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आगम
(३८/२)
प्रत
सूत्रांक
[२२९९ ]
दीप
अनुक्रम [२२९९]
“पंचकल्प” छेदसूत्र -५ / २ ( भाष्य )
यं [२२९१९]
...आगमसूत्र [ ३८ / २], छेदसूत्र [५/२] “पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ......
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मणिचाणि मुले पुढारवाहियाणि वीसाए नि अनुपालयतो सवाणि मिसीहकन्यो उ ॥ ९॥ मुत्तत्यतदुमयानं महणं बहुमानमच्छे चोपुविनिषदे कप्पे हियम्मि महारी ॥ २३० ॥ तिविहो व पकप्पधरो मुझे जत्थे य भए चैव सुपर मोनू तओ पितिको वा होइ गणहारी लिग पग पग उकं अट्ठ वर्गच जस्स उपल परदा सो सोही विद्याणाहि ॥ १६३॥२॥ नाणाईनं तिच पण चहारो होइ पंचविहो। चितिय पञ्चग पंच बता उकं पुण होति उकाया ॥ ३॥ आलोयणारिहगुणे अ T अपार सोहि हि आलोयणवादी मूलं जानती जो तू ॥ ४॥ जालोयणमादीयं गतं तु वहिं होति पारंचितमा दसविहे हाती पसदेणं ॥ ५॥ उ करण सफला माता करे जो जाये तो होति दाण अरिहो तबपीओ जणरिहो ॥ ६ ॥ किह पुण से दाय पातु पुच्छा सीसो भग्ग इमेण विहिणा दाय कमली ॥ ७॥ ] उ सहाणं सागविभागता पवित्या सिरिस किति ? संती चरणमादी ॥ ८ ॥ सातिय गुरु होइ रायपिंड सहाविभागे सरमादी मुणेो ॥ ९ ॥ जहवा करणं होइ मासमुक् तु होइ विभागसंगो दिदीओ मुणेो ॥ २३१० ॥ पुरिसजा पा च दिजए जारि गुरुमावलिगादि जो ॥ १ ॥ हेऊ कारण निकारणे व जयगादिसेवियं जह उ चोदेति किंनिमित्तं पच्तिं दिजए सुसु ॥ २ ॥ पायच्छिते असेसम्म रितु न चिए चरितम् अतमिति जो सपरितया ॥ ३॥ वियम्मिय असंतरिम वाणं तु न गच्छती असंतमि सा दिखा निरस्थिया ॥ ४ ॥ एवं निसीको चालू पण समासे वहारकपणा गुरूपालेन वोच्छामि ॥ ५ ॥ वचहारे कोइ भिक्खू सचित्तनिवानिदमहुरेवती वहावत सो संघ॥ ६ ॥ को मिक्सू अशनगरम्मि कंचि वच्हारे गाएणं विदित्ता इत्यच्वेहिं पमाणकतो ॥ ७॥ अह पच्छा सचितं सुड्डाई तस्स केई दिव्यं सही पाउरणं वा चम्पक्वपरे ॥ ८ ॥ पादमिदं गुलाहिं वादि संगहितो । समाहि (अन्दालि) एहि ताहे वह पक्लवाए ॥ ९॥ दुववहारिएण को उ मिसेज तो बड़े संपो एव संघो कीर इणमो सयं (सं) पत्ती ॥ २३२ ॥ अणो नहिं तु गीत संघसमतीए निम्ति द्वारा उ उचारे सिदपुतो तत्थ मेरा इमा होइ ॥ १॥ पुम्मि संघस धूपोऽवि जो एलाहि कुरुगणसंपसमाए लग्ग गुरुए पासे ॥ २ ॥ काहिति तं पापति सति व जगतो आणाया जाणादिदेसि च जं कुजा ॥ ३ ॥ सोऊण संघसहित आगमीपनिमित्तं वपहारों उबहिनी हो सोऊन संपली आग तो विहारमा साहू समाएग वारे ॥५॥ निन्द्रं महूर निपातं किम्वा तो सचिन खेत मी अत्र होड दिसणं ॥ ६ ॥ भय मुलाबादी बहारे तहयगम्मि उद्देसे सुप्तं उच्चारती यह बहु पक्खा इमं होइ ॥ ७॥ रागेण दोसे एक मिस्त जन्म कीरमाणे कि अच्छा संघ यो ? ॥८॥ रागेण व दोसे व पक्वान एकमेकस्स कलम कीरमा अन्योऽपि ममेड ता कोई? ॥९॥ कुलचण यामाम देशी मिज अता के कम्प पि२ि३३०॥ संपे
संपति सो गुणसमिद्धो महानो अणुमातो तयं संघ ॥ १ ॥ संपो महाणुभावो अहं देसि इहे ते संसमिति जातं मे सब (से) समामि ॥ २ ॥ ऐसे ऐसे उपाय समिती गमिमा विदेसिजऽहं ण जाणामि ॥ अनुमानेता एवं गुणाए पर इणमो परिसाबहारीण व इमे गुणे ऊ समासे ॥ ४ ॥ परिसा पहावा रामदास जति होति दोष तो सुहोति ॥५॥परेजति पहारिणो जानू तुम्हे सति ॥६ सामुसावादी सचपरिमगा कि स भ गुमेह एवं मूतत्वमिम ॥ ७॥ समचरणकर सहारा दुसहिया। चरणकरण जोहर ॥ ८॥ तं पण नागरा परे अणुकंपा नन्द जी ९॥ मात्र जवस सजा न तस्सदुक्तं परे दृहिए । २२४० ॥ जायापतो आपरूयापरो सुपरदेस म ० १५४॥१॥ तत्यगरे गते जगजीवाणए जोन करेनासुराणं ॥ २ ॥ जो करेति प्रमाणं सो उपमा ।। ० १५५ ॥ ३ ॥ संघोष रामसको हो समोसा ॥ १५६ ॥ ४ परिणामयी उसे दो समणसंधी उ ककारी सुपरिकार पेचिते ण एइ परिभवेणं तु जगाइकमणिहमा आउदा ॥६॥ आसासो पासो सीनपरसमो होति मा भाती (हि) अम्मापीतिसमाणो संघो सरणं तु ससि ॥ ७॥ सीसो पच्छिलो या आयरिजो वान सोम्माई नेति जे समकरणजोगा ते संसारा विमोऐनि ॥ ८॥ सीसी पछि वा जरा से लोग जोगा ने संसारामिति ॥ ९ ॥ सीसी पछि वा कुलसंघा सोम्यई ति बरजोगा ते संसारा (२७७) ११०८प्यं -
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मुनि दीपग
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