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आगम
(३८/२)
प्रत
सूत्रांक [१३९८]
दीप
अनुक्रम [१३९८]
“पंचकल्प” छेदसूत्र -५/२ ( भाष्य )
यं [१३९८]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [३८/२], छेदसूत्र [५/२] पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं
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पाणि दंसणेण रोता चाए जो बेटे अप्पा गो गणहारी ॥ ८ ॥ गाणम्मि सम्म य तबे चरिने व समणसारम्मि चार जो वे अपन नारी ॥ ९ ॥ गाम्म सम्मिय ये परिने समारा जो वे अपाण ग स गणहारी ॥ १४०॥ एसा गणहरमेरा आयरल्याणणिता सुने। पदा हिडाए १॥ सनिहादि विसय तेसि तु जे भरता अपने ऊ बिहारो ण नेसणाओं ॥२॥ उपाय. रिम्स पिट उहि से सोहितो होति सचरिणी ॥ ३ ॥ सीतापनि बिहार सुहसील जो अदीओ सो नपरि गितारो जमसारम्मि पिसारी ॥ ४ ॥ सगरी चणासुरमहिनो सिज्झियवधूमि अणिमूलविरिश वाणम्म उज्जमति ॥ ५॥ किंग असेसेहिं दुक्खखयकारणा सुचहिए। होनि उमिसचायलिंग माणुस्से ? ॥ ६ ॥ संखित्ताविव प ज यद्धति विवरण पती उदधिच बड़ी तहसीलगुणेहिं वाह ७॥ कृणमप्पमा आवहिं जमनीपा मालवियाना ९६ ॥ ८ ॥ तिकसा परिणता परपरिवादं च मा करेजाह अच्चासायणविस्ता होह सदा संजमरताय ॥ ९७ ॥ ९ ॥ सा गुरु या विषयान्ययए बाउना साहून याला णियं ॥ ल० ९८ ॥ १४१० ॥ एस अडियस बस्तीय अपरोवतावीय परमगुणमट्टियनियधोणा (पि॥१॥ एवं मंगत पता आनंदसुपादं मुति गुणे सरता से ॥२॥ कतरे गुणा नरसा जे सुमता तु तस्स ने सीसा भनि इनम गुणसू ते भयं समासेणं ॥ ३ ॥ सस्यगाणं सममुहदुक्खाण विप्यकंयाणं दुक्तं सुचिसहि वासी गुरु ॥ ९९४॥ [सीलगुणदि पट्टएप अपरोक्ताची हि पचतेहि महिंदेसा ने संडिया होति ॥ २० १०० ॥ ५॥ अणुस दाऊणं तहिं सत्यमितिहिनम्मि अह सम्मिदिन संप असति गणं न समा ॥ ६॥ पर पदसमीप गणधराण व समीपे चोदलपुत्री तह पेइए य असतीय पमादी ॥ ७॥ [पामान (वासाचि) हारविदा कार्ड गणंगारिया भिमा पीरा ॥ ८॥ किलियामा अभिमाहिती असा उ जिनको केरिसस्सा कम्पनि परिवजि सुण ॥ ५॥ कप्पे परिसारम्स संघरियन एवारिम्स कम्पनि परिजिड होति जिनको ॥१४२॥ जपणं भणितं पदमं तु होति नियमेण विरियं चिनी ती जुतो कुसमो ॥ १॥ निपुण परि सो पुर्ण नियमाकारणेहिं तु काणि पुण कारणाणि य इमाई नाई जिसमे ॥ २॥ देहस्स बनने आयरियाणं पाइपसादा रोग परिबंधन सहति सीउष्ट्रादी च परिभागी ॥९१॥३॥ गुत्यापि धेनुं देह तु नं चाति गुरुणं च अणणुकूलनणेण माराहिजो मूरी ॥४॥ आपरिया अपसण्णामुपायं कुव्र्वनि णाहीन सुजातु जती ॥ ५॥ सीलसविहरोगाणं जहवा गार्ड अभय इमे वा रोगा ॥ 5 ॥ का साजरे हे जोगीले अ रिसा अजीरए दिडी मुसूले अकार ॥ ७॥ अणि तहका कंडु कोड दगड(सर)। एते ते सोलसची] समासतो प्रणिता रोगा॥ ८ ॥ अण्णोपडि
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साहिति के पुण पविधिमे गुण ॥ ९ ॥ सो गामो साया मम जो एनाई तो गुरुकुरानि॥१४३॥ सकाम मे भोओहि गाये आयरिओ महतरओ एसा मे सदा॥१॥ ससदस्यमा मे सविएगागी १०१ ॥ २॥ एहि अभागी सीताई पण देति उदरं तु तो पाहिजति सो ऊ गुरुकुलवास असेतो ॥३॥ एहि पहिरि परिसम का पुष सामापारी जियोनिमा सातु ॥४॥ लेने का परिने तिथे परिवाग आगमे ये कप्पे लिंग लेखा गणणा झाले भग्गाहे ॥५॥ वाणायण मणसाऽऽऽचि से अणुयाता कारण पिटिकम् भ पंथ व निवाए ॥ ६॥ एसी जिनको खलु समासतो तो सवे एलो वेरा समाज मे समे ॥ ७ ॥ विहिम्मिसंजमम्मि बांदी होती तु सामछेदपरिहारिए यतिविम्मि एयमि ॥ ८|ठिय अट्टिएव कप्पे समाजमा (ओ) मुणेयची छेदपरिहारिया पुगियमा होति ठिक ॥९॥ जिपी अमहो दो गहणं चमग्गहाणं पंचहि दोहिं च वह इह ॥ १४४ ॥ बापुडे सेहे सणही दुसंपयणम्मि पण भणिता ॥ १ ॥ जहसंभयं तु ऐसा सादि विमासिपत्र द्वारा उ उचरिं तु माकणी विवरती विभासते तेसि ॥२॥ इति एस थेरपी एनोमिलिंग तु। तुम भवती तु ॥३॥ नकक्वण (थियो मुंडो दुवो वही जो सिं एसो नायवी ॥४॥ स्वहरणं मुहपोली संखेवेण तु बुह उपड़ी उपापिकिलिंगे अरिस मेहे कपि ॥५॥ दुबिहा अतिसेवाविय तेसि इमे वणिता समाचाहि सिरिसेस पामि ॥5॥ पा हिस्यो सरीरस्सा अतिसेसो सिमी उदय पाणिपातो वसभसंपयणचारी ॥ ७॥ जम्मंतरमतिसेो इमो उतेसि समासतो मणिओ उपहोचित्र अक्सोमो (२७३) मुनि दीपसागर १९९२ पञ्चकन्यायं -
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