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आगम
(३८/२)
“पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
---------- भाष्यं [२३५०] ---------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
५० ॥ लीलो परिच्छओ वा कुलगुणापा हि सत्रमसंचालन सम्पग
सो भमिही संसार चाउरले त अमाप
पोरन१५८॥
प्रत
सूत्रांक
[२३५०]
दीप
विमोएनि ॥२३५७ ॥ सीसो पहिच्छत्रओ वा कुलगगसंघो व एनि इहलोए। जे सपकरणजोगा ने संसारा विमोएंति ॥ ल. १५७॥१॥ सीसे कुलिचाएं गणिबए संधिचए य समनरिसी। पहारसंथवेस यसो सीतपरोक्मो संघो ॥२॥ गिहिसंघानं जहि संजमसंधाननं समुपगम्म । नागचरणसंघानं संपाएन्तो हबह संघो ॥३॥णाणचरणसंपानं रागहोसे हिं जो चिसंचाने। तो संपाए अहो गिहिसंधानम्मि अप्पाणं ॥ ४॥ नाणचरणसंघातं रागहोसेहि जो विसंघाए। सो भमिही संसार चाउन त अपवयम् ॥५॥ तुक्सेण लमति घोहि युद्धोचि वनसमले चरिन । उम्ममादेसणाए तित्यगरासायणाए य॥६॥ उम्मग्गवेमयाए संतम्स य छादणाए मग्गस्त। पंधा कम्मरयमलं जस्मरणमणतर्ग घोर १० १५८ ॥ ७॥ पंच-16 विहं उपसंपद नाऊण खेत्तकालपा। तो संघमापारे वहरिया अणिस्सा ॥८॥ निदरिसणं तत्य इमे नगरानगरीय सोसायरिया । अण्णायणायकारी तत्परहारि अह इमे ॥९॥मा किने कार्य कुणिमं पाकुतरं च चमा(बचा)। बहिरं च गुंठसमर्ण अंबिलसामणं च निदम्म ॥२३६०॥ कंकडुओविध मासो सिद्धि ण उवेति तस्स पहारो। कुणिमणिहो । पण मजा इकिलो एवं बितिषस्सा ॥ १॥ पाकुडाच भयाओ कजपि ण सेसतं उदीरेति। पादेणं आउत्तिय उत्तरसोपाहणेणंति॥२॥ रोमंथयने कर्ज चना(गया)बी नीरसंनिवड 12 सणेनि। कहिए कजे सने पहिरो व मणाति ण सुतं मे ॥३॥ मरहलादपुच्छा के रिसया साट' गुंठ! साहिसं । पाचारभेटिभणं दसियागणगं पुणो दाणं ॥४॥ गुंठादि एवमादीहि हरति मोहिनु नंनुबनहार। अंचफरसेहिं अपोगणेति सिदि चवहारो॥५॥ एते अकबकारी गराए आसि तम्मि उजुगम्मि। जेहि कला ववहारा खोडिजन एप्परजेसु॥६॥ बहलोमम्मि अकित्ती परोए दुग्गाई धुवा तेसि । अगमाएं जिमिदाणं जे बहार वनहरति ल०१५९॥७॥ बत्तीस तु सहस्सा गच्छो उकोसओ व उसभंमि । बगड़बग्गहरा इनियमिनाण जन्ध संघरणं ॥ १६॥ कित्तेहं पृसमितं धीरं सिक्कोर्ति च अजा(झा)स। अहरण्यग धम्मग्णय स्वंदिल्ट गोबिंदनं घटाएते उ कजकारी नगराए आसि नम्मि उजुगम्मिा जेहिं कता बहारा अक्सोमा अमरजेसु ॥९॥ इहलोगम्मिपिकिनी परलोगे सुग्गाई धुवा सिं। आणाएं जिणिवाणं जे वहारं वरहरनि ॥२३७० ॥ साहिय पूण करिसएण जंपिया तु होइ समण । मण्णा सुगमू इणमो जास्सिएणं तु बोत्तरं ॥१॥ पारायणे समले चिरपरिवादी पुणोपि संविग्गो । जो निग्गी विदिणे गुरूहि सो होतिशि बाहारी ॥१४॥२॥ मूल पारापर्ण पदम, चितियं च दुरबह)भेनिम । सनियं च निरवसेस, जइ सुजोति माहगो ॥ ३॥ सुनत्यो स्खल परमो चितिओ निजानिमांसओ अगिओ। ननिओ य निरासेसो एसपिही होइ अणुओगे ॥४॥ पदिनीय मंदधम्मो जो निम्मों अपणो सकम्मेहि । गहु होइ सो पमाणं असमती देसनिम्गमणे ॥ ५॥ आयरियादेसाया- 191 रिएण सन्येण गणितम(स)रिएण । तो संघमायारे वपहरिया अगिस्साए ॥६॥ आयस्थिभगादेसा पारिएण सच्छंद विरनिएर्ण । सचिनखितमीसे जो पहलीज सो धणो ॥७॥ सो अभिमुहेड मुदो संसारकटियागम्मि अप्पाणं । उम्मम्मदेसमाए तित्वगरासायगाए य॥८॥ उम्मगदेसणाए संतम्स य ठायणाएं मग्गरस । उम्मग्गादेसमम्मा मासा चतारि भारियया ॥९॥ परिवार पुडद धम्मका पादि समए तहेर नेमिली। बिजा राइणिया इदिदगारवो अहहा होइ ॥२३८ ॥ एमादिगारबेहि अकोरिया जे जय भासिजा बना । णमो नतम भागो वह बोनु तापपरिवारो भवति जय परिचारेण होज कनं तु । नाह (य)परिवार विजम् बुटो पुण भण्णई गमो ॥२॥ लोगेण जन्य समय यहाग तनाथ हुजाहि । तस्थ तुम जंपिजसु धम्मकही मण्णइ इमं तु ॥३॥ जहियं धम्मकहाए कर्ज तहियं तुम भणिजासि। वादी जत्थ उपादिग्पओयणं नन्य भासिजा ॥४॥खमगो भन्नर इणमो देवयकर्ज जहि भपिजाहि । अविवादिकारणेहि तत्व नुमं नं करिनासि ॥ ५॥ पिज्जासिदो भण्णाइ चिनाए जत्थ संघकनम्भि। कर्ज होज करेग्मय रायगिओ भण्णा हम त ॥६किनिकम्मरस 3 अपहताण बंदणं अम्हें । कु(लि)जाहि नुमं गर्नु वह पुण गीयस्स चिसो 3 ॥७ण हगारपेण साकायहरित संपमापारमिाणासे अगीयस्थी अयाण चेव गच्वं च ॥ ८॥णासेई अगीययो चउरंग सालरोगसारंग। महम्मि य चाउरंगे गहु सुलभ होइ चाउरंग ॥५॥ विश्परिवाटीहि बमएहि संविम्मणिमियफोहि जन्मि भासिया अणुओगे गंधहत्वीहि ॥ २१९०॥ मारी प मुसाचादी चिनिय ततियं वयंचलोवेनि। माची य पात्रजीची असुतीनिरो कणगी ॥१॥आमले पच्छिले वहा समासनो मने इपिहो। दोस्य पणगं पण आमाति अहीकारो॥२॥ सचिनो अचिनो य मीसजो खेत्तकालनिष्फष्णो। पंचविही पहारो आभयंती उणायचो..१६५ ॥३॥ सेहम्मि उ सचिनो अमिनो हानि पत्यमादरीजो। मीसो सभडगा खेनश्मि उगाममादीहिं॥४॥ नगराइसलिले पुण बसहीए नस्य मम्गणा होह। काले उडुवासास पाभरणा होद गायव्या ॥५॥ अहवाऽऽभवनमण्णो उपसंपपवेत्तकालपचना। नाऊण संघमझे वहरिपर्व अणिस्साणं ॥६॥ सुन सुक्खे सिने मम्मे विगए प पंचहा होइ। समावि य एवाओ
सुषणाणमणुप्पपत्तीओजस्व उसुजओचसंपर तत्व उसका इति (सिहोन्ति) एयाओ। अहवा सुमोपरिहा गर सेपटाए हस्तेया 1८ ॥ गुस्सीसपडिग्छाणं निहानि की कस्स A११०१ पशकल्पमाप्य -
मुनिटीपाजार
अनुक्रम [२३५०
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