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आगम
(३८/२)
"पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
------------ भाष्यं [१९६०] ----------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
मापानी तग साउँ । जा पा चासो अपणा पाचे ॥२॥ अयहा अगर सगह माति। होहामि चा
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प्रत सूत्रांक [१९६०]
दीप
ठागे पस्चियनि निणि १९६०॥ एमेव जहाउंदै फुसी ओसनमेष संसने। तिमि पश्चियनी नाणं नह देसण चरिनं ॥ पुण उपसंपजे? तत्थ इमे गच्छ होति चत्तारि। एगो देशलएरय चितियो देईन गेहा उ॥२॥ ननिओ न देनि गिहाण य देडग गेण्हती पडल्यो । पदमे उपसंपना सा उनओ णऽणुष्णाया ॥३॥ चिलिए णिजरलाभ न लमति गेलनमादिकोस् । ततिए गिलाणकारण अवसझे मरणदीसा ॥ दोणिचि चउत्य दोसा होड वन्यूय तेण सो नम्हा। पामभिम गुणा सह बनिने मे निसामेह ॥५॥ भत्तावहिसवणासण दाणगाहणे(न्टो)य एकमेकस्सा हडगिलाणे कयकारित य अणकमो ज(जोऽस्य ॥६॥जो पुण ते संतो करे उपसंपद असुदेसु । निद्वाणगामिलासी पहन बोसहुतिहाणा।। ७॥ किण ठिो सि नहि चिय? पुट्टो जपेड नस्सिमे दोसा । अप्पियसमायादी गस्थिय ते यावि जनितस्स ॥८॥रोसं आमासतित दोस अप्पणा समावजे। जोथि पटिच्दनन् सोऽपियन वेष आवजे ॥९॥ गठस्स जोवसंचे असुद्धमापाती नगं सोउँ। जो पुण पडिठमाणो अविणीयादीहिं दोसेहि ॥१९७० दूसेडग पहिच्छति न संति ने बावि तस्स जदि दोसा। ताहेज सो चरती से दोस अप्पणाऽऽमजे ॥१॥ जप असूद्ध पहिच्छति रामेणं नस्स जे भने दोसावोसतिगडाणादि ने उसी अपणा पाये ॥२॥ अव्हा अणरह उपसंपदा य भणिया उहाँति दोऽयेते । अयमण्यो उ अपरिहो मुरी उक्संपदाते
॥३॥ आहारे उबहिम्मि य पगासणा होद अपरिहमसहदे। एतणिजहा संदिग्गजणम्मि उदेसो ॥१२९४॥ आहारउबहिसेजालभिहामी नेण संगह कुणति होहामि चा पगासोलोए गऊ निजहाए ॥५॥ एए हॉति | अपरिहा निनिणिचालचिनमाविणो ने या अहवावि मंदसइदे आकहिविकहिए याति ॥ ६॥ जो पुण इमेहि पंचहि ठाणेहि पार्दै सो भवे अरहो। संगहुक्माहणिजरसुनपजवजानवोचिती॥ ७॥ तस्स पुण णिजहा बातम्स नियमेण मुरिम्सा आहारोवहिपूजापगासणा प भपती ॥८॥विणएगाहारादी उकासा तस्स हॉति दायबा। काले कालगुरूवाजे वापि सभावाणुरुवा॥९॥ उच्चसरीरो उजइपिय सो मंडलीय मुंजति कातदपिय मनगगहण सीसपटिपठेहि काया ॥१९८०॥ एस अचम्मना उ.जह गोतमसामि सामिगो मेन्हे । हिंडतस्स पुष इमे नस्स उ दोसा भयंती उ॥१॥पाए पिने गणालोए, कायकिलेसे अधिनता। मेढी कारए वाले, गणचितारहिमादिणी ॥२॥ एतेसि दारा पासागुपरि चिनिनाउदेसे। पहारे भणिहिनी चित्थरओ इह समासेणे ॥३॥ मत्तीए तु गुणार्ण पगासणा नस्स नेहि कायदा । एवारिसो महपा उजुला अणजकालीओ॥४॥ यामाहारविजड़ो तवसेजमसहिओ जिबकसाओ। बहुमुव बहुआगमिओ मनीए पगासए एवं ॥ ५॥ एसुसंपदकप्पो बोई उसकप्पमहमा उ उदिसण पावणगि य पादणया पेय एगहा। युनत्यनादमयाई पचायते नाप जाप संघा(सहा)
। बहुपमपाययाए विजदे मजियतु संपा(सहा)..:१३०॥ ७॥संधानमनगमणं असिवाई पचपावणेगविहा। विजदेनी निक्सिने जोगे भाओ पूर्णपसंयो॥८॥जह कारग फेणई निक्सिनो नो सि उक्लिन पुणोवि। अह दपा मिक्खिनो तो गाउ उक्खिापनी मुजो ॥९॥ उदिग्मि य अंग सुपलधम्मियतहेर अजायगे। आसज पुरित कारण तिहाणे होइ पटिसेहो ।।..१३१४१५९०४ अंगादी उहि परिसं बटण अपरिणामादी अध्यति सहारा (यादिहि अविणीवादी र णाडणं ॥१॥नाहे निक्सिप्पनि उनिहाणे जंतु मणिय पडिसहो । सुतमत्वतदुभय एतेसि निन्छ पडिसहो ॥२॥ एसदसणकप्पो अहुणा पांच अण्णकाता कम्ही काले गहरी पत्यादी अण्णानं? ॥३॥ त्वंपादपाहणे वासाबाससु निमामो सरदे। निगपणगसत्ययुगाउपब्मि अप्पोदर्ग जाणे ॥..१३२॥४॥ वत्थादीणं गहर्ण माणुष्णानं त होइ वासामु। वासादीएं परेणं दुमासे अण्णे उमेहति ॥५॥ सेसि पुण गंगाणं सरदे जा दोहगापानी। दगसंघह जहाणेण तिणि पचेर मज्झिमगा ॥६॥ सनेर उ उकोसा गिम्हम्मी तिणि पंच हेमने । वासास य स भवे परेण खिनं गाणात ॥ ॥ अपोवानि ममा जनरीयास परिणय पुषित अडडे जोयण दयपट्टा जाव लगेच ॥ ८॥ बन्धपायग्गहणे णपर्सधरणम्मि पदमठाणाम्यिा । एनो पाकमम्मि उ सट्टागासेषणा सुदी ।..१३३॥९॥ पदयं ठाणुस्सग्गों ने तू नवसु होइ सिनेमा वन्यावीणं गहणं प्रत्येष य होइ विहारो ॥२००० ॥णनटाणाइकमे पुण हत्ती सापजो चिसदो उ। किं. पण न लडाणं अपपाडे असति तो होइ? ॥ १ ॥ अपवादेर्ण महर्ण उस्सग्मो चेत्र होइ सो नाई। गेहनस्स उ कारणे मुबी तह चेव बोदशा ॥२॥ जह गिण्हनसामे सुची पहिस्स एवं चिनिएण। गेहतस्स विमुदी सहाण एसमक्सान ॥३॥ अहवाचि इमे अण्णे, पर उहाणा विवाहिया। दवाईया उणमो, गोपामि अणसी ॥४॥ दो सेले यकाले य, पसही निक्लमंतरे। सझाइए गम जोगी, एने ठाणा पियाहिया ॥ ५ ॥ दाणाहारादिणि जादिन मुरमाई गम्मि खेलम्मि। खिर्स पिच्छि खड़पनेंतसुगंतगगणरस ॥ ६॥ वनण परिवहनी गुणेति जय गगो उपालादी। तस्स परति खेत आहारादीहि सचरण ॥ ॥ काले ननियाएं बेला बलही जोपाजो मिक्स मुलमंनि। ण विगिहमनरापिय समाजी मुमति जहि य॥८॥ सुलभ जावरियाणं जो जोगीण सुलभ पाउा। एते ने नच ठाणा जहिं उस्लमोणक महणं न॥९॥ उस्सम्मेम विहारो संघरमाणाण पत्रम् सिनेमाको सम्पादुलही नवि पेढे पापि नगपहे ॥२.१०॥ पि रे गच्छनी गनमा असंभने चितिवठाणं। दगपहे बाएकी छे दुरचि गच्छेजा ॥१॥ दुलमम्मि पत्यपाए ऊगहिएसपि नसु गम्जिा । एमेष मिारोविर्खेतागसती मुगेयको ॥२॥ आलंधणे विसदे दगुर्ग तिगुर्ण वडगुण वाचि । खेनं कालातीत समग्णानं पकापम्मि ॥३॥एम अणुपणाप्पो जहुणा अदानप्प बोकहामि। जेहि य कारणेहि अदाणं मम्मए इगमो ॥४॥ असिवे ओमोयरिए राबददुई भएप आगाढ़े। देसुद्धाणे अपरक्रमे व अदाणी पणगं ॥ ५॥ उदर मुभिक्ले अदाणपाजणं तु दर्पण । दिक्सादी पठलगा बउगुरुगा कालगा होति ॥ ६ ॥ उगमापापणएसणाएं ने स शिहते ठाणे। संनि फन्न तम्स ऊ पायच्छिनं न दायकं ॥ 30 पुढवी आऊ तेऊ ये वाऊ वणस्सनि नसा या मंतिम परिनेय यजं जहिं आरोषणा मणिया। दलहुजी गुरुओ लहुगा गुरुगा पनारि उचलहया या जगण्य उदो मूलं अगवटुप्पो व पारंची ॥९॥ असिने ओमोदरिए रायड़े मएच आमाटे। गीयत्या ममत्था सस्थस्स गस कुजा ॥२०२०॥ कालमकाले मोती पाऊणय अहिषति अनुष्णवणा। भिनयमिच्छादिडी धम्मम्हाए निमित्ते य॥१॥ सनुयसमए संखडि पत्थय(रिड) लल नहेर पोग्गालिए। पम्मकहनिमिनेणं वसहा पुण दान्दिगेणं ॥२॥ सत्ये पंथे तेगे पंचविहो उग्गही यहाण। ११.२ पत्रकम्पमाष्य -
मुनि दीपरतसागर
पाक करू
अनुक्रम [१९६०
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