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आगम (३८/२)
“पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
------------ भाष्यं [२४४९] --------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्य
जाब सो तमासादारण
होनाल्याचं जो
प्रत सूत्रांक [२४४९]
दीप अनुक्रम [२४४९]
आर्मतुपयत्वाचीपूरिसक्लेयर बिसेसो ॥९॥गो सकोसजोषण मूलनिचे अणुस्मयंतेण। सबिते अविते मीसेविय दिल्यकासम्मि ॥ २५५० सेमती निस्साहारणमि मलासेस अर्णमुर्वतन हो सकोर्स जोयण दिसविदिसा सातो॥१॥ एवं सत्तओं एसो कालओं उनपनि होडमासो उाबासासु चउम्मासो एचतिकालो विदियो उ ॥२॥ एतकाल विविज्ण पुग्ने निकारणम्मि तेग पर । म उनग्गहो विविष्णो मोतूर्ण कारणमिमेहि ॥३॥ असिवादिकारणेहि विहतिरेगेऽपि उन्गाहो हो ।जा कारण जिर्ण नेण परं उम्गहोग भवे ॥४॥जाहर खेतकप्पो असती खेत्ताण होज बहुगावि। सत्तेग बकालेण च सामावि उरगहो गगरे ॥५॥ सति संभे खेतार्ण जोग्याचं जो उ जस्य संघरति। सो सहियं सं. पिक्से खेत्ताण असती पुण पहुंचि ॥ ६॥ एगस्थ उगामादिसु जहियं तू संघरति नहिं अच्छे। सोसि नहिं उम्गहों साहारण होति जह नगरे ॥ ७॥ एसा खेनुक्सपद पुरपच्छासंधुए
समति एल्वा तह मित्तवसा या जंगलम सुतोवसंपनी ॥८॥मग्गोवसंपदाए मना देखेद जाब सो तस्सा लभती विद्वानहादि जो य ामो पुतिताण ॥ ९॥ विमओपसंपदा पुण | कुवति विणयं तु जो उसपणिए। स नस्साभवती जो उ उपहायती तसा ॥२४६० ॥ उपसंपद इन्चेसा पंचविहा पचिया समासे । सेत्तग्मि परे खिले मिक्समिओ जो उ होजाहि
१॥ काले उजु मास वा पसिऊणं निग्गयाण जो अयो। परमवितियदिवसेस निपखामे कालो एसो । सो पंचविहो चपहारो आभयंतिओ णाम । पच्छिले पचहारो जह बस (ड)मुद्देस पबहारे॥३॥ अहुणा उ खेतकाला नेबि उ तत्व भगित नहारे । जं सत्य उ तस्सेसं तमहं वो समासेणं ॥४॥ हुन्दि विहारकाले निविहा सोही उ उवहिमनागं। दिपणे जतंत सोही अविदिग्णवाए'आपरणे.१६८॥५॥ उदुमदेवासासु या विहारकालोड होड दुनिहेसो। उग्माम उम्पायण एसगा प एसा विचिह सोही ॥६॥ उदुपद मास वासासु हाँति पारो चिदिन्नकालो उसएम जयंता जापिहुआवजे हवि सुदा उ॥७॥ मासा चाउमासा पुण संवसमाणा उ तत्प अतिरित। म(ल) गति जयंतावित किम अजयंता 32 कि. पाण्यं ॥८॥ उपयवासवास अणुवसमाणो असुवमत्तुरही। आवरिषयमाणा गुणयमाणं च समगाणं ॥९॥ उम्गममादी दोसा असेवमाणोचिसो उ आवाणी। जम्हा दोसायनर्ण उरम्मि यावेतु संवसति ॥२४७०॥ कत्येयं भणियंतिय ? भन्नति आयरिएण किमायारे । जाचारपकप्पे ऊजाचारिभवंतु आयारी ॥१॥ जे भिक्खु णितियपासं पत्तइत्ती एस्थ मणिय सुत्तम्मि । एवं पमाग उभये अइरिने याविजे दोला ॥२॥ जदि पुण बहिया हाणी हि वहिट गुणाण तत्य अच्छति । के पुण गुणादि भणिया ? भन्नति नाणादिया होति ॥३॥ कालातीते दोसा सलओं होइ अच्छमाणाणं । तन्हा उग चिहिना अतिरित्तं दुनिहकालम्मि ॥ ४॥ नित्य अणुकंपाए मिहिणं तो णाम ण बसहा तुम्भे । भणति ण होति एवं मा साहूर्ण धरणभेदो।..१६९॥५॥ चोदेवाहारादिसु सुज्जतिसूऽपि णाम जं तीए। वत्य ण चिह ताणाम णित्यत्तेण गहियाणं ॥६॥मा पाविदिति धम्म गिहिणों साहुण कासुराण । इच णिश्यता जापानलोगणुकंपया तेसि ॥७॥मा इन्चसओ होही अनुवासे णिचसाहदागे। इस अणुकंपिहलोए मगइन 3 एक्मादीहिं ॥८॥मा होस चरणभेदो पुण्यातीतमि संबसंतागं। अतिचिरसंवासेणं सिणेहमादीहिं दोसहिं ॥९॥ एसो उकालकप्पो एवं चक्लाणिजओ समासेणं। अहणा उनहितार्थ गुरुपएसेण गोच्छामि ॥२४८० ।। उपगेहति उपकार करे उपहीयतेण उवही छा कि कारणं तु उवही उरिसिओ? भण्णती सुणसु ॥१॥जीवाणऽणुग्गहहा एवं खलु वनिमओ इदं तित्थे। काऊणऽणुग्गाहपद परिणीयपदे जमाचो उ॥२॥ रसबावणुकंपट्टा अगणीमादीण चेच रक्सट्टा। असहमऽणुकंपट्टा य उवहीगहणं जिणा ति ॥३॥ आह जहऽगुग्गहवा नत्यादीगहण देसिब समए। तो जसणं कहा पीपरिमोगो गाऽनुग्णाओ?॥४॥ भष्णइ पपिचि कम्हिऽवि कम्हिऽपि पुण होति अपविती उसंजमपडिणीयत्ता मेहुणमादीण नानुष्णा ॥ नाणचरणद्विषागं उचम्मा क. पनि नाणचरणाणं। बाहारउबहिसेजा तेण उ उबहित्तर्ण ति॥६॥ जस्स पुणोचहि गहिना उपपातकरी उ तस्स उवपाती। कह उवधान करेती? आरित्तगहो य मुच्छाय ॥७॥ संघरमागो गेहति अतिरितं उवहिजो मवे समणो।वण्णादिजुते मुच्छति इडाहारे धुवस्सेनं ॥८॥ एतेमु अगिद्देसु य जो दुस्मति से करेड उवपातं । नागादीणं विष्हं तम्हा ने रजिए हेतू ॥९॥जो जात्य जदा जाहियं उपही परिभोगओ अणुण्णाओ। सो तत्थ अगइचारो अणणुण्याते चरणभेदो ॥२४९०॥जह सिंपूओ कप्पो ओराल्या उणिया अणुण्णाता। पि. सियादीण व गहणं खीरावीणं चऽगुणातं ॥१॥अतिहिमदेसे बनहा कारणितमताण सिसिरकालग्मि। परिभुजताण य को विवाद? चरने अणुक्याती ॥२॥ साक्सियादिएसं | एतेसि व मोतु पडिसेहो। पडिसि परिभोग कुगमाणो मंजती चरणं ॥३॥ नाणेपि उ सो जिंदा उबदेस जेणण कुणती तस्स। जं नाणपुर सण सणभेडोचि तो तेणं ॥४॥ निवविक्सितमतरताविएस कनेयु होइ परिभोगो । समणुचाजो कसिणावियाण इहरा अणुबमोगो ॥५॥ एसो उ उबहिकप्पो अहुणा सभोगकण पोछामि । तस्स पसाहणहे. गाहामुत्तं इमं आइ॥६॥ नवि राया गवि दोसा संभोगविही उ पग्णिओ सुते । नाणचरणद्वियार्ण मणिय सुवनाणपुरिसेहिं.:.१७०॥७॥ रामेण समुंजति सिणेहओ तेहिं सदि ११११ पवकल्पमाष्य -
मुनि दीपरमागर
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