगसंजोगो चाउभंगो होति णायव्वो ॥९॥ एवं दुततियचतुपंचरस्कजोएहि जनिया जे तु। संजोगा भगायतका ते सने हानि गायब्बा ॥९६०॥ पच्चाचे मुंग पव्वापेगं च मुंडणेगे या गो एक्कंच नहा गाउणेगे य एमेव ॥१॥ एमेव सेसनाची दुगतिगचउपचक्कसंजोगा। दीवडणुगनव्या सम्वेवि जहक्कमेणं तु ॥२॥अबितेऽपिय एवं एपको एकस्स देवि आहार। एवं उवहीमादीसु सव्वेसुवि होति पउभंगा ॥३॥ दुगमादी संजोगा एल्वंपि तहेच ९ति विष्णेया एमेक्को एकसि आहारादीणि देजाहि ॥४॥ एवं दुगमादीया या एत्यपि सम्पसजोगा। एवं ता अघिते मीसेऽविय पुदिए जोए ॥५॥ एक्को पथ्यापक जाहारादी य देति एश्यऽपि नहेग । संजोगा सेयच्या जापनिया संभवे तत्थ ॥ ६॥ एसो तुदवियकप्पो तिपिहोऽपि समासतो समक्खातो। एनो समासतोऽहं बोचहामि उखेतकणं तु ॥ ॥ज देवलो. गसरिसं तिनं गिप्पचवाति जचा एसोतु खेतकप्पो देसा खलु अबउनीसं ॥ ल०६०॥८॥रायगिह मगह चंपा अंगातहवामलिनि चंगा या चणपुरं कलिंगा वाराणसि व कासी य९ साएय कोसला गतपुरं च कुरु सोरिय कुसहा या कपिल पंचाला अहिछत्ता जंगला चेव १॥९७०॥ बारवतीय सुरडा मिहिन विदेहा यवच्छ कोसंपी। गंदिपुरं सदिमा भरिलपुरमेन पालयायावयापच्छ वरणा अच्छा तह मत्तियाचति दसम्णा सोत्तिवमती यती वीतिनयं सिंधुसोवीरा २०॥२॥ महरा व मरणापाचा अंगी यमास पुरिहा। सापस्थी य कुणाला कोडीचरितं च लादा व ॥३॥ सेवरियाऽविय नगरी केततिअईच आरिय मणितं । जत्युप्पत्ति जिवाण चक्कीणं रामकिण्हाण ॥४॥ एतेम विहरियवं सेनेम | साभाचिए । जत्य य गुणा इमेत समाईया मुणेयच्या ५० सेमो सिवो मुभिक्सो अप्पप्पाणो उपस्सयमणुष्णो । एसो तु खेत्तकप्पो (पाखंडसेदमुको) मामनगरपट्टमाइणो 2 ...६३५९०६१॥६॥ सेमो डमरविरहितो रोगासिवविरहितो सिपो होति। पउरणपाणदेसो होइ ममिक्खो मुणेयष्यो ।ल०६२॥७॥ जलुगासंसणगमुहंगपिसुगमसमादिविरहितो जो नासो होनि अपपाणो अप अभापम्मि घेवे य॥ल.६३॥८॥समभूमिरेणुवनियरितक्रसमोरस्सया मणुष्णा उगामा गगरावि य बहु पाउग्गा मासकप्पस ॥ ल०६४॥९॥ सज(प्य)मजणो य महो जहियं च मणुष्णसाहजोणीओ। तारिखए खेत्तम्मी समग्णाओ विहारो तूल०६५॥९८०॥ सेमो व सियो यतहा खेमों सुभिपसा य एव संजोगा। या उस पदेस सलम वा आणुपुत्रीए ॥१॥ अहनोदयग्गिसाबदतकरयानभयपजिओ रम्मो। हिरवेक्सोऽविध जहियं समणगुणविद् य जय जणो॥६६॥२॥ एतानि चेच सेमाइयाणि आरीयखेनसहियाणि पुष्यभणियाणि जाणि तुताई सलु सत्त उर्वति ॥३॥ गाणस्स दसगस्स य चरणस्स य जत्थ णस्थि उपपाती। एसो तुसेनकषो जहियं च अगायणा गरिव ॥०६७॥४॥ उदमभयनुज्मणादी जह कोकणसिंधुतामलित्तादी। गथि जहिं अग्निभयं निरगिसाहम्मियगिहा बा ॥५॥ जहियं च सावयभयं सीहादीगंज विजए देसे। जहियं च णस्थि चोरा देवहीपंथमोसावी ॥६॥ वाला उसप्पगोणसमादी बोहिममयं च गरिव जहि । मणसो समाहिकारो सो रम्मो होति णायत्रो आसुरो अणण्णगम्मो जत्य गरिदो नहिं सहनिहा। साहाणे य पियाणति कुणतिय साहूण जो रक्तं ॥८॥ अहिरण्णसुवणेते छजीवणिकायसंजमे गिरता। जाणति जणो य एवं जस्य तु साहुन | गुणणिइस ॥ ०६८॥९॥ सज्झाओ जाहिं सुज्ाति कुदिहामिणो ण बावि जो होति। एसण इत्थी सोहीय जत्य तहिवं णिवासे तु ॥९९० ॥ जहितं च अणायतणा ण संति के पुग| अणानणा भणिता ? साहम्मि निष्णचित्ता मलत्तरदोसपडिसेवी ॥१॥एतेहिं जो देसो आइयो तह व जन्मतिथीहि । मधवाहनामा पुलिंबदेसा अणायतमा ॥२॥ एवारिसम्मि सेने अप्पडियन विहरिया तु आलंबणाई का तुइमाणि काउंग पिहरंति ॥३॥ वसही संचारो मत्त पाण पत्ये पडियाहे सेहा। सइदाय पुत्रसंधुय जसरहतेय परिबंधो॥..६४ाफामुया एसगिजा य, णिवाया व रितुस्समा। एरिता साहुपाउम्गा, वसही हुलमणहि ॥५॥ एमेच य संथारा कंवलदग्भादिवत्युनिष्फला। सयणासणा य जहियं सलमा जोम्मा यम १०८पाकापभाष्य मुनि दीपरनसागर अनुक्रम [०९४८] ~ 23~ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) "पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ------------ भाष्यं [०९९६] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं प्रत सूत्रांक [०९९६] दीप अनुक्रम [०९९६] साहूर्ण ॥ ६॥ मत्तं सुलभ मणं च एरिसं नास्थि अग्णहिं तस्य । जंगियभंगियमादी नहु सुलभा अचहि वस्था ॥ ७॥ पडिगहगाऽविध सुलमा सेहा यऽसत्य नस्थि खेतम्मिा अण्ण स्थ दुइभा तू तेण तु एत्यं बड़गुणं तु ॥८॥ सइदा आहारादी दिति व जीम्माणि संधुता वेष । पुरपच्छ विद्वभट्ठा य अण्णहि पथि एरिसमा ॥९॥ उपदमासकप्पेण बिहारो तंण असहहहमेहिं । संजमातपिराहन वर्चत गामअणुगाम ॥१०००॥णाचादीण यहाणी जोग खेतं तु मग्गमाणाणं । खेताओऽपिय खेल संकमणे पुषमसमाओ॥१॥जे णीयले दोसा मासंती परिचसेप ते चेत्र । एवं मासबिहार मण्णतो बहुविहे दोसे शाणो सहति विहारं तेण तु म विहरेति तस्स आणादी । मासोपार च लहुओ णीयाचासे य जे दोसा ॥३॥ ने सो पापति सचे एतेहालवणेहिं अच्छतो । कि एनतिगेवविसेसो भण्णती सुगम् ॥४॥गिकारणम्मि एवं पडिबंधो कारणम्मिणिदोसो। ते चेत्र अजयणाए पुणोऽनि सो पावती दोसे॥५॥ काणि पुण कारणाई जेहि चिज एगठामम्मि । भष्णति पुबुदिट्ठा जे खेमसिवादिया दारा ॥ ६॥ तेसि चिय पडियाया अखेमे असिब नह य दुरिभक्से। बहुपाणु-: पसओ या अमणुण्णी तु दयमादी ॥ ७॥ एतेहि कारणेहि एगद्वाणम्मि अच्छमाणा उ। जादि जयण न कुवंती ने बिय जीयादिया दोसा ॥८॥का पुण जयणा तहिय ? भण्णति 181 तिहि कारणेहि उठितस्स। अण्णउरस्सयभिक्खाविया तु जयणा मुणेयका ॥९॥ अक्लेममादिएसुवि अक्खेत्तेसुं तुकारणवसेणं । चिट्ठताणं सहियं इमानु जयणा मुणेया॥१०१०॥ अक्खेमेचि सति पुरं संपई पावि आसयंती उ । अक्लेमं पणत्या तहि खेम तो ग पिम्पच्छे ॥१॥ जदि असिन तु बहिदा तइया अच्छति ते वहि चेष । इम्भिोऽपि ण णिति यारा अहया साथ मिक्स ॥२॥ दुभिक्लें जयण तहियं अच्छते बानि जयण तह येव । बहुपाणे आउत्ता पंकमंते तु जयणाए ॥३॥ उपस्सएँ आउत्ता कुटमुहभूतीत वापिस संना । अण्णाए पतहीए ठवि समजवि य अमिक्वं ॥४॥ जा जय जयण जुजति अमणुण्णे उवस्सयस्मितं कुजा। कयवरसोहणमादी दुर्गधे गंध पकिरती ॥५॥ उदगभए थलगामे बलेच वसही सहित गिम्हति । अगिमाएँ मालबवे हम्मिततलगम्मिय वसति ॥६॥ रोगबहुले अपुच्छा मिचेजए चोरकिटणे ण तु विहरे । सत्येण वापि गच्छे ठातिय जस्थ गिरवायं ॥ ७॥ जहियं सावयदोसा (चा) साहियं एवाणितो ग गच्छेज्या । गेण्ह वसहिच गुसं गामस्स तु मज्झयारम्मि॥८॥ विजामंतादीहिं वाले गीति रातो गघि गच्छे। रायं च पण्णविती साहुगुणमजाणमागं तु ॥ ९॥ जय जगो मचि जाणति साहुगुने नहिं कहूंति साहुगुणे। परिभोग अकालम्मी रत्ति कुवंति सज्झायं ॥१०२०॥ तूरेण कुतित्थीएस पगेनी एसणं च पग्णपए । कुल(लग)डाइत्थीचरियाइया य पजति चरणवा ॥१॥ यजेज अणायतणा जाणादीणं च जस्थ उपधातो । एवं जहसमय से फरेज जपणं णियसमाणो | ॥२॥ एसो नु खेत्तकपो उस्सम्पावनायसैजुतो भणितो। एतो उकालकर्ष चोच्छामि जहकमेणं तु ॥३॥ मासे पजोसपणा युद्धाबास परियायकापो य । उस्सम्म पटिकमणे कितिकम्मे प पहिलेहा ।।..६५॥४॥ सज्झायमाणमिक्से भत्तपियारे तहेच सज्झाए। मिक्समणे य पवेसे एसा सल कालकप्पविही ।.:.६६॥५॥ पूर्व तमासकप्पो परुपितो सो गिसीहणामम्मिा चार तु हामवणा बणिज्जति मासे अतिरेगे ॥६॥ मासातीत बसतो क्सहीए सीएँ चेष मासलाई। तह भिक्खायरियाएबीयारे नह विचारे य॥ ७॥परिसाठी संधारे । सोसेनेसु होति मासलाई। चत्तारिय उपपाता संचारे अपरिसाडिस्मि ॥८॥ पंचेते मासिया खलु चाउम्मासं च मिलिय सोते। णय मास मासजीए उडुबवे संबसंतस्स लगा सुवासऽतीत बसहीत सेस होशित मिपसायरियादीसुजे भनिता मासऽतीतम्मि ॥१०३०॥ आरोषणा उ एसा काय परिणता अणिताणा एसो पोसणासामायारिपक्वामि। ॥ १॥ पजहेतु यासजोग बहिय। अपहलि बासुरिक्संता। जे अंतरा तु गिण्हे तं सा तेसि सेत्तीर्ण ॥२॥ अह पुण वचंताणं वासाजोगं तु अंतरा वास। आरख रहरगामे ण पश्यति । एगवसही य॥३॥ अण्णोष्णसुद्वितार्ण बहयो सागारिया ण तीरंति। परिहरितु वाहे बजे गुरुसागरियं गयरि एक अचसेस समायारी पजोसपणाए पनिय मिसीहे । सो गिरवससा इमम्मि दारम्मि णाया।५॥ मुदस्स तु जी पासो गइटी व गती तुकारणेणं तु। एसो तु युदयासो तस्स तु कालो इमो होनि ॥६॥ अंतीमुहल कालं जहण्यामुक्कोस पुत्रकोडीनु। मोनू गिहिपरियाग जं जस्सप आउगं तित्थे ॥७॥ मरणे अंतमुहत्तो देसूणा पुषकोडि कह होजा। जो तरुणो थिय समणो असमस्यो विहरितुं जातो ॥८॥ कदा-विजा परियं धोए तबस्सी, सत्तो तयो देसितो सिदिमम्मो। जहाविह संजम पालदत्ता, बीहाउणो हदवासस्स कालो।..६७॥९॥ विजा तु बारसंग करणं तस्स गहर्ण मुणेय मुन पार समाओ अभियमेना यायेचि ॥१०४०॥ पितु सुत्तत्थाई बार समा देसदसणंच की। परिय भंतेगई लापविएणं तु तिविहेणं ॥१॥ उपकरणसरिरिय एवं लिहित नाच होनि । उपकरणासाहो घरतिणय गिहए अहिय ०६९॥शा संपवणषितीजुलो अकिसो ण तु परवेहसारीरोपिस्सिदिओ तबस्सी पडत्यमादी तो चिसो(मो)।०७०॥३॥ कुर्वतेण अछित्ति गागादी देसिओ तुमोक्सपहो। सुत्तत्युबदेसेणं संजमियं संजमेनचा काऊग अबो(वायो)च्छित्तिबारस मासाई निममुजुत्तोहाउतो तुमरी पडिबजेऽभजयविहारं ॥५॥ अम्भुजयमचयंतो जगीयमीसो वा गच्छपडिपड़ो। अच्छति जुण्णमहतो कारणतो दावि अमोवि ॥६॥जंघाचले वली गेलो सहायतोब दोपडे । (२१) १०८४पाकापभाग्य मुनिटीपानसागर ~ 24~ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ------------ भाष्यं [१०४७] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य प्रत सूत्रांक [१०४७]] दीप - अहवावि उत्तम णिप्फत्ती चेव तरुणाणं ॥ ७॥ खेत्ताण व अर्कमे कपसलेहे व तरुणपरिकम्मे । एनेहि कारणेहिं बुड्ढावार्स वियाणाहि ॥८॥ केवतियं तु वयंतो खेतं कालेण विहरितुं अरिहो। केवतियं च अगरिहो मलाहीमो पुलवासी तु१॥९॥णिविडाऊण दुवे सुन्तं दातृण सुत्तबज चाएवं दिवइदमेगं अणुकंपादीसुची जतणा..६८॥१०५०॥ दोषिणवि सुनवाई दुवेत्ति जो जाति गाउए दोषिण । जाव तु मिक्खायला एस तु सपरकमो येरो॥१॥ एमेव अदाऊणं अत्यं अहवा अदातु दोणिनि तु । दो गाउयाई दोषणी पृष्णाए भिक्सवेल्याए ॥२॥ एवं दिवटमेगं च गाउयं तिथि होति एक्केवके । गमया तु मुणेयचा विहरणअरिहो स थेरो तु ॥३॥ एस सपरक्कमो तू जो पुण दाऊण उभय सुतं पा । गच्छेज अगाउय सपरक्कमों होति एसोचि॥४॥ सोते विहरती एतेसु गाउय दिवइदं या । जे जति गाउयं चिय तिम्हंपतेति पुइदाणं गाजेऽपि य गाउयम उभयं सुतं च दातु गच्छति। तेसगुकंपा तुइमो कायचा होति विचिहा उ॥६॥ विस्सामन उपकरणे भले पागे अलंबणे चेत्रातच विजागति कालं गंतु बाएति जो जत्थ।। अजयणा सुद्धालमें पगगादी सातु होनि गाया। जपरकम नु धेरै एतो वोच्छ समासेणं ॥८॥ खेतं तु अदगाउय कालेणं जार होति दिवसो उ। खेतेण य कालेण व जाणसु अपरकम धेरै ॥९॥ अपणो जस्सच जापति दोसो देहस्स जाव मनमहो। सो विहरति सेसो पुग अपाति मा दोन्हवि किलेसों ॥१०६०॥ भमो वा पित्तमुच्छा था, उद्धसासोब मुम्भति। गतिविरिए वऽसतम्मि, एवमादी णारीयति ॥१॥ गच्छपरिमाणतो तु सहायगा तस्स हॉति काया। सत्तेव जहण्यणेणं नेण परं होन्ति गावि ॥२॥ पडभागतिभागऽऽ सबेसि गच्छतो परीमाणं। संतासंतासंती बुढावासं वियाणाहि ॥३॥ अट्ठावीसं जहष्णेण, उस्कोसेणं सतग्गसो। गच्वंगडं समासन, चतुमागी विभायए॥४॥ जदि हाँति जहषीसं चतुहा गण्डो तु तो विभनति ता सत्त उ पडभागेण ते विजती सहाया तु ॥५॥ पुण्णम्मि मासे ते मिति, सत्न अण्णे उति तु। एवं अतिति णिति य, मास मासंमिसन तु ॥६॥ एवं दोसा न होती तु, उपहाणादि जे भो। दाणे तु अवीसाए, पउभागा विष(म)जिता ॥ ७॥ अट्ठावीस ऊणा दुहासतीए उ ते हजाहि। संताजसति अगीया पाला पडदा जजोग्गा बा ॥ ८॥ संतासतीए पुजति तत्तिया तेण 31 निणि दुणिको भागा उचिभइयमा इगनीखाचोडसत्तव्ह ॥९॥ दो संघाड अडली भिकलं एको यगेहए उपाहि बेर दुषेणी सत्तमु जयणेसा लिल(मिक्स)मादीम् ॥१०७०आबुइटावासे जयणा खेले काले बसहीय संथारे। खितम्मि णवगमादी हाणी जावेकमागो तु॥१॥धीरा कालच्छेद करेंति अपरक्कमा सहि घेरा । कालं च अश्विरीय करिति लिविहा नहिं जयणा ॥२॥ कालच्छेदो मासं अण्णा वसही तु भिक्समादीणि। अहस उपसंचउमासे सेवकवासामु ॥३॥ कालं अविपरीय उड़बजे वासपालियं ण करे। पासाबासे य तहा उडपर्व पानि । सकरिति॥४॥तिविह जयणेति इणमो तिपिहऽणुकंपा तु होति बुदस्सा जह कायया इनमो तमहं चोच्छ समासेणं ॥५॥आहारे जयणा पुत्ता, तस्स जोग य पाणए। पियया माया चेप, छऽवेताऽणेसणादिसु ॥ ६॥ काणिक पक आमे पिंडघरे चेष नह य दारुपरे। कटगे कदगतणपरे वोच्चत्ये हॉति पाउगुरुगा ॥७॥ कोहिमघरे बसतो आलिमिण बनाते तेणं । काणिहगादिगहरी ससाय निवातसही तु॥८॥ वसहि णिवेसण साही दुराणयणम्मि जो उ पाउम्गो । असतीय पाटिहारि मंगलकरणमिणीणेति ॥९॥ सही य अहासंबड पंपगपटोप चम्मरूपलो वा । चिश्माओ संचारी असतीय गिवेसणाठाने॥१०८०॥ असतीइ साहिवाडग(गड) सग्गामे पेपतह य परगामे। कोसदजोयणादी बनीसं जोयना जाच ॥१॥ घिरमउओं अपटिहारी घेत्तमोतस्त असति पडिहारी। पितिपजयादिफलग मंगलबुद्धी धरे जंतु॥२॥ केइ गिहल्या तं उस्सयादि अथिति ण परिभुजति। तं पणइया नु गिहिणो विति य एअम्ह मंगाई ॥३॥देजह नगर उणम्मि अचिवमहित पुगोवि जाहावं घेत्तृणं फल उस्सरविवसम्मि पेसति ॥४॥ पुग्णमि अप्पिणनी अग्णस्स बबुदयासिगो देति । मोतून उदयास आपजति चतुलहू सेसे ॥५॥ पटियरति मिला या सर्व गिलागोपि तस्यवि तहेव। भारियकुलेगु अच्छति असहाए रीबी दोसा ॥ ६॥ ओमादी तवसा वा अपएंतो दुम्मोवि एमेव । पटियन उत्तिम पडियरगा वावि तम्णिमा ॥७॥ तरुणाणं णिकत्ती आततरे चेच होति णायााकालियमुप विडिवाए नेसि कालोऽयमुकोसो ॥८॥ संपचार पसरते वारस बासाई कालियसुतस्स । सोलसय विहिवाते एसो उकोसतो कालो ॥९॥ बारस बासे गहियं तु कालिय सरति परिसमेगनासोलस भूनाचाते गहणं झरणं दस दुबे य॥१०९०० गहणारण कालियसुते पुधगते यदि एसिओ कालो। आयारकप्पणामे कालच्छेदोतु कतरेसिं? ॥१॥ आयारकप्पणामंनि मिसीह तय मासमुहक्टे। बासासु चउम्मार्स एसो कालो तु कतरेसि ॥२॥ मनिजोय-थेरेण समाणेणं कारणजातेण एतिलो कालो। अजाणे पण पुण गवगम्गहण तु सेसाणं ॥३॥ जिम्मवणवा एनेसिं चेय एयं तु कारणजायं। जेहिं उगुमेहि जुत्ता दिर्जते ते इमे होति। ४.जे गिव्हिां धारपिउंच जोगा, घेराण ते दिति बिजए तु। गिति ते ठागठिता सुहेणं, फिचरस्स करेशि सा॥५॥ आसज खेत्तकालं बह पाङग्गा ण संति सितानि च विभत्ताण समांदादी बह दोसा ॥६॥ जहचेच उत्तिम कसलेबस ठाति एमेचा तरुणपटिकम्म पुण रोगविमुक १०८५ बारम्बारका चपळerabad मनि पिरजसागर भी अनुक्रम [१०४७] ~25~ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ---------- भाष्यं [१०९७] -------- संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं प्रत सूत्रांक [१०९७] that दीप अनुक्रम [१०९७] बलविपढी ॥ ७॥ इदावासावीए कालादी तेण उगाहो सिविहो । आरवणे विसुद्धे उग्गहों कजि योओ॥८॥ कारण कुडडीगतो वासो नहि कारणे अतीयरिमा मति पतिभग्गा जे उ आयरिए उन्गाहो मस्थि ॥ दुबिहेवि कालतीने मासे चाउमास उम्महे छिण्णे । सचित्तादी छिमो आलंबणे तम्मि छिण्णम्मि ॥११०० ॥ कारणसमत्ति पुरजो जो जपाति उम्महे नहि होति सचिनादी शिविहे ग तस्स सहिय इर्म जातं ॥१॥ आगासकुच्छिपूरी उम्महपडिसेहियम्मि जो कालो। ण होति उमाहो सो कालदरी वा अण्णाओ ॥२॥ जह णाम कोनि पुरिसो ठाओ जाकासकुण्ठिपूरिपडे । गहु होति सोचि नित्तोऽमुत्तत्ता उवणओ एवं ॥३॥ कालनि अण्णा गिम्हाए जत्थ चरममास कतो । अण्णस्खेतइसतीए तस्य ठियाणीग्गही होति ॥४॥ एमेच यासतीते दस राया तिणि जाय उकोसो। वासणिमित्त ठितार्ण उम्गहों उम्मास उपकोसो॥५॥सक्कासमतीएवि रायडुपरचक्कअसिपादी। एतेहि कारणेहि तु उम्मही होतऽतीतेऽपि ॥६॥ एतेमु उम्गहेसु आमवणभाववित्त मणिएसा । अयमणों तु पगारो आभामणामते य॥ ॥ सुहसीलऽनुकंपानडिए यस संबंचि खरा मेलाणे । सचिले ससिहाए पाहिए धारण दिसासु ६९ तणुर्वपि णेच्छए दुरसं. सह चाखती सदा। सहसीलो एस अखाओ. सातागासमिस्सिती ॥५॥सासीसयाए सेह कोई पेसेज अण्णसाहुणे। पलिमेच मग्णतो दुक्तं खू सारखेर्ड ॥१११०॥ असहायरस पडेजा कोई अणुकंपचाएं सेहता जाबहीण व कोई पेसिना धम्मसहाए ॥१॥विजा सिइओ पा संबंधी अस्स फोति सचित्तं। समगो सयंम होजा खमगरसप पेसवेजाहि ॥२॥ देह व गिलाणगस्सा याचबहुताए असहाए। अहया सयं मिलाप्पो अचएंतो सारखे जे ॥३॥ पेसितस्स उससिहो असिहो पुग जस्स पेसिमो वस्सा एवं असंघरेणपि पेसियओ जह गिलाणेणं ॥४॥ कह दान पुणो मग्गति जम्हा सो अप्पभू तु दागरस। नम्हा तस्तायरिजो सम्मति सज्वनियादी वा ॥५॥ अहमा जाहे सयं चिय सो सेहो जाच होति गीयत्यो। तो जाणति आमनो अहवं पुषितयाणं तु॥५॥ उडपासबुडब्बासे एसो भणितो कालकापनिही। परिचायकालकप्पं एतो वोई समासेन ॥७॥को राविणितो होती? को नाची होति ओमराइपिओ। भष्णति सुणस विसेस रातिणियोमरातीर्ण 10 संजमसेदी अंगो जो उ ठितो सो भवे रायणिओ। जो बाहिं सो ओमो एवं अतिसेसिती जाणे ॥०७१॥९॥ तम्हा उउमस्याणं जो पुर्व ठावितो पएसंतासो होतीराइणिओजो पच्छा सो भये ओमो॥७२॥ ११२०॥ सामायसंजयाणवि सामइयं जस्स पुचमुचरित। सी होती रातिणितो इतरी ओमो मुणेयत्रो ॥8.७२ ॥ १॥ अठस्सास जहनी का. उस्सम्यो उ होति घोडजो। बहसहस्सुक्कोसो जहवा संवच्छ वापि ॥२॥ पडिकमर्ण देसिराइय पक्सिय पउमासि तय बरिसे या एतेसि वक्वाणं पुर्न आवस्सए भणितं ॥३॥ कितिकम्म काया काहे कति बानि होनहारते। एतेसि जाणवोच्छामि जहाणपुरीएशा पटिकमणे सज्झाए काउस्सम्गावराह पाहुणए।आलोयण संवरणे उनिमद्दे यवंदणयं ॥५॥ चत्तारि पदिकमणे किवकम्मा तिणि हॉनि सझाए । पुषहे अपराहे किडकम्मा चोदस हवंति ॥ ६॥ सभागते जिणार्थ पडिलेहणियाए आवरणकालो । पराणामयम्मी उनहिणा सो तुलेयत्रो ल०७४॥७॥ पढमचरिमाय णियमा सझाओ पोल्सीसु दिवराओ। साणं तु अत्य(इद)पोरिसि चितिचाए तं तु दिवसस्स ल०७५॥८॥ततिचाए पोक-3 सीए मिषसम्महणं तु होति कायई। सेसं च पमाणारी होति इमं तू समासे(गाणं ॥ ०७६॥९॥ पमाण काले आवस्सए य संघाडए य उचगरने। मत्सग काउस्सम्म जस्सय जोगो सपडियपसो॥११३०॥ भत्तहीणपि ओहे जह मगित तहेब होति एत्थंपि। एकल मतं रतिंचन कप्पए मोतुं ॥१॥ कालस्स पत्रिकामतुं माहे ताहे होति गंत। पीयार भीमसेस अकालो उबीयारे । ल. ७॥२॥षउसंसासुण कप्पति सज्माओ वासिमं तु काय वावरास दोसरि काउससम्मद्विता शन्ति ॥४.७८॥३॥ दिनमः झाए मिक्स शाति अभन्नहितो तु जो साह। रामओ मज्जिाओ गिरामोसं करिती उल०-७९॥४॥ पिक्समणं सह सरए पाउसकाले पनेस पुजुत्तो। एसो तु कालकप्पो भाये कार्य अतो वोच्ळं ॥५॥दसणणाणचरिने तपसेजमसमिपंचागुत्ति)हिं गुत्तो । हतरागदोस निम्ममसमदमणियमडिओ णिचं ...७०॥६॥ अणिगृहियबसविरितो परकमति जो जहत्तमाउनो। अनाहकमजुती गुणभावणभावणिकपो ।.७१ | रितीहि कुलिंगीणं ग य देवातीहिं जात भाषो। समाविमलो जापति समाराहि ते दणाणं दुवालसंग ते प य पपपर्ण तु संघो वा। गहनम्मी उजुत्तो परतो तह पच्छलो याचि ॥९॥ चरणे मिजुती मूलगुणेसु सउत्तरगणेसु । म य अतियारं कुणती पण्ठित्ते व सोहिकतं ॥११४० ॥ सवारसंगजुत्तो समितीसहितो तिगृत्तिमुत्तो या रागहोसणिइंता णिम्ममों मियते सरीरेऽपि ॥१॥ कोहं जिणति समाए मत्वमावीहिं सेसकालसेऽवि। रमणियमा दोऽयेक इंदियणोईदिया हॉति ॥२॥णाणादिएहिं अणिगृहितो तु कम्मरस गिजरवाए। उजमति परकमती घडात्रिय होति एगड्डा ॥३॥ जहसुते गिदिडो तह कुबति जोतु अप्यमाएंतो। सो जहुत्ती साहनूर्ण मतिमं नियाणिजा ॥४॥ अत्तहा मोक्खड्डाण तुमलोगादिहेतुगं कुणति। करण जोगविएणं जयणाजुत्तोत्ति अपवादे ॥५॥ मूलगुण उत्तरे या भावण पण१०८६ पत्रकल्पमाघ्यं - मुनि दीपानसागर त्यपि । एक तालिम तु काय सभण रथाल सरकार ~ 26~ Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ----------- भाष्यं [११४६] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य प्रत सूत्रांक [११४६] दीप अनुक्रम [११४६] वीस अगिचचादीया। मेनीपमोयकारुण्णममत्यादीहिं णिकंपोल ८॥६॥ एसो अभावकयो अहना णाणावित्रो पुगो निविहो। ईसण पढर्म भण्पति णागचरिना नदायना SR.८१॥७॥तो सणसवतु जेहिं पदेहिं तु होति उवपाती। ताई इमाई बो चिक्तमणादीणित कमेण ॥८॥ गितमण गमण भंजण सहिषयणे व एकवायलिए। सणणाणाभिगमे रायकुमारे गणहरे य॥ २॥९॥णिक्लमणे वितऽहं (अ)धो (वा)हाएनुणाततो भगये। एस्सिएपिण विक्से णिक्खने जेण साहणं ११५०॥ पूजासकार-N यी तेण पपत्तति कीस वावि जाणतो । तास्सिए गिक्वते जेणुदितो होति सकारो ॥१॥ण एवं वन सो बिय भगवन जाणए एवं । गहु भागुपभा नीरव खजोयषमाहि अतिसतितुं ॥२॥ गमगे तुरितं साहू गच्छंति अहो सुविट्ठ मिट्टणं । सणियं वयंति ने पत्तवेतु भाकिता ॥३॥ ते लोगरंजणट्टा सणियं गच्योग धम्मसदाए। ण प जुगपहाए । खल विपरीय सारणी माचे ॥४॥ जंपि कहिचि सतुरितं तपिच गेलण्णमादिकजेस। गच्छेतीत सुनिहिता बहुतरमाय मुणेऊण ल०८२॥ ५॥ मुंजति चित्तकम्महिना व सकादि बोडियादी याग तहा साहू एवं भासते दसणविरोही ॥६॥ कुकुडताए मोर्ण करति जगरंजणढताए । भावयत्र एवं साधू पुण गिजरहाए ॥ ७॥ पिय भासंति जती तंपिय कज मि थोष जयगाए। इस मुंच चिट्टङ पा गुरुमादीणं च पाउणे ॥८॥ समयपादो गुरुगो दियाण एसा तु देविका भासा । समणाण पागयं नू थीभासाए उपणिपदं । ल०८३७५॥ शतत्वपि सरियश्वर्ण सहिया चेव गवरि जाणेति । सबेसुऽणुमहहा इतरं पीबालमुढादी ॥११६०॥ विद्दुतो सिणपालीणियाणकरण होति फायत्रो । एवण कतो अगडी पापि ससो-12 वाण चितिएम ॥ ०८४ ॥१॥ततिएव तलागं तु तत्वमटे केयपटियमादीहि । तीरति उनमोनू जे वितिय उपकाग अभिगम ॥ ल.८५॥२॥ दुपदपाइपदमादी सबेसि तलाग होति अभिगम्मं । इय सबऽणुम्महत्यं सुतं गहितं गणहरेहिं गल०८६.३॥ सव्वात्य वेदसत्यं चरणे करणे व पढम (एग)वादणियं । विचरीयं समगाणं भाक्तिो देसणपिराही 1॥४॥ तस्यवि भावेपर्व सो शिव अस्थो तु होति साम्याव)सि। सामुदसिधवादी जह लवणसहाव सव्येवि ॥५॥ ईसणपभावगाई अड्या गाणे अहिनमाणं तु। अतह परहा बा जहकालभ गेष्ट पणहाणी ॥६॥मिक्सुन्नि जं पड़म्मी भणितं जे बाचि तंणिमिनेणं । गच्छतो कि सेवे? असदहंतो अणाराही ॥ ७॥ पयज अपपंचम रायसुतस्स तु दाइगभएणं । राजा उसमणुजाणति अंले परिणीतों सोतेण ॥८॥ तत्वविय फासुमोती मुत्तत्थाई कौत अच्छति । जणइन सुतेक्केरके अमडलक्साम इत्थीस.॥ ने रजेस तापिय पुणरवि गति गुरुसमी तु आलोदय णिस्साहा कवपत्तिाण तो तेसि ॥११७०॥ संकप्पियाणि पुरि आयरियादी पदाणि गुरुणा तु। पच्छागलाण ताण य नाहिसे चेन दिण्णाई ॥१॥ परियायसम्मिणिरुद गं दिग्ण तगं तु जो न सदइति। सुइसमुदितस्स जंपा कीरति तू रायपुत्तस्स २॥ तस्यवि भाषेनेवं पत्तिकडाई त हि घेराम। रायसुतदिक्खिनेण य उम्भाचम यययणे व होति ॥ ३ ॥ असा जप कीरति अजालमुदस्स पर गुरुणो ताएये असदहते चिराहगा इसणे होति ॥४॥ तस्यपि भावेया जेणाय कई तु ते ससे। अमसावि काय गिलाण-AL गस्त उबदेसो ॥५॥ इति एस समासेणं ईसणकम्पो नु आहितो एन। एनो तुणाणकर्ष बोल्छामि अहाणुपुषीए ३६॥ मुत्तुदेसे वायण पदिच्छ पुच्छ परिवह अणुपेहा। आवस्पि3-14 परमाया अह होनितुसुतकापविही...७३॥आआपारमादिकात सुर्य तुजा होति दिविवादोता अंगार्णगपविई कालियमकालियं या पुण सर्वपि भवे संपाइसमुद्वियं वणिजई। पत्तेपदभासित अब समत्तीय होजाहि ॥ ९॥ ससमयवाद संवादमाह जह केसिगोचमिनाती । पाणवणावसकालियजीवाभिगमावि गिजूद ॥ ११८० ॥ पलेयबुबभासिय: इसिभासियमादिगं मुणेयम् । केवलणाणसमतीय भासिता चोइस उपुवा ॥१॥ एतं सुतं तुज जत्थ सिक्खिन जेग जह तु जोगेणं । न तह थिय वाय एलो खल अज्झायणकप्पो ॥२॥ एवं पुण मुलणाणं पावणजोगं तु जारिस होति । तं पोछामी अहुणा मुत्तस्स प लसणं जंतु ॥ ३॥ जिन परिजित अमिलिनं अविचामेलियं अबाबिई । घोस णिकाइय ई-18 हिय सुषिमग्गिय हेतुसम्माये ॥... फुडविसदसुदर्वजणपदमस्वरसंधिकारणमर्म । पादप्पयाशुलोमं गिउत्तरोनि सुषकप्पो ..७ निपुर्ण विपुलं सुखं गिकाइयं - स्थती सुपरिसुदं । हितणिस्सेसफर दिवढणं फलमुबारजुन ...७६॥६॥ सगणामं वजितं खलु परिजिय हेदवार उपस्तिो हेडा। मिलिने उधण्णणानं विचामेलो उ अन्यो । ॥ ७॥ अनायदेसाणं सुने मीसति कोलिपयस वा। संचपय हेदवार वापिदे आपलीणातं ॥ ८॥ पोस उदत्तादीया पिकाइयऽसंबसिदि(इ)परिसुद। ईहित सयं मसीए विद्यारित एवं गेपनी ? ॥९॥ साहम्भिायपेहम्मियहउहि मग्गिजो उ सम्भावो। जस्स तु सुतस्स भो त होति सुदिसम्भावं ॥११९० ॥ गिसदिव फुट खलु संजुल पावि पुषमवर चरमे) विसई अणिगृढत्थं पंजणमुदं साउवचारं ॥१॥ अत्युवलदी जत्य तु न होति पदं तु अक्सरा पचा। संघी संबंधो खलु सुना सुत्तम्स जो कोति ॥२॥ एतेहि गुणमहिलं पावा तु सिलोगमारिणं हॉलि। गजम्मि य पदसला अणुलोम जण पहिलोमं ॥३॥ पुखिक परिक्षण जंग विरुजावितु तं बहा नहियं । अस्येण जोइयं न पिउत्तमेतारिस होति ॥ ४॥ नयहे. १८८७पप्रकल्पमाप्यं - मुनिटीपरनसागर ~ 27~ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) "पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ----------- भाष्यं [११९५] ----- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं मारूण तुला एवं पुट्टो सोऽपिय वदेज एगा एयरोसनिमुक्क तु आगतालोभए पनि र गुणवार चयाबारकप्पणामे सीस पनादिय इमे उRE काले या रिक कालमा भित्तियादि पु प्रत सूत्रांक [११९५] YOTI दीप अनुक्रम [११९५] तनावभंगियाणिवादी अत्यो यणिउण तापिस्थियात्य विडले मूगादीचायणाहिं च ॥५॥ सुदं तु सुग्गिहीत अलिबादीबोलपजियं यानि। अत्येमि(ण)काइय लाल पिकाइयं अब धर्ण॥६॥ अविरुदों अक्सरेहिं जस्सऽत्यो तह य समयमविरुदे। अस्थतो विसुदं हितं तु इहलोयपरलोए ॥७॥ अहियं सेवकर त निस्सेसकर तय मुगेया। उत्पनीमारीण बरी बुद्धीण विवर्ण जंतु ॥८॥ तस्स कलंतु उदार अबाबाह अणोचमं सोक्खं । एसो तु सुत्तकप्पो एतो बोच्छामि उदेस ॥९॥ उदिसियव उपहिएं अणुवहित उदिसत चतुलहुगा। अपलोइएऽवि लहुगा तम्हा जालोइउदिसणा ॥१२०० ॥ आलोयणा य विगए खेत दिसामिग्गहे व काले य। रिक्सगुणसंपदाऽपिय अभिवाहारे य अहमए ।..आ१॥ अण्णगणागत पुच्छे केवाय सहायगा गुरूर्ण ता एवं पुट्टो सोऽपिय पदेन एनादिय इमे उ ॥२॥ एगे अपरिणते या, अप्पाहारे य धेरए। मिलाणे बहरोगे य, मंदधम्म य पाहडे ॥३॥ एतारिस विउसने आगतते सोहि होति पुक्षुत्ता। आयारकप्पणामे सीस पडिच्छे य जायरिए ॥४॥ एपोसबिमुक्कं तु आगतालोडए पहिच्छति। आलोयणा तु एसा सेता दारा जहाज मापासे ॥५॥णपरि कालदार गुणदार व इंसि भासिस । अंगसुयक्रसंचाणं उदेसा सुक्वपक्सम्मि ॥६॥ पपत्तिमहाकप्पे मुतादि सरदे समिक्खकालम्मिा मितियादि पूछिय उदि. सणा होति कायया ॥७॥ सेसं कालनिहाणं तु तं तु होति माय । केहि गुणेहि जुतस्स तु उहिसियाई? इमे मुणसु ॥ ८॥ बोच्छित्ती संवेगविणयउपवेयरजभीमरस । पुतण्हे जोगसमृहितस्स उद्देसणाकप्पो ॥ ९॥ वायगवाइजते गुणा तु बायणविहिं च योच्छामि। वायगयाविजते गुणाण बारा इमे होति ॥ १२१०॥ अप्पणो य ददा रुखा, विपुलो यतहा. जगमो सुबमाणस व पूजा, जिगाच ठिदेव(णात)बुच्छाहो ॥ ७८॥१॥ उम्मन्ग नचंतो अप्पा रक्सिजते तु णियमेणं। सुहाविद्वतेणं सतवाचारोवओगेण ॥.:.७९॥२॥ उवातस्स तबड़े गिजरलाभो तपो य विउलो उ। इंदियपणिही य तहा पसत्यमाणोवजोगो य॥३॥ जं अचाणी कम्म सनेह पहुचाहि पासकोडीहित नाणी तिहिं गुत्तो सरह उस्सासमेरोगं ॥४॥बारसबिहम्मिवि तवे सम्भितरवाहिरे कुसलदिवे । णपि अस्थि णचि य होही सज्झायसमं तवोकम् ॥ ५॥ सुयगाणुपदेसेणं पाईतेणं च गिव्हगेणं च। सुतपूजा होति कया नयजित होति पार्यते ॥ ल०८७॥६॥ सुपपूजाए व पुणो सुतोवएसेण बहमाणेण। पाएंतम(ग)हिर्जत आणा तु कता जिगिंदाणं ॥ ७॥ सुयणाणुपदेसेर्ण वार्यता गिहतोय पतेहि। चहजति तेतु चतरमादीहि देहि ॥८॥चायणगुणा तु एले समासो पग्णिता मए कमसो। वायणपिहित एनो वोच्छामि अहाणपुचीए ॥९॥ अत्ताण परित पुरिसं हितऽणिस्सिय परिजित जिर्य काले। विद्वत्थं कुडवंजण णिशावण णिवणसुई।...८०॥१२२० ॥ क्युसी चियपुत्तो सो स्यणपरिए दोभासे । देवीआमरणविही रिता हाँति आयरिए .:.c९॥१॥ अत्तागं तु तुलेती सत्तो मिग पत्ति पायर्ण दातुं । जाणेजा पुरिसेऽपिय जो पेनुं जत्तियं तरति ॥२॥ बहूयं चेत्तु समत्वे बहु देवी अप गिव्हते अपं । विचामेलणदोसो अतिबहते तस्स विनंते ॥३॥ परिणाम अपरिणामा अतिपरिणामा यतिविह पुरिसा तुणाऊ छेदसुर्व परिणामगे होति दायन ॥४॥ह परलोगे व हितं अपिस्सिर्य जंतु गिजरद्वाए।म उ बाद गारवेणं आहारावी नदहाए ॥५॥ उकाइतोपदय परिजियं तु जिय एष जगुणयंतेवि।कालित्ति कालियादी कालो जो जस्स तं तहि ॥६॥ जस्सपि जापति डा अयं विद्वत्वं तु मणती सुर्त। कुडवियाजर्ण तू क्षणचिसुवं मया ॥७॥त होती निववर्ण जो बाएंतो तुम्हादि उपाए। निजहणत्तमे जो अक्सित्तो उणिवहति ॥८॥ उसारामे उसे पूर्व ग पोएं आगते कदए। जाब पलोए ताच तुका विपरिणत अगहि गिण्हे ॥९॥ एवं जो आपरिमो पुट्टी संतो विचितयति अत्यं। विपरिणमित तस्स तु सीसा बचंति अन्नत्य ॥१२३०॥जह मुनगाभागी आरामी सो तहिं तु संयुत्तो। वह गिजरमणभागी आयरिओ होति एवं तु ॥१॥जेण पुण पुरविट्ठा तउसा आरामिएण होति नहि। सो देति लहुँ तउसे मुतस्स प होति आभागी ॥२॥ एवं आयरिए जेणइत्यो पुति चितिमा होति। सो पाएवि लहलहुँ गिजरभागी य होएवं ॥ एमेप गंचिपुते जाणमजाणे य गंधमाणे ता आभागी अपनागी उपसंधारोऽपिय तहेन । सेणियपिवस्स हत्थी संतुयमच्छेण गहिजो जलमज्ो। सिरिपरिओं वओमार्स मग्गिजों णवि जाणि काय कओ?॥५॥ जा मावि वा हत्थी पडितोरणा विणासिओ परिओ। पितिओ मम्गितों दिलंमि तपसमा मोइते पूया ॥६॥ एमेवायरियम्मिवि उपसंचारो तहेव काययो। चितमसमयाकरण णिजरलामे अलामे य॥७॥ मी दो देवीओ पेसडी पडभी य हायति। पेलली हाराये आमरणे बातमीए तु॥८॥जह पेही आभरणे आचासे सह इमपि गाया। उपसंचारो तह चियापरिए होतिकापोरा एवं ना बाएंतो भगिती अहूना पहिचान बोच्छ। जारिसगुणेहिं जती पाएपको तु सो होति ॥१२४० ॥ अणरत्तो भसिमतो अतितिको अवलो अल्दो या अक्सित्ताउत्तो कालण्णू पंजलिउडो य॥:.८२॥१॥ संविग्गो महविओ अमुती अगुवत्ततो विसेसष्णू । उजुत्तमपरिसंती इच्छितमत्य लमति साहु॥...८३३२॥ जो तु अपाइनंतो जरुज्झ(रूस)ती जह मम ण बाएति। सो होई अणुरतो मत्ती पुष होइ सेवा उ ॥३॥ मज्झन देइति न जो तिबुरुकहूं व तडतडे दिवस । न य आहारादीसुंसदमायोड तितिणो एसो॥४॥ गइठाणभाषमासादिएहिं नवि कुणा चंचलतं तु । गाणंगणिजोन भये अर्चचलो सो मुणेययो॥५॥आहारातुकोसे जो लपूर्ण तयं न असले। एस (२७२) T१०८टपकल्पभाष्यं - मुनि दीपरनसागर कारखएम्प सो अरष्णा पटिन्छन यो प्रा अनुवत्ततो विसरण । उत्तम सातडे दि ~ 28~ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ---------- भाष्यं [१२४६] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं प्रत सूत्रांक [१२४६] मलदो वरखेवणातु सहादिविसएसु ॥६॥लीहालेगमादी जो य पर्वतो ण करति बक्सेन। अक्सित्तो एसो जाउत्तों अगष्णमणसोतु ॥ ७॥ आहाराही काले कालण्णू होनि उवणयंतो ज। सुत्तत्यं गिण्हतो कुण अंजलि पंजलिकहो तु 10 संविग्गो दो मिगो माये मूलत्तरेस तु जयंतो। मदविओ जोऽमाणी अमुयी विसमतणेऽवि जो ण मुए ॥५॥ आगाइंगितेहि गातुं हियाछित उपरिहति । गुरुवर्ण चाणुलोमे एसो अणुबत्तओ णामं ॥ १२५० ॥ जाणति तु जो विसेस हिताहितादीण सो विसेसण। णवि होति णिबिसेसो समर्थ- 12 दणलेलुचिक्स्वानो ॥१॥ उजुत्तो उ अगलसो अप्परितंतोतु धूलभर इच। सुत्तत्य गिजराओ मोक्सो वा इच्छिवत्यो तु॥२॥ पुच्छणकप्पो हुणा जाति पुच्छिज सकियादितु। ताति भण्णति इणमो अहम भाणुपुबीए ॥३॥ पदमावरमुद्देस संधी मुत्तस्य तदुभयं या पोस णिकाइस इंहित मुविमगित हेतुसम्भावं ..८४ पदमादी जा चोसो पुनस्थान हॉति एते सोषि। हिययम्मि णिकाएर पुच्छति तु णिकाइयं एवं ॥५॥ पुकारेण इंहिन एव मए एक होति ण व होति ? हेतूहि कारणेहि न सुचिमम्मिय एव तु मएत्ति ॥६॥ सम्भाचो अत्यो खलु संदिवाईतु पुच्छते ताई। एयाई चिय कमसो परियडू व अणुपेहे ॥ ७॥ णा तु अहीय केरिसयार्ण समीय समणेणं । आपरिउपझाया तमहं पुच्छ समासेणं ॥ ८॥ उगमउपायणएसणाएं जिरवेक्सी जीवपटिसेची। सुत्ते अदिवसारो आयरिओ ण कापती सो उ॥९॥ उम्गमउपायणएसणाइ साविक्यों णितियपरिकजी मुरा-101 मि दिसारो आयरिओ कप्पई सो उ॥...८५॥१२६०॥ सुनस्स सारों अत्यो सो विही होति जेण बुद्धीए । सो होनि विडसारो आवरिओ तू मुणेयचो ॥8.८८ ॥१॥ एमेष उपशाओ गुणेहिं जुत्तों तु होति णायब्यो । एतेसि तु सकासे सुत्तत्या होति पेत्तव्या ॥२॥ आवरिषउपज्झाया णाणुण्णाया जिणेहि सिप्पहा। णाणे चरणे जोयाचगनि नो ने अणु-म प्याता ॥३॥ एसो दुणाणकप्पो जहरूमं वणितो समासणं। एचो परित्तकप्पं बोच्छामि अहाणपुरीए ॥४॥ जम्हा चरिजते तू परियं वा तेण तो चरितं तु । व पुण अप्पडिसवेर सुबमरावं तु पहिसेवे ॥५॥ परिसेपणा तु दुरिहा कप्पे दप्येय होति णायचा । एतेसि तु विमासा जह भणिय णिसीहणामम्मि ॥६॥ एसो चरितकापी छविहरुप्पो व एस अपसा ओ। सत्तविहकप्पमेतो वोठामि अहकमेणं तु॥७॥ ठितमद्वितजिगचेरे लिंगे उपही तहेब संभोंने। एसो तु सलकप्पो यथ्यो आणपुच्चीए ॥ .:.८६॥८॥ ठियमहितकापाणं होतिल विसेसो इमो मुयम्यो । पुरपच्छिमाग व ठिओ अठित्रो पुण मजिामजिणाणं ॥९॥ कतिताणेहिं ठितो खल ठितकप्पो होति त मुणेयच्चो । काहि अद्वितकप्यो ? ठिताठितो । होति चोदनो ॥१२७०॥ दसठाणठिती कप्पो पुरिमस्सयपच्छिमस्सय जिणस्सा कतरे दस ठागातू? भण्णतिआवेलगाइ इमे॥१॥आपला(ठ)कोहेसिय सेजातस्रायपिटनितिकम्।। जेपदिकमणे मासं पजोसणाकप्पे॥...८७४२॥ एतेहिं दसहि ठितो तितकप्पो होति तु मुणेयो। चाहिं ठितो एहिं अठितो अद्वितकप्पो पुण इमेहिं ॥३॥ सिजातरपिंडे या ba कितिकम्मे चेन चाउजामे या राइणियपुरिस हो चउसुपि एतेसु होति ठितो ॥४॥ आचेलकुदलिय शिवपिंडे चेय नह पडिकमणे। मासे पजोसपणा उप्पेराउँणपहिता कप्पा ॥५॥ दुविहो होति अचेलो संताचेलो पसंतचेतो या तित्यकारऽसंतचेला असतवेला भवे सेसा ॥६॥ विहो होइ अचेलो पडिमाचेलो तहा परिनुग्णो। पडिमाचेलो दुनिहो साक्लो चेच मिरपेक्सी॥ आभिमनो अचोलपहो पिरपरसो सो भये अचेलो उाणिगणो सचोलपहो सापेक्खो सो पण अचेटो।वाणिमिणो गिवसणो अपणो अचेतो व अकतिपदी या पहिमाचेलस्सेए नामा एगहिया हॉति ॥९॥ उम्गमउप्पाथणएसणाए जदि हुँति अपरिसुबाई। मोलगस्याणि तापितु अपरिजुण्याई पेलाई ॥१२८०॥ उगमउपायणएसणाए जदि हुँति सुपरिसुवाई। मोडलहुवाणि ताणि तु परिजुण्णाईतु चेलाई ॥१॥ एतो सावजाई चेलाई संजमोवपानीणि। नजिता विहरतो होइ अचेलो अपरिजुषणो ॥२॥णिगहितराग-5 दोसो अणपजेहि महापरिहि। अपेहिदि विहरतो होति अचेलो उपरिजुग्णी ॥३॥णिरुवहतलिंगभेदे गुच्या कापायकारणजाते। मेलण्णरोगलोए सरिरपियेगेय कितिकम्मे ॥४॥ असिवे ओमोवरिए रायडे पचादिरे वा। आगाढे अण्णलिंग कारपसेपो गमर्ण वा ॥५॥ सालीपतगुलगोरस गयेस पतीफले जातेसु । दामदु करणसहदा आहाकम्मे गिर्मगणना ॥६॥ आहा आहे य कम्मे आवाहम्मे य अत्तकम्मे या तं पुण आहाकम्म णाया पती कस्स?॥७॥ संघस्स पुरिमपचिडमसमणाणं तह य च समजीणं। पाउरो उचासमागं पच्छा सण्णायमागमणं ॥८॥ संपरस मज्झिमे पथिहमे यसममाण तह य समणीर्ण। चाउरो पहिस्सतार्थ पच्छा सम्णायगागमणं ॥ ९॥ उजुयजइहा सो पुरिमा चरिमा य वाजता उम्दा तेति संरक्सगढ़ सर्व पडिकुह । १२९० ॥ अपगतजना मािमसाह वह येव से परिणमंति। कपाकप इंसिप तेसि बॉय परिका ॥१॥ पुरिमाण दुषिसोझो परिमाण(मो पुण) गुरगुपालओ कप्पो । मज्झो विसुदचरणो एवं कप्पोऽणुगंतव्चो ॥२॥ आयरिए अभिसेगे मिक्सुम्मि गिलागमम्मि भयणा तु । तिपसुनो अहचिपबेस पउपरियडे तमो गहणं ॥३॥ असिवे जोमोवरिए रायढे पचादिदुढे वा। अदाणे गेलणे आहाकम तु जयमाए॥४॥जदि सच्चे गीयत्या वाहे आलोयगोग्गहे मणिता। १०८९ पाकल्पनायं - अनि दीपनसागर CRET4NTARVERanga दीप अनुक्रम [१२४६] ४२॥ एतेहि दसहि नि ठितो.५॥ आचेल स्कातिहा होइ अचेलो घडिमावेली ताणो अवसणो अचेल ~29~ Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ------------ भाष्यं [१२९५] ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं प्रत सूत्रांक [१२९५] दीप अहहोति मीसगजणी पायभित्तं चोकम् ॥५॥ चतुरो पडत्यम आयामेगासणे व पुरिमड्ढे। णिनिइयं दायनं सतच पुच्चोमगह कुजा ॥६॥ संपल्सोहविभागो समगा समनी चकुलगणसोय कदामिह ठिते ण कप्पद अहितकणे जमुदिस्त ॥ ७ ॥ आयरिए अभिसेगे भिक्युम्मि गिलाणगम्मि भयणा नु । अरविपनेसे असती तियपरियई ततो गहणं ॥८॥ विस्थगत्पटिकहो आणा अनावउम्गमोऽविय न मुज्झे । अविमुत्ति जलापता दुजमसेजा विउच्छेदो ॥९॥ विहे गेलण्णम्मी णिमंतणे दव्यबादमे जसिवे । अवमोदरिय पदोसे भए 3 बगहणं अणुणाचं ॥१३.०॥ तितो यससि परिसिं जीवनम्मि कडजोगी। दन्नस बहालमता सागारियसेवणा दचे ॥१॥ मशि समिसिले मदितो जो होति जोगिसिहो तु। अभिसित्तो य पोहिं सर्व मरहो जहा राया ॥२॥ ईसरतलवरमाईपिएहिं सेट्ठीहिं सत्यवाहेहिं । णितेहिं अतितेहि य पाधानी होति साधुरस ॥३॥ लोभे एसणपाते संकान तेगे परिलमेरेयानमणिच्छत पाउन्माला भने गुरुगा ॥४॥ अण्णेचि ९ति दोसा आइपणे मुम्म स्यण इत्थीए । तणिस्साएं पपेसो लिरिक्रसमणुया मते हा ॥५॥ दुल्हेि मेंसण्णम्मिपि गिमंतणा दश दशमे असिने। ओमोदरिय पोले भए यमहर्ग अण्णायं ॥६॥ पढमं जम्मुडाणं कितिकम्म अजसेवियमुबारा काय करसव केण वाचि काहे कहा खुनो॥७॥ विगो सासणे मूलं. (आय. १२२८).८॥ जम्हा विणयति कम्म०(आच० १२२९)॥९॥ पुवामेव य विनो०(१) गाहा ॥१३१०॥ आयार पिणय कप्पा गुणदीवणा अत्तसोही उजुभायो। अजय मदर लायब तही पाहायकरणं च ॥१॥ लहुजो गुरुओ मासो लजुमा गुरुया भवे चउम्मासा। सुबग भिक्खूबसमे आयरिए अदुव विवरीयं ॥२॥ जरिसुतो जरिफल निक्समए जिपसमिपा एति। नदिसुनो तवेर सो गुरुगो समुइति ॥ ३॥ पसहीय भित्रमासो काायभूमीय मासिय सहय। पत्तारिय सकिलया ओ-सी गाइनमा पहियाएVानिपर पसभापरिया अजा ओचासगा व इत्थीओ। बादी राया संघो राया संघो उभयओपि (संधारओ य संघार विभय रह) ॥५॥ बहुमो गुरुओ मासो लहगा गरुमा भये यतुम्मासा। उम्मासा गुरुगा छेदो मूल तह दुर्गच॥६॥ बंदण चिति कितिकम्म पुयाकम्मं च विनयकम्म चा काय करसव केण चाचिकाहेबकतिसुनो! ॥७॥ कतिओणव०(आय. १९१५)॥८॥सेदीसमतीताणं फिनिकम्मे जे यहोति सेडिमता। सेदीयवादिसणं किविकम्मं होति भइयः ॥९॥आयरिषउपाए पवित्ति पने-8 यद पुत्रधरे। केवलणागधरम्मि य काय गिजरहाए॥१३२०॥ सेटीटाणे सीमाकने पनारि पाहिरा होति । सेतीहाणे दुगभेद पाय बत्तारिणी माझ्या ॥१॥ पत्तेयाद जिणकप्पिया य सुदपरिहारिया अहारदा । एते चतुरो दुगदुग मेया कजेसु चाहिरगा ॥२॥ अनोचि होति भयना ओमे आपण संजती सेहे। बाहिपि होति भयणा अतिवा(पा)लग पायए सीसीखापतितोऽपि पावयणि गणहिताए अमरम्मिाकरजोगि सतिसेवति आदिणियंठोर सो पूजो ॥४॥ संकिग्णवराहपते अणाणताची यहोति अकराहे। 3. नरगुणपहिसेती आपणनिजी वनो ॥५॥ गच्छपरिसखणहा अभागतं आउनागकुसलस्स । एसा गणादिपरिणी सुहसीलगनेसणा मणिता ॥ ॥ इदि फितिकम्मम्मी पाउ. लिया मो णिसह दीया। आदिपडिसेवियम्मी उचरि आलोचना बहुला 10 मुरुपुराए(सं) (आच०११३८)दा पायाए गमुकारो०(आर.११३९)॥९॥ एताति अकुर्वतो. (आर.११४०) ॥११३०॥ परिवाय महादुर मुण्डामुण्डे य किलपाणे या किच्छस्सासे यहा समोहने च कालगते॥१॥ चत्तारि उचला गुरु ठेदो मूह व होति मोदक। अणक्ट्रष्ये य महा पापनि पारचिवडाणं ॥२॥ परिवार परिस पुरिस खेतं कायागमं च णाऊणं । कारणजाए जाए किदकम्मं होड काययं ॥३॥दसणनाणचरिनं तपरिणयं जत्थ जिनिय जाणे। जिणपान मसीए पृथए से बड़ा पायं ॥४॥ साबमजोगचिसत्ति संजमो तेण होइ एगविहो। रागहोसनिरोहोति नेण इपिहो मुणेयरो। ५० मणषयनकायजोगाण गिरोहोरोण होति तिपिहो तु। कोहमयमायलोभुमतीनि चहा स यत्रो ॥६॥पंच य इंदियाणि य पंचह सराई पिरति उकायापतफायअप्पकण्याची अडारसहा मुयो । जोगे करणे सणा इदिय भोमादि समगधम्मे या अहारससीलंगसहस्स संजमी होइणातव्यो ।।०८९॥८॥कितिकम्मपि य दुविहं अम्मुडाणं नहेब बंदणयं । समणेहि व समगीहि यजहक्कम होनि काय ॥९॥ सन्याहि संजतीहि किविफम्म संजताण कायन। पुरुयुत्तरिमो धम्मो सव्वजिणापि तित्वम्मि ॥१०९० ॥१३४०॥ पंचनामो य धम्मो पुरिमसाप पच्छिमरस व निणरस । मज्जिामयाण जिणाणं चातुजामो भवे धम्मो ॥१॥ पुरिमाण दुध्यिसोझो चरिमाणं दुरगुपालओ कप्पो । मजिजामगाण जिनाणं सुचिसोझो सुरणुपालो च॥२॥ष उपवित्रो जस्सरसामाइतं कर्त पूर्व । सो होती जेडो खलु जो पच्छा सो कणिहीत ॥ ३॥ पुत्रोपट्टी जेही होइनी इस्थ होलि पुण्ठा उ । उपठापणा त कतिहि ठाणेहि इमा भये दसहा ॥७०९१॥४॥ ततो पारंचिता पुना, अणयहापातु निणि तु। समम्मि य चम्मि, चरित्तम्मि य केचाहे ॥ ल०९२॥५॥ अदुवा चियत्तकिये, जीवकार्य समारभे। सेहे व दसमे वृत्ते, जस्सुवट्ठापणा मणिता ॥९.९३ ॥६॥ अहया पारंचेको अणबहप्पो व होति एकोय । दसगवंतो नतिजओ चरिने य चतुत्यओ ॥९०९४॥ ७॥ पंचमो १०९०पप्रकल्पभाष्य - मुनि दीपरजसागर अनुक्रम [१२९५] ~30~ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ------------ भाष्यं [१३४८] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य प्रत सूत्रांक [१३४८] दीप अनुक्रम [१३४८] +avकारक -चियत्नकिनो सेहो उट्टो व होनि बोयो। एसो व छबिहोसार चाथिहो वा इमो अण्णो ॥ल०९५॥८॥सणम्मिय नम्मि, चरिनम्मि य करले। चियन किये सेह य. उपट्टप्पा तुआहिपा॥९॥ सण परिनवने पारंचाणपट्टओवि परिसंति। ने जेण भयंती उ एवंएसा भये पाउरी ॥१३५०॥ दसणने य नहा जीपणिकायाय जो समारभए। उढावणाएं भयणा एतेसि होनि दोहषि १.अभाभोएण मिच्छन्न, सम्म पुणरागते । तमेव तम्स पच्छिल सम्म (संजम) पटिवजाए ॥ आभोगेण उ मिच्छन. संमनं पुणरागते। जिगये। राण आणाए, मूलच्छेनं तुकारए॥३॥ कण्हं जीवणिकायाणं, अपमोतु चिराहतो। तिबिहेण पडिकते, मूलच्छेजंतु कारए ॥४॥उण्डं जीरणिकायाणं, अगपझोन विराहतो। आलोयपरिकतो, मुदो हचति संजतो ॥५॥ जीवणिकापारने देसणी व भणिय पच्छितं । तं देय मुत्तपिहिणा अण्णद देने हमे दोसा ॥६॥ अपटिन्ते य पच्छिन, पण्डिने अतिमत्तया। धम्मस्तासायणा तिवा, ममास्सय बिराहणा ॥ ७॥ उस्तं महतो, कम्म बंधति चिकन। संसारं च पपइटेनि. मोहणि चकुवति ॥८॥ उम्ममादेसणाए, मन्या विपरिचायए। पर मोहेण रंजनो, महामोहं पकुवति ॥९॥ सपडिकमणो धम्मो पुरिमस्सय पच्छिमस्स य जिणस्सा मज्विामयाण जिणाणं कारणजाए पडिकमणं ॥१३६०॥ इपिहो जय मासकप्पो गिमकप्पो पेष अविरकप्पो या एकेकोऽनिय विहो अहितकग्यो य ठियकप्पो ॥१॥ पजोसवणाकप्पो होति ठितो अडिओ व थेराणा एमेव जिणाणपी कप्पो ठितम हिनो होति ॥२॥ चानुम्भासुकोसो सत्तारि राईतिया जहरणेणं । दिनमट्टितमेगतरे कारणपबा(मा)सिताष्णतरे ॥३॥ ठियमहितो यकापो एसो मे (मे) वणिजो समासेण । अह एतो जिगकप्पं वोच्छामि अडाणुपुतीए ॥४॥ गच्चम्मि य गिम्माया थेरा जे मुणितसवपरमत्था अम्गह अभिग्गहे या उति जिणकप्पियविहारं ॥८॥५॥णपविजहनेणं उकोसणं तु उस असंपुष्णा। चोरसपुत्री तिर्थ नेण त जिगकप ग पपजे। पपरोलभसंघयणा मुत्तस्सऽत्यो तु होति परमत्यो। संसारसभापो वा माओ तो मुणितपरमत्यो ॥ ७॥ दोहामहननियादी परिमाऽभिमाण अनपाणस । दोहि त उरिमार्टि गिरते पत्थपाताई ॥८॥ वादभिग्गहा पुण स्पणापलिमादिगाव पोवा। एनेस विदितभाषा उनि जिणक पियव्हिारं ॥९॥ परिणाम जोगसोही उपाहिविषयो य गाविवेगो य (वगिकरखेयो)। सेजासंचारक्सिोहणं च विगतीविवेग च...८९॥१३७०॥ गणहरठरणं च तहा अगुसट्ठी चेर सनह य सीसाग। सामाचारी य नहा पत्ता होनि जिणकप्पे ॥..॥१॥ अणुपालिओ यदीहो परिवाओ वायणापि मे दिना। अभुजयाण दोन्ह उमि कतरं ? परिणामो ॥२॥ सोहिणिमिन जोगाण भावणा साइमा तु पंचपिहा । जप सत्त मुलेगने वाले या नह पंचमा होति ॥३॥ एतेसि तु विभासा उपरि भणिहिति मासकप्पम्मि। सेसाई दाराई चोच्छामिल समासतो नमो ॥४॥ पहिस पिग का गेहति अहगई उहि । अभिगहियमेसणाहिं उपासयं चेत्र ॥५॥ गणसणास करेती जो जहिं तापहिलो तम्मिान सत्र नफेनी गणणिक्से व इनरिय ॥६॥ सजाएं अपरिभुत्ने ठायति नहियं तु एगदेसम्मिा संचार उपादे अहाकडं एसणविसुदं ॥७॥विगतीओ यण गेहति मेहति भत्तं न सो अचार इय भाषिओं जाहे वाहे ठपती गणहरं तु ॥ गणहर गुणसंपन वामे पासम्मि ठापहनाण। चुनाति पति सीसे सचित्तादी य अगुजाणे ॥९॥ठायेऊण गणहरं आम-- नेरुण नो गणं सर्व । निरिहण समावेती सचाइब उलं गई ॥१३८॥ संवेगजणियहासा सुतस्यपिसारना पयनुकम्मा चिनि गणं धीरा णितापिने जिणाणाए॥१॥ मिदमहानि स परहोगदिन गुरुण अगुरूवा अणुसहि देवि नहि गणाहिपनिणो गणस्से ॥२॥पणियमसंपडला आपस्तमशागजोगमाडीगा। संजोगविषजोने अभिमाहा जे समस्याणं ॥३॥ गुपने मिसिलहिं गणोपी चितिओ हरति सो निदाए दिहीए आलोए नं गणं सर्व ॥४॥ पायाए महराए भासासे अपरिमेस गिरोस । गुरु अणुरूप जहरिहर सवारनुस्तानि निणिए ॥५॥ नपो होनि बारसविहो दह णियमा दियो य गोईदी। आवाससमायारी पोशा पकवाला न॥६॥ मुत्तवाणजोगे आतीणा नेगु होइ जुना उ। सझेविय संजोगा गियमा ऊ विपभोगता ॥ ७॥ नह उसहीउपायण दवादीया अभिग्गहा जेतु। सनि सामये नेमपि माइपमार्य करजाऽणु ॥८॥ अवय अभिम्गहा 3 कुति जिला बजे समस्या या एवं सासिनु गणं नाहे गणहारि अप्पाहे ॥९॥ ममसंगचम्महत्वणे तुम मा काहिसि पमाद। ठितकापोर जिगाणं गणघरपरिवारिया गच्छे ॥१३९०॥ मजाररसियसरिसीपमं तुम मार काहिति विहारामा णासेहिसि रोग्लिपि अपाणं चेव गळच॥१॥ पद्धतओ बिहारी जिणपणनो दुबालसंगम्मि । जह जिगकप्पियपरिहारिवाण सेसाणविनय ॥२॥ परिवरढमाणसइदोजह जिणकप्पो नहा करिनासी। अकरितमपणा ऊण ठवे अण्णं इमं गाउं ॥३॥ जो सगिहन पहिनं अनसो तुक विज्झने पमाएणं । सो परिसरहियच्यो परपरवाहप्पसमणम्मि॥४॥णाणं अहिजिडणं जिगवयग देसंगेण रोएनााणपएनिजी घरेनु अपाण गर्ण गणहारी ॥५॥णार्ग अहिजिउणं जिणवणं ईसणेण रोएना। चाएनि जो घरेलुं अपाण गर्ण सगणहारी॥६॥जाणं अभिज्झिऊर्ण जिगवयगं देसणेण रोएना।नचएनि जो ठवे अपान गणं न गणहारी॥७॥ १९९१पजकल्पमाप्यं - मुनि तीधरतसागर ~31~ Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) प्रत सूत्रांक [१३९८] दीप अनुक्रम [१३९८] “पंचकल्प” छेदसूत्र -५/२ ( भाष्य ) यं [१३९८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३८/२], छेदसूत्र [५/२] पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं qvgy ....... - • - पाणि दंसणेण रोता चाए जो बेटे अप्पा गो गणहारी ॥ ८ ॥ गाणम्मि सम्म य तबे चरिने व समणसारम्मि चार जो वे अपन नारी ॥ ९ ॥ गाम्म सम्मिय ये परिने समारा जो वे अपाण ग स गणहारी ॥ १४०॥ एसा गणहरमेरा आयरल्याणणिता सुने। पदा हिडाए १॥ सनिहादि विसय तेसि तु जे भरता अपने ऊ बिहारो ण नेसणाओं ॥२॥ उपाय. रिम्स पिट उहि से सोहितो होति सचरिणी ॥ ३ ॥ सीतापनि बिहार सुहसील जो अदीओ सो नपरि गितारो जमसारम्मि पिसारी ॥ ४ ॥ सगरी चणासुरमहिनो सिज्झियवधूमि अणिमूलविरिश वाणम्म उज्जमति ॥ ५॥ किंग असेसेहिं दुक्खखयकारणा सुचहिए। होनि उमिसचायलिंग माणुस्से ? ॥ ६ ॥ संखित्ताविव प ज यद्धति विवरण पती उदधिच बड़ी तहसीलगुणेहिं वाह ७॥ कृणमप्पमा आवहिं जमनीपा मालवियाना ९६ ॥ ८ ॥ तिकसा परिणता परपरिवादं च मा करेजाह अच्चासायणविस्ता होह सदा संजमरताय ॥ ९७ ॥ ९ ॥ सा गुरु या विषयान्ययए बाउना साहून याला णियं ॥ ल० ९८ ॥ १४१० ॥ एस अडियस बस्तीय अपरोवतावीय परमगुणमट्टियनियधोणा (पि॥१॥ एवं मंगत पता आनंदसुपादं मुति गुणे सरता से ॥२॥ कतरे गुणा नरसा जे सुमता तु तस्स ने सीसा भनि इनम गुणसू ते भयं समासेणं ॥ ३ ॥ सस्यगाणं सममुहदुक्खाण विप्यकंयाणं दुक्तं सुचिसहि वासी गुरु ॥ ९९४॥ [सीलगुणदि पट्टएप अपरोक्ताची हि पचतेहि महिंदेसा ने संडिया होति ॥ २० १०० ॥ ५॥ अणुस दाऊणं तहिं सत्यमितिहिनम्मि अह सम्मिदिन संप असति गणं न समा ॥ ६॥ पर पदसमीप गणधराण व समीपे चोदलपुत्री तह पेइए य असतीय पमादी ॥ ७॥ [पामान (वासाचि) हारविदा कार्ड गणंगारिया भिमा पीरा ॥ ८॥ किलियामा अभिमाहिती असा उ जिनको केरिसस्सा कम्पनि परिवजि सुण ॥ ५॥ कप्पे परिसारम्स संघरियन एवारिम्स कम्पनि परिजिड होति जिनको ॥१४२॥ जपणं भणितं पदमं तु होति नियमेण विरियं चिनी ती जुतो कुसमो ॥ १॥ निपुण परि सो पुर्ण नियमाकारणेहिं तु काणि पुण कारणाणि य इमाई नाई जिसमे ॥ २॥ देहस्स बनने आयरियाणं पाइपसादा रोग परिबंधन सहति सीउष्ट्रादी च परिभागी ॥९१॥३॥ गुत्यापि धेनुं देह तु नं चाति गुरुणं च अणणुकूलनणेण माराहिजो मूरी ॥४॥ आपरिया अपसण्णामुपायं कुव्र्वनि णाहीन सुजातु जती ॥ ५॥ सीलसविहरोगाणं जहवा गार्ड अभय इमे वा रोगा ॥ 5 ॥ का साजरे हे जोगीले अ रिसा अजीरए दिडी मुसूले अकार ॥ ७॥ अणि तहका कंडु कोड दगड(सर)। एते ते सोलसची] समासतो प्रणिता रोगा॥ ८ ॥ अण्णोपडि - साहिति के पुण पविधिमे गुण ॥ ९ ॥ सो गामो साया मम जो एनाई तो गुरुकुरानि॥१४३॥ सकाम मे भोओहि गाये आयरिओ महतरओ एसा मे सदा॥१॥ ससदस्यमा मे सविएगागी १०१ ॥ २॥ एहि अभागी सीताई पण देति उदरं तु तो पाहिजति सो ऊ गुरुकुलवास असेतो ॥३॥ एहि पहिरि परिसम का पुष सामापारी जियोनिमा सातु ॥४॥ लेने का परिने तिथे परिवाग आगमे ये कप्पे लिंग लेखा गणणा झाले भग्गाहे ॥५॥ वाणायण मणसाऽऽऽचि से अणुयाता कारण पिटिकम् भ पंथ व निवाए ॥ ६॥ एसी जिनको खलु समासतो तो सवे एलो वेरा समाज मे समे ॥ ७ ॥ विहिम्मिसंजमम्मि बांदी होती तु सामछेदपरिहारिए यतिविम्मि एयमि ॥ ८|ठिय अट्टिएव कप्पे समाजमा (ओ) मुणेयची छेदपरिहारिया पुगियमा होति ठिक ॥९॥ जिपी अमहो दो गहणं चमग्गहाणं पंचहि दोहिं च वह इह ॥ १४४ ॥ बापुडे सेहे सणही दुसंपयणम्मि पण भणिता ॥ १ ॥ जहसंभयं तु ऐसा सादि विमासिपत्र द्वारा उ उचरिं तु माकणी विवरती विभासते तेसि ॥२॥ इति एस थेरपी एनोमिलिंग तु। तुम भवती तु ॥३॥ नकक्वण (थियो मुंडो दुवो वही जो सिं एसो नायवी ॥४॥ स्वहरणं मुहपोली संखेवेण तु बुह उपड़ी उपापिकिलिंगे अरिस मेहे कपि ॥५॥ दुबिहा अतिसेवाविय तेसि इमे वणिता समाचाहि सिरिसेस पामि ॥5॥ पा हिस्यो सरीरस्सा अतिसेसो सिमी उदय पाणिपातो वसभसंपयणचारी ॥ ७॥ जम्मंतरमतिसेो इमो उतेसि समासतो मणिओ उपहोचित्र अक्सोमो (२७३) मुनि दीपसागर १९९२ पञ्चकन्यायं - ~32~ Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-१/२ (भाष्य) ---------- भाष्यं [१४४८] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं SAntahar प्रत सूत्रांक [१४४८] दीप अनुक्रम [१४४८] मूरो इव तेयसा जुत्तोटा अनावणसरीरो पगंधी ण भयते सरीरस्स। खतमविण कुण्ठ(क)सि परिकम्म णवि व कुवंति ॥६॥ पाणिपडिगहधारी एरिसया णियमसो मणेयञ्चा। अतिसेसे बुच्छामि अण्णेऽपि समासतो तेसि ॥१४॥ विह अतिसेस तेसि जाणानिलयों नहब सारीरो। णाणातिसतो ओही मणपजय नभयं थेव ॥१॥ आभिणियोहियणार्ण मुनगाणं पेपणाणमनिसेसो । निपली अभिणयचा एसो सारीरमइलेलो ॥२॥स्यहरणं मुहपोनी जहणोयहि पाणिपतयस्सेसो । उक्कोस निनि कप्पा स्वहर मुहपोनि पणगेनं ॥३॥ गवहा परिमाहीणं जहष्णमुकोस होनि वारसहा। सिंऽवेयाणि चिय अइरेगो पायनिजोगो॥४॥ उबगसणमजणायनहनयणदंतसोभा या एते उपचाया सलहनि जिणकप्पलिंगम्स ॥५॥ बड्याइयाई उवगरणं चेष धेरकप्पीगं। भइयों लिंगकापो गेलनाईहिं कहि ॥६॥ कजम्मि गिठाणाइसु उब्रहणमाइया अणुचाया। दुगुणो चाडम्गणो या कारणओ होइ उवही उ॥४.१०२॥ रुदनहकावणि(ग)यणो मुंडो दुविहोवहीं समासेणं । एसो तु लिंगकप्पो कारणपचासि पयरो टाटीय सुर कतरीय मुंट सिविद न होद राण। अलिपादिकारणेहिं कज विपनास लिंगस्त ॥९॥ निरुवहलिगभेदे गुरुगा कप्पद य कारणजाते। मेलबरोगलोए सरीरयापडियमादी ॥१४६०॥ वासनाणानि भेदो लिंगमा न अमुष्माना चाउम्मामुकोस सत्तरि राईदिय जहनं ॥१॥ एवं तु दवलिंग भावे समणनणं गुणाया। को 3 गुणो दवलिंगे' भणनि एणमा सुणम बोई ॥२॥ सकार पंदण णमंस पूजा कहणा य लिंगकप्पम्मि। पनेययुद्धमादी लिंगे उउमथ तो गहर्ण ॥. ९२॥३॥ त्यासण सकारो बंदण अग्भुट्टणं तु णाया। पणिवादो नु णमंसग संतगुणफिनणा पूया ॥ बट्टण दान्धिा तिताणि इंदमादीवि। लिंगमि अविजन णो णज्जति एस विरतानि ल०१०३॥ ॥ सहितो समलिंगेणं, धम्मच संम(ज)तो भये। अलिंग बेनि ने कीस, जाणतो करे नुमं? ॥६॥ पत्तेयबुडो जाय उ गिहिलिंगी अब अम्मलिंगी उ। देवाचि नाग पूनिमा पुर्ज होहिनि कुलिंग ॥ ७॥ण यणं पृच्छति कोती केरिसओ होइ तम्भ पम्मोतिग3 य सादिगविटणं उउमाथी जाणे पिरोनि ॥८॥ एसोनु लिंगकप्पो अगुणा बोचहामि उपहिकप तु । जो जस्ल भवे उपही जिगराणं जहाकमसो ॥९॥ आहे उचम्महे या दुविहो । उपही न होनि णायो । ओहोरही तु निव्हं ओबगहिओ भने दोहं ॥१४७०॥ जिगकप्पे धेरकप्पे कप्पातीते य तिहमोपो तु। राणमुषग्गहिओ साहूर्ण संजतीणं च ॥१॥ पारस चोहस पणुवीस णच य एको य णिरुपही चेष । जिणधेरअजपनेयबुद्धनित्यकरतिस्थकरे ॥२॥ पाणीपडिपाहीना परिगहधारी य होति जिणकप्पे । थेरा पडिग्गहवरा कप्पादीया उभनिया ॥३॥ पियनियरकपणए गय दस एकारसेव चारसगं । एते अट्ट किप्पा उवहिम्मिपि होति जिणकणे॥४॥ अहया दुर्गच पण उपहिस होनि दोनिवि विकापा। पाणिपहिलहियाण अपाउयसपाया च५॥स्यहरणं मुहपोती एवं दुर्ग अपाउयंगाणं। वहरणं महपोनी निशिय पठाद इतसिं॥॥ उमाहवारीचंपिय इपिहो उपही समासओ होति। णपपिह पालसचिहो अपाउयसपाउपाणं च ॥७॥ पत्तं पत्ताधो पायवर्ण च पायकेसरिया। पहलाई स्यनाणं च गोच्छओ पायणिजोगो॥ ८॥ स्वहरणं मुहपोनी पवहा एसो अपाउगाणं । इयरेसि एसेप य अतिरेगा तिमि पच्छामा ॥९॥ एते चेष दुवायस मत्ता अतिरेग चोररूपही या एसी यचोदसचिही उपही खलु धेरकप्पम्मि ॥१४८०॥ अजाणं एसेप य चोलस्थाणम्मि परि कमीता अतिरेग अंगरहामा इमे उ अने मुगेयवा ॥१॥ उग्गह गंतग पहो अढोका चलगिया य पोदा। अभितर पाहिनियंसनीय तह कंचुए चेव ॥२। उच्छिय पेकच्छिय संघाडी व संधकरणी या ओहोपहिम्मि एते अनाणं पणावीस तु ॥३॥ सन य पडिग्गहम्मी स्यहरन र होति मुहपानी। एसो तुगपविकप्पो उपही पत्तेयबुदाणं ॥४॥ एगो विश्वगाणं पिक्सममाणाग होइ उवही उ। तेण परं णिरुपहि उजावजीचाए तिस्थगरा8०१-४॥५॥ जिणा वारसरूचाई.धेरा चो. इसकषिणो। अजाणं पण्णवीस तु, अतो उड़ उपमहो ॥६॥ एसो उबहीकप्पो समासी पनिओ जहाफमसो। संभोगकापमहणा समासतो में णिसामेह। ॥ संभोगपरुपया सिरिघर सिप(न)पाहडे या संभूते। सपनामचरिने तपहेउ उत्तरगुणेसु ॥..९३॥८॥ओहअभिमाहवाणग्गहगे अणुपाटणा य उपपाए। संबासम्मिय उही संभोगविही मगेयधो ॥९॥ उपही मुय मनपाणे, अंजलीपमहे या दापमा य निकाए थ, अम्भुहागेनियावरे ॥..९४॥१४९०॥ किडकम्मरस बकरणे, पेयापकरणे इय । समोसरण सण्णिसेजा, कहाए य पधणा॥:.५५॥१॥ उमाम उपाएसण निवेय परिकम्ममा य परिहरणा । संजोगविहिविभना उचहिम्मिवि होनि छडाणा ॥२॥चायण पुरण पडिपुच्छ चिन परियणा य| कहणा या संजोगविहिविभत्ता पठाणे होति उडाणा ॥३॥ उम्गमउपाएसण लोयण संभुजणा णिसिरणा या संजोगविहिषिमना य भनवाणे यहाणा ॥४॥दिय पणमिय अंजलि गुरुमालोचे अभिग्गहि गिसेजा। संजोगचिहि विभत्ता अंजलिकम्मेविछहाणा ॥५॥ सेजोवहि आहारे सीसगणाणुष्पयाण सज्झाए । संजोगविहि विभत्ता दावणाएविउहाणा॥६॥ सेजोपहि आहारे सीसममाणुप्पयाण सज्झाए। संजोगविहिविभत्ता निर्मतमाएपिउड्डाणा ॥ ७॥ अम्भुहासण जंजलि किंकर अम्मासकरणमविभनी। संजोगविहि१०९३५चकम्पमाप्यं - मुनि दीपरजसागर 11 ~33~ Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ------------ भाष्यं [१४९८] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं प्रत सूत्राक [०००१] दीप अनुक्रम विभत्ता अभट्टाणेवि डहाणा ॥८॥ सत्तायाम सिरो णय मुडाणं सुनवनिमय वेव। संजोगविहिविभत्ता कितिकम्मे हॉति उहाणा ॥९॥आहारउपहिमनग अहिगरणविजोसणा या मायसहाए। संजोगविहिविभत्ता पेयायवेऽपि राणा ॥१५००॥ वास उहु जहालंबे पुहत्तसाहारणोग्गहित्तिरिए। बुड्ढावासोसरणे छहाणा होति पविभत्ता ॥१॥ परियगाणुओगे मागरणे परिचाणा पा(पुष्ठ परिच्छमारोए । संजोगविहिविभत्ता सचिसेजाए छडाणा ॥२॥ वादो जप वितंडा परिणवाणिज्यिा कहा हालिसिजोगविहिचिमत्ता कहा| पवेऽपि उड्डाणा ॥३॥रागेण दोसणं अशाणाविरईय मिप्यते। कोमामालोआसवदारहितु राइडेहिं ॥ ४॥ अविश्वस्स बावत्तरिहिो. एसा बावत्तरी दोहि गुणिया रामदोसहि चोयाळ सयं अपणाणातीहि २१६ कोहादीहि २८८ आसक्दारेहि ३६० राइभोयणछट्टेहिं ४३२। 'बारस य चाउचीसा छत्तीसा अडयालमेव सट्टी य। बाबत्तरी उ एसो संजोगविहीन मुणेयव्यो ॥५॥ चारस य चरबीसा उनीसऽपालमेव सही या बायनरी विगुणिया चोयाललयं तु संजोगा ॥ ६॥ वारस व चवीसा उत्तीसऽदयाल चैत्र सट्टी या चावरि गणिया बनारिया उपनीसा ।। ७॥ जस्सने संजोगा उपलदा अस्थतो य विणाया। सो जाणती चिसोहि उनघाय चेप संभोगे ॥८॥ जस्सेते संजोगा उपलहा अस्थतो व विनाता। गिहिउँ समन्यो गिजूदे यावि परिहरि ॥९॥सरिकप्पे सरिउंदे नाचरिने विसिद्धतरए वा। आयति भत्तप्पाणं सएप लाभेण वा तुस्से ॥१५१०॥ सरिकप्पे सरिईद नावचारिते निसिहतरए वा । साहहिं संथप कुजणाणीहिं चरित्नगुत्तेहिं ॥१॥ ठिक्कप्पम्मि दसविहे ठवमाकप्पे य दुविहमष्णयरे। उत्तरगुणकप्पश्मि य जो सरिकप्पो स संभोगो ॥२॥ सत्तषिहकप्प एसो समासओ वणिओ सविमवणं । एत्तो इस बिहकर्ष समासओ मे निसामेह ॥३॥ कप्प पकप्प विकप्पे संकप्पुक्कप्प तह य अणुकप्पे। उकप्पे य अकप्पे तहा दुकापे सुकप्पे य॥ ९॥४॥ गच्छाओं निम्नयाणे जिगकषियमादियान कप्पो उ। तं च समासेण आई उनिगेहामि इगमो उ84 पिडेसण पाणेसण उगह उरिह भावणा चा वारस पनि. पडिमा एवमादी भवे कप्पो॥९७६७पिटेसण पाणेसण पंचुमरिमया सभिग्गहेगा य। ससामु य अग्गहणं सेजोगह उपरिमा दोसु ॥ उदिहिती देथा जिणकप्पविही उ जो समक्खाओ। सेने कालभरिने इचाइ नाहेब बहपि ॥ ८॥ पणुवीस भावणाओ महण्यार्ण तु होति पंचण्हं । पारस अणिक्याची तवसुत्तादी च पंचेच ॥ ९॥ एयाहिं भाषणाहि भानेनी ने उ नियम-7 पाण। सोऽनि गच्छनिम्ाय वेगपरायणा धीरा ॥१५२०॥ पारस नित्यपडिमा आदिग्गहणेण संदिया चेष। तह सुबपारिहरी समोऽवेसी मवे कप्पो ॥१॥ निष्ठय निरास निम्ममा निरहंकार परमह वजोगी। पत्तसरीरकसायो इंदियगामा व निगहिया.९८ाचण्ण एचमादी सम्बणयनिहाणमागमविसुन्न । कप्पोलिनाणदसणचरितगुणमायहं जाणे ॥..९९ || नियमतिणो पिण्यणयडिया उद्विता तु पहारे। जहगावि णिच्छओ तू गाणादीयं भवे तितयं णासंसद इहलोयं परलोय बावि एस उ निरासो। निम्ममता तु ममतं ण कोली अपिय देहेऽपि ॥५॥ण करे अहंकार एरिसों अहंति उत्तमगुणोघो। विधान परमहो तस्साहणता उ बढजोगी ॥६॥ गिप्पदिकम्मसरीरो पनसरीरो उ होइ गायत्रो। - Kal पतथिमलादिविसंतिवमा उज्विायकसानो ॥ ७॥सोइंदियमादीम व विसयपयारेसु सदमादीसु। उवेद रामदोसे इंदियगामा य निग्गहिया ॥८॥ सागवानी दुपिहा नाणे । करणे व होति बोदना। सरणयाउपेचं मतं तुज (जो) सहितो चरणे ॥९॥ कप्पो णाम भणनि जो आपहली उनाणमादीणि। पुहिंद वापि करेती समी सो होइ कप्पो उ ॥१५३०॥ कायो उ एस मणिो अगुणा एनो पकण पोच्छामि । उस्सारकप्पमादी जहकम जानुपुबीए ॥१॥ उस्सारकप लोगाणुओग परमाणुओग संगहणी। संभोग सिंगणाइय एषमादी पायो 3. आचारविहिवावयजाणएपरिसकारणविहष्ण । संविग्गम परितते अरिहति उस्सारण काउं॥३॥कारणे-अभिगते पहिबदे,निम्बसलदिए। अहिए यपरिज्मी . गाजमुई जोगकारएमठो व अलवीओ ओमाण चेन प्रणहियामो य । मिहिणो य मंदधम्मा सुदं च गयेसए उयहिं ॥ ५॥ एएहि कारणेहिं उस्सारायारिहो उ पोदो। उसारी विहिवाद धम्मबहा गंडियनिमिन ॥६॥ उस्सारकण एसो समासओ वणिओ मए एवं लोगाणुजोगमित्तो बोयामि अहं समासेणं ॥ ७॥ महावी सीसम्मी ओहमिए । कागज राण। सझतिएष अह सो विसंत इम मणिओ ॥८॥ अनिबहूत नेऽधीतं ण व गातो तारिसी महतो उ। जत्थ विरों होइ सेहो निफ्सतो अहोर बोरस (न)॥५॥ तो एवं सामा भणिजओ अह गंतु सो पतिताण। आजीविसगासम्मी सिक्वति ताहे निमित्नत्यं ॥ १५४॥ अह तम्मि अहीयम्मी पडहेड निषिद्ध अन्य कया(फण्णया कानि। सालाहो गरिदो पुच्छतिमा तिणि पुच्छाओ ॥१॥ पसुलिडि पढमयाए वितिय समुरे न केत्तियं उदय ?। नतियाए पुण्डाए महुरा य पडिन व ग बत्ति ? ॥२॥ पठमाए बामकटगं देइ नहि सयसहस्समुतं नाचितियाए कुंटनू नतियाएंवि कॅटलं चिनियं ॥३॥ आजीपिता उवहित गुरुदक्षिण एवं अम्हानि। तेहि तय न् गहित इयरोचित कालकन त॥४॥णम्मि उसनम्मी अत्यम्मि अग? नाहे सो कुणा । लोगणुजोगं च तहा पढमणुओगं च दोऽनेए ॥५॥ बहा निमित्त तऽहियं पदमणुओंगे य हॉति चरियाई । जिणच-3 १२९४ पत्रकल्पमाध्यं - मुनिपरजसाजरा 01- 2 [०००१] 4- ~34~ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ------------ भाष्यं [१५४६] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं प्रत सूत्रांक [१५४६] दीप अनुक्रम [१५४६] शिवसाराचं पुब्वभवाई निषदाई ॥६॥ ते कारण तो सो पाडलिपुत्ते उपद्वितो संघ । बेड कतं मे किंची अणुमाहवाय ते सुबह ॥ ७॥ तो संघेण निसंत सोऊण व से पडिभिडतं तं तु। । तो संपतिहितं तू णगरम्मी कुसुमणामम्मि ॥८॥ एमादीमं करणं गहणं गिनूहणा पकप्पो ऊ। संगहणीण य करणं अप्पाहाराण तु पकायो । संभोगो संगमगाहना य वच्छा | पीड बहुमागो। साहारण कुलगणसंपठवण अणतिकमणमेव.१०१।१५५०॥ सुत्तस्यतनुभयावी हि संगहोवग्गाहो उ भत्तादीच्या मुलगिलाणे एक्मादीसु जहकमसो ॥१॥ एणत्य मोवणेणं पीती मपतिकमाणजिमितत्ति । बहुमाविष कुबति सहायगर्स च तेष ॥२॥ कई असदिसता ग लमंति समबिया चिय लमंति। जं लवं साम संभोगमितीताई ति॥३॥ कुलगणसंपत्येरा मजायात्री ठनि हिंडता। जा सकुले परितागो (कुसलेऽथ परिमा) मत्थी उपसंपया ॥४॥ कुलगणसंपवणा जाओ व कताओं सहित परेटिं। कुलबहुमजायाविष नाओ यमनकमिजाति ॥५॥जेस सिंगभूतक तूलिंगणाइयं होइ । तं बतिसाहुसंजा होजाहि सगठपरमच्छे ॥६॥ पुण होजाहिकतं को मोजाहिर संजन जईगा। मनोस दुसरो कहनि सो पुच्चिको आह ॥७॥कीतो मेव पाडो हार्डवा आणिो घरेलू वारदार वा से जातो आहवा सजाइपलाची ॥८॥ अकमिऊ जानु दासाणि करेउ अहम लोभेड। पत्यासणमादीनित्य पमादोण कायो।९॥ गठस्सा रक्खणला चारित्नाठिते अवस काय हरा तू माता गच्छस्स उ फेडिया हो। ॥१५६०॥ आमाएं जिमिदाणं अणुकंपाए पचरणजुत्ताणं । परगच्छे व सगच्छे सापयत्तेण काय ॥१॥अणवस्थवारणा उवितो मीनेवि। लिग अनुम्मुवते जीवहिताबुबचम्मो या अणुसही धम्मकाहापापिओ जान मुंचती पायो। वाहे अनिसनीए इमाई जाउ करणाणि जबानी ओसोपनी य पासायच वेयालं । अभियोग II यंग संकम आवेसण वेवणकरी य॥..१. २ अंतवाणं कार्ड हरेति ओसोवर्ण चकाऊर्ग। वेवासमुहवेट मेसेति नगं अमुची अभियोग पसीफरणे विना संकायचंच अन्नत्या भस्स कंपर्ण वा आसमेति ॥६॥साहम्मियातं कुममा नुएव कत होइ। अन्णे य गुणा उमेहति ने मे निसामेह मिठाचा संमतं सम्मरिही चरितओ. ज र्म। चरितहिते चिरतं मलणा य पभावणा तिल्ये ॥८॥ तम्हा साहुनिमित्त सापयत्तेण एव काय । अहणा विनिमित्तं जं कायां नग पोई॥९॥ चोदेड चेदया खेसहिम्णे बनामगाचावी। लगतस्सव जहणो निकरणसोही कहं भवे? ॥१५७०॥ भनाइ एत्य विभासा जो एया सर्व विमग्येजा। तस्स ण होती सोही अह कोड हरेज एयाई ॥१॥ नत्य करेंत उबेहं जा सा मणिया उ तिमरणविसोही । सायण होइ अमत्ती य तरस सम्हा निपारेना।२॥ सत्यामेण नहिं संपेणं होड़ लग्गियां तु।सचरितऽचरिताण तु सबेसि एय कर्ज तु॥३॥ तस्य पुण कयादि पियो अन्नत्य हरिन तत्व उपयंती। लिंगरयेहि समयं का मजाता भवे नाहिय? ॥४॥ भने पाणे सपणासणे य सेनोपहीएं समाए।चायणपटिळणामु य सुहसीले अत्तसंहारो॥५॥जहियं तु सावयादी कोई कोजाहि संघमन तु। नहियं तुम मेन्डेजा ग य वस उदिहलेबासु ॥६॥ पानगमत्तादी गाय संपादोपवाचित से सुने। बाहिति आसमेनियन जयंती एव उउसो सेन उनहिण देति मेहति वा म संचा। समापि म मेहेप परिच्छे चोयए वाचि ॥८॥मो सउलकनं - उपएक वा मुएनजर एवं अन्नत्य उदासीनो एसो खलु म(अ)लसंधारो ॥९॥ परिवार विति नहिं रायकुले विन्नविति ने चेय। जदि वा होज समस्यो मजा तो सर्थ ॥१५८०॥ जो पुण बंधकहाविस उहवनचरित्तभंसरोहे वा। मिरजनो समत्यो मकरेड वहि विसंभोगो ॥१॥ कोई पहचादी सारण करेज अहब देवकुल। पारिज परिमभंगच करेजा कोई पडिणीजो॥२॥ अहवाचि निमित्त अकाहेमाणोतु कोड मिजा। मिरवणमगिलामो ओरसविनारिस समस्यो॥३॥ जहणेच्छति मोरेउसमसंभोर्य करेति तो(को) समर्ण। परितावणादि जैसे पार्वतीले चपावड़ य॥४॥ केवइयं पुन काल धादिगताण देसि समयाण। काय तमामता' भदाणमो निसामेह ॥५॥ मजायसंकाले चिरमवि कायसमयरितेणा मनायविष्णहने सवाल सति करण ॥६॥जदि अपराहे गहिओ मम्मति मोएम अदि पुमो प करे। एसियमभुषगते मोने यमुपासमे ॥ ७॥हपरलोग बाई - तेतारिमाणिजे यहई। ते पार्वतताई पोय लोए दुइसया ॥८॥एवं उचालमेशा मोदेठं जा पुणो करेमाचो। पेमेश उदासी हवेज ने वाहि(रि)या समणा ॥९॥ एवं तु समासे एस पकप्पो मए समक्खाजो। एतो उसमासेणं वोच्छामि विकप्पाहुणा उ॥१५९०॥ अतिरेग परिकम्मन नह मंडपायचा व पोदया। एमादि विकल्पों क सस्थाजरेगे हम होइन ॥१॥एगेण अलेपकडंकायो संपाडलेवग पकप्पो। निप्पमितविकप्पो मत्तमभोगो बनवाए।..१०३॥२॥पादेगेण अलेख जिणकप्पिया उसो कप्पोधेिराम दोषिपादा संघाडे पहिंडति ॥३॥ तस्येगपडिग्गहए मत्तं वादपि गेइंति। एगस्य वर्ष मत्तम दोडपी रितम पकप्पो ॥४॥तिपमिति हिंडती पिकारण मत्तएस वा गिरे। सोहोर विक्रप्पोऊ तत्व ब सोही जमा हो ॥५॥अदि मायणमावहती सति मासा जवि विणा उ आगेती। तात्रया वतमासा चितिवार रोषणा मणियारासमणीच विणको वाचनमा १०९५ पञ्जकल्पमाष्यं - मुनि दीपरामर ~35~ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-१/२ (भाष्य) ------------ भाष्यं [१५९७] ----------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [9/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य प्रत सूत्रांक [१५९७] दीप बिगिओ पप्पो उणि परेण विफप्पो एसो उपदि तपोषहामि आतिभिउमणिया कप्पो अवस्ता विषयमा पकापविही उपाययजाणं विहाणारोषणा भणिया.१०४ागण नाय पमाणेण य उवहिपमाणं दहा पुणेया। गणणाएं जिगाणं तु एको दो तिषिण वा कप्पा ॥ ल०१०५॥९॥ दो श्यणी संडासो सोत्पीओ वापिहोति आयामो। बदा दिवबहत्य एय पमानापमाणं तृ॥९०१०६॥१६७५ ॥ दो खामिजोन्निएको राणं निणि होति गणणाए। आयामाषषमाणा दुहत्य अदं च विचिठन्ना ॥९०१०७॥१॥ एसो उ भयेन पो परम्पो उ मिश्रणए गुरूर्ण पा। घट सन पावि पाउण माणऽतिरिनं च धारेजाल०१०८॥२॥ कारणे पकायों होती विकल्पों णिकारणे पुणेयत्रो। उप्पायगो पविती सातिरेग चरेजाहि ॥३॥ गणणाएं पमाणेग गमाहाए उपमोचूर्ण । जो जण्णो अतिरेग घरेइ सोही उ तस्स इमा ॥४॥ चाउम्मामुकोसो मासियमकोय पंच बजहणे । तिषिहम्मिवि उपहिम्मि अतिरेगारोषणा भणिया ॥५॥ अतिरेगा यहिदार संखवणोदितं अह इयामि। परिकामदार बोच्छ अपरिकम्मो जिणाणुषधी ॥६॥ कारणविही पकप्पो घेराणं अविहीए विकायो उपस्किम्ममा उएसा मंडणार्य अतो वो आगाहग महणे गेजसं च जहासखेणिमे तुणाषा।पुरिसे पडिमा उपही तिमितिमा भावसदाई..१०५टागाहमों गीयन्यो खलु पुरिसो गियमेग होइनायो। रिडमादियाहि गहणं परिमाहि भणिनं ॥९॥ घेत्तो वही खलु निग्गिनाहारउबहिसिजलि। सिणिनि निविमुदाई उग्गममात्र दीहि नियमेणं ॥१६१०॥ एगेण घेप गहणं कायों दोहिं भवे पापो उनिप्पभिनित विकापो भने पाणे नहा उपही ॥१॥आदिनिएग उगहणं वितियाणम्मि अमष्णातं । हंदिर परिकवणिजो महारको(हाकरो सरसादुर्ण.१०६॥२॥ आदिनि होनिकापो तिगतिमहारउवाहिसेजाओ। गहणंतुदोनि तिचिहं उम्मममादी तिमपिम ॥ रितिबडाण पकप्पो तस्थापि तिगमदमेव घेत्तर असतीय अणुपणानं पणहाणीए असुद्धपि ॥२०१०९॥४॥केग पुष कारणं गच्छे असुरषि उम्गमादीहि । पेपनि भागनि सुगम् कारणमिणमो समासेणं ॥९०११०॥५॥ स्यणाकरोत जम्हा आगरो होइ सबसुक्खाण नाणादीण य पभवा नतो व मोक्सोयतो सतेस.१११॥६॥ आइना महागो कालो चिसमोसपक्रवाओ दो दुमिक्समादी । आदिनिगमंगगेणं गहर्ण मणिपकप्पम्मि..१०७१8०११२॥७॥ नियनि(क)मंतपमाणे अणुपासो वेव कारणनिमिन । परिक्रम्मण परिहरणे उवही अतिस्निगपमाणो ॥८॥ गण्डो सबालबुददो गिलागसेहादिएहि आनिष्णो। एसोय महाणो नू नस्स तु दुलर्भ निमविमुदं ॥९॥ कालो चिसमो मिक्समादि दोसा सपक्सजओ उ इमे। पासस्थादी यह ओमाणतो तओ होनि ॥ १६२०॥ अहव असंविग्याची जह महराकोवाडगा केई । मायाए उग्गमनी सड़दा अविकोवि नवि जाणे ॥ १॥ एएहि कारणेहि अनमंते आइतिगभंगमहर्णा आदितिगममामादी भंगो तू भसमा होनि ॥२॥ कारणनो निविहंपी माणं न अतिकमेज कदादि। कि पुष सिविहं माणं? भन्नति हणमो निसामेह ॥३॥ हपति पमाणपमा खेतमार्ण च कालमाण पाएतं तिविह पमा अनिकमो सिमा होति ॥४॥ अनिरंग पमाणेग निह पोय केपि गाम मिजासिलो अतिकमोन परतोवि दुगाड्या मो॥५॥ कालपमाणानिको कुजा पाउरणगं अकालेऽपि । वसनी कालानीन असिवादणचासणं एवं ॥६॥ परिकम्मणमपिहीए बलियारम्बाम्मि कुजाहि। दाइभारंभे सीतेण अदिओ उभियं पलो ॥ ७॥ अतिरिनपमान वा धारिजइ कारणेहि एएहि । सो सबों पकपी तू निकारगओ विकलो 3॥८॥संकप्पो उपाणि सोय पसायोंय अपसम्यो पाएसिदोडपी पावणा होनिमा कमलो ॥९॥ सपनागपरिने अणुपाटण पत्यका पसन्यो दिवसियकसाएस अपमायो उपो ..१०८॥१३॥ देसपपभावगाई सन्चाई कदमहं अहिनेजा। जो चिते(एसो सकप्पो दसणे होनि ॥१॥ नाणदयारं ग को कई चनाणं अहं अहिजेजा। इति नागे चारिते मुबमारिनो कह होजा॥२॥ उमर उनरिएहिरवास्निगुहिका विहरेजा। एसो तुचरित्नम्मी सकप्पो सत्थगो भणिती ॥३॥ सदादिशदियाघाण पापणा नह य रामराम तुकोहारिः कमायाण य अजाणं होति अपसत्यं ॥४॥ एसो खलु संकप्पो एनो बाच्छामहं न उपकप्पं । उपकप्पती करेनि उपणे यहाँतिएगट्ठा ॥५॥ मीण पाणेण व उपकरणेण प उपग्गह कुपति। उसकम्प गुणचारी उपकप्त वियागाहि ॥ ६॥ हिनओ पिचासिओ वा सीनभिभूतो पण नरनी पदिनु । नस्स करेइ उवम्मद पटतदडस वा घृणा.७॥ जो उम्पाएं समाहि वठबिहनाणदसणे परणे । ततो यतपसमाहि नस्स खमे निजरा होनि ॥८॥मलेग व पामेण उपकरणे व उम्महिन्देहो। जो कुणा सि समाहि नस्सावरण हगति दाना ॥९॥ भन्नरस व पाणम्स प उपकरणस उपमहकरस। जो कुणा अंतराय नस्साचरणं पपइदेनि न०११३ ॥१६४०॥ एसपकप्पी मणिो एनी बोचम् अहं नजणुकण। असहो तू नहिय पच्छामाचे मुणेया॥१॥नाणचरणदयार्ण पुवायरियाण अणुरिति कुणइ । अणुगमन गणधारी अणुकर्ण विषाणाहि ॥२॥ गुणसयसहस्सानियाण गुण नाला व अभिलसंताण जे खेतमालमाचा आसजा जोगहागि भने । १.९॥ गुणलयकलिलो जम्मो मोक्खो पालो मुणेयको सामाधारीहानी जोगहाणी मुगेयया ॥४॥ सेनाणऽसती अदाण उबलिसब्मि काल दुम्मिासे । भावे गेलणादिसु सुदामाचे तु जदमुदं ॥५॥ मेव्हेजाहारादी नागादीप उजमण कुजा। अणसणमादी व तब (२७४) -१०९८पत्रकम्पभाष्यं - मुनि दीपराजसागर अनुक्रम [१५९७] ~36~ Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) प्रत सूत्रांक [१६४६ ] दीप अनुक्रम [१६४६]] **c**%***c***a* “पंचकल्प” - - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) आयं [१६४६] [३८/२ ], छेदसूत्र [५/२] “पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...........आगमसूत्र. अकरेमाणस्स साहुस्स ॥ ६ ॥ तणिज्जरा से जह मणिया सासने जिणवराणं जोगनियत्तमईगं सुहसीलाणं तवो छेदो ॥ ७॥ सुहसीलवुडसी तेर्सि अकामु गेहमाणानं जं आपले हियं तवं च छेदं च तं पावे ॥ ८॥ उकप्पो य इयाणि उटं कप्पोऽचि होइ उक्कप्पो अहवावि छिन्नरूप्पो उकप्पो अहवण अयेतो ॥ ९ ॥ उग्गमउपायणएसणासु निस्वेक्खो कंदमूलफले गिहिवेयावडियासु व उकल्प तं वियाणाहि ।। १६५० ॥ णामणि मणि लेणि नेपाली चेष अयाली। आदाणपाडणेस य अण्णेस य एवमादीसु ॥ ११० ॥१॥ तसएगिदियमुच्छष्णसंसेइममच्छमरणमभिओगे। रोहाहवण तह रंमदंड धंधे व अगणिस्स ॥ १११०२॥ णामणि स्वानं पहिमा देउलाण धूमादी। मणि पदमचि ण चटति मणि लेसेति अंगाई ॥ ३॥ विहिहाण य आणि जहर मिलापण नेपाली उणि निवाओ तक्खण एसऽद्भवेयाली ॥ ४॥ मागं आदाणं करेति तसाच अभिजोग वसीकरणे किलाजोगादिहिं कुणइ ॥ ५ ॥ विच्छिमच्छिगभमरे मंडुके मच्छर तहा पक्खी समुच्छावेमादी जो जोणी पाहणं च ॥ ६ ॥ पशुउहवियं जागं आहरण मंत रोकम्मे य कोहादि भदं भणि अगणिस्स मंत ॥ ॐ एमादि करण निकारणे जो करे तु भिक्खु । सो सो उकल्पो एसो अकल्पं तु वच्छामि ॥८॥ निविणिरणुकंपो पुष्पफलाणं च साटणं कुणइ जंचन एवमादी सर्व जाण अकर्ष ॥ ११२ ॥९॥ जो कि कोई दुक्खनेतुं तु सङ्गसत्तेस निरवेक्खो रीयादिसु पवई निङियो सो उ ॥ १६६०॥ सहसा व पमाएण व परितारणमादि बिंदिया काउण णाणुता रिपो हवइ एसो ॥ ११४ ॥ १ ॥ सन्तमठाणे सहाणासेवणाएं सहाणं गच्छामाम्म कारणम्मि चितियं भवे ठाणं ॥ २ ॥ सतहमठाणाई उप्पो चैव तह अकप्पो य ते निकारणसेवी पावद्द सट्टागपच्छितं ॥ ३॥ फलम्मि कारणे पुणे रायद्द्द्वादियम्मि आगाटे जयणाएं करेमागो होति पप्पा टि(बि) तिद्वाणं ॥ ४॥ दंसणनाणचरितवविषए निबाट पासत्यो नि च विदिओ पत्रयणम्मितं जाण दुकणं ॥ ५ ॥ दुष्पविहारीणं एतासायणाय बंधय आसावणाय बंण देव दीही तु संसारो ॥ ६ ॥ दंसणनाणचरितं तवविए निकालत्तो नि पसिओ पवयणमितं जाण सुकल्पं ॥ ७॥ कप्पविहारीणं एताराणा य मोक्खो य आराहणा मोक्लेण चैव बोय संसारो ॥ ८॥ तो इसको जा सतिविच्छामि तरस उ द्वारा इणमो संगहिया तीहि गाहाहिं ॥९॥ कप्पे णामप्पो ठपणाकप्पो यदवियकप्पो यखिने काले कप्पो सप्पो व सुप्पो. ११३० १६७० ॥ अयण चरिनम्मिय कप्पो उबही नब संभोगी। आलोयण उपसंपद तब उद्देसऽणुष्णाए ॥ ११४ ॥०१॥ अदामम्मिय कप्पो अणुवासे तह य होइ ठिकाणी अतिप्पो य तहा जिमचेरवालाकप्पो ॥११५॥४२॥ जो दयको विकास होति वक्ताओं। सो क्षेत्र निरवसेसो जो य विसेसोऽथ में बोच्च ॥३॥ एस पुन तिहिप्पो अव इमं भाकपमज्झयणं स वा सूचनाणं दाय केरिसे होइ ? ॥ ४॥ सुपरिच्छियमुनदोसे सेलघणादीहिं तु परिच्छाहि सुचिसोहियमिच्डमले उंडि मोम्मादिना एहिं ॥ ५ ॥ सबंधिय सुपनाणं सुत्तत्यो सटिए ग उ असढ़ी अह पुण को परमत्यो बिसेसज पचयणरहस्सं? ॥ ६ ॥ पययणरहस्तमेपाणि चैष भति छेदतानि तानि न दायव्वाणि भवति सुतग्मि को दोसो ? ॥ ७ ॥ अयितं बहुअरहसमपारधारए पुरिसे दुग्गतगमाहविवजह बगहीरगादीया ॥ ८॥ जह माहणं रत्याए बहरहीरो नही तो अण्यस्स दरिसिओ तेगवि अष्णस्स सो सिद्धो ॥ ९ ॥ एवं परंपरेन गओ तु सो ताहे । ताहे दडिओ रन्ना हुडो व सो बहरहीरो से ॥ १६८० ॥ एवं अपरिणयस्सा किंची अववादकारणं सिद्धं सो कयति अन्नेति परंपरेनं चरणणासो ॥ १ ॥ तम्हा परिच्छिऊगं देवं विनिवदपेटस परिणामगरस जहणो व उ देयं अपरिणामस्स ॥२॥ दयिकप्पों समभिगओ ण मणिय हे तं भणामिति। सो मन्नती विसेसो इणमो वोच्छं समासे ॥३॥ दयं तु गेव्हियां सुद्धं गविसिय गवेसमा दुविहा अविहीय विहीए या जहिय इमं मुणेय ॥ ४॥ दाणि जाणि काणिवि ग्रहणं लोए उति साहूणं तेसिं तु संम मग्गमाणे ग उ साहते अर्थ ॥ ५ ॥ अवहीय दोस पहिलेजस ज्झायनिक्खमपवेसे। णवकगहदुयचउके एते सच्चे ण पाचेति ॥ ११६॥ ६ ॥ सालीत्बीमादी आहारे फरिहमादि उहिम्मि रुक्ला पुण सेबड़ा एमाधिगमो हु साहूणं ॥ ७॥ एयाई पुच्छिऊणं करण पाणि? तहिं नहि गच्छे अविहिगवेसण एसा जह मणिया पिंटजुनीए ॥८॥ आरोहण नाण दहिं होइ निष्फली येणमिरिए पिप्पलिजगतगुलमादी ॥ ९॥ हिमने पिवलीओ मलए मरियाण होइ निम्फनी हिंगुस्स रमदक्सिए जीरगमादी व जो जत्थ ॥ १६९० ॥ मा अम्हं अडाए गावो कीना हटाव ढा या फलमाटीमा खोव रोषितो अम्ह जट्टाए॥ १ ॥ एमादि विमग्गंतो पनयं नाणादियाण परिहाणी तह बन्यपायसेजाण मरेनि सो अंतरा चैव ॥ २ ॥ एवं सो हिंडतो असं पाणं च ठाणमुपहि च कह उग्गमे कह वा समा कुण हिंडतो ? ॥ ३ ॥ जो निक्खमणपचेसे कालो भणिओ उवास उडुपद्धो बुधकं उडुबडे बिहारो हेमंतनिम्हासु ॥ ० ११५४४॥ गमवावा एलो कप्पो जिहि पन्नन्तो एयरस संखमाणं बोच्छामि अहं समासेण ॥ ० ११६ ॥ ५ ॥ दोषि सया चताला उदुपदे एलिओ बिहारो उ बासामू पणासा पागं पण हसति एवं ॥ ६ ॥ पुरपच्चिममाणं सोसि एस कालवोच्छे विहिते विराहितो होति सो नियमा॥ ७॥ ताख उत्पत्ती न] एसिया सिदा जस्ता निष्प से गंतु एसएमइमे ॥८॥ अजय दुइ वा गार्ड दबकुलदेखभावे य पुच्छति सुदमद ताहे गणं अगणं वा ॥ ९॥ अहया पुट्टो भणेजा समणादिकयं व अह निखिनं प वापि नये तत्थ उदारा इमे होति ॥ १७०० ॥ समणे समणी सायय साविगसंबंधि इदि मामाए। राया तेणे पक्लेवे या निक्लेवयं कुजा ॥ १॥ दमए दुभगे महे समने उसे य तेण न य णाम न बनाई दुहे रुडे जहा ॥२॥ एनसि दाराणं विभास भणिया जहां य कप्पम्मि स क्षेत्र निरवसा नायका सदसु ॥ ३ ॥ जंग जाइ दो खित्ते प होज काटे थे नहिये का पुच्छा ऊ जह उलेणीए मंडे ॥ ४ ॥ एमेव माहमासे किराए संख टीएं का पुच्छा वकुलम्मी बहुए दम का पुच्छा ? ॥ ५॥ तम्हा उ ग्रहणकाले मूलगुणे चैव उत्तरगुणे व सोहेजा दहस्स उन मूडओ तस्स उप्पत्नी ॥ ६ ॥ किये पामिचे खिजए पनि निक नितिमयं समाणित होति निष्फलं ॥ ७॥ कंडितफीतादीया मादी तु होज समणा निष्फली सा उ नये आयट्टा कासु निष्फलं ॥ ८॥ तं होइ कप्पणि जं पुण समण होज निष्कणं तं तु कप्पति एवं चोदाए १०९७ कल्पायं - मुनि दीपसागर ~ 37~ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ------------- भाष्यं [१७०९] ------------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य ONAAN प्रत सूत्रांक [१७०९] दीप अनुक्रम [१७०९] भचोदनो इणमोस निष्फनिओ य निष्करणमओ व गहगं तु होज समगरस। निष्फनिओ जसुदे कहष्णु निष्फण्णते सोही ? ॥१७१०॥ एवं गवेसियो कि एनड्डाण परिचर्ता भणनि अफासदमेण व गहगं तु साह॥१॥ तो तेणं साहर्ग किक होइती विमान गविहे )। अाणपिय एमकुले ण आगरों सव्वदव्याण ॥२॥ तिकदुपमादीयाणं सकदवाण संभवेगकुले । ताणि य गनेसमाणे हाणी सभेप नागादी ॥३॥ नम्हपार्ष परिहर जपप्पविनो विनति र अप्पाप साईनो विपतनियन पसाहेति ॥४॥ निष्कत्ती समणहा समनहाजच होति निष्फणा गहियं होज जयंतेण तस्य सोही कह होइ? ॥५॥ सुयणाणपमाण ऊ उवउलो उनयं गवसंतो। मुबोध जर बायण्णो खमओ इय तो असदमायो ॥ ६॥ जो पुण मुमधुराजो निमामो जइपि सो उ णापण्णो। तहचिय आवण्णो बिय आहाफम्मं परिणजोय ॥ ७॥ एयस्स साहणटुं अहया अपि मनाए एत्या कारगमन इणमो तमहं | वोदई समासेण ॥ अंगम्मिवि चितिए ननियम्मि जे अन्य कुसा ! जिणदिवा । एतेसु जुत्तजोगी विहरतों अहाउयं (ज)ज्झे ।...११४९॥ जंगमहणा पढर्म आचारो तस्स चितियमुयसंधे । तस्सपि बीबजायगे उद्देसे तस्स नतिपम्मि ॥१७२०॥ जन्धेय सुन खलु से य अपसंण होज सरमो उ। अहवाचिनईएनी अमायणम्मी तजम्मि ॥ १॥ तस्सवि नतिउसे आदीसुनम्मि जसमक्वायं । अदि संकमो असुदो ताहे जयणाएं जनो उ॥२॥ देसूर्णपिद कोहि अपनो सो विसुन्दरती णियमा लम्हा विशुदभावो मुजाति नियमा जिगमयम्मि ॥३॥ बाहिरकरणे जुत्ता उपओगमहि हिजो सुतधराण । दोस समापण्णोषि णाम जिणवपणजी सुदो ॥४॥दव्येण या भावेण व सुदमसदेय होइ पाभगो । तइभी होम विदो पडत्यो उभयह असुबो चितिओ भावविसुद्धो दध्वविसुद्धोय पदमओ होहा अहवापि दोसकरण दोभाषे यदुनिह तु॥६॥भापपिसुद्धाराह(हार) काओं दो वहानामुदाय। जिगदिदा दोसा रामादी नेहिं ण उलिपे एनेसामण्णतरं कीवादी अणुवउत्तों जो गिहे। तहाणगावराहे संवदिव्यमोऽवराहाणं ॥८॥ आपणे सहाण दिजा अह पूण पहूं तु आवाणे । नहियं कि दाया? भण्इ इनमो मणह पोचई ॥५॥ नहिये कि दावा? तो पछेदो तहेव मूलं वा । कत्येयं मणियंती ? भण्णनि तु मिसीहणामम्मि ॥१७३०॥ बीसहमे उसे मास परम्मास वह यम्मासे । उग्घातमणुग्धाय मणिय सर्व नहाकमसी ॥१॥ एसो उदपियकापो जहकमं वपिओ समासेणं । एनो य खेतकर्य बोचहामि गुरुपएसेणे ॥२॥ आदी छकनियनी उ पग्गिया अस्मि जश्मि खेसम्मि। एतेसिं सनिकासे साबोमणी पसे खेसे॥११ ॥ विश हकप्पो आदी नह जारिसमा गिसेविया सेता। अपमासिषमादी ग कापती तारिले वासो॥४॥ खेमादि अल तो पडिकुडेहिपि वसति जयणाए। दुबगादी संजीमा वक्तार्ण सत्रिकासम्म ॥ ५॥ अक्सेमे असिम्मि य असि बने रसिज अखेमे। तहियं उपहिपिणासो असिवे पुण जीवणासो उ॥६॥एवं ओमादीस संजोगा तिगचउकगादीया। पसिया जेसु जहा तमहं वोच्छ समासेणं ॥ ॥ करजोगि सनिकासे बहुत जरथुपमाहं जाणे । पोषतरियं च हाणि तत्वाऽभयरे दुपिहकाले ॥८॥ एतेसामनयर आलंपणपिरहिजो बसे खेले। कालबदुवावराहे संपढियमोऽवराहाणं ॥५॥ संबढियापराहे तबो व दो व्हेव मूलं वा । आयारपकाये जे पमाण णेमाण चरिमम्मि ॥१७४०॥ एसो उखेलकपो अरुणा बोच्छामि कालकार्य तु। जाचातुतं तु मी अनुपाले ताब सामने ॥ १॥ गीयसहाओ विहरे संदिग्गेहि व जयगजुली उ। असतीवि मग्गमाणे खेले काले इभ माणं ॥२॥ पंचब उसनसने अनिरंग वापि जीवणाणं तु । गीयत्यपादमूल परिमगिजा अपरितंतो ॥ ११७॥३॥ एक व दो पतिष्णि व उकोसं बारसेव वासाई। गीयत्वपादमूल परिमोजा अपरिलतो ल०११८॥४॥ पंचवडसन सने अतिरगं पावि जोयणाणं तु । सविणापादमूल परिमग्गिना अपरिनंतो एक व दोपतिष्णि व उकोस बारसेव नासाई । संविग्गपादमूलं परिममिजा अपस्तितो ॥६॥ संविग्गी गीयत्यो मंगवाडके उ पढममुपसंपा। असनीइ ननिय चितिए चउत्थगं दामोउ जसपे ॥ ७॥ उकमओ खलु महगा पनुरोहमा पउत्पनंगम्मि । जस्साडा उपसंपद व नस्थि वउत्थभंगम्मि ॥ एतेसि तु असंभे एगो पामावहारमकरतो। रिहरेज गुगसमिदो अगिदाणो आगमसहातो॥५॥ कालम्मि संफिलिडे कायदयापरोपि संविग्यो। जयजोगीग अलमे पणगणनरेण संवासो ॥१७५०॥ पणगणतरं पासस्थमादिभंगे मजस्थए जयणा । जत्थ वसंती ते 3 ठाति तहि पीस बसहीए ॥१॥ तेसि णिदेऊणं जहनन्य ण होग अननसही उग बहेन वा उक्त वसेज नो एकरसहीए ॥२॥ अपरीमोमोगासे तत्व ठितो न पुणोविय जएगा। आहारमादिएहिं इमेण विहिणा जहाकमसो ॥३॥ आहारे उबहिन्मि पोटानागादकारणे बानिराधामापहारजिटो असती जनो मतो गहणे ॥४॥आहारउयहिमादी उपादे अपणा विसुदंता असली सतलाभस्ता जो सेसि साहुपक्सीजो॥५॥ सो उ कुलाई पुष्टिजते उदाएति वापि सो सेसि । नहवी जलभतो तु जयनी पणहागि जा लगा ॥ ६॥ संक्मिपश्यसहितो ताहे उत्पादएन सुदना असती पणहाणीए जइत्तु असे पटिहणे ॥ ७॥ तद् असती तम्मायणमागीय मिहती सहि च। नियगेऽपि पटिगहमे गेहति पासस्थपाया ॥८॥ उपाहि पुराणहितं जपरिभु तुगिहनी सिा असतीलएपरपिय जदिय निमाणो भवे तस्य ॥९॥ तस्थावि जाइज एवं असली सव्यंपि से करेजितरे। अहवा तेवि गिहाणा हज नाहे करे सोऽपि ॥१७६०॥ एतत्य अछिनि गच्छे । गणोष्णजंतु साहिनी कीरनिगपमाओ खलु नम्हा करणों काययो॥१॥डीहोय महतो वा कम्मोदयओ हवेज आतंको। मदहो अदिग्घरोगो तश्विरीमो भवे इसरो ॥२॥ कालचा बा खलु काय होइ अपमनेणं । उपदे बालासु दियराउ परकमेन तु ॥३॥ निणयमासियम्मी निजर गेलण्यकारने विउला। आतंकपाउस्ताए कतपटिकइया जहनेणं ॥४॥जह भमरमहुयरिंगणा गिवयंती कुसुमिवम्मि पसंडेय होइ निवडयन गेलपणे कदयाजदेणं ॥२०१२५॥५॥ सयमेव दिपाढी फरेति पुर्यातजाममा पेज। विजाण अगं पुण गायकमिण समासणं ॥६॥ संदिग्गमसंनियो विद्वत्ये लिमि सापए सम्णी। अस्सणि सपिण इतरे परतिस्थिय कुसल तेहगई ॥ ७॥ परविणमलममाणे पत्थु लवियागं भवे किचि । नत्य उमणेज कोई सके तुटवे दो दोसा ॥ ८॥ संसतंपि य सुक्खं तू, अणिहूँ च सुसाइगं । सुसारस्थ तग होइ, इतर दोसा बहु इमे ॥९॥निटे दवे (निबोदए)पणीए अपमजग पाण तक्कणाऽऽपरणा। एए दोसा जन्हा नम्हाउन ठाविना ॥ १७३०॥ भणइ जेणं कर्जतं ठावेना सहिंतु जयणाए। आतंकविवनासे ठरो बहुमा बगुष्मा य॥१॥जसेवियत किंची गेलम्ने तं तु जो उ १०५८ पत्रकल्पभाय - मुनि हीपरजसामना TATTRVAT ~38~ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ------------ भाष्यं [१७७२] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य हो मेलको वेव पवादित पर लिग वापि मा यो च यो वा रस जिसेवी गुत्तरिया बसमा जोमा महानतावराहे संबढियमोऽवराहाणायपरंपरागते अत्थे। आगाढकारणेसु महाराणा पुढी एगुलरिया व होइ दबामामएस कि कुणिमो प्रत सूत्रांक [१७७२] दीप अनुक्रम [१७७२] पउणोऽपि। आसेक्ने उ साहू रसगिद्धो सेलजो चेत्र ॥२॥ तंबोलपत्तनाएग मा हु सेनापि न पिणासिजा । निहती तं तृ मा अण्णोऽनी तहा कुजा ॥३॥ कालपाहिगारे पस्थिए होतिमोऽपि तस्सरियो । कालविकप्पऽशोऽत्री अतिवादीओ मुणेयध्यो । असिवे ओमोयरिए रायगुडे पयाविहे पा।आगाढे अन्नलिंग कालाखेषो व गहणं च॥..११९|| असिवे जति जतिपंता लिंगविवेगेण तक्रसणं गच्छे । सनत्थ वाचि असिवे कालखेचो चिचेगेणं ॥६॥ आमेऽवेव कुजा पवादिदुट्टेण बुद्धिणो णात । तस्वविय अण्णलिंग गिहिलिग वापि भासेना ॥ ७॥ एवं चिय आगाद अहवा देहस्स जा उ पावती । णिचिसयाणत्तीण व भत्तस्स णिसेहणा घेप ॥ ८॥ एनेसामन्नतरं अणगादि लिगि(दालंच)णो सेवेजा। नवागतापराहे संचदिवयमोऽपराहामा सबढितापराहे नको बछेदो तहेब मूलं या आयारपकप्पेज पमाण निम्माण चरिमम्मि ॥१७८०॥ एसो उकालकप्पो एसो पोचहामि दस का सहारा न लावणं तू जिणोपदहेसु मासु ॥१॥ उपस्यछकायस्सपि आयरियपरंपरागते अत्थे। आगाढकारणेसुं सदसु णिसेवर्ण तत्य ॥२॥ उकाए सहहिउँ इगमन्न पुगोवि सहया। जागाडमणागाटे आयरियां तुजं तस्य ॥३॥ दोर सेते काले भाचे परिसे तिमिच्छि असहाए। एएहि कारणेहि सत्तपिद होरागाई ल.१२०॥४॥एगादीया पडदी एशत्तरिया यहोड दाणओमस्थगपरिहानी दशामादं वियागाहि ॥ ल०१२१॥५॥ जंपति पुगो विना सचिन बलम व वा वा। अप्पटिहणतो अच्छा उहिसिउं जाच सो ठाति ॥ ६॥ जाहे उबिडहाणी नाहे ओमत्यहाणिए भणति। अम्हे करमा जोग अलमें एवस्स कि कुणिमो? ॥७॥ एवं तु हावर्यता सेनं काले च भावमासज।। वाजहंसी जाब उसमे जेसि तु दवाण ८० अह पुण भणेज एवं अवस्समेतेहिं कल दवेहिं । एतं दवागाट नहिं जए पणगहाणीए ॥९॥ खेनागार्ट इणमो असनी खेत्ताण मास जोगाणं । असिचं वा अन्नत्या पदीय का होज - स्था ॥२०१२२९७९०॥ आपरियादिगारम अहवा असत्य साया होजाअंतर जहिचगम्मद वाला तहतेणभियं वा ॥१॥ एएहि कारगेहि खेसागादम्मि एरिसे पले। अति असदभाषा एगवसेनेऽविजयणाए ॥ल०१२३॥२॥ कालन्स वावि असई वासावासे पियारणा नत्यि। एएहि कारणेहि कालागाउँ रियाणाहिल. १२४ ॥३॥ वासाजोमा खेतं पटिलेहेडं तु कालोण पहुनो। वचंताग व अंतर वार्स तू नियडियं पापं ॥४॥ डहर वर्षातरवेत्तं ताहेतचेच पुत्रलेतं तु । गंतु वसती वास समतीने बीतवसरातं ॥५॥ अतिउकडं व दुक्ख अप्पा पा वेदणा इस्ये आउं। एएहिं कारणेहिं भावागावं बियाणाहित..१२०॥६॥अचुकट मूलादी अहिटकाई उ वेदगा | अप्पा। नत्थऽग्गिनायणादी देहयोदो प गादादी ल० १२५ ॥७॥ जम्मि पिणडे गच्छस्स विणासो वह प णाणचरणार्ण। एएहि कारणेहि पुरिसागार्ट विषाणाहि ॥ ०१२६ ॥८॥ तस्स उ मुद्दालंभे जाबाजीवं तु (पि) होतामुदेणं । काय तू निषमा पुरिसागाद भरे एनं लि०१२७॥९॥ जेण कुल आयतं तं पुरिस आयरेण रक्खेजा। बहुतुंबम्मि पिण्डे अश्या साहारमा होति ॥१८००॥ संजोगदिद्वपादी फासुगउवदेसमासु जो नुसतो। एवारिसरस असती गायब निमियामागाई । ००१२८॥१॥ मजणनिविभासा असगे पाउरणए व पाणे य । केवडियाण पदाणे अण्णहचित्तो गिराणो वा ॥२॥ होजसहायरहिओ अवत्ता पापि जहर असमस्या। एय सहायागाई गम्हा उ मुगीण विहरिनाल.१२९॥३॥जाचति पश्यमम्मी पटिसेवा मुलउत्तरगुणेसु । ता सत्तासु सुद्धम् सुद्धमासुद्धा यऽसुद्देसु ल०१३०॥४॥ आगाइमणागाडे एवं जंजस्य होइ करणिज । तं तह सरहमाणे देसगकप्पो हबह एसो ॥५॥ एसो सणको अहणा सुतकप्पमो उ पोपहामि । जे तस्य होति विहयो अहिजते जेण वा विहिणा ॥ ६॥ दुनिहम्मि आगमम्मी सुने अत्ये व जे जहिं भावा । सुनमसुनकडाणं परित्यरं ताण अरणं ॥७॥ विचारो णाम सम्मि , गहिए अन्यो ऊ दिजती । सुने अहि जियायेत. मजादा उमा भये ॥ ८॥ पडिलेडण काऊणं सजाय पडवेउपहादी । आयरियादिणिसेज करेड पच्छा य समायं ॥ ९॥ पोरिसि सात माय (कार्ड) चरिमाए पदिय पत्न पडिलेहे। ताहे य अस्थपोरसि इमिणा विहिणा करती ऊ॥१८१७ काउस्सम्गे परखेचणाउ विकहानिमुत्तिया पयतो (ना)। अम्मुडाणे चा कालणाय अक्सेय साहरणा ॥१॥ अण्णोत्रिय सुयकप्पो सोयवं मंह. नीय राइगिए। अणुजोगधम्मवाए किनकम्म होह काया ॥२॥ वक्साजो सुतकप्पो एनो वोच्छामि अायणकप्पं । दाया जेण विहिणा जग्गजनम्म पानन ॥३॥जोए परिवाए अपरिह व अरहे व विणयपरिवाणे। मुत्तस्थनभएमुंजे अज्झायगेसु अणुभाग..१२१॥४॥ जसमागादो जोगो ने आगाडेण चेत्र दाया। अणगादे अणगाडे एनो वोच्छामि परियागं ॥५॥ ससपरीमाणं भणिय मुत्तम्मिा तिपरिसादीयं । न नेणं माणेणं उदिलिया भये सुन ६॥ खुड्डियविमाणपविभत्तिमादि बीहविय तु (चित्तपस्यिाए। णवि बिजती अपरिह अणरिह से तू इमे होति ॥ ७॥ तितिणिए चलचिते गाणंगणिए य दुचलचरिने। आयरियपारिभासी बामाबढे य पिमुणे य ॥८॥ आदीअदिभावे अकडसमापारिए तरुगधम्मे । गनि(रिक)य पदण्ण गेडा ठेक्सएपनए अत्यंडहरो अकुलीणो चि(नि)य दुम्मेहो दमग मंदबुदिनि अपियरपराभलदी सीसो परिभवा आयरिए॥१८२०॥ सोऽपि य सीसो दुविहो पापियो य सिक्सिओ चेष । सो सिक्खिओऽपि निविही मुत्ने अत्थे तदुभए य॥१॥ एतेसि अणरिहाणं जे पडिलक्सा उ होति सबेसि । परिणामगा य जे तू ते अरिहा हॉनि णायका ॥२॥ एनारिसे विणीए सुत्ते अत्ये | य जनिया भेदा। अज्झयणुरेसेस य ते सो असेसिए दिजा ॥३॥ एसजमायणे कप्पो एत्तो योच्छ वस्तिकप्पं तुाजे तु विहाण चरिते क्वेसु गुरुलापर्व चेव ॥४॥ पंचविहम्मि चरिनम्मि बणिया जे जहि अणूभाषा। एसो चरिनकणो जहरूम्म होइ विष्णो ॥५॥ सामाइयादि पंचह अणुभागा तेसि जत्तिया मेदा। नपर्षचम्मि कतई भारियर लहुतरं किं पासबगुरुली यऽहिसा तीसे सारस्रवण सेसागि । भरतं च ततो ततो अदल मुख तो ४०० १३१॥७॥ सालाओ परिगहो सको प्रस्थादिरागनिम्गहणं । लोगे पुण गुरुगतरो सवेसि भवे मुसाबादो ॥8०१३२०८| काऊणवि संचरण मुसवमागं तु सामंगेऽपि । म भपति पाणलोपो नेण मुसं भारिश होए ॥९॥ जहणगा उ केती अभयंता मुसित मिगपिहार। णियडीय नि धम्म सुनेमु अह भिड़गे ते य॥१८३०॥ सोउं मिटवतारा विणयं काऊग मिाए आह। अजयभिई जम्बो सत्या ते देह ॥१॥ मुलबजा चाएमो धारेमो गेव्हिउंबते तेणा। पीसस्थभिगाणं मुसिउ विहारं समादत्ता ॥२॥ भिच्छू लवति तेणे घेनुं सिक्लाक्याणिमा अनो! मंजह वदति नेणा गहु पचवाय मुस अम्हे ॥ ३॥ गुरुलाघववक्रवार्ण एवं तृ सोहि कारणा १.९९ पत्रकायभायं मुनिटीपलसागर ~39~ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ------------ भाष्यं [१८३४] ----------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य प्रत सूत्रांक सिविमा [१८३४] दीप अनुक्रम [१८३४] भिहिता पत्तम्मि कारणम्मि उ लावतरं पुर सेविजा॥ ल०१३३ ॥४॥ काणि पुण कारणाणि जेसु उ पत्तेमु जयणपडिसेवा । भनाइ वाणि इमाई कित्तेऽहं मे समासेणं ॥५॥ गच्छाणकंपयाए आयरिय गिलाण भारतीए । पहिसेना खाल भणिया एते खल कारणा ते उ६॥ चोहियतेणादी गच्छसाडा गि(बाग)सेवणा होइ। आपरियाण व अड्डा विभास विस्थारओ एवं ॥७॥ गाउं तुंबविणार्स अरगा साहारमा ण एवं ला आपरियस विणासे दी गच्छविणासो धुर्व एवं ॥८. आगादे गेहणे कंदाति विभास आवती पाहा। दवावति खित्तापह काले तह भाषजो चेप ॥९॥ एएहिं कारणेहि अप्पत्तेहिं तु जो उ सेविना। सुहसीलयाए जो (सो) आवजनिणविय मुन्झतिहार १८५०॥ जो पुण पते कारण जयगा आसेपर्ण करेजाहि । तस्स चरितविसुदीजह भणति जिणो हितं इणमो॥१॥ गण्डाणुकंपयाए आयरियगिलाणापदि चिदिपणे । जत्थेष य पहिसेहो सचरित्तासेवणा तथा ॥२॥ पुरिनमस्स पनिछमस्स यमज्झिमगाणं तु जिणवरिदाण। आसपणा यसचरित्नया य अत्येण अणुगम्मे ॥३॥ वयभंगपि करेंतो जह सचरिती कहं तु अत्येणं । अणुगंवा एवं' भन्ना आगादकारणो॥४॥जे केअवराहपदा किम्हा सुका भये पपयणस्मि । गिपरिसपरिणाए एगठाणे मुगेमा पहिसेहोऽणुण्या पा पायच्चिने यजोह निच्छदए। ओहेण उ सहाणं अत्यविरेगेण योगदिय।।..१२२॥६॥ हिंसादवराहपदा किण्हे अणुघाति सुकिला लगा। मणिपरिसपरिच्छणा खलु जह कण तापनिहसेसु ॥७॥ एवं परिच्छिऊन आवश्यं गच्छमावती जंतु निस्यास्यम्मि पते जयणाएं निसेव सपरिती ॥८॥हाणा मूलनर रणे अजए यहोइ पहिलेहो। कप्पेजयणा (पुत्ला जो पुण निकारणासवे ॥९॥ पायच्छितं पाचति तं चुचिई ओहियं चणेच्छाय। ओहं तु जमायणं नं दिनति नम्मि सहामं ॥१८५७॥ गिच्छदयं अत्येणं बीमंसित्ता उ विजनी जंतु। एवं अत्यविरेग चोकडिय उनिह इणमा ॥१॥ कस्स कहं कहिं न वा कदिया चुकम्मि केचिरं होइ? । छहाणपदविभतं अत्यपद होवोगडियं ।।...१२३॥२॥ कस्सति गीतागीतस्स पाविकह जयण अजयणाएगा। कहि जवाण वसते कतिया गुसुभिक्सभिक्से॥३॥ अहवा दिन Hओमा कम्हिन्ती कारणे पडतरे पा। कम्हि पुरिसजाते आवरियादीण अण्णतरे ॥४॥केचिर कतिबारे खल केवाका य सेवियं होजा । एवं छहाग एवं सुद्धासुदे अमुद्रियरे ॥५॥ संपवणधितियाणं सहण अरहं तु दिजए नन्य। असहूअधिरादीणं दिजाति थाएति जं वोढुं ॥ ६॥ सोऊण कप्पियपदं फरेवि आलंपणं महविहूगा। रहसं च अणरहस्सं करेइ माइयो पुरिसो ॥ ७॥ माइहाणविमुको अकप्पियं जो उसेयते मिक्स्स्। तं तस्स कम्पियपद मायासहिते चरणभेदो ॥८॥ एसो परित्तकप्पो एनो पोण्डाभि उवहिकार्य तु । सो पुण पुधानिहितो ओहुम्मह(जू)नो पेच ॥९॥ जो उ विसेसो एवं ने नवरं यह अहं तु पसामि । सुडग्गमादिएहि पारेयको जहाफमसो ॥१८६०॥ फासुयमामुए यावि, जाणए या अजाणए । ओहोपहुबग्गहिने, धारणा करमा केचिरं? ॥१॥ जड़ कामुकही कारणे गहिओ तू जागएन तो धारे । जो जुणोऽजुपोषि हु आपको तु गुम्मति २॥ कासुगे अजानगएण कारणमहिनो घरेजते ताच । जापण्णो उप्पग्णो ताहे उ विनिचए न तु ॥३॥जह पुण अामुमो ऊजाणगगहिजो उ कारणे होजा। जागीयस्था सो तो धारेंनी उ जा जिष्णो ॥ ४॥ अम्गीतविमिसोहि अापमम्मि । नं विगिनि । अह पुण असुओ ऊ कारणे गहिओ जगीतेणं ॥५॥ उप्पण्णे उप्पण्णे अन्मम्मि विगिंचती ऊ सो ताहे । एवं चउभंगेण धारणता चा परिहवणा ॥ ६॥ सो पुण दुपिहो उपही पत्य पातं च होत चोदई । वयं तु बहपिहाणं पाता पुण दो अणुण्णाता ॥७॥ चोदेती चहं किग्णवि एगो पहिगाहो होइ। ता दो एकेकस्स ऊ? भण्णइण पहुचए एवं cा तो चउ तिण्ड दुपहं अहया एककतस्स एकेक । भष्णा पाहुणगादिसु वाहे किं काहि लेकेणं? ॥९॥ अप्पा परो पपयर्ण जीवनिकाया य पर हतियं । पारत्नमवितो तम्हा दो दो उपेत्तव्या ॥१८७०॥ भणति जदेवं तेण जिणकप्पी एमपातो कहा। भणा कारणमिणमो सुगम् जेजेगपादो उ॥१॥ संगहियकुछि जसपाहिय अप्पाहारे चियत्तदेहे या णासम्णेऽणावाते णानिगिने उपिय माण ॥१.१२४॥२॥ तिचाली अभिनयमो कंकरगहणी व संगहियकुण्ठी। जोषणमपि गछिजा सचाडो पंडिलस्सऽसती ॥३॥ जसकारि पत्यणस्सा | जेणाजसो होइन तण करेनि। पहियएसणाहि यग यापि सुलभो ते आहारो ॥४॥जविवियह कुरिछपूरं लमति कदाती बहस कालस्सा तंपिय से विबंसह तत्तकडित रजह विद ॥५॥ तेणाप प से तो गपठति जाना सारिवनस्थिान याहा उपजति चत्तं च सरीरगं तेणे ॥६॥णास जाइ बहिल, णाचात नियमेण उ।विच्छि दूरमोगाट, समोसावितलियं ॥ ७॥ मिक्सिपि पडियाहर्ग पोसिरि यसो उ जिये। एएण कारणेण शिणक- 12 पिर एगपातो 3 10 पातदुगस्स उ गहणे कारणमेस समासोऽभिहिये। जहणा तु चोदयंती कि पेप्पद वस्थमतिरंग? ॥॥कि विहिग पहुपेजा एकेणाबहादणा पकप्पम्मि? गच्छे सकारनिय चोच्छेदकरो पसगरस.१२५ ॥१८८० ॥ चोदेती कि निण्हं गहण ? उणेहिं जंप संघरति । भषणति एकनानि हु संघरति ? पुणाह तो सूरी ॥१॥ छादयतो णासणजो उगेण कता भने पकापस्स। मार् पसंगविवढी ऊगऽहित नेण धारेति ॥२॥ गच्छो सकारणोनी गिलाणबुदे य बालमसहादी। तेसऽहा अतिरेग पेप्पद मा होज दुलमति ॥३॥ सीतादिभाचियाणं मा हुणाणादिवाण परिहाणी। होजाहि तेण गेहति संवरती जापतीएणं ॥४॥जदिएपविषहणा नवनियमगुणा भवे निरपसेसा। आहारमादियाण को णाम परिम्गाई जा ॥५॥ पंचमपोचपातो चोदेती बत्वमादिगहमम्मि। एगोषपाए पातो पंचाहपि बयाणं ॥ल. १३४॥६॥ एवं तु चोदितम्मी ति मुरूम यु परिगहो सो 31 संजमगुपोचकारा उपचाति परिगहो होइ॥ ७॥ जम्मि परिमाहियम्मी तसथाचरघातणा परतति। गहणे गहिए धरणे सो नाम परिगहो होइ ॥ २०१३५ ॥ ८॥ गहणे पुरकम्मादी गहिए पुण होति पच्छकम्मादी। घरणे अप्पहिलेहा कीरति मुच्छातजानाय॥९॥जम्मि परिमाहियम्मी तसयावरसंजमा पवत्तति । गहणे गहिते धरणे सो सू(गुणकारओ)ण परिगहो होइ॥१८९०ारागादिविरहिओ ऊसाहारावीण जंकुणा मोगा गहु सो परिम्गहो ऊनो कि मुरुमादिणं पृया । ल०१३६॥ १ ॥ कीरति आहारानिहिं ? भन्नति भगिता उ नियमसो साउ। तित्त्वकरहिं चेक उ नेण उ सा कीरए तेसि ॥ २॥ नो कि पृषाहेडं पवनयंतीह नित्यगर नि ? अह कम्मस्खयह ? पट्टो एवं इम आह ॥३॥ आहारस्वहिपूजादिकारणा ण उपरु वितं नित्यं । णाणचरणाण जहा नित्यं देसिवि विस्थकरा ॥४॥ नित्यं चहा संघो तस्स य देसंति नाणमादीगि । नित्थगरगामगोत्तस्स खवट्ठा अपिय सामवास५. नाणे भरणे गुणकारगाणि आहारउवाहिमादीणि। एतेण अणुष्णाला तहिं ठिताणं तु तो पूजा ॥ ल०१३७॥६॥ एसो उपहीकम्पो बचियओ बित्थरं पमोनृणं । संभोगकप्पमेनो बाच्छामि अहं समासेणं ॥ ॥ पुत्रमणिओ विभागो (२७५) ११. पजकत्यमाय - मुनि दीपरतसागर ~ 40~ Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ---------- भाष्यं [१८९८] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य उप्पण्णणे अहिगरणे का महाती 340 सहहि । ए प्रत सूत्रांक [१८९८] दीप अनुक्रम [१८९८] संमोगविही य दोहिं ठाणेहिं । दोसुचि पर्सनदोसा सेसे अनिरेग पन्नवए ॥८॥दसविहसत्तपिडेहि तेहिं दोहि ठायहिं । दोसुचि पसंगदोसा ग मुंजए अनसभाई ॥५॥ जम्हा उण पजनी उम्गममादी 3जे भने दोसा। एएग अपरिभोगो अमगुन्णे होइ पोडशो ॥१९००॥ तत्थ ग प त तमहं बोयामि एतमतिरेग। जे उगुणा संभोगे ने वण्णेऽहं समासणं.१॥ अणुकंपा संगहे पेष, नाभालाभेऽपिदापता । वाहने य गेलणे, कनारे जंचिए गुरू ...१२६ ॥२॥ बालावणुकंपगडा असह अतरंतसंगहहाए। केड सलवी जलदी तेसि साहिालयद्वाए ॥३॥ उप्पणे अहिगरणे काहिनि पिओसणं नु अचिदाही।ण या गपड़े पहिमा उपरोऽहनि परिभूने ॥४॥ मजा अणेक्कमागोनिकाउ मा एस (ग)च्छती पुषि जत्य उकुते महाते सम्मति मिक्सा महाली अ॥५॥ सम्हा उ दवदवस्सा पुधि गच्छामहं तु गेहं । एते ऊ परिहरिया दोसा उ भनि संभोगे ॥रणोण । एनस हिडियं आभियं तु अग्नेहिं । भोक्तति यसवरगो कनारे आणित सहहिं आएमेव अंचिएनी गुरुचि मिन्हे अन्नमन्नस्साएको पूर्ण परिनम्मति बाहिरमा बगच्छेजा 12 एने उ एक्मादी संभोगमि गुणा बनी उनम्हा खल कायमों संभोगों गुणभिएग समं ॥९॥ एवाई ठाणाई जो तुमह होतो पमादेति। अणे जातेत्ती घेतृणं जंव केई ॥१९१०॥ सेसाण पालमहा नो ने उम्मंडलि करेंनी 3। जहाउनि जुननि नाहे मेरिजा पुणोऽपि ॥१॥ अह पुण चोहनंतो बहसो गाउहए उसे दोस। सति लामलविजुतो निहंती उतं ताहे ॥२॥अह मंदलामलदीण यजो जुनती अहत्यामा सो हि खरीकर्ण मेलिना मंडीए ॥3॥कि कारण मिहणासाहुणं गुना रघराणं। ण करे तडतं तेण उणिजूहमा तस्स ॥४॥ एवं आवरिएन उ जोगो सास चे गव्यस्त । बोदवो दिहतो गए, इत्थं इमो होइ ॥५॥जह गयकुलभूओ गिरिकंदरपिसमकरगडग्गेम । परिवहति अपरिनंतो णियगसरीमाने देते। द. १३८॥६॥तह पश्यणमतिमओ साहम्मियषपडलो असदमानो। परिवहति अपरिततो लिन्तरिसमकालग्गेस १३९॥७॥जह एकमाणजिमिना मिहिणोऽपिय दीहमेनिया होनि। जिणचयणहिभूना धम्म पुर्ण अपार्णता ॥२०१४॥८॥कि पुष जगजीवमहाबहेण संभुजिहण समनेणं । सको हु(नाएकमेको नियोविवरक्सि देहो? ॥२०१५१५ फेरितयं संभुने फेरिसय पाविण संभुजे? मण्णइ उम्गममुद भुजे असुर ण भुजेजा ॥ १५२०॥ चोदेआहारादी उग्गममावी असुबमा भुजे। जे पुण अपेहणादीकालादीहि उपहय नु॥१॥ पुण मुद्दोबहिणा मा समय एकहिं न पंचना। संघासणं नम्स उपचाओ मा सदस्स?॥२॥ मनति सुदस्स जती संपास होइ उपधातो। सुदेण असुदेण(बस्सा)ऽपि पावर सुदी सबमएणं ॥३॥ अह उपपानानि मत संकासेग उमना चिसोही ने। गणु ने महामेनमय इच्छामिनओ सिदी ॥४॥ उपपानो चिसोही नापन्धि य जीवस्सभापओ एसो। उपधातो चिसोही वा परिणामपसेण जीवस्त या तस्सव पसत्यस्स उ परिणामस्स अह खणडाए । कीर संभोगविही गठपसलीमा गण्डे ॥६॥ सभोगकापदार एवं खट परिणयं गए एवं। आलोयणकप्पपिहि एलो वोचई समासेण ॥ ७॥ निहपटिसेषणाए दोडाग दुबागलाण ताणाणं जस्सेव उ अभिमुहमओ आरोएना नहाए..१२४ादा दपिया कपिया पेच, दुविहा पडिसेवगा। दप्पियाए उ दोडागा, मूले तह उनो चेच ॥५॥कप्षियाएपि एमेष, दो ठाणा उ वियाहिया। जयणा अजयणा चेन, एकेका य विवाहिया ॥१९३० ॥ जम्सेष अभिमुहानी जय काउनिहरले पुरतो। आपरिपञ्चमाया तसेच उन आलोए १॥ अहा जजह सेचित मूलमुगे र उत्तरगणे या पाणतिवानादीसु य बएमुले नहालोए ॥२॥ अहवा मोक्साभिमूहो मोक्तहाए उ अहुकम्माण। अनसोहए णमुंबनि कम्हा? णमो निसामेहि ॥३॥ जइविय नमः गुणनो होड मणुस्सो अनुवरिपसातो।ण करेवि दुस्खमोकसं साइबरणे पततिया ॥४॥ पुष केरिसगस्स उ वियडेयांव? जाणतो जो ना अविजाणते ण कम्पति अजाणतो जो अगीयाथो ॥५॥ पायच्छिन्नमयानतो, ठाणे ठाणे अहाविहि। आलोयगाए उपसंपयाए र होति पाउगो ॥६॥कि कारणं ग याणति सोहि साहुस्स सोहिकामस्सा ठाणे ठाणे पुढवादिएमु मूलसरे कापि ।। आ पाणनिधानादीसुबकारण णिकारणे य जयणाए। आलो. यणगुणदोलदरितणेणंह पाउम्गो ॥८॥ गुण अणिगृहियमादी दोसा पुष गृहणादिया हॉति। एते ण याणे अगीतो तम्हा उइमस्स गालाए॥९॥ पायक्लिन चियाणतो, ठाणे ठाणे महाविहि । आलोयगाए उपसंचयाए सो होड़ पाउगो ॥१९४०।। पडिसेमणप्रतियार निहे काले पचवोच्छेदे। एकेक उकएणं आलोषण मा पहिच्छाहि..१२८॥१॥ पहिलेवणाऽतिवारा दुविहा मूलगुण उतरणे या परिसेमणकालोऽपिय विही उउपद नासे य॥२॥ शोपिढन पपंच तविधीय तहह मोमि। वषटककायकाकायादी उकमेकेक ॥३॥ अकल्पादिङकमिणं अकष गिहिमायणं च पलियको। वनो य गिहिणिसिजा होड सिगाणं च सोमा प.४० एनेसि उनकमाणं एक्केवजन होड आपणो । आलोए तहा पच्छिने पाधि आयरिओ॥५॥ आलोषणपचहारो संपासिपवासिया अपराहा। संचासिया उगच्छे पलासिता कारणागतम्स i६॥ अहया जा अबही ना संवासी होति अबराहा। पारंची य पचासी परसति गमछाओं जेण तु ॥ पंचविडो समाओ दाणाहणम्मि भाओं संचासे । पाचालिए ण दिजति णय गहण होड काय आवनगपरिहरिए अणबढे चेष दोहासि। णचि दिजति णविधेपनि सेसाण दाण गहणं च ॥९॥ आलोषणाएं कप्पो एसो भगिजो मए समासणं । उपसंपयाएँ कर्ण एनो उसमासओ बोई ॥१९५०॥ दुपिहम्मि आगमम्मि परपणा पेप भावरणयाय । पाणवणमहणालणाएं उपसंपया होर१॥आगमहे उपसंपदा उसय आगमो भवे विहो । सुतं अत्यो यतहा पारगए तस्य उपसंपा ॥२॥दो आपरिया पारग कत्थ उ उपसंपदा नहिं कता। जो पिउणन भासनि अह निउ दोषि भासंति ॥३॥ सामा. यारी पडिहणादि जो तत्य आपरावेति। दोषि समजतेस जो पहिय धम्मकहिओ 3॥४॥ तावियर सिक्खियबा समायस्सेच जेग अंगा दोषि धम्मकहीम जो नाहियं गाहगी होई ॥५॥ गाणसतिगुनेसु दोसु अली काय होति उपसंपा। अतरंगासवर्ग बिसेसओ जो उपालेति ॥ ६॥ एतेमु विसिहतरो अन्माहितीरिक्षा उचर्सचे । इतरो होइ अजोग्गो जात्रिय सो होइ गीयत्यो॥ ॥जी उ असंचिग पुग पग्णवणाकोविदोसिकाऊ। उपसंपजा पालो तस्स हमे होति दोसा 3100सीहमुह वाघमुहं उयहि व पलितगंजो पविसे । असि अवमोपरिय धुर्व मि अण्णा परिवतो ॥९॥ तह चरणकरणहीणे पास जो उ परिसने मिपमा जयमाणे उपजदिउँसो ११०१पेजकन्यभाष्य - मुनिटीपरनसागर ~41~ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) "पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ------------ भाष्यं [१९६०] ----------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य मापानी तग साउँ । जा पा चासो अपणा पाचे ॥२॥ अयहा अगर सगह माति। होहामि चा PA प्रत सूत्रांक [१९६०] दीप ठागे पस्चियनि निणि १९६०॥ एमेव जहाउंदै फुसी ओसनमेष संसने। तिमि पश्चियनी नाणं नह देसण चरिनं ॥ पुण उपसंपजे? तत्थ इमे गच्छ होति चत्तारि। एगो देशलएरय चितियो देईन गेहा उ॥२॥ ननिओ न देनि गिहाण य देडग गेण्हती पडल्यो । पदमे उपसंपना सा उनओ णऽणुष्णाया ॥३॥ चिलिए णिजरलाभ न लमति गेलनमादिकोस् । ततिए गिलाणकारण अवसझे मरणदीसा ॥ दोणिचि चउत्य दोसा होड वन्यूय तेण सो नम्हा। पामभिम गुणा सह बनिने मे निसामेह ॥५॥ भत्तावहिसवणासण दाणगाहणे(न्टो)य एकमेकस्सा हडगिलाणे कयकारित य अणकमो ज(जोऽस्य ॥६॥जो पुण ते संतो करे उपसंपद असुदेसु । निद्वाणगामिलासी पहन बोसहुतिहाणा।। ७॥ किण ठिो सि नहि चिय? पुट्टो जपेड नस्सिमे दोसा । अप्पियसमायादी गस्थिय ते यावि जनितस्स ॥८॥रोसं आमासतित दोस अप्पणा समावजे। जोथि पटिच्दनन् सोऽपियन वेष आवजे ॥९॥ गठस्स जोवसंचे असुद्धमापाती नगं सोउँ। जो पुण पडिठमाणो अविणीयादीहिं दोसेहि ॥१९७० दूसेडग पहिच्छति न संति ने बावि तस्स जदि दोसा। ताहेज सो चरती से दोस अप्पणाऽऽमजे ॥१॥ जप असूद्ध पहिच्छति रामेणं नस्स जे भने दोसावोसतिगडाणादि ने उसी अपणा पाये ॥२॥ अव्हा अणरह उपसंपदा य भणिया उहाँति दोऽयेते । अयमण्यो उ अपरिहो मुरी उक्संपदाते ॥३॥ आहारे उबहिम्मि य पगासणा होद अपरिहमसहदे। एतणिजहा संदिग्गजणम्मि उदेसो ॥१२९४॥ आहारउबहिसेजालभिहामी नेण संगह कुणति होहामि चा पगासोलोए गऊ निजहाए ॥५॥ एए हॉति | अपरिहा निनिणिचालचिनमाविणो ने या अहवावि मंदसइदे आकहिविकहिए याति ॥ ६॥ जो पुण इमेहि पंचहि ठाणेहि पार्दै सो भवे अरहो। संगहुक्माहणिजरसुनपजवजानवोचिती॥ ७॥ तस्स पुण णिजहा बातम्स नियमेण मुरिम्सा आहारोवहिपूजापगासणा प भपती ॥८॥विणएगाहारादी उकासा तस्स हॉति दायबा। काले कालगुरूवाजे वापि सभावाणुरुवा॥९॥ उच्चसरीरो उजइपिय सो मंडलीय मुंजति कातदपिय मनगगहण सीसपटिपठेहि काया ॥१९८०॥ एस अचम्मना उ.जह गोतमसामि सामिगो मेन्हे । हिंडतस्स पुष इमे नस्स उ दोसा भयंती उ॥१॥पाए पिने गणालोए, कायकिलेसे अधिनता। मेढी कारए वाले, गणचितारहिमादिणी ॥२॥ एतेसि दारा पासागुपरि चिनिनाउदेसे। पहारे भणिहिनी चित्थरओ इह समासेणे ॥३॥ मत्तीए तु गुणार्ण पगासणा नस्स नेहि कायदा । एवारिसो महपा उजुला अणजकालीओ॥४॥ यामाहारविजड़ो तवसेजमसहिओ जिबकसाओ। बहुमुव बहुआगमिओ मनीए पगासए एवं ॥ ५॥ एसुसंपदकप्पो बोई उसकप्पमहमा उ उदिसण पावणगि य पादणया पेय एगहा। युनत्यनादमयाई पचायते नाप जाप संघा(सहा) । बहुपमपाययाए विजदे मजियतु संपा(सहा)..:१३०॥ ७॥संधानमनगमणं असिवाई पचपावणेगविहा। विजदेनी निक्सिने जोगे भाओ पूर्णपसंयो॥८॥जह कारग फेणई निक्सिनो नो सि उक्लिन पुणोवि। अह दपा मिक्खिनो तो गाउ उक्खिापनी मुजो ॥९॥ उदिग्मि य अंग सुपलधम्मियतहेर अजायगे। आसज पुरित कारण तिहाणे होइ पटिसेहो ।।..१३१४१५९०४ अंगादी उहि परिसं बटण अपरिणामादी अध्यति सहारा (यादिहि अविणीवादी र णाडणं ॥१॥नाहे निक्सिप्पनि उनिहाणे जंतु मणिय पडिसहो । सुतमत्वतदुभय एतेसि निन्छ पडिसहो ॥२॥ एसदसणकप्पो अहुणा पांच अण्णकाता कम्ही काले गहरी पत्यादी अण्णानं? ॥३॥ त्वंपादपाहणे वासाबाससु निमामो सरदे। निगपणगसत्ययुगाउपब्मि अप्पोदर्ग जाणे ॥..१३२॥४॥ वत्थादीणं गहर्ण माणुष्णानं त होइ वासामु। वासादीएं परेणं दुमासे अण्णे उमेहति ॥५॥ सेसि पुण गंगाणं सरदे जा दोहगापानी। दगसंघह जहाणेण तिणि पचेर मज्झिमगा ॥६॥ सनेर उ उकोसा गिम्हम्मी तिणि पंच हेमने । वासास य स भवे परेण खिनं गाणात ॥ ॥ अपोवानि ममा जनरीयास परिणय पुषित अडडे जोयण दयपट्टा जाव लगेच ॥ ८॥ बन्धपायग्गहणे णपर्सधरणम्मि पदमठाणाम्यिा । एनो पाकमम्मि उ सट्टागासेषणा सुदी ।..१३३॥९॥ पदयं ठाणुस्सग्गों ने तू नवसु होइ सिनेमा वन्यावीणं गहणं प्रत्येष य होइ विहारो ॥२००० ॥णनटाणाइकमे पुण हत्ती सापजो चिसदो उ। किं. पण न लडाणं अपपाडे असति तो होइ? ॥ १ ॥ अपवादेर्ण महर्ण उस्सग्मो चेत्र होइ सो नाई। गेहनस्स उ कारणे मुबी तह चेव बोदशा ॥२॥ जह गिण्हनसामे सुची पहिस्स एवं चिनिएण। गेहतस्स विमुदी सहाण एसमक्सान ॥३॥ अहवाचि इमे अण्णे, पर उहाणा विवाहिया। दवाईया उणमो, गोपामि अणसी ॥४॥ दो सेले यकाले य, पसही निक्लमंतरे। सझाइए गम जोगी, एने ठाणा पियाहिया ॥ ५ ॥ दाणाहारादिणि जादिन मुरमाई गम्मि खेलम्मि। खिर्स पिच्छि खड़पनेंतसुगंतगगणरस ॥ ६॥ वनण परिवहनी गुणेति जय गगो उपालादी। तस्स परति खेत आहारादीहि सचरण ॥ ॥ काले ननियाएं बेला बलही जोपाजो मिक्स मुलमंनि। ण विगिहमनरापिय समाजी मुमति जहि य॥८॥ सुलभ जावरियाणं जो जोगीण सुलभ पाउा। एते ने नच ठाणा जहिं उस्लमोणक महणं न॥९॥ उस्सम्मेम विहारो संघरमाणाण पत्रम् सिनेमाको सम्पादुलही नवि पेढे पापि नगपहे ॥२.१०॥ पि रे गच्छनी गनमा असंभने चितिवठाणं। दगपहे बाएकी छे दुरचि गच्छेजा ॥१॥ दुलमम्मि पत्यपाए ऊगहिएसपि नसु गम्जिा । एमेष मिारोविर्खेतागसती मुगेयको ॥२॥ आलंधणे विसदे दगुर्ग तिगुर्ण वडगुण वाचि । खेनं कालातीत समग्णानं पकापम्मि ॥३॥एम अणुपणाप्पो जहुणा अदानप्प बोकहामि। जेहि य कारणेहि अदाणं मम्मए इगमो ॥४॥ असिवे ओमोयरिए राबददुई भएप आगाढ़े। देसुद्धाणे अपरक्रमे व अदाणी पणगं ॥ ५॥ उदर मुभिक्ले अदाणपाजणं तु दर्पण । दिक्सादी पठलगा बउगुरुगा कालगा होति ॥ ६ ॥ उगमापापणएसणाएं ने स शिहते ठाणे। संनि फन्न तम्स ऊ पायच्छिनं न दायकं ॥ 30 पुढवी आऊ तेऊ ये वाऊ वणस्सनि नसा या मंतिम परिनेय यजं जहिं आरोषणा मणिया। दलहुजी गुरुओ लहुगा गुरुगा पनारि उचलहया या जगण्य उदो मूलं अगवटुप्पो व पारंची ॥९॥ असिने ओमोदरिए रायड़े मएच आमाटे। गीयत्या ममत्था सस्थस्स गस कुजा ॥२०२०॥ कालमकाले मोती पाऊणय अहिषति अनुष्णवणा। भिनयमिच्छादिडी धम्मम्हाए निमित्ते य॥१॥ सनुयसमए संखडि पत्थय(रिड) लल नहेर पोग्गालिए। पम्मकहनिमिनेणं वसहा पुण दान्दिगेणं ॥२॥ सत्ये पंथे तेगे पंचविहो उग्गही यहाण। ११.२ पत्रकम्पमाष्य - मुनि दीपरतसागर पाक करू अनुक्रम [१९६० ~42~ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ---------- भाष्यं [२०२३] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं प्रत सूत्रांक [२०२३] दीप अनुक्रम [२०२३] सुभग्गामे दरगाहणं जयमाए गीचया ॥३॥ तुबरे कलेय पने गोमहिसे सयरा व हत्थी या आतामणायचे चिय जयणाए जाणगे गहण ॥४॥ पिप्पलगसूतियारिंगणक्सचमतलियपुडगपती य । कनियकनरिसिक्कग संवट्टग लाउए चेष॥५॥ वाहयपेनिसिभियगुलिमाणं अगदसत्यकोस या पाणुपमहकरगं गिण्हह अद्धाणकप्पम्मि ॥ ६॥सीहाजुमा य पुरतो वसभाणू मम्मती समणिति। पंथे सपिय जना पनि जा अदपानी ॥ ॥ स्विमिर माहिही समुदामनिवारणं च निसिए। सारूचिसनिमम बसमा पूर्ण वालिंगे ॥८॥ उपकरणचरितानं विलोषणा सरीरलोयाणागाडे । धम्मकहनिमिण पुनागकोण आगाहे ॥९॥ असिवादिकारणेहि अदागपाजण अणुणानं । उपकरणपुत्रपटिनेहिएण सत्येण गंतच ॥२०३०॥ वताणं असहू कोण तरिन गंतु पादेहि। अपरक्कमो हुताहे तत्रियं तु इमे विमग्गेजा ॥१॥ एगवखुरे य बुखुरे दुपए अणुचंय नह य अगा। अह भदएऽभिजायति | असती अणुसहिमादीहि ...१३४॥२॥ एगखुरा आसानी दुखुरा उहावि दुपय जइरादी। अणुबंधी सकदादी अणुरंग पिसी (सिविय) पोदया ॥३॥ एनेसि पुनह सुगदि जाहतु सिद्धपुतादी प्रसनीय मुडडनो वा लिंगपिवेगेण | कइति तु ॥४॥ आचासियम्मि सत्ये तसेच तगंपि अप्षिणति पुगो। अह भगइ मता संता अयेजाहनि मम एवं ॥५॥ताहे पच्छकडाडी पारेती नेसि असा उखुइडो। लिंगविवर्ग काउं चारेनि जा गतहागं ॥६॥ एवं दुम्सु. रादीवि जपणा जा जत्य सा उ कायदा। मुलायजाणएण अप्पावट्यं तु गायव ॥ ॥ एतेसामनतरं अणगाढालेषणे गिसेविजा। तहाणगावराहे संबट्टियमोऽबराहाणे ॥८॥ संवाहियाचराहे तपोब ठेदो नहेव मूळ था। आयारपकणे जपमाण णिम्माण चरिमम्मि ॥९॥ अदागकप्पो एसो अहुणा जणुपासणाए कप्यं तु। योच्छामि गुरुपएसा अणुमहद्दा सुविहियाणं ॥२०४०॥ अणुवासम्मि उकप्पे पण्णवग पहुच बहुरिहा अत्या। अणुवासियाएं पर्व सुद्धाय नहा अमुदाय ॥१॥ अणुचासन्यो बहहा उडुबासे वसण अहन असिबादी। पढादीचासो चा अहवा अणुवसणमणचासो ॥२॥ बसिउँ पुणोषि बसनी अणुचालिग बसहि सामागी समा। तीपहिगारों एन्य सा हा मुद्धऽमुदा वा 8 ॥३॥ पट्टीसादीहि सगकटमादिएहि नह पेवा होइ असुद्धा वसही मूलगुणे उत्तरगुणे य॥४॥ कालदुवातिरिर्स अपिसुदाच तासु वसमागो। पाचति पायच्चिानं मोनूर्ण कारणमिमेहि ॥५॥ असिने ओमोपरिए रायड़े, माए व आगादे। गेलो उनिमड़े चरित समातिने असनी ॥६॥ बाहिं सात्यऽसि तत्व सियं तेण कालहुयगम्मि। युग्णेविण णिग्गच्छे अणु पच्छाभाष अणुवासी ॥3॥ आलंचणे विसुदे सुत्नदुयं परिहरे पपनेणं। आसन परिभोग भषणा पडिसेबसंकमणे ॥:१३५॥८॥ असिवादीहि वसंते सुदाए वसहीए से साहू । सुदासतीए जलती विसोहिकोडीएं पुरंतु॥५॥ भयणनिय मणितं पुषऽप्यतराऽत्य जे उजे दोसान ने पुत्र सेवे संकमणेऽजी इमा भषणा ॥२०५०॥ अप्पाचहुं नुले जस्थ गुणा तू भविन बहुतरगा। गच्छे गयंताण व तं येष तहि करेजा उ॥१॥ अलिपादिणिहिए पुण अब( पुषऽ)क्रसेपेण संकमे तनो। सत्वं तु पहिच्छतो जड अयोनत्य मुदी उ॥२॥ एनकातरविहणं अणुवासिय जे उ अणुक्से कार्य कालव्याचराहे संबद्यमोचराहाणं ॥३॥ संबनियाचराहे तबो व छेवो तहेच मूल बा। आयारपकप्पे जं पमाण णिम्माण परिमम्मि ॥४॥ अणुवासियाए कप्पो एमेसो चम्णिो समासेग। टिजकपमा उ तत्तो वोच्हामि गुरुवएसेणं ॥५॥ गच्छागुपयाए सुत्तत्वचिसारए व आवरिए। आगाहें पटमसंजत ओवग्गहिए पप्पए ॥ ६॥ गयो जदि हीरेजा आयरिय नाचि वायते कोई । एरिसए आगादे जम्मा उ जा होइ लदी उ॥ ७॥ सो तं न पमाएई पढमनियंठो पुन्यागाद्वीओं। गच्छोवरगाहहेर्ड कारण पकप्पड्डिअणुण्णा ॥८॥ दुपएति साहुसाहुणि नवहतं तु एवं मूलगुणे। मणिया सेवा एसा सीसो पुचाट र हणमो an९॥जह कारणम्मि मणिया मूलगुणेमं तु एव पटिसेपा। तह होज कारणम्मी पडिसेवा उत्तरगुणेचि? ॥२०६०॥ गुरुयतरएमु एवं मूलगुणेषु तु जइ मवेऽणुग्णा। उत्तरगुणसु तत्तो लड्वतरेखें ततोऽणण्णा ॥१॥ ठितकप्पेलो भणिओ अहणा बोच्छामि अडिन कापासलेपपिडितल्थं जह भणियमणतनाणीहि ॥२॥ पत्थे पादग्गहने उकोसजहण्णगम्मि अठिओ उ। ठितमहिते पिसेसो पापितो संपकप्पम्मि ॥३॥ परयाणिय पाषाणि य मझिमतिथंकराण काप भि। बहमोवाणिधि गिन्हा अद्वियकप्पो समस्याओ ॥४॥ मोडगम्यपि वत्थं अट्ठारसपणितरूपग जहणं । एनो य सयसहस्सं उकसमोरी तु णाय ॥५॥ ऊगगजहारसगं वयं पुण साहुणो अणुण्णान। एनो परिन पुण माणुष्णानं भरे वस्र्थ ॥२०१५२॥६॥ जिणचेरा कार्य प्रणा चोच्छामि आणपुचीए। जय जहा निपयति समासतो हा सुगम् ॥ ७॥ जिणधेराणं कप्पो जम्हा उ ठितम्मि अहिए पैसा ठितअहितकापागं जन्हा अंनग्गना) एने।ा जो उ बिसेसो एवं तु समासेण णपरिवारवामि जिणराणं काये जिणकणेता इमं वोच्छ प्रदुयसत्तए नियघाउकगस्स अडबएगदेणं अविहान कालकरणं पुणरावती पविय सिं..१३६।२०७०॥ पिंडसणा उ8 सन उहनि पासणा दुसए। पउ सेजवस्थपाए विष्णते पटकमा होति॥१॥ दोषमादिमा उ सनासु जपणे सेस उपरिमा पंच। अब हाँति छेवे दो दो अपने परम॥२॥ मेहति उरिमामु नत्य अपि पेनु जपणनरिः। बाए। हेशिलामुणगेहति जाति को कालविरिय तु॥३॥ अगाभिन्गहेग गविता गेल्हेति विही उ एस जिणकपे। अहणा उबेरकर्ष वोच्छामि चिहि समासेणं ॥४॥ गहणे पउचिहम्मि चिनिए गहणं नु परमजने। जन पांगवीयरहितं हविज तरमाणए सोही ।।..१३७॥५॥गणं घडबिहनी पत्थं पायं च सेज आहारो। एतेसि असतीए गहर्ण पदमं तु बीयस्स ॥६॥ चितियं पान मानि कि कारण तस्स गहण पदमं तु तेग विण मोडिपडिमा गिहिमायणभोगों हाणी य ॥७॥ अहमा चाउम्हि तू असणादी तत्व होजगहणं तु। तत्स्थ उ चितियं पाणं तस्स उ गहर्ण पदमताएल०१४३॥८॥ असतीय कासुपस्सा तससहिए कंदवीयसहिए वा। किं कारण ? नेण विणा / आसू पागलओ होना ॥१४॥९॥तरमाणों गेहती सुद्ध, जतरो पेहले सह संघरे। संचरंवो उ गण्डतो, पाचति सहाणपहिले ॥२०८०॥ सत्तदुए दसए वा अगठाणेण वा मोमहर्ण। एनो निमातिरिनं गच्छे महगंतु भइयां ॥१॥ पिडेसण पाणेसण समयुगे त हो गाया। दसगं एसणदोसा गहा(हा)गमे दोसा ॥२॥ एतो तिगातिरितं उम्ममउम्पायनेसणायद। भजियति कप्पविली तस्सऽसतीए अमुबंपि एसो उ बेरकप्पो बोच्च अणुपालणाए का अनुपालेति सुविहिया गा पिहिना उ जेणं तु ॥४॥ परियही परिवहतओ यदुनिहो पुणोषि एकेको। उक्सग्गवेतकालापसेण अजाण परिवही।...१३८॥५॥ परिवहिवायं खलु परियट्टी चेक ११.३ पजकत्वमाप्य मुनि दीपरनसागर ~ 43~ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) प्रत सूत्रांक [२०८६ ] दीप अनुक्रम [२०८६] “पंचकल्प” छेदसूत्र -५ / २ ( भाष्य ) यं [२०८६] [३८/२ ], छेदसूत्र [५/२] “पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...... - • ..... ...आगमसूत्र होइ एगई। समया समणीओ वा दुविहं परियहिप तु ॥ ६ ॥ समणपरियह दुविहो आयरिओ बीओ उझाओ संजय पुण निहि तु पत्रनणी तया ॥ ७॥ समणिपरिपट्टि दुषा विहिपरियही य अविहिए चैव । जनिणिय परिपट्टिया नियमेण कारणमिणा ॥ ८॥ ताओ हागादिदुचराणि तानि संपति जयति ॥९॥ तम्हा पयते रक्खपडा उताओ नियमेण गरि सतरा मोल मा होला तासि वास ॥ नाति परिपओ गुणाओं होइ पुण अणरिहो खन्तु परिपड़ी ऊ इमो तासि ॥ १॥ अपए गीयत्वे व मंदम्मिए। कंदी सीलपाए जहि दागे गणे ॥१३९॥२॥ मीय जहन्नो आवागमादिजाय आया तिन्ह समाणारी तरुणो ॥ ३॥ जो उनोगं प कुपति चरणे सो होइ धम्मो अणावादी सरीरकृषि(ओ य कंदापी ॥४॥ निकारण संजनिपसी बचाए जो निकारणमचिए जो देती ही ॥ ५॥ एवारिसी जागं परियही या कप्पति कारणेहिं इमेहिं तु गम्म अणुवस्य ॥ ६॥ उपस्त गेलणे उच्ही संघ पाहुणे संदूषण उसे. अण्णा मंडणे गणे ॥ ७॥ अपज्झ अगणी आऊ. बी (ती) बारे पुनसंग संवोसिर दोसा दिने नहिं ॥ ८॥ अरिहो अमरिो पावि परिपट्टी एवमाहिजो अणा पवित्तिणी तासि, अजोगाउ इमा ॥ पीयादेक दीडिया अजुनहि गाउादाय काहिता ॥ १४०॥२१००॥ पटणीमुलीला गिहिरेयावकारिता संतवियत्ताय बाउसी अप्पमट्टिता ॥१॥ अणायणग देसाव गाणं पलोइया जाण एवमादीप जाता ॥ १४९ ॥ २॥ आहारे उपमिती सणास सरीरे प भासाएं बाउसाणं जा जहि आरोवणा भणिया ॥३॥ वासावासं वसति तु एडिया तह यः सामगाम दुइजनी पिया बिहार भिदिएका ४ दीहं करे गोयर दोचाणि मती चित्तलयादिनियंत्रण अजुनही भवति एसा ॥ ५ ॥ इरियमासेनादाणनिक्लेवे निसिरणे अणाउता अणपृच्छाए गच्छद्र जन्थिच्छाए व सदा॥६॥ कहाकहेति काहीया तरुणादी अहिवहन अणु जागति जा उसा पटिनी ॥ ७॥ थदा जब इमयाइएहि सुहसील सीलति सिधणमादिसु वेयायचं गिहण करें ॥ ८ ॥ उक्करसवस्थपनादिएहि समासना। अहयादि मित्सु पाउरणादीति ॥ ९॥ [भ] [वा पाणं वा निक्पती वाउला उजा धुवति अभिक्वं तु हत्यपादे कारगुज्झमादीनि ॥ २११० ॥ संण्विाहिसंनियए चव कृष्इ जा पाए। दिजाय करणं तु ॥ १ ॥ नादिसाल तह को एमेव सोलठाणाणिजाए अगायतणसिता सा ॥ २ ॥ गुण पए अप अवाचि जाउ पुरिसागं उकासमाहारं एस उहि उनीससिलियं समन्योर्य उपदेह सरीरं सिगाणमादी व जा कुणति ॥ ४॥ समुहक्वादीह सविकार भारती य सकिदास एमादिपरिहारासह ५॥ पुलाव इसम पछि माई समासेण गाणं अगीतमादीण दोपि ॥ ६॥ अगि अव पारेणा तवसितं तस्म उ मासा बारिभारियया ॥ ७ ॥ सतरनं नमो हाइ नी छेदा पंचायती उदे पराए ततो मूलं नो दुर्गा ॥ ८॥ एकेक सन्त दिने दाउ पेनिच्छित दोनो आरोपणादिकडो व जि ठाणा यच्छेदाणं यह (हवं)ति दोष्णादिदोष जम्मास निरणा ॥ २१२० किं कारणं पति महतो गयो। सो पछि जयनं च जागए कार्ड ॥ १ ॥ दितो अजामा जागच काय सिमा होइ २॥ य हिणवम्मिय सरसंचाराण कुहरणायुं च कुद विवास खतु जपट्टी ३ ॥ तह कुणतिलक रणजोगेस् । सुनत्यमजाणतो नागे न देण परिने ॥ ४॥ जह गया जिओ जुए समं नातं तु विजाणतो नह कुणती सम्म करणं तु ॥ ५ ॥ किं पुण सोनचि जाणा जं कुणती सहि विद्या भण इणमा जं कृष्णती सो विवश्वास ॥ ६ ॥ समासादमाह जे अपने पविया ठाणा ॥ ७॥ उपदिसि पनि जान सामाचारं तु ठाणमादी अज्ञापि जा अगीता ण जाणए साथि तह चय ॥ ८ ॥ अपच्छेदिओ लुप ॥ १४२ ॥ ९॥ पाएमा महामित कियं कुति गलियाविव परिभूताजी [य] [सस्स ॥ २१३ ॥ मंसादिषेसियाविय संजविषग्यों पोलिओ १० जाए य संपउनम्मि पहिरोमा परी ॥ २ ॥ जम्हा दुपारिपटो अ परिवए अजोगे उब िगुरु सोही ॥४॥ माध आप सो पुर्ण सिटिटेड जो उमजाय स्वदेसी विए६॥ विइमेसि पदमा मदिरा उ तेण पटिसेहो । परिया मायाविप ॥३॥ णा की माया दढ़ा होइ ॥ ५॥ उपदेससार परिवारमा य तेग पर नि मास कह दे मे आवरण उपदेसो अकष्यप डि य उपदेसो चिकादिपमा य मा वह एस उपदेसो ॥ ८॥ गिरापमादाइ स तु खलियरस सारणा होइ कहिय ने पमाया मासीद ते जाणती । विसीए या सीईनो बुझाए पुणी इयं अष्ण के पास भी संस|| २१४०॥ कुडरले अधियत गोषी उदितो व मा हुज्झि अओ भन्न पसन्ननिनो सारे ॥ १ ॥ भणाति दिवस तुभं वितियं च सारितम्हसे सात पूण ते चि सहामो ॥ २ ॥ नाहे पुरातन हे दिगो एवं तु ॥ ३ ॥ गोणादिहरणमहिओ मुझे व पुणो सो संगहि उमणहारी न मुचती जायमानोऽपि ॥ ४ ॥ पुरविताच मास देत से सोही भन्न पनि त तुमपि ॥ ५ ॥ पुनरवि अपरम्म मासो थिय तेस दिने दहा पाणी संपत्ती अि ॥ ६ ॥ ते पर कुलचेरादि तस्स कृति जयमणोऽवी शियमो भग] नृ जस्सिमे दोसा ॥ | अप्पण्डदिव मिलादुपजग्गामा वासोऽणि कानि ॥ १४३४८॥ उमगणार संतस्स व छायणाएं मग्गस्स मग्गरवालने मासा बत्तारि मारियया ॥ ९॥ आपरिचाण उंदे टूटती अप्पनंदिनी सी आहाराको जन्तट्टि दो ॥ २१५० ॥ जीउमा अपत्यं मग सो होड (२७६) ११०४ मुति दीपरसागर ~ 44 ~ - Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ----------- भाष्यं [२१५१] ------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [9/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं नाएको माना समासात्ले नुन पुलामी बाबालक प्रत सूत्रांक [२१५१] बुपडिजम्गो उठाइसु भणिो वा पनि यतापामो सो॥१० जनादिमाविएहि करेति गई तु परिभवति । नाणादीया मग्गो पारणा असहा तेसि ॥२॥ नामानिस सीबतो न सुद्धमा तु जो परुति। एसो मग्मादो बपती दीइसंसारं ॥३॥ एतेसिं तु विवेगो मग्गधरा खलु कुलादिया थेरा। तेहिं उपलदार्ण उपद्रियाणं गुरु बाउरी (मासा) S ४॥ बालार्ग बुदागं भिक्खुमाईण चेय समिमि । संखवेण महत्यो उपएसो कीर इणमो ॥५॥ कप्पे मुनस्यविसारएण धामावहारविजटेण । भत्तादिलमडलंभे सकारजदेण होय ...१४४॥६॥ कति धेरकप्पे सुत्तत्वविसारएण साहूण। सनत्ये सबल ग गृहिया समस्येण ॥७॥ आहारमादिएहिं ददद्धं धीयारमादि पूजते । साहू अपुजमाणे ण एवं मणसा विचिंतेजा ॥८॥ पूजेती अजया वयं तु सामगमोडणााहा कह गुम पुजामो? न करे मगदुकर्ड एवं ॥९॥ सकारपुरकारे परीसहे उ अहिवासक एवं । जुरंने गाऽहियासिओं सम्हा सुमणेण होय ॥२१६०॥ बीसहनिहकप्पो ऊ एसो खल वणिजो समासेण । बायालकप्पमहुणा गुरुवएसेण वाच्छामि ॥१॥ दने भावे तदुभव करणं घेरमणमेव साहारो। निस अंतर णयंतरे व ठिय अहिए १० च।।...१४५॥२॥ठाण जिन पर पलुसलमेव सुत्ने चरितमायणे। उदेस बायण पडिभरणा य२० परियहडप्पहा॥..१४६ ॥३॥ जायमजाए विष्णमविष्णे सधारला गमेष पवणे या उपाय णिसीहे या ३० ववहारे खेतकाले य॥..१४७॥४॥ उवही संभोगे लिंगकप्प पहिसवणा य अणुवासे। अणुपालणा अणुष्णा ४० ठरणा कप्ये ४२ यबोदरे।।..१४८ एनेसि तु पयाण पतेय परुवर्ण पक्वामितहियं तु दशकप्पो इणमो उसमासओ होनि ॥६॥ पंचण्हं असणाडीच पणुचीसति हि भवे चिसोहीओ। अहवापि उपउदसया एनो निगवधिया सोही आ असणं पाणं वत्थं पायं सिजाय पंच एनेसि । सुजी पनीसाया उम्गम नह एसणाए य॥८॥ सपणाणपमाणेण उ गहिय असुदेऽपि होइ सुदो उ। अहवादि उछसया सोलस उपायणादोसा ॥९॥ एएसि सबेसि हणपवणकिगादिणकहि कोडीहि । कयकारियाणुमोदित एसा निगवदिढया सोही ॥२१७०॥ दसणनागरिने नवपपयणस(ब)समिति लिहिं गुनो।हतरागदोसनिम्ममखमदमनियमहिजो नियंशातभयकापो अहमा एने चिय दवभावकणा उ। योगिापि मिलिया एते तदुभयरपो इमो सोपा आहारे अडविहे सेनोचहि पंच पंचग विसोही । देखणचरिनगुत्तो नयसमितिगुणेहि सोहे(हो)नि ॥३॥ असणादीनी याहा उसफारि चाउबिहो य तस्सेष । एसऽवविहाहारो परूवणा नरिसमा होइ १४५॥४॥ असणं तुओदणादी तदुक्कारी उ खीरकुमणादी। पाणं तु पागमेव उ कप्परादी उक्कारी ॥ १४६ ॥५॥ साइम कलाइये न सुना(पठादी होनि नक्कारी उ । साइम तंबोलादी चूण्णादी तदुक्कारी उ ॥ ०१४७॥६॥ एवं आहारादी उगम उपायोसणासवे । उपाए दंसगादीहिं जुनो अह्वा तदहाए ॥ ७॥ रिती य अविरती या विश्वापिरती य तिविह करणं तु। एक होड दुहा आहे व अभिग्गहे पेय ॥ १४९॥८॥ चिरनीकरण आहे पंचेच महाया भांती होति अनिगहकरण पिंडविवादि रोगविहं ॥९॥जहवा आहे संजमों विभागओ होइ सनरसभेडी। अविरति अजमोहे अहारस अभिमाहे णमो ॥२१८॥ पाणबाए मोसे अदन मेहुण परिमाहे मेरा कोहमाण(मब)मायलोने पेजे होसे नहा करहे१॥ अम्भवसाने पेन अति ई पेप मायमोसे या मिच्छादसणसते अद्वारस अभि माहे एस ॥२॥ विस्ताविरतीए पुग ओहेग अगुपया भये पंच। उत्तरगुणा अभिगह हबति सिस्वावता सत॥३॥ एरय पुण अहियारो विस्तीकरण हो दुषिहणं । जह तेसु अतीयारो न हानि नह उपयतियचं ॥४॥ उजामरविसयाणे महायाण को हपति पीला। मनति आहारादिहि तिहि पीटा होतादेहि ।।.१५०००१४८ उजम उनीओ खड एतेष रक्तियाण उक्यान। पीला उपचाओ खल भवति र पुच्छती सीसो ॥६॥ भणति आहारोचहिसेगा एतेहि लिहि असुदेहि। उममदोसादीहि उ पीला संजायनि बयाणं आम्हा उ उम्गमादीहि विसुदाऽऽहारमादिया कजा। वेरमणकप एसो एजो साहारण बोच्छ ।टा सेजुबहिज्झाय आहारमेव साहार नह य अगुकंपा। आदिपणगं तु नाहं भायं अणुशासगाए ॥१५२॥९॥ सेजुबहिसायाहार पसिवा एते हॉति चत्तारि । साहारणरुप्पो पुष मूलगुणा उमरगुणा व ॥२१५७ ॥ साहारणनि कि पुण से मारपाद माण सोला सामणगुणा ने सम्हा साहारनं जाण ॥१॥ आदिपण तु ताजति जाण सेजाति जाव साहार। ठिपमहिषाण दोडवि एए खल होति BIEIR हा निषग मूलगुण पंचेते होति दोद तावा उसमणाण व समणीण प सम्हा साहारर्ण जाणे ॥३॥ भायमणुसासणंती अणुकंपऽशुसासणन्ति एगट्ठा। कोर कदाइ अमिउगोण सरति अणुसा. मानका सहभारियन होति विसुबो य अंतरपा से। तस्सनि होनि वताई पंचवि साहारणाई ॥५॥ आणा तित्वमा सामष्णा संजयाण ससा सहमेविसमाए अनुसासणयं कुगह जो ॥६॥ग अणुकंपिया णिच्छएण जम्हाणुस(उउ)द्विता हाँति। तेणऽणुकंपऽमुसट्ठी (सऽणुसणुकंपा) एगट्ठा होति नायना॥७॥ साहारकप्प एसो बाणा पोच्छामि मिचिसणकर्णाजा निरिसति समया सम्म तु गुरुपएसेणं ॥८॥ नानं च दसर्ग वा तहा परितं पसमितिगतीओ। एकासीतिपरेहि सिसि निसणारयो १०५ पचकत्यभाष्य - मुनि टीयरनसागर दीप अनुक्रम [२१५१] । ~ 45~ Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-१/२ (भाष्य) ---------- भाष्यं [२२००] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं अत्यनाणकरणस्याका कटगसंख्या व छाणा ॥ ९॥ रोबर्टति आ असंवा सामाईमावसुद्ध होड अहक्लायर्सजमा प्रत सूत्रांक [२२००] दीप ९. छबिहकप्पादीया बाचालंता उ पंचवी एते। मेलीणा उ मयंती एकासीय मवे मेवा ॥२२००॥ नवरं छविहकप्पे वीसतिकप्पे य णामठमणाओ। मोनू सेसा सो एकासी तु मेलीणा ॥१॥ एए सो सम्म निविसमागस्त निधिसणकप्पो। एतेसिं पुण कतरो महिडिनो होइ सोनि? ॥२॥ सवेऽनिवरणविसोहिकारमा तहवि अस्थि पिसेसो सरहणाचरणाए मातं पुण पालणाए उ॥३॥ सरहणकप्पो वा आचरणा व दो पहाणतरा। अहका सदहण बिय सहहिजो ग आयरति ॥ ४॥ भइयमणुपालणति य सहहिडपि ग. तर कोई। अनुपाले मना तन्हा खलु लोण पक्षाचे ॥५॥ णिपिसणकन्यो एसो एतो वोच्छामि अंतराकपा संखेचपिडियत्वं गुरुवएस जहाकमसो ॥६॥ पंचवाणमसंवा बारसगं चेष तिम्णिपि तियाण अज्मात्यनाणकरणयाएं सो अंतराकप्यो.१५शा७॥ सामादिसंजताची पंचह चरणं तु तेसि एकसंजमठाणमसंखा एकेके तत्थ ठाणम्मि दाहोति अर्णता चारित्तपनमा नाणसंखगुपियामि। एक संजमर्कदम हमसला बछडाणा ॥९॥ उड्डाणाऽसंखेगा संजमसेवी उ होडबोदशा। सामादिशेदसंजमठाणा असंखेजा ॥२२१०॥ परिहरिसजमठाणा ताहे जगति तेऽविउ असंसा। गंतून होति छिपा ताहे सत्तो पुगो परजो॥१॥बदति जा असंला सामाइयाछेरसंजमाणा। सामादिशेवठाणा नाहे छिना भवती उ॥२॥तो सुहमरागठाणा तेऽपि असंखेज गंतु बोािणा । तस्स अपच्छिमठा अर्णतगुणवदिव्यं नियमा ॥३॥ एक परमविसुद्ध होड अहसायसंजमाण। पंचमसंखसि गतं 5 पारस बार परिमाओ वपरिहारचउरो अनुपरिहारीपि गरम कप्पठितो । एते तिथि लिया खल एतेसि एकमेकरत ॥५॥ अंतरजमठाणा होति असंखा तेसिसोसि। हो निहा सोही करणे अत्यत्रो पेष ॥ता दोषिय कामा नागवाए सुनोचउत्तेण। एसो अंतरकप्पो गयकप्पमियाणि पोछामि ॥ ७॥ ससिपि गया आदेसण-18 वरपि सहाणे । एस जयंतरकणी पुषगाविसालमादीसु।।...१५३॥ ८॥सवेवि गमादी आविस्सति जो पायो उ साउदेसो। यती अमोवियत्रो गर्यतरं होई नाथ ॥९॥सहाणे - सहाणे सके बलिया हमति सविसते। एसो भपकप्पो ऊ पुत्रगतम्मी समक्खाओ ॥२२२० ॥ उत्पत्पुन चिसाल आदि काउ सम्वन्वेसु । मणिओ य णयविभागो एवं चोदेति अह सीसो॥१॥कमा कालियसुसेन नचापि समोयरति किया गयविमल होति साह्ण मोक्खस्स उ? भण्मति सुणादि ॥२॥ गवनिओपिड आई एक्सासयकारी अ.स जगतावरणकरणाणुजोगों नेण उपवर्म कर्य दारं आधारपकप्पधरो कपाबहारचारजो अजो। यसत्ताजिओविडमणपरियट्टी अगुग्णाओ।।..१५४४ा पछिलक रण अणुपालणा य मनिया उपचपहारे। एएण अत्यचारी गणधारी जो चरणधारी ॥५॥अजोती आमंतण निदेसे वा पयरस सुत्ताई। जात विहिपाते पश्छिल दिजए तह हि विणाविजाना आधारपकप्पचारओ जहा। तदा उ अमाजो गणपरियट्टी उसो नियमा ॥ ७॥ करनापालगाणं तु पजपकसिणं समासओ मार्ग। करणापालणतंगजपकसिणं भवे लिपिह..१५४ादा निपटककमतरेसु सोलसहमति ठाणाई करणडाण पसत्या करणवामा उपसत्यारा.:१५६॥९॥ एपाटाणा बोहिषि माहाहा जाई मणिया निसि पावणमिणमोसमासो होइबोद।२२३०॥करणं तु किया होई पहिलेणमादि सामवारी जापालिमानानेणतं च दुविहं मुगेया॥१॥ पजरकसिमसमासो - पजवकसिणं तु चोरस उ पुषमा सामाइयं पकप्पो होसमासो मुणेयही ॥२॥ पजनकसिणं तिनिह सुते अत्येसमए वा एमेव समासोऽपि तेहि उपालिणए चरणं ॥३॥14 तस्स गएहिं मग्गण ते उसमासेण होति दुनिहा उादवद्विपजवाहित गया तु अक्सेिसितविसिद्वा ॥४॥ वाणादिसमुदियं तु बही दामिन्छए पियमा। चेष पनवजो दवाइचि. सेसियं इच्छे ॥५॥ अहवावि तिषिविजया वाहित पनवहित गुणड्डी। पनाचविसेसश्चिय सहमतामा गुणा होति। एगणकालगादिस परिसंस गुणहिलो उपायो। माओ गुणाऽणणे गुणा विसेससि एगट्ठा ७॥जाविता तिणि गया एको विनिओ यहोर उजुलुओ। सदादि तिणि वेको निम्णि गया होति एवं वा८॥ अहवापि निगमसंगहरपहा-- कणसएं होति परेते। सरणय तिणि एको पंच गया होति एवं तु॥९॥ अहवापि होज सकं निगमो संगाहिओ असंगाही । संगाहितों संगई त महार पविसंगाही । २२४०॥ नन्हा उ संगहणजओ पहारो पेष होउनुसुओ। सो व समनिकदो एवंभूओ बछक गया ॥१॥ एते पुण सोऽसी मतिम पण कमेलिया संता। सोलस गर्यता समासओ होति एयाई ॥२॥जह कुणा दक्षिकप्पं एवेहि जयंतरेडिंत विसर्व करणडाण पसत्या ते खलु हावी मुया ॥३॥अकरते अपसस्था कप्पे सणयंतरे समक्खाओ। कप्पे ठितमटिते पुण बोच्छाममा समासेणं ॥४॥ संघयनवनिमोचिएक्सक्लपकारओ पणग जाओ। संघषणसमम्मस्सवि अजाय चाउरो अमोक्खाए॥५॥ पंच उ महायाई पण तेसि तु जो करे पयतं जामो जो निष्फनो अजाओ पियमा अनिष्फल्यो ॥६॥ठितमहिनेवक संघयगेणापि जो रिहीणो उ। सो कुणा एक्समोक्सं जो पुषण करे पयतं तु॥७॥ पंचम महबएस संघयणेणं तु जापि संपलो। सो चउगइलसारे भमई ण पाचई मोक्वं ॥८॥ अहणा उठाणकप्पो उदहाणाहओ मुजेयत्रो । ठियकप्पसंजयस्मविऽग्णाओ अद्वितस्सापि ११०६ पजकल्यमाप्यं - उ अनुक्रम [२२००] ~ 46~ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ---------- भाष्यं [२२५०] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [9/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य प्रत सूत्रांक [२२५०] दीप अनुक्रम [२२५० E९ एवं जिणकायोचि उ ठितकप्पे अहिए यऽनुयाओ । एमेव धेरकप्पो ठितमठिते होतिऽगुणाओ॥ २१५०॥ पनासकायो सुत्ने कम्यो नहा चरिने य। अजायणुहेसम्मि व कप्पो वह वायणाए य॥१॥ कप्पो पहिच्छणाए परिवहष्णुपेहणाएँ कप्पो या ठियमहिएस दोसुषि एते सो भवे कप्पे ॥२॥ जातमजाओ अहुणा दोणिचि एते समं तु वनि। जापं निष्कातिय एगहुँ होइनाया।३॥ जातमजातं करणं जाते करणे गती तिहा चिया। अजाते करणम्मि उ अनतरीतं गतीं जाइ ॥४॥ जायं खलु निष्फर्म सुतेणऽत्येण तबु. भएणं यावरण व संजुल पारित होत अजातं.५ जातकरणेण छिन्ना नरगतिरिक्त्वा गती उ दोन्नि भये । अहवा तिहा उ हिन्ना परगतिरिक्खा मस्सगती ॥६॥ देवेसुध तिणि गती छिन्ना वेमाणिएस उपवत्ती। बसुवि गतीसु गच्छनि जन्नतरि अजातकरणेणं ॥७॥एसो जातमजाए कप्पोऽभिहितो इवाणि यक्वामि। आइण्णमणाइन्ने कप्पं तु गुरुपएसेणं ॥८॥जाहारबाउके करण कासगे खेतकालउपरणे । आरणे आइन्न तश्विरीए अणाइ ॥१५॥५॥ आहारच खलु असणादीयं न हो णायचा करणं आवरणं तू तस्स उजंजस्य आइग्णं ॥२२६० ॥ पिसितं सिंधूषिसए डा(य) पुण उत्तराबहाइणं । तंबोलं दमिलेसु एमादी खेत्तमाइण्णं ॥ ०१४९०१॥ काले बुमिक्लादिसु पलंघमाडी तु सध्यमाणं । उषगरणे आइणं बोच्छामि अओ समासेणं ॥ ७. १५० ॥२॥ सिंधू आउलियाई काला कप्पा सुरनिसयंमि । दुगुडादि पुंटपद्धणि महरहेसु च जलपूरा ॥स. १५१ ॥३॥ एवं जल्याण सहियं तू कापती उ आचरिइतरस्य कारणम्मी कासण गहणं च परिभोगो ॥ ल. १५२॥४॥ आइणे चउपग्गेण य पीलाकारओ पपयणे या ण | य मालणा पवयणे भाइणं आयरे कप्पं . आहार उपहि सजा सेहा चउपयों होइ णायको । पपयगपीलवधाओ पिसियाई मनपाइति ॥६॥ चोदेड का महलणा? भण्णइ पटि. सेहियाणि जं सेये। सा हो महलणा ऊ जो गुण सुपरिद्विषो चरणे ॥ ७॥ तण्णाउ सलाहेड वग्गेइ गुणेहि एस जुत्तीति। सुदृढ़ करे अपहितं जो पुण करणे अजुनो उ॥८॥ तं बढ़ संदेहो उपजा किष्णु एस सच्छंदो। आओ गं उपएसो एरिसओ देसिनो समए?॥९॥ आह जिणकप्पियामाऽपि आइणं किंचि अस्थि अहमस्थि । भणहन अस्थि कि पुण आपरें जिणकपिया ॥२२७०॥ आहारपहियह निरोपलो नगरि निजराही । संघयणनिश्यिजत्तो आइणं आयर कर्ष ॥१॥ सपनामचरित तो यह भावणासस समितीसु । छव्हपि निपगार सरह संधाण साहणता ॥२॥ सादहति सम्मदसण जायरति परुवर्णय कुणमायो। संघाणकण एसो एवं लेखाणवी गेयं ॥३॥ संघाणकाप एसो भणिओ उसमासओ जिणासाओसिसेक्समुरिक एलोवोच्छंचरणकशा आहार उपहि सेजा तिकरणलोहीएं जाहि परिर्ततो परिगहितविहाराओ तो चपती विलयपडिवो।.:.१५८०५॥ ISI कोई विसेस मुजानि पसस्थठाणा अहं परिम्मट्ठो। अपने कोई ण चुनाए मंदधम्मता ॥६॥ दव्ये माये अंघो दव्ये पाहि भाचे ओसणो। संविग्गण रोयति णितियाग पहागमिष्ठतो ७॥ जुनी जुनाविहारी वेष पसंलए सुलाचाही। जोसमाविहारं पुण पसंखए दीहसंसारी ॥८॥जाहार सहि सेजानीयापासेऽपि निकरणऽपिसोही। जहभाधा केही इम पहाणंति पोसति ॥९॥नीयाइविहारम्मिपि जड कुणती निगह कसायाम् । नसा हुभवते सिदी अवितहसुत्ने भणियमेयं ॥२२८०॥ बहमोवि हरि निहरेला संडे को का। सो सिनह अविय इमे पुरिसलाया मवे पटरो ॥१॥ नाणेणं संपण्णो णो उचरिनेण एव चाउमंगो। तेणेसेन पहागो एवं भासंति निदम्मा ॥२॥ तम्हा उगएपाई कुजा आलंबणाई महम ना कुजाहि पात्यालिमा आलंषणाई तु॥३॥ नित्यगरा चरिब परिव कसिनगपारमार्ग च। जो जागइ सहती ओस सो न रोएड.१५९॥४॥ सिरियाग-1 म्मिवि तिस्थगरी जहम्मि उजमति । किं पुण तपउजोगो अवसेसेहिंण कायद्यो?॥५॥ चोदसपुत्री कसिणंगपारगा तेसि जो उ उजोगो । जो जाणासो खल संविग्गविहारसरहतो ॥६॥ एमावी आलंषण का संविणातं नरोएनि। को पुण ओसवनं रोएती मा इमोतु ॥७॥ सुत्तस्यतदुभए जकडजोमि ओसबरोयजी होना। ब्रहवा दुम्गहियत्यो अहनापी मंदधम्मत्ता ।।...१६०॥८॥ अनाणियऽकहजोगी दुग्गहियत्यो उजेग अववादो। गहिओ णवि उस्सग्गो महितेवा मंदधम्मोउ॥५॥सो रोए ओसाणे इति एसो पनिजो पवणकप्पो । उववादकपमहुणा बोच्छामि जहकमेणं तु॥२२९० ॥ पंचहि ठाणेहिं पियहिऊग संचिग्गसढवाजुत्तो । अध्भुजय विहार उपेड उपचायकापो सो...१६१ ॥१॥ उपचवणं उपचातो पासावादी व पंच तागाओ। तेसु विविहं तु परिश्तों विचड़ितो होइ गायत्रो ॥२॥ संवेगसमावष्णो पच्छा उ उबेद उजयविहार। एस उपायकप्पो णितीहरु अओ बोच्छ ॥३॥पउहानिसीहकप्पो सरह अगुपालणा गहण सोही । सरहणापिय दुविहा ओहे निसीहे विभागे य..१६२॥४॥ ओइतिहत्यकम्भ कुममाणे रागमूलिया दोसा। गिमणमादि विभागे अहमोहो होइ उस्सम्यो ॥५॥ अक्वादोर विभागो सऽयं तु सरहंतस्स । सदहणाए कप्पो होज अप्पो पुष इमो ॥६॥ मिच्यासमुपएणं ओसन्नचिहारताएं सरहना। गणहरमे ओहण सदहती जो मिसीह ॥७॥ओसन्नान विहारं सरहति सुचिहियाम गणमेरे । न ड सरहती जो खलु एस अप्पो उ सरहने ॥ ८॥ जाणि ११०७ पत्रकापमा - मुनि पिरलसागर म ~47~ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) प्रत सूत्रांक [२२९९ ] दीप अनुक्रम [२२९९] “पंचकल्प” छेदसूत्र -५ / २ ( भाष्य ) यं [२२९१९] ...आगमसूत्र [ ३८ / २], छेदसूत्र [५/२] “पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ...... .... - • मणिचाणि मुले पुढारवाहियाणि वीसाए नि अनुपालयतो सवाणि मिसीहकन्यो उ ॥ ९॥ मुत्तत्यतदुमयानं महणं बहुमानमच्छे चोपुविनिषदे कप्पे हियम्मि महारी ॥ २३० ॥ तिविहो व पकप्पधरो मुझे जत्थे य भए चैव सुपर मोनू तओ पितिको वा होइ गणहारी लिग पग पग उकं अट्ठ वर्गच जस्स उपल परदा सो सोही विद्याणाहि ॥ १६३॥२॥ नाणाईनं तिच पण चहारो होइ पंचविहो। चितिय पञ्चग पंच बता उकं पुण होति उकाया ॥ ३॥ आलोयणारिहगुणे अ T अपार सोहि हि आलोयणवादी मूलं जानती जो तू ॥ ४॥ जालोयणमादीयं गतं तु वहिं होति पारंचितमा दसविहे हाती पसदेणं ॥ ५॥ उ करण सफला माता करे जो जाये तो होति दाण अरिहो तबपीओ जणरिहो ॥ ६ ॥ किह पुण से दाय पातु पुच्छा सीसो भग्ग इमेण विहिणा दाय कमली ॥ ७॥ ] उ सहाणं सागविभागता पवित्या सिरिस किति ? संती चरणमादी ॥ ८ ॥ सातिय गुरु होइ रायपिंड सहाविभागे सरमादी मुणेो ॥ ९ ॥ जहवा करणं होइ मासमुक् तु होइ विभागसंगो दिदीओ मुणेो ॥ २३१० ॥ पुरिसजा पा च दिजए जारि गुरुमावलिगादि जो ॥ १ ॥ हेऊ कारण निकारणे व जयगादिसेवियं जह उ चोदेति किंनिमित्तं पच्तिं दिजए सुसु ॥ २ ॥ पायच्छिते असेसम्म रितु न चिए चरितम् अतमिति जो सपरितया ॥ ३॥ वियम्मिय असंतरिम वाणं तु न गच्छती असंतमि सा दिखा निरस्थिया ॥ ४ ॥ एवं निसीको चालू पण समासे वहारकपणा गुरूपालेन वोच्छामि ॥ ५ ॥ वचहारे कोइ भिक्खू सचित्तनिवानिदमहुरेवती वहावत सो संघ॥ ६ ॥ को मिक्सू अशनगरम्मि कंचि वच्हारे गाएणं विदित्ता इत्यच्वेहिं पमाणकतो ॥ ७॥ अह पच्छा सचितं सुड्डाई तस्स केई दिव्यं सही पाउरणं वा चम्पक्वपरे ॥ ८ ॥ पादमिदं गुलाहिं वादि संगहितो । समाहि (अन्दालि) एहि ताहे वह पक्लवाए ॥ ९॥ दुववहारिएण को उ मिसेज तो बड़े संपो एव संघो कीर इणमो सयं (सं) पत्ती ॥ २३२ ॥ अणो नहिं तु गीत संघसमतीए निम्ति द्वारा उ उचारे सिदपुतो तत्थ मेरा इमा होइ ॥ १॥ पुम्मि संघस धूपोऽवि जो एलाहि कुरुगणसंपसमाए लग्ग गुरुए पासे ॥ २ ॥ काहिति तं पापति सति व जगतो आणाया जाणादिदेसि च जं कुजा ॥ ३ ॥ सोऊण संघसहित आगमीपनिमित्तं वपहारों उबहिनी हो सोऊन संपली आग तो विहारमा साहू समाएग वारे ॥५॥ निन्द्रं महूर निपातं किम्वा तो सचिन खेत मी अत्र होड दिसणं ॥ ६ ॥ भय मुलाबादी बहारे तहयगम्मि उद्देसे सुप्तं उच्चारती यह बहु पक्खा इमं होइ ॥ ७॥ रागेण दोसे एक मिस्त जन्म कीरमाणे कि अच्छा संघ यो ? ॥८॥ रागेण व दोसे व पक्वान एकमेकस्स कलम कीरमा अन्योऽपि ममेड ता कोई? ॥९॥ कुलचण यामाम देशी मिज अता के कम्प पि२ि३३०॥ संपे संपति सो गुणसमिद्धो महानो अणुमातो तयं संघ ॥ १ ॥ संपो महाणुभावो अहं देसि इहे ते संसमिति जातं मे सब (से) समामि ॥ २ ॥ ऐसे ऐसे उपाय समिती गमिमा विदेसिजऽहं ण जाणामि ॥ अनुमानेता एवं गुणाए पर इणमो परिसाबहारीण व इमे गुणे ऊ समासे ॥ ४ ॥ परिसा पहावा रामदास जति होति दोष तो सुहोति ॥५॥परेजति पहारिणो जानू तुम्हे सति ॥६ सामुसावादी सचपरिमगा कि स भ गुमेह एवं मूतत्वमिम ॥ ७॥ समचरणकर सहारा दुसहिया। चरणकरण जोहर ॥ ८॥ तं पण नागरा परे अणुकंपा नन्द जी ९॥ मात्र जवस सजा न तस्सदुक्तं परे दृहिए । २२४० ॥ जायापतो आपरूयापरो सुपरदेस म ० १५४॥१॥ तत्यगरे गते जगजीवाणए जोन करेनासुराणं ॥ २ ॥ जो करेति प्रमाणं सो उपमा ।। ० १५५ ॥ ३ ॥ संघोष रामसको हो समोसा ॥ १५६ ॥ ४ परिणामयी उसे दो समणसंधी उ ककारी सुपरिकार पेचिते ण एइ परिभवेणं तु जगाइकमणिहमा आउदा ॥६॥ आसासो पासो सीनपरसमो होति मा भाती (हि) अम्मापीतिसमाणो संघो सरणं तु ससि ॥ ७॥ सीसो पच्छिलो या आयरिजो वान सोम्माई नेति जे समकरणजोगा ते संसारा विमोऐनि ॥ ८॥ सीसी पछि वा जरा से लोग जोगा ने संसारामिति ॥ ९ ॥ सीसी पछि वा कुलसंघा सोम्यई ति बरजोगा ते संसारा (२७७) ११०८प्यं - - एक मुनि दीपग ~ 48~ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ---------- भाष्यं [२३५०] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य ५० ॥ लीलो परिच्छओ वा कुलगुणापा हि सत्रमसंचालन सम्पग सो भमिही संसार चाउरले त अमाप पोरन१५८॥ प्रत सूत्रांक [२३५०] दीप विमोएनि ॥२३५७ ॥ सीसो पहिच्छत्रओ वा कुलगगसंघो व एनि इहलोए। जे सपकरणजोगा ने संसारा विमोएंति ॥ ल. १५७॥१॥ सीसे कुलिचाएं गणिबए संधिचए य समनरिसी। पहारसंथवेस यसो सीतपरोक्मो संघो ॥२॥ गिहिसंघानं जहि संजमसंधाननं समुपगम्म । नागचरणसंघानं संपाएन्तो हबह संघो ॥३॥णाणचरणसंपानं रागहोसे हिं जो चिसंचाने। तो संपाए अहो गिहिसंधानम्मि अप्पाणं ॥ ४॥ नाणचरणसंघातं रागहोसेहि जो विसंघाए। सो भमिही संसार चाउन त अपवयम् ॥५॥ तुक्सेण लमति घोहि युद्धोचि वनसमले चरिन । उम्ममादेसणाए तित्यगरासायणाए य॥६॥ उम्मग्गवेमयाए संतम्स य छादणाए मग्गस्त। पंधा कम्मरयमलं जस्मरणमणतर्ग घोर १० १५८ ॥ ७॥ पंच-16 विहं उपसंपद नाऊण खेत्तकालपा। तो संघमापारे वहरिया अणिस्सा ॥८॥ निदरिसणं तत्य इमे नगरानगरीय सोसायरिया । अण्णायणायकारी तत्परहारि अह इमे ॥९॥मा किने कार्य कुणिमं पाकुतरं च चमा(बचा)। बहिरं च गुंठसमर्ण अंबिलसामणं च निदम्म ॥२३६०॥ कंकडुओविध मासो सिद्धि ण उवेति तस्स पहारो। कुणिमणिहो । पण मजा इकिलो एवं बितिषस्सा ॥ १॥ पाकुडाच भयाओ कजपि ण सेसतं उदीरेति। पादेणं आउत्तिय उत्तरसोपाहणेणंति॥२॥ रोमंथयने कर्ज चना(गया)बी नीरसंनिवड 12 सणेनि। कहिए कजे सने पहिरो व मणाति ण सुतं मे ॥३॥ मरहलादपुच्छा के रिसया साट' गुंठ! साहिसं । पाचारभेटिभणं दसियागणगं पुणो दाणं ॥४॥ गुंठादि एवमादीहि हरति मोहिनु नंनुबनहार। अंचफरसेहिं अपोगणेति सिदि चवहारो॥५॥ एते अकबकारी गराए आसि तम्मि उजुगम्मि। जेहि कला ववहारा खोडिजन एप्परजेसु॥६॥ बहलोमम्मि अकित्ती परोए दुग्गाई धुवा तेसि । अगमाएं जिमिदाणं जे बहार वनहरति ल०१५९॥७॥ बत्तीस तु सहस्सा गच्छो उकोसओ व उसभंमि । बगड़बग्गहरा इनियमिनाण जन्ध संघरणं ॥ १६॥ कित्तेहं पृसमितं धीरं सिक्कोर्ति च अजा(झा)स। अहरण्यग धम्मग्णय स्वंदिल्ट गोबिंदनं घटाएते उ कजकारी नगराए आसि नम्मि उजुगम्मिा जेहिं कता बहारा अक्सोमा अमरजेसु ॥९॥ इहलोगम्मिपिकिनी परलोगे सुग्गाई धुवा सिं। आणाएं जिणिवाणं जे वहारं वरहरनि ॥२३७० ॥ साहिय पूण करिसएण जंपिया तु होइ समण । मण्णा सुगमू इणमो जास्सिएणं तु बोत्तरं ॥१॥ पारायणे समले चिरपरिवादी पुणोपि संविग्गो । जो निग्गी विदिणे गुरूहि सो होतिशि बाहारी ॥१४॥२॥ मूल पारापर्ण पदम, चितियं च दुरबह)भेनिम । सनियं च निरवसेस, जइ सुजोति माहगो ॥ ३॥ सुनत्यो स्खल परमो चितिओ निजानिमांसओ अगिओ। ननिओ य निरासेसो एसपिही होइ अणुओगे ॥४॥ पदिनीय मंदधम्मो जो निम्मों अपणो सकम्मेहि । गहु होइ सो पमाणं असमती देसनिम्गमणे ॥ ५॥ आयरियादेसाया- 191 रिएण सन्येण गणितम(स)रिएण । तो संघमायारे वपहरिया अगिस्साए ॥६॥ आयस्थिभगादेसा पारिएण सच्छंद विरनिएर्ण । सचिनखितमीसे जो पहलीज सो धणो ॥७॥ सो अभिमुहेड मुदो संसारकटियागम्मि अप्पाणं । उम्मम्मदेसमाए तित्वगरासायगाए य॥८॥ उम्मगदेसणाए संतम्स य ठायणाएं मग्गरस । उम्मग्गादेसमम्मा मासा चतारि भारियया ॥९॥ परिवार पुडद धम्मका पादि समए तहेर नेमिली। बिजा राइणिया इदिदगारवो अहहा होइ ॥२३८ ॥ एमादिगारबेहि अकोरिया जे जय भासिजा बना । णमो नतम भागो वह बोनु तापपरिवारो भवति जय परिचारेण होज कनं तु । नाह (य)परिवार विजम् बुटो पुण भण्णई गमो ॥२॥ लोगेण जन्य समय यहाग तनाथ हुजाहि । तस्थ तुम जंपिजसु धम्मकही मण्णइ इमं तु ॥३॥ जहियं धम्मकहाए कर्ज तहियं तुम भणिजासि। वादी जत्थ उपादिग्पओयणं नन्य भासिजा ॥४॥खमगो भन्नर इणमो देवयकर्ज जहि भपिजाहि । अविवादिकारणेहि तत्व नुमं नं करिनासि ॥ ५॥ पिज्जासिदो भण्णाइ चिनाए जत्थ संघकनम्भि। कर्ज होज करेग्मय रायगिओ भण्णा हम त ॥६किनिकम्मरस 3 अपहताण बंदणं अम्हें । कु(लि)जाहि नुमं गर्नु वह पुण गीयस्स चिसो 3 ॥७ण हगारपेण साकायहरित संपमापारमिाणासे अगीयस्थी अयाण चेव गच्वं च ॥ ८॥णासेई अगीययो चउरंग सालरोगसारंग। महम्मि य चाउरंगे गहु सुलभ होइ चाउरंग ॥५॥ विश्परिवाटीहि बमएहि संविम्मणिमियफोहि जन्मि भासिया अणुओगे गंधहत्वीहि ॥ २१९०॥ मारी प मुसाचादी चिनिय ततियं वयंचलोवेनि। माची य पात्रजीची असुतीनिरो कणगी ॥१॥आमले पच्छिले वहा समासनो मने इपिहो। दोस्य पणगं पण आमाति अहीकारो॥२॥ सचिनो अचिनो य मीसजो खेत्तकालनिष्फष्णो। पंचविही पहारो आभयंती उणायचो..१६५ ॥३॥ सेहम्मि उ सचिनो अमिनो हानि पत्यमादरीजो। मीसो सभडगा खेनश्मि उगाममादीहिं॥४॥ नगराइसलिले पुण बसहीए नस्य मम्गणा होह। काले उडुवासास पाभरणा होद गायव्या ॥५॥ अहवाऽऽभवनमण्णो उपसंपपवेत्तकालपचना। नाऊण संघमझे वहरिपर्व अणिस्साणं ॥६॥ सुन सुक्खे सिने मम्मे विगए प पंचहा होइ। समावि य एवाओ सुषणाणमणुप्पपत्तीओजस्व उसुजओचसंपर तत्व उसका इति (सिहोन्ति) एयाओ। अहवा सुमोपरिहा गर सेपटाए हस्तेया 1८ ॥ गुस्सीसपडिग्छाणं निहानि की कस्स A११०१ पशकल्पमाप्य - मुनिटीपाजार अनुक्रम [२३५० ~ 49~ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-१/२ (भाष्य) ------------ भाष्यं [२३९९] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं प्रत सूत्राक [२३९९] दीप अनुक्रम [२३९९] किंचुपकरेह यापचगमागम काले चितादि से य ॥९॥ सीसो आयरियस्स उ यायचं तु कुणा जाजीयं । जहिं गच्छा तहिं पचति पेसेह र जस्य नहि जाइ ॥२४०७॥ कर्ज हमागाला एईलच सबमप्येति । कायव्युवम्गही ऊनाणादीएहिं गुरुगावि॥१॥दरे सचित्तादीलामो सीसम्स जो नहि होति। सोनिय जापजी समो गुरुगो उ आमवति ॥२॥ कुणती पाहिन्छोविउ क्याप तु असणमादीहिचा व पमाणेच कालेज रोवती जाव। ३॥ गेडा वा जाप सुतं वा कुणई सामेच पाहिच्छो। एतो दो बोई जं आभवती उ पाविच्छे ॥४॥जो नालन अभिसंधारेत वर्ग एति। संदेसदिमागं चाणामे विधेयकाले य॥५॥ बाली उतर संतर अतरा उजणा इमे होति। माता पिता त माता भगिणी पुत्तो प धूया प ॥ ६॥ मातुं माया य पिया भाता भगिणी य एवं पिउणोऽनि। भाउभगिणीणऽश्चातापुत्ताणवि तहेव ॥ ७॥ पारंपरपालि एसा जान धारे पडिच्छगोव। अहणो अमिपारेती सुवगुरुणो सो उ आमवा ॥८॥संगारो पुजको पच्छा पादियो उ सो जाओ। तेण णिवेदेय उवहिना पुरसहा मे ॥९॥ एकाएहि दिहिं उम्भ सगार्स अपस्स एहामो संगारो एक कतो चिचाणि य तेसि पिंड ॥२४१०॥ कालेग य चिहिय अविसंचादीहि तस्स गुमणिहरा । कालम्मि विसंचदिए पुचिछजति किं न जाजो सि? ॥१॥ संगारिवविक्सेहिजा गेलम्यादि दीपयति वो उातसोच बहतु भाचो विपरिगजो पच्छ पुण जामी॥२॥ता होड गुरुस्सेवनु एवं सुपसंपदाए मणितं तु सहरसुसंपने एतो लार्भ पक्सामि ॥३॥ बहस मम सहरक्से अहमपि उच्ने त एवमुक्तये। पुरषासंघुया ऊसो लभतीजे यवाचीस.४॥ सहदुस्तसंपएमा एनो खेतोषसंपदं पोच्छ। खेसोग्गाहो सकोस | बापाए पा अकोस तु॥५॥ पत्ते उगह साहारणे य बासे नहेन उनले । समविसासु सकोस निजाचाएल पते 3॥६॥ अडविजनेणसावतपापाते एमनिपाउसुपा होज अकोसो उम्माहो अहुणा साहारणं बोई ॥ ७॥ साहारण होजाही पडिलेहमपुत्रपच्छनिम्ममणे । पुर्व पच्छा पत्ते आयरिए सभअनासु .:.१५६॥८॥ दुगमादीगच्या पहिल्यहमणिगयाग समगं तु । पत्ता खेतं एसो पदमगभंगो मुणेयव्यों ॥९. समग निग्गम एके पच्छा पत्ता पारितियत्री मंगो। पच्छा निग्गय पुर्व पचित पच्छा य दहतोचि ॥२४२०॥ पदमगभंगे जो खलु पुषित अनुमति ते खेती । समर्ग पुणऽगुमचिए सामर्थ होड दोन्हपि ॥१॥ चितियगर्भगे दपेण पुचि पत्ता उजाणाणणतियोसि असदाण य अणु-14 नताण से तु॥२॥ पुरनिगता कई गुण पच्छा पत्ता उ ते इपिजाहिए। मेलणसमगपारणवाधातो अंतर हविजा ॥३॥ गेलणपाउला तसेलमण्णा को बए। निसियो । समओ चेच, तेण तस्स न लम्मती ॥४॥ अंतरवापाएणं पच्छा पत्ताण पुचि जे पत्ता। असदेहि अणुन्नक्तिं पुनि पत्ताण तं खितं ॥५॥ अह समगमगुणपिए काउ पमाईपि सो उ साहारं। एवं तु वितिय गो अहणा ततियम्मि बोच्छामि ॥६॥ पच्छाविपस्थियाण सभापसिम्यगतिगो भबे सेना एमेव य आसो दूरवाणा व पत्ता ॥ ७॥ मंगे पडत्वगम्मी पुषाणुग्णाएं असहभाचार्य पदमगभंगसरिच्छा आमपणा नत्य नायता ॥८॥ पुजगहिजोषि उम्मही होति गिलागताए जहियो। अहहोजा संचरण कालसेको इपासेपि ॥९॥ पुनहितखेनीगं जड आगो गिलागाइतपणे। जहदोन्ह असंघरणं तो निम्ममा खेतियाणं तु॥२४३० ॥जह बोहवि संघरणं दोव्हिपि इच्छति जा गिलाणो उाएने या दुनि पक्रया अहना समगा व समगीओ॥१० मिन्लाम उपही किवा भत्तोपहिलुबताअपिहिम्महितं । पोहंती परतेन साहम्मियतेणिया निरिहा ॥२॥ उचही नियही माया गिलागणिस्ताएँ विजमाणेपि । उड्डेतु एंति सित्ते भत्तोचहिन्दताए 3॥३॥ लम्मति सुंदरारं गिलागणियटीएँ एति तो तस्य। इतरेचि गिलाणोत्तीकाउंना ति खेलाड॥४॥नेगुं तु निम्मएस सचित्तादी उतिविह जंगण्हे नै देसि होति नेण्यं पच्छित चेच विविहं तु॥५॥जे पुण असंचरंता एंनि नहि सिमा भये मेरा । आपरिवयसभअजाण पेच बोच्छ समासेणं ॥६॥ अच्छति संघरेसने, वसभी नीई असंधरे। जत्य तुला भवे दोषि, सस्थिमा होति मग्मणा ॥ निष्फण्ण तरण सेहे जुमियपानभिठणासकरकरणा। एमेव संजईणं णपरं पुड्ढीमु गा. गर्स १जादा परिवार अणिकमोजाति निणणतो उ निग्गच्छे अच्छतिबुद तराणा पणिनि सेहे जसेहिजे ॥९॥(निति) अति जंगिता न णिनियर अहर जंगिता रोवि। वत्थाइता अच्छे अच्छे समणीण तरुणीओ ॥२४४०॥ समणाच य समणीण य अपांनी संजईउ निपमेणं। जेण बहुपचयाता अणुकंपा तेण समणीणं ॥१॥ संधारे भत्तसंतुवा, तस्स लामम्मि अप्पा जुगितमादीए, वयंति सित्तीण ते जेसि ॥२॥ दुपमादीगच्छागं खिसे साहारणम्मि पसियो।अप्पत्तियपडिसेहत्यया(इना)ए मेरा इमा तत्थ॥३॥ अस्थि बढ़ बसमयामा कुदेसनगरोपमा सहविहारा बहुगवाहकरा सीमच्छेदेन बसिययं ॥ आयरियउपमाया दुहिं तिहिं सहिया उ पंचओ गच्छो। एव तु गच्छा तिमि उउनुस्टे संचरे जत्य ॥ ५॥ वासा विचाउजुया आयरियउवा सत्तो गच्छो। एष तुमच्छा तिमि उपासासु संपरे जत्य ॥६॥कालदुयम्मिषिएवं जहण्यार्य होइ बासखे तुवतीसंतुसहस्सा समच्छो उकोस उसमम्मि ॥७॥बहुमवमाइकरा एत्तियमेवाण जत्य संचरण ऊणा अणुक्राहिता सीमयो अओ बोच्छ॥८॥तुम्मतो मह पाहिं नुम्म सचिन समेत वादि। १११. पत्रकत्वमाप्य - ~50~ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ------------ भाष्यं [२४४९] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य जाब सो तमासादारण होनाल्याचं जो प्रत सूत्रांक [२४४९] दीप अनुक्रम [२४४९] आर्मतुपयत्वाचीपूरिसक्लेयर बिसेसो ॥९॥गो सकोसजोषण मूलनिचे अणुस्मयंतेण। सबिते अविते मीसेविय दिल्यकासम्मि ॥ २५५० सेमती निस्साहारणमि मलासेस अर्णमुर्वतन हो सकोर्स जोयण दिसविदिसा सातो॥१॥ एवं सत्तओं एसो कालओं उनपनि होडमासो उाबासासु चउम्मासो एचतिकालो विदियो उ ॥२॥ एतकाल विविज्ण पुग्ने निकारणम्मि तेग पर । म उनग्गहो विविष्णो मोतूर्ण कारणमिमेहि ॥३॥ असिवादिकारणेहि विहतिरेगेऽपि उन्गाहो हो ।जा कारण जिर्ण नेण परं उम्गहोग भवे ॥४॥जाहर खेतकप्पो असती खेत्ताण होज बहुगावि। सत्तेग बकालेण च सामावि उरगहो गगरे ॥५॥ सति संभे खेतार्ण जोग्याचं जो उ जस्य संघरति। सो सहियं सं. पिक्से खेत्ताण असती पुण पहुंचि ॥ ६॥ एगस्थ उगामादिसु जहियं तू संघरति नहिं अच्छे। सोसि नहिं उम्गहों साहारण होति जह नगरे ॥ ७॥ एसा खेनुक्सपद पुरपच्छासंधुए समति एल्वा तह मित्तवसा या जंगलम सुतोवसंपनी ॥८॥मग्गोवसंपदाए मना देखेद जाब सो तस्सा लभती विद्वानहादि जो य ामो पुतिताण ॥ ९॥ विमओपसंपदा पुण | कुवति विणयं तु जो उसपणिए। स नस्साभवती जो उ उपहायती तसा ॥२४६० ॥ उपसंपद इन्चेसा पंचविहा पचिया समासे । सेत्तग्मि परे खिले मिक्समिओ जो उ होजाहि १॥ काले उजु मास वा पसिऊणं निग्गयाण जो अयो। परमवितियदिवसेस निपखामे कालो एसो । सो पंचविहो चपहारो आभयंतिओ णाम । पच्छिले पचहारो जह बस (ड)मुद्देस पबहारे॥३॥ अहुणा उ खेतकाला नेबि उ तत्व भगित नहारे । जं सत्य उ तस्सेसं तमहं वो समासेणं ॥४॥ हुन्दि विहारकाले निविहा सोही उ उवहिमनागं। दिपणे जतंत सोही अविदिग्णवाए'आपरणे.१६८॥५॥ उदुमदेवासासु या विहारकालोड होड दुनिहेसो। उग्माम उम्पायण एसगा प एसा विचिह सोही ॥६॥ उदुपद मास वासासु हाँति पारो चिदिन्नकालो उसएम जयंता जापिहुआवजे हवि सुदा उ॥७॥ मासा चाउमासा पुण संवसमाणा उ तत्प अतिरित। म(ल) गति जयंतावित किम अजयंता 32 कि. पाण्यं ॥८॥ उपयवासवास अणुवसमाणो असुवमत्तुरही। आवरिषयमाणा गुणयमाणं च समगाणं ॥९॥ उम्गममादी दोसा असेवमाणोचिसो उ आवाणी। जम्हा दोसायनर्ण उरम्मि यावेतु संवसति ॥२४७०॥ कत्येयं भणियंतिय ? भन्नति आयरिएण किमायारे । जाचारपकप्पे ऊजाचारिभवंतु आयारी ॥१॥ जे भिक्खु णितियपासं पत्तइत्ती एस्थ मणिय सुत्तम्मि । एवं पमाग उभये अइरिने याविजे दोला ॥२॥ जदि पुण बहिया हाणी हि वहिट गुणाण तत्य अच्छति । के पुण गुणादि भणिया ? भन्नति नाणादिया होति ॥३॥ कालातीते दोसा सलओं होइ अच्छमाणाणं । तन्हा उग चिहिना अतिरित्तं दुनिहकालम्मि ॥ ४॥ नित्य अणुकंपाए मिहिणं तो णाम ण बसहा तुम्भे । भणति ण होति एवं मा साहूर्ण धरणभेदो।..१६९॥५॥ चोदेवाहारादिसु सुज्जतिसूऽपि णाम जं तीए। वत्य ण चिह ताणाम णित्यत्तेण गहियाणं ॥६॥मा पाविदिति धम्म गिहिणों साहुण कासुराण । इच णिश्यता जापानलोगणुकंपया तेसि ॥७॥मा इन्चसओ होही अनुवासे णिचसाहदागे। इस अणुकंपिहलोए मगइन 3 एक्मादीहिं ॥८॥मा होस चरणभेदो पुण्यातीतमि संबसंतागं। अतिचिरसंवासेणं सिणेहमादीहिं दोसहिं ॥९॥ एसो उकालकप्पो एवं चक्लाणिजओ समासेणं। अहणा उनहितार्थ गुरुपएसेण गोच्छामि ॥२४८० ।। उपगेहति उपकार करे उपहीयतेण उवही छा कि कारणं तु उवही उरिसिओ? भण्णती सुणसु ॥१॥जीवाणऽणुग्गहहा एवं खलु वनिमओ इदं तित्थे। काऊणऽणुग्गाहपद परिणीयपदे जमाचो उ॥२॥ रसबावणुकंपट्टा अगणीमादीण चेच रक्सट्टा। असहमऽणुकंपट्टा य उवहीगहणं जिणा ति ॥३॥ आह जहऽगुग्गहवा नत्यादीगहण देसिब समए। तो जसणं कहा पीपरिमोगो गाऽनुग्णाओ?॥४॥ भष्णइ पपिचि कम्हिऽवि कम्हिऽपि पुण होति अपविती उसंजमपडिणीयत्ता मेहुणमादीण नानुष्णा ॥ नाणचरणद्विषागं उचम्मा क. पनि नाणचरणाणं। बाहारउबहिसेजा तेण उ उबहित्तर्ण ति॥६॥ जस्स पुणोचहि गहिना उपपातकरी उ तस्स उवपाती। कह उवधान करेती? आरित्तगहो य मुच्छाय ॥७॥ संघरमागो गेहति अतिरितं उवहिजो मवे समणो।वण्णादिजुते मुच्छति इडाहारे धुवस्सेनं ॥८॥ एतेमु अगिद्देसु य जो दुस्मति से करेड उवपातं । नागादीणं विष्हं तम्हा ने रजिए हेतू ॥९॥जो जात्य जदा जाहियं उपही परिभोगओ अणुण्णाओ। सो तत्थ अगइचारो अणणुण्याते चरणभेदो ॥२४९०॥जह सिंपूओ कप्पो ओराल्या उणिया अणुण्णाता। पि. सियादीण व गहणं खीरावीणं चऽगुणातं ॥१॥अतिहिमदेसे बनहा कारणितमताण सिसिरकालग्मि। परिभुजताण य को विवाद? चरने अणुक्याती ॥२॥ साक्सियादिएसं | एतेसि व मोतु पडिसेहो। पडिसि परिभोग कुगमाणो मंजती चरणं ॥३॥ नाणेपि उ सो जिंदा उबदेस जेणण कुणती तस्स। जं नाणपुर सण सणभेडोचि तो तेणं ॥४॥ निवविक्सितमतरताविएस कनेयु होइ परिभोगो । समणुचाजो कसिणावियाण इहरा अणुबमोगो ॥५॥ एसो उ उबहिकप्पो अहुणा सभोगकण पोछामि । तस्स पसाहणहे. गाहामुत्तं इमं आइ॥६॥ नवि राया गवि दोसा संभोगविही उ पग्णिओ सुते । नाणचरणद्वियार्ण मणिय सुवनाणपुरिसेहिं.:.१७०॥७॥ रामेण समुंजति सिणेहओ तेहिं सदि ११११ पवकल्पमाष्य - मुनि दीपरमागर ~51~ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) प्रत सूत्रांक २४९९] “पंचकल्प” - छेदसूत्र-4/२ (भाष्य) ------------- भाष्यं [२४९९] ------------ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य ममपीती। जवारणसमे(गवदोसवंण समुंजे ॥८॥नाणचरणे स्याण एसुषदेसो उपणिओ सत्यात गणहरेहि गहिये तो ते सुतनागपुरिसा उ॥९॥ कि कारण अण्णा ? संभो. गविही उ एस साहूर्ण । भण्णा नागादीर्ण परिवादी एच होहिति तु ॥२५०० ॥ अम्णोऽण्णस्स सगासे नाणमहीहितिजं च गहिता । होहिंति चिरा परणे फाहिति गिलाणकिच ॥१॥ जति संभोगगुणा ते ता सके कीस ग परिनुमति'। मम्मति सरिसऽहिहिं व संमोगोण पुण हीणेहिं ॥२॥ अस्थि पुण केड पुरिसा लिगलिगेणं पमाप कुष्यति। आहारउनहि सेजा जुत्तो संभुजगायो॥११॥आहारादीतिय उम्गममादीजसुद्धगहणेणं जे कुल्वति पमा तेसि संचासदोसेण ॥४॥अणुमारणपचतिजओ मा बंधी होहितिति नेणे तापनि कीय सेमोगो तेविय चमि(निगला वर होता ॥५॥ मनु रागदोसियत समुंजण एग एगऽसंभोगे?। भण्णाति ण रामदोसा सुगम जकारणं एवं ॥६॥ संभंजणा विमुदा उपमह कुणा नामचरमाण। समुंजणा असुदा चरितमेदं विषाणाहि ॥७॥ मोगेण षमाएनं तदोसार्ण तु होइ समणुष्या। एवं चरितभेदो कि पुण सो कुवनि पमा ॥८॥ प्यारसपदिषदो सुब असुई करे संमोग। अहवापि अजाणतो संभोगविहीए गुणदोसे।..१७२॥९॥ पूजाहेत पमादी सेवाति रसहेउगं च तस्सेची। नाणादिलवकर्ष कुणा असुदं तु सो एवं ॥२५१०॥बारस मूलपदा खलु सभोगविहीच पग्लिया सुने। जत्तो पापादाणं मणितं वाण उपसेको ॥१॥ उचहिसुलभत्तपाणे, अंजलीपरगाहे इच। पाषणाय निकाएप, आभा त्तियाचरे ।ल०१६१॥२॥किहकमास य करणे, वेयाषचकरणेझ्या समोसरण समिसेजा, कहाए य पधणे ॥०१६२॥३॥ एते बारस भेदा संभोगविहीयसमक्खाया। पावादाण तेसु य इमेहिं ठाणेहि णायल०१६३॥४॥ रामहोसागुमओ जो संभोग तु पालए पर्स। सो दुहोणायत्रो नस्क्ले वो विसंभोगो ॥५॥ अहम इमेहि न कारणेहि नियमा म विसंभोगो। समोगविहिजो त विवरीय आयरिजाहि ॥६॥ उपरिम मज्जिाम हेडिम संभोगडाग निहा विभए। पहिले पहिसेहो समापणे होत समष्णो॥१७ ॥ उचरिमएत्ति अहागढ़ मज्झिममा होति अप्पपरिकम्मा। सपरिकम्मा हिहिम संभोगविही तिहा एसो॥८॥अहाकडा मिलति अहाकडेसु, मतं च पाणं तह धोरणं बा। अहाकहा गच्छति हिहिमेन हिहिया एम्भ अहाकडेसु ॥९॥ मज्झिमिता हिडिमते उम्मइन हिहिमा उपरिमे। एसो तिविहो उ भवे संभोगविही समासेणं ॥२५२०॥ पडिसह परिहो सपरिकम्त होत परिचाई। तस्स पुणो पडिसहो उपसित मेलमा जाउ ॥१॥ परिसेहो हेदवार उपरितो हिहिमे अणुण्णाजी। परिसेहि अण्णा हॉनि मा तमुवा ॥२॥ जो पडिसिन एवं भावरती तस्स होइ पहिसेहो। पडिसहों विवेगुनी अवितहकरणे अणुण्णा उ॥३॥ केरिसएणं तु सर्म संभोगो सेसि होइ काययो । अहवाचिण कायो ? भण्णा णमो निसामेहि ॥ णपि एस मंदधम्मे ण मिहत्येसुम चेष अजासु। वायत्तरीचिमत्तोऽवितरे पडिसेहणं जाणे ॥..१७४॥५॥ विजा घेप्पइयवहा फेसिपी ण दिजए ण घेपद उरि दिजति पतित पनि दिनति गवि उपेपर ॥६॥ संविमासंजयाण विना पेमह वपढममंगो उ। संजतिको दिजति गवि पेप्पड़ कारणे वितिमील०१६४॥७॥ निहिचतित्वियार्ण गपि दिइ पेप्पई उ नवरं चानवि दिनति मवि पेपद पासल्यादीण सग्नेसि ॥ल.१६५॥८॥वायत्तरीविभत्तत्ति एस बारसविहो उ संभोगी। उहि गणिओ बावतार संभोगाणं पुणेयला ॥९॥ वाचत्तरी उ एसा दुगतिगचउपचारकसंगुणिया। जाचक्ष्य होति मेदा तेस विसुबेसु संभोगो ॥२५३०॥ पडिसेहों अमुद्देस को संभोग एस लाओ । अरुणा उलिंगकर्ष वोच्छामि अहाणपुबीए ॥१॥जो पुधि नखाओ जिणवेराणं तु दोभवी कापी । रुदणहकक्षमादी सो चेच उहपि णायनो ॥२॥ इनि एस लिंगकापी वोमी पडिसेवनाएँ कप तु। जारिसर्य सेविकति सदममुबं समासेणं ॥३॥ गहणपरिमुंजणाए निवाधाए तहेव वाघाए। बाधाए दुरगहणं निवापाए यतियमहर्ण ।...१७॥४॥ पडिसेवा उनिहा गहणे परिमुंजणे य नाया। एकेकाविय चिहा निवाघाने व पापाते॥५॥ बापासम्मी सुर्व गेण्ह असुदं च एतदुयमहर्ण। परिजनीधि एवं निच्चापातम्मि बोच्छामि ॥६॥ उम्गममादीमुई मेहति परिमुंजती व तिवमेचं । अह पुण को पापातो? परूपणा तस्सिमा हो। ॥ ७॥ असिवे ओमोदरिए रायढे भएप आगादे । कायनम्। वाचाय बापाने निचपाते य 1 सुदमसुदंच जहि जहवा सचित्तमीसमं वाचि। एतेसि दो तबाघाने गहण भोगे य॥९॥पिचापाए उण्हषि अमित्ताणं तु गहण काचार्ग। गहियस्स व परिमोगो तस्सेप य होइ कायद्यो॥२५४०॥ परिभोगे पापाते गहिए पष्ठा तुहीन से गात। जहाहाकम्मनी ताहेय तयं ण परिभुजे ॥१॥ वाचाते सेतो अफिचमेयं तु चिंतए साहा हो तहा निजस्तो जो पुष इममो समायरति ॥२॥ पूजारसपरिषदो ओसणाणं व आणूयसीया चरणकरण निगृहतितं जागऽयत्तियं समर्ण ।।...१७६॥३॥ पूजारसहेगाने जा कियमेव एवं तु मा मेग देहिति पुनो जह एसोऽकिचकारित्ति ॥४॥ अहला ओसवाणं तु अणुयत्तीय अतिको दोसो। आहाफम्मादीस' गर मा कीस सयंत ॥५॥सो गृहति चरणादी एवं तुच्छ सुतस्स सामर्थ । वम्हा उपकवेज्जासुदं मनुकिंचाणं ॥६॥ पिस्साणपदं पीहा अणिस्सविहरंतयणरोएति। ते जाण मंचम्म लोगगनेसन समर्ण अहवा उम्मग्गो खलु निस्सा तु पीहए जो उ। तस्स उ छेदसुतत्वं ग कई दोसा इमे नहियं ॥८॥ पंचमहायमेदो उकायवहो य नेणऽशुष्णाजो। (२७८) १११२ पत्रकमभाग्य - मुनि दीपरतासागर दीप अनुक्रम [२४९९] आपका लियोन का ~52 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ---------- भाष्यं [२५५०] ----------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य प्रत सूत्राक [२६११] दीप सीलचि(वि)वचा को जो पक्षणहसं ॥९॥ पदिसेवकप एसो बाहुणा बोच्छमणुवासणाकाप । अणुवास मासकप्पो वासावासी इमेसित ॥२५५०४ जिण धेर प्रहाल परिहरित अज मासको । सेने कालमवसाय का विवाहणे व जाण ॥१॥ एएलि पंचकृषि अयोग्णस उपापदेहिता सेतादीहि विसेसो जह तह वोच्छ समासेणं ॥२॥णस्थि उ खितं जिणकप्पियाण उपद मासकालो उ। पासासं चउमासा पसही अपमानपरिकम्मा ॥३॥पियो तुअलेक्कही गहर्णत एसणाहुरिमाहि। तस्थवि काउमभिगाह पंच अण्णतरियाए॥४॥राण अस्थि खेन त उही जाब जोयण सकोस । गगरे पुण पसहीए निकाले उदि मासो ॥५॥ उसाम्रोण म मिजो अपवाएणं तु होज अहिजोषि। एमेव य वासामुवि परमासो होज अहिमोचि ॥६॥अममननपरिकम्मो उक्स्सो एत्य भंग पाउरो उ। उस्सम्गेण पदमो लिणि उ सेसाऽपावणं ।। ७० भनं यकई बाउलेवार बावि .. उमेईति। सत्साहिवि एसणादि साविपरसो गयावासोनि ॥८॥अहलंदियाण गयो अग्यविनवाण जह जिगाणं तु गवरं कालविसेसो उचासे पणाचलमासो॥९॥गई पतिपदाणं अहलंदी भह पुष विसेसो । उगह। जो Bासि तू सो आयरियाणामवति ॥२५६०॥ एगपतहीएं पण उनीहीनोच गाम कुवंति। दिवसे दिवसे अग्णं अति मीहीड नियमेणं ॥१॥ परिहारविमुद्रीणं जहेर जिणकपियाण गाना आयंबिल नु मनं गिहनी वासकर्ष लाच॥२॥ अजाण परिणदिवाण उपाहो जो उसोनुआयरिए। काले दो दो मासा उपदे तासि कप्पो 318०१५६॥३॥ सेसं जह राणं पिडो व उनम्सओ य तह नासि। सो सोषिष पिहो जिणकालो बेरकप्पो य॥४॥ जिणकप्पियनालंदियपरिहारविसबियाण जिणकप्यो। येराणं अजाण यबोसो घेरकप्पो उ॥५॥ दुविहो यमासकप्पो जिनकप्पो चेप घेरकायो या निरणुग्नहो जिणार्ण घेराण अणुमाहपपत्तो ॥६॥ उदासकालनीते जिणकप्पी M गुरुग गुरुया बाहोति विणग्यि दिशम्मी राणं ते विष लाओ (विराण से विय लहुगलहगा)।अनीस पराबाहे पुढो अणुवासिय अणुवसंतो। जे जत्थ पदे दोसा ते तत्वयगो समारणे ॥ ८॥ पाणरसम्ममदासा दस एलणदोस एते पणुचीसं । संजोयनादि पंच य एते तीस तु अपराहा ॥९॥ एएहिं दोसेहिं जा असंपत्ति लगाती तहनि। विचले दिवसे सो खलु कालातीते वसंतो उ ॥२५७०॥ पासापासपमाणं आयारे उप्पमाणितं कर्ष। एवं अम्मुर्यती व जाणम् अणुवासकर्ष तु॥१॥आचारपकप्पम्मी जह मणितं नीति संपसतोपि। होइ अगुवासकायो तह संपसमाणऽयोसा उ॥२॥ दुविहे विहारकाले बासापासे तहेच उदे। मासानीने अणुपाहि पासानीने भो उपही ॥३॥ उदु बबिएस बहस तीते ताथ बास ग उकये। पेतृणं उपही लाल पासातीतेस कापतितावासाउदुब्रहालदे इत्तरि साहारणे पुहुने या उम्गहसंकमण वा अण्णोष्णलकासहिजने १७आवासामुक्तम्मासो उद्दे मासों संद A पंच विणा। इसरिउ रक्समूले बीसमणहा ठिकाणं तु॥६॥साहारणा उ एते समहि(मगठि)याणे बहण गमछान। एकण परिगहिया सबे चोहित्तिया हॉति ॥आसंकमणमण्यमण्णा सकासे जाउने अधीने सुतायतदुभयाई मो. अवापि परिपुचो ॥८॥ ते पुण मंडलियाए आवलियाए पतं तु मिन्टेजा। मंडलियमहिनते सचिलादी उजो लाभो ॥९॥ सो उ परंपरएन संकामनिताच जाच सहाणं । जहियं पुण आपलिया बहियं पुण अंतरे ठानि।२५८०॥ ते पुण ठित एकाए पसहीए अहर पुष्फकिग्णा उ। अनानि उ संकमणे दबस्सिणमी पिही अपणो ॥१॥ सुन्तत्वननुभयचिसारयाण घोचे असंतईभेटे। संकमणदरमंडलिभापलियाकपत्रणुदासा ॥२॥ पुत्रहिताण खिते दि जागपोज अण्ण आयरिओ। बसप बहुआगमिजो तसा समासम्म जइ सेती ॥३॥किनि अहिजेनाही थो सेनं पतंजदि हपिजा। ताहे असंधांना दोपिणऽपि साह विसनि ॥४॥ अण्णोष्णस्स समासे तेसिपिय तय पिन-:माणार्ग। आमपणा तह प प जह भणियमर्णतरे सुत्ने ॥५॥ एवं नित्रापाते मास पडम्मासिओ उ राण। कयो कारणजो पुण अणुनासो कारणं जाय ॥ ६॥ एसऽणुवासणकप्पो जहणा अणुपारणाएं कर्ष । सलेबसमरिहर बोच्छामि अहं समासेनं ॥७॥ मोहतिगिच्छाएं गते गद्दे सेनादि अहप कालगने । आपरिए नम्मि गणे पीलादिस्क्लपहाए।..१७८ास.१६७ादा को उगणी वणिजो भण्णा जद तस्स कोशि सीसो उ सुत्तत्यतमएहि। जिम्मानो सो ठवेयो।ल. १६८॥९॥ असतीय नस्ल नाहे ठावेपदा कमेणिमेचं नु। पान कुले नाणे खेले मुहदुक्खि सुत सीसे ।। 8. १५९॥२५९० ॥ गुरुगुर गुरुणं तू वा गुरुसजिझालो व तस्स सीसो बापजएमपस्सी एमादी होनणापतो॥१॥असतीएं कुलिचो वा तस्सऽसतीए गएगपातीभो। खेने उपसंपारणे तस्सऽसनीए ठमेयत्रो ॥२॥ सहक्लियस्स असनी नस्सऽसतीए सभोवसंपण्यो। एवं तु पियाण गहि सीसम्मि उ मम्गणा नदिय ॥३॥ पाहिन्छगणधरे पुण उपिए तहियं तु मम्मणा इगयो । सुत्तरथमहिजेते अणहिजते इमें विभागा॥४॥साहारणं तु पदमे चिलिए खेतम्मि तनिए सक्से। अगहिजते सीस सेसे एकारस विभागा॥५॥ पुबुदिमणस्स उ पहिहं पचाययंतस्सा संपच्चारम्मि परमे पहिच्छए जनु सबिनं ॥ ६॥ पुर्वपंचदिहे पदिष्ठए जंतु होइ सचिन । संवच्छरश्मि चितिए ने सब पवाययंतस्स ॥७॥ पुरंपच्छुट्टेि सीसम्म जंतु होइ सचित्त । संबच्छरम्भि पढमे त सत्र गणस्स आमवति ॥ ८॥ पुहिङगणसचि पदिई पपाययंतस्स । संवटरम्मि बितिए सीसम्मिनुजतु सचित्तं ॥९॥ पुर्वपहिडे सीसम्मित जंतु होति सचित्त। संबच्छरश्मि ततिएर पाययंतस्स १२६०० ॥ पुदि गपी पचड़हिट्ट पचाययंतस्स। संवटरम्मि पढमे सिस्सिगीए जैतु सचित्तं ॥१॥ पुर्वपदिई सिरिसणीएजंन होइ सचित्त । सवारम्धि चितिए तसा पवायतस्स ॥२॥ पुर्वपदि पहिटियाए उस जं नु सविनं। संपयारम्मि पढमे तं सब पवाययंतस्स ॥ ३॥ सेतुबसपायरिओ सुहदुक्ती चेव जति तु संठपिओ । कुलगणसंधियो वा तस्स इमो होनि उ विगो ॥४॥ संबष्ठराणि नि(द)नि उसीसम्मि पहिण्याश्मि दिवस। एक कुलिनगणिचे संबष्ठर संघ उम्मासा ३५० तत्वेव याणिभ्याए अनिम्मए निगएमा मेरा सकुले तिमि तियाई गणदुग संवण्ठरं संपे॥६॥ओमारिकारणेहिं एम्मेहनेण वाव मिम्माए। काऊग कुन्डसमार्य कुलधरे वा उप. द्वेति ॥ ॥णय हायणाई ताहे कुल त सिक्खापए पयत्तेणं। य किचि तेसि निन्दा गणो दुर्ग एग संपो उ॥८॥ एवं तु दुवालसहिं समाहि जति नस्य कोड निम्मानी। ना णति अणिम्माए पुणो कुलादीउबहाणा ॥९॥ तेणेच कमेण तु पुगोसमाओ विचारस उ। निम्माए निहती इहर कुलादी पुणोवट्ठा ॥२६१०॥ नहविय भार समाओ निम्माओ सो सि गणहरो होछ। तेग परमनिम्माए इया विही होइ नेसि तु॥१॥ उत्तीसारकते पंचविहुपसंपदाएं 1223 पत्रकन्यभाप्पं - अनि दीपरताना अनुक्रम [२६११] ~53~ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (३८/२) “पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य) ------------- भाष्यं [२६१२] ------------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य प्रत सूत्रांक [२६१२] दीप अनुक्रम [२६१२] TOLATIONAugg तो पच्छा। पतं तुसंपादे पवन तु एगपक्सम्मि॥२. पानाएँ सुतेण य चातुमंगो होति एमपक्सम्मि। पुवाहितवीसारिए पदमासवि वतियभंगणं ॥३॥ सबसवि काय निच्छयोकिं कुल अकुलं वा कालसभावममत्ते गावरुजाएं काहिति ॥ ४॥ एसऽणुपाळणकप्पो आहुणाऽणुष्णावों णदिमुत्तेहि। सिद्धो अणुभकप्पो गधरेगहाणि वोच्छामि किमणुक कस्सऽणुमार केवतिकालं पपत्तियाऽणुणा? आपरिपत्त मुर्त या अणुण्ण जंतुसाणुला ॥..१७९॥६॥ कस्सत्ती सीसस्स उ गुग्गुणजूत्तस्स होयऽणुण्णा उ। केवइकालपविती आदिकरेणुसमसेणस्स ॥ ७॥ एगडिवाणितीय उ मोबाई हति नामधिलाई। पीस तु समासेणं वोच्छामी नाणिमाई तु ॥८॥अगुष्णा उष्णामणा गमण गामणि ठरणा पभावों विदा(ता)रे। तभपहिय मनाता कप्पे मग्गे व पाए य॥..१८०॥९॥ संगह संघर निजर घिरकरणमच्छेन जीच(त) बुढिपर्य। एपचरं च तहा पीस अणुण्णाहणामाई ॥:१८१ ॥२६२०॥ अणुगाइनणुण्णा उण्णामिय ऊनियंति उष्णमणी। गिहिसाहहिं णमिजद सम्हा ऊ होइनमणिति ॥१॥ सुतपम्मचरणथम्मे गामयसी जेण गामणी तम्हा। ठविओ आपरिपत्ते जम्हा उ तेण ठवणति ॥२॥ तपिओ गणाहियने होर पसू तेण पमों ससि । नाणादीण होती पमत्रो पभुइलि एनहा ॥३॥ आयरिपत्ते पभानिए वेण चियारो उ विजइ गणो से। तदुभयहियति मात्रा बहपरलोंगे व जेण हियं ॥४॥ गणधरमेर घरेती जम्हा ऊ तेज होति मज्जादा। करणिजो कप्पोत्ति य कप्पो गणकप्प समगे करणागे ॥५॥ नाणादि मोक्समम्मो सुत्न(सोव)म्मि ठितोत्ति तो भवति मग्गो। जम्हा उणायकारी णाजो बा एस तो जातो अ६॥ बने भावे संगहों दवेआहालस्यमादीहिं। भाचे नाणादीहि उ संगेहति संगही ते 10 दुपिहेण संघरेणं इंदियनाईदिएहिं जम्हा उ। अप्पाण गणं च सहा संक्श्यति संचरो तम्हा ॥८॥ गणधारणमामिलाए कृणमाणो निगरेर कम्पाई। अजेय निजरावे तम्हा ऊ निजरा होइ॥९॥ बाएस्तिा सता इन पकंपमाणाण तरुणमादीनं। होइ बिसवर्ड भो नका विस्करण तेणे तु ॥२५३०॥ जम्हा उ अयोचिछत्ती सो कुणई नामचरणमाईणं । तन्हा खलु अच्छदं गुणप्पसिद्ध हवति णामं ॥१॥ विस्यकोहि कयमिणं गणधारीणं तु तेहिं सीसाणं । सत्तो परंपरेणं आयमिग तेण जीर्य तु २॥ बहाय नाणचरणे गणं तुम्हा उ तेग बुद्धिपदै । पर पहाणमेयं साधेसि रायदेवाणं ॥३॥ इति एसऽणुभकप्यो जहाविही पमित्रो समासेणं । ठवणाकप्पं एतो वोच्छामि अहाणुपुरीए॥४॥तिविही ठपणाकप्पो कुले गगे पेन सह य संघे या एतेसि परूवणयं बोच्छामि जहाणपुषीए ॥५॥ कुलपेरोहिं गणेण व जा मेरा ठाविता भरे नियमा। सो कुष्ठरणाकप्पो एच गणे होइ संपे या १८२॥६॥ केरिखया पुण घेरा कुलगणसंपाण हॉति उपमार्गामण्णइसुणसूदणमो जेहिंगुणेहिं तुने जुत्ता आकप्पाकप्पपिहिष्णू सुत्सत्यविसारया सुवरहस्सा। जे चरणकरणजुत्ता ते सुबनयाण उपमार्ण | Men कपाकप्पविहिष्णू सुत्तत्यविसारया सुयरहस्सा।जे धरणकरमहीणा ने सुखणयाम भइया नेयवा खल क(अ)जा असती चरणहियाण बेराणंहीणोपि यसमिदो मज्झत्यो होड उ पमाणं ॥२६४०॥कह पुण ठाविनते ने उ पमाण नु तेसु ठानेसु। कुलगमसंघा घेरा भष्ण गमो निसामेहि ॥१॥ इच्छंकारनिउत्तो पियधम्मो विष्टको एकसरो । सो होति तिगत्पेरो तिगचरितविपाणओ वी(पी) ॥२॥ नाऊण गुणसमि जोग तुकुलाविये रठाणस्त। काऊणिच्छाकारं कुलादियो ति तो इणमो ॥३॥ उम्भे होट पमाणे कुलथेरा घेरठाणजोगं तु एवं तु कुलादीहिं तिगरा ऊतक्जिनि ॥४॥ तिगचरितं जागइत्ति चरित मज्जायमेव एगहा । तं तु वहाभिहि जागा लिहपि कुलादिठाणाणं ॥५पासपोसबकुसीलठागपरिरक्खतो दुपक्लेवि। सो होति तिगत्थेरो तिगरगुणेहिं उक्उत्तो।६॥ पासस्थानीठाणेग बहती एस रक्सजो होइ । अहवा सति सदा यसती)ए पासत्यादीवि पाला॥७॥ परिहजते रागादि रक्खिते साहुसाहणिदुपाखे। अहवा अप्पाण परे तिगयेरो संघरो 3॥८एको ऊ निगरो तिगरगुणेहिं होति संपलो। अहणा वीमुं बीसुं कुलावियेरे पवक्खामि ॥९॥चरणकरणे समयो जो जत्य जवा कुलप्पहागो उसो होइ कुलत्थेरो कुलपरियवियारओ धीरो ॥२६५०॥ पासत्योसन्नकुसीलठामपरिक्खतो हुरक्वेचि। सो होइ कुलत्येरो कुल येरगुणेहि उपउनो ॥१॥ चरणकरणे समम्मो जो जस्थ जादा गणपहाणो उ।सो होग गणस्थेरो गणचरिथरियाणा भी(पी) २॥ पासत्योसन्नकुसीलाणपरिक्लो तुपक्सेवि।सो होइ गणत्यरो गणवेस्गुणेहि उपउचो ॥३॥ चरणकरणे समग्गो जो जय जवा जुगप्पहाणो उ।सो हो संघरो सीतपरसमो पुस्सिसीहो ॥४॥ एलो उ मूलसंघो आपुच्छणगमणकरणकनेम । हितमुहनिस्सेसकदो कुलगणसंघऽप्पणो चेच ॥५॥ ईसणनाणचरिने जा पुत्र परूषणाऽऽयरणया थ। एसो उ मूलसंघो निचिहा घेरा करणजुत्ता ॥६॥ पुधिषि पर विजा आयारादीसभियचरिने। त सम्ममावरंतो हबति तु संघो तहा घेरो॥७॥जो सोहीणचरित्तो अण्णास असतील भुवमणितो उ। कुलसति ठविमति तस्सुक्देलो इमो होड़ ॥ ८॥होज कसणसंपत्तो सरीरमार्थकता जसहुओ चा । चरणकरणे असलो मुब मग परुविना ॥.. १८३ ॥९॥ पसणं पाजीमादी मूलजरादी तु होइ आतंको। चितिसारीरवलेणं हीणो जसह मुगेयत्रो ॥२६६०॥ एएहि कारणेहिं अकप्पपडिसेमणं करेंतो उससुर मग पर अप्पाहणिया अओ एनो॥१॥कापपणया भैवा सोचा गया नहेब घेणं चरणकरणे विसुदे जावरणपरूवमं कृष्णह ॥२॥ त्रापरियसबासाओ सोचा गया व पेनुमत्येणं । हियए क्वत्थवेट आयरण परूषणा जा॥३॥ कपपणगम्स मेदो पवित्रओ मोक्त्रसाहमहाए।चरिऊग सुविहिया करति दुक्खक्रसर्व धीरा ॥४॥ पंचविसुतकप्पाण विभासा विश्वरं पमोतूणं । गहिया सीसहियहा बोशितट्टया चेव । २६६५॥ (मनसुयसमूहमयी वामकरमाहियपोत्थया देवी। जक्सकहंडीसहिया दंतु अविग्पं भताणं ॥१०॥) जैनसाहित्यसुधापानपीनबीपुष्पविजयजीविहितावानुत्कीर्णमिदं पंचकल्पणछेदभाष्य लिहाजितव्हडिकागती आगममंदिरे पीरविभोः २४६९ मुनि दीपरनसागर १११४पत्रकम्पमाप्यं मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादित: (आगमसूत्र ३८/२) "पंचकल्प"(भाष्यं) परिसमाप्तम् ~54~ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः | 38/20 पूज्य आगमोध्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरेण संशोधित: संपादितश्च। ' “पंचकल्प-छेदसूत्र” |संघदासगणि क्षमाश्रमण रचितं भाष्य] / (किंचित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) मुनि दीपरत्नसागरेण पुन: संकलित: "पंचकल्प" भाष्यं नामेण परिसमाप्त: Remember it's a Net Publications of jain_e_library's' ~55~