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आगम
(३८/२)
“पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
----------- भाष्यं [०२९८] -------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं
प्रत सूत्रांक [०२९८]
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दीप अनुक्रम [०२९८]
पुरित अपुमे या इय पुरिसणसे या एकेके होति वेदतिगे ॥ ८॥ सो पुण गपुंसगो तू सोलमहा होति तू मुणेयत्रो। पंडग कीचे वानिय कुंभी ईसाल साउणी य॥९॥ तक्रम्मसेवि पक्खियमपक्खिए नह सुगंधि जासित्ते। विदित चिप्पिय मंतोलहीहि वा उपहए जे च ॥३०॥ इसिसन देवसने एतेसि पावणा इमा होति। नहियं पंडो तिषिहो लक्षण दुसी च उत्पाजो ॥१॥ पंदगालग जस्सा जायाअयमेवणेण तु गहा(गहोग।सोलावणतो पंडो दूसीपंद्रो इमोहोति ॥२॥ दृसियवेदो बुली दोसुय वेदेसुसज्जते दुसी दो सेवइ वा वेदे दोसु च सिनदी दसी ॥३॥ चूसेति सेसए ना सो दुह आसित्तो सह य तृसित्तो। सायो आसित्तो अणवबो होति ऊसित्तो ॥४॥ उपपाओविय दुविहो वेदेय नईव होनि उपकरणे। वेदो। बपायपडो णमो तहियं मुगेयत्रो - पुर्वि दुधिष्णाणं कम्माणं असुइकलविवागाणं । उदया हम्मति वेदो जीवाणं पानकम्मा ॥६॥जह हेमकुमारो तू इंदमहे गालियाणिमित्तेणं। मुच्छिय गिद्धो अतिसेवणेण वेदोवधान मतो...३३॥ एपस्स विभास इमा जह एगो रायपुत्त वष्रेणं । वापियवरहेमसरिसो तो से णामं कतं हेमो । सो अमदा कदाई इंदमहे बंडळाणपत्ताजो। णगरस बालियाओ पुष्पादीहत्य बठूर्ण ॥९॥ पुच्छति सेवापुरिले किं एया आगना उइदति । ते बिती सोही सम्मतिता परस्थीबो ॥३१॥ तो बेई एयासि इंदण वरोहु दिण्ण अहमेव। पेसूर्ण ता ते सुद्धा अंतेउरे सम्बा ॥१॥तो गागरणा राणो उपडिता मोयवेह एनाउ। तो बेति मम पुत्तो कि जामाता गरबे में? ॥२॥ तो वासु अतिपसलस तस्स पिम्मालियसनीयस्स । वेदोषघातो जातो सागारीय ग उदेति ॥ ३॥ तो नाहिं रुसियाहि सो अदागेहिं पातितो गाहे । वेदोषपातपंडो एसोऽभिहितो समासेज ॥४॥ उवहत उवगरणम्मी सेनातरमूणियाणिमिनेर्ण । तो कविलमरस बेदो बलिमो जातो दुरहियासो...३४॥५॥ उपहयाउनमरणम्मी एवं होजा पासवेदो उादोसा स वेदिण्ण धातुंग ना गायमिर्ण ॥६॥ जह पदमपाउसम्मी गोणो धातो तु हरियगतगस्स। अणुमनति कोटिचं वागणं दुम्मिगंधीयं । ७॥ एवं तु केह पुरिला मोनूणं भोयणं पतिबिसिहूं। नाव ण भवनि नुहा जायण पहिसपियो वेदो ॥८॥ सम्वणसियउवधायपंडगं सिविहमेव जो दिक्खे । पच्छित सिमुवि मूलं नोसा नाहियं इमे होति ॥९॥ नरुणादीसिह गओ चरितसमेदिणी करे चिकहा। इस्थिकहाउ कहित्ता तासि जवणं पगाखेड ॥३२०॥ समलं जानिलगंधि खेदो य ग ताणि आसार होति। सागारियं णिरिक्त्वा मलिनु हत्यहि जिघड य॥१॥ पुण्ठति सोऽपि याप्यो पपुंसगो णविति अतिमहं एवं। आसय पोसे यहा दुहाचि सेवी अहं व ॥२॥ एवं पुच्छित तओ अहनामि अपचिऊन सह सेने। गेहेजा ही समण नेण कहेयन तो गुरुमं ॥३॥ छंदिय कहिप गुरूगं जो न कहेति कहिएविय उबेहि । परपक्स सपकले बाज काहिति सो तमाचशे ॥४॥ सोसमणसुविहिएहिं परियारं कल्पती | अरुममाणो। तो सेपित पपत्तो गिहिणी तह अण्णतित्थी य॥५॥ अजसो व अकित्ती व तंमूलागं नहिं पश्यणस्म । तेसिपि होति संका सम्ये एसारिसा माणे ॥ एरिसमेनी एतारिसारि एनारिसो परति सदा । सो एसो गरि अपणो असंखई पोडमादीहिं ॥ ॥जम्हा एते दोसा तम्हा पवि डिक्समिजो पंडोह। एसो पंडोऽमिहिओ एलो किलिय पवारसामि
किलिपस्स गोष्णणाम तदभियानो कलिजए जस्स। सागरिथ से गलती किलियोनी भण्णती तम्हा ३९॥ सो हणिसम्ममाणो कम्मदएणं न जायए तहओ। सम्मिपि सो र गमो पनिाने वजह पंडो ॥३३०॥ उबएण बानियस्सा सविगारं जाण होवि संपनी वणियअसंवृद्धित दिईतो जत्यिमो होति..३५॥१॥णाचारूदो नचणितो दठं आसबुराममाजिओचतिभा पुरिहि माहिति धारिमाणोऽपि ॥२॥ एखो तु बानियों हू अलमतो सेक्नुि अणाया। काठलरेण सोऽपिर मसगण परिणमति ॥ ३॥ एपिहो य होति कुमी जानीकभी य वेदकभी या जानाकुनी वायण्डिो हुसो बाएं दिक्लाए ॥४॥होइ पुण वेटकमी असेपो सुनाते सि सागरियं । सोऽविय गिरुडसपी पसगनाएं परिणमति ॥५॥बेदकरता ईसालमो र सेविजमाण बढ़ना न पाएती धास्तु जिसम्भमाणो भय तसितो ॥६॥ सरणी उकडवेजओ चहओर अभिक्स सेमए जो नासोऽविध पियवाची ग सगलाएं परिणमति ॥ ७॥ मम्मसपि जो खलु सेवियन र लिहति खाणच । सोऽपिय जपलियरतो गसगताएं परिणमति ॥ ८॥ एगे पसे उदी एगे पासम्म जस्स अपोkal नु। सो पासपक्खिओह सोवि णिस्दो भये अपुमं ॥९॥ सागारियस्स गचं जिंपति सोगंधिो भवे स खलु। कान्तरेण सोयी अन्लभनो परिणमे अपुर्व । ३४०४ विगह अप्पपेसिथ अच्छति सागारियसि आसतो। जब से भावोचसमो अलमतो सोवि अघुम भवे ॥१॥ गालिय दो भाऊगा जन्ससो बदिओ मुणेयच्यो। चिप्पिय बालस्सेव तु चिप्पिन चिराहिनो जस्स २ मतेगुवातवेदो अवापी जोसहीहि जस्स भवे । इसिसन्तदेवसचा इसिगा देवेण वा सता ॥३॥ बहियमादि उवरिमा उण गपुंसा हानि भवणिजा। जदि पडिसेविण दिक्सेजह गनि पडिसेचि तो विक्से ॥४॥ आदिडेस इसस्मुवि पप्याक्तिोर पापए मूलं। जो पुण पवायेहा बदते तस्त पागुरुगा | जे पुण उत्तुचरिमगा गव्यावितसा पागुरू तेसु । बरमाणेऽविध गुरुगा कि बदतेसो इमं मुणसु ॥६॥ पीपुरिला जह उदयं धरिति माणोजनासनियमेहि । एमपुर्मपि उदय घरेश अदि को गहि दोसो ? ॥७॥
मुनि दीपरवगागर
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