________________
आगम
(३८/२)
प्रत
सूत्रांक
[०३४८]
दीप
अनुक्रम [०३४८]
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित ......
“पंचकल्प”
-
• छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
आयं (०३४८]
.....
....आगमसूत्र - [ ३८ / २ ], छेदसूत्र
अहवा ततिए दोसो जायति इयरेसु किं न सो भवति । एवं तु नत्थि दिखा सवेदगाणं ण वा तित्त्वं ॥ ८ ॥ भणति श्रीपुरिसा खलु पत्तेयं दोसरहियठाणे वितीय पुण कहि ष्मति दोषी दोसा ॥ ९ ॥ संवासफासदिडीदोसा हू तस्स उभयसंवासे अप्पत्नगदित जह राय मनो अवारंतो ॥ ३५० ॥ एवदितो अहवा जह बच्छ मानद। अभिलसती मायाविय वच्छं दट्ट्ण पण्डयति ॥ १ ॥ जं वा खयं द हिलासो होति अण्णस्स सागारिथादि द एवं पुंसे भये दोसा ॥ २ ॥ तम्हा हु दिक्सा एवं भाऊणमेत दोसगणं वितियपदे दिक्खिना हमेहिं अह कारणेहिं तु ॥ ३॥ असिवे ओमोदरिए रायद्दु भए व आगाटे गेलन उत्तिम गाणे तह दंसण चरिते ॥ ३६ ॥ ४॥ रायये ताण विस्स चैव गमणा वेजो व समं तस्स व तप्परसति या गिलाणस्स ॥५॥ पडिचरगस्सऽसतीए एगागी उत्तिमहपडियण्णे अहवानी अ(कु) सहाए नेपा दिवसे ॥ ६॥ गुरु व अप्पयो वा गावादी गिन्हमाणे तपिहिति अचरणदेसा णिते तप्पे ओमासिवेहिं वा ॥ ७॥ एतेहि कारणेहिं जगादेहि तु जो तु क्खिामे पहाड़ी सोलस कपजविचिणट्टाए ॥ ८ ॥ तस्स विही होति इमो दिक्खितस्स कारणजाए। सो पुण जाणिमजानी जाणति जाणी तहा नतिओ ॥ ५॥ गवि कप्पति दिखे तमुपवेति अह एवं कप्पति दिक्खा नाणादिविराहना मा ते ॥ ३६० ॥ जो पुण न जाणएवं तस्स विही होतिमा करेया जणपथमताएं जाणतम जाणए बाचि ॥ १ ॥ कटिप मंड हिली कतार र लय परमतं पाढे धम्मक सन्नि राउल पहार विच कुजा ॥ ३२॥ कटिपड़ मंड छिली कीरति ण विधम्म अम्ह देवासी कतरि खुरेणऽणि हाणी एकेक जा लोओ ॥ ३ ॥ लोएवि कए पच्छा भिक्खुगमादीमताई पार्टिति संषिय अणिच्छमाण पाढिती उलिकवा ॥ ४ ॥ तामिविच्मिा चम्मका तावि परतदिति ताहे ससमपि ॥५॥ पिय अनिच्छमाणे उकमतो तस्स दिजए । अण्णष्णमुत्तपापपुवावर असंपदं ॥ ६ ॥ पीयारगोयरे रसंजुतो रति दुरि गाहे ममं ततो घेरा जलेग गाहिति ॥ ७ ॥ रग्गकहा विसयाण दिणा उणियिणे गुत्ता चुकखलितमि बहुसो सरोसामिया ॥ कनकता से धम्म कहिति चाहि लिंगमेयति मा हुण दुए िलए अनुष्ठता तुज्झ गो दिवखा ॥ ९ ॥ इव पष्णविओ संतो जड़ मुंचति लिंग तो उरमणिलं अह विमुंचति ताई सिजति सो इमेहिनी ॥ ३७० ॥ सष्णि लरकमितो वा भेसे कओ इस किंचियो तेसासति रायकुले यदि सो बहार मग्गिजा ॥ १ ॥ एतेहिं दिखओऽहं जतिविथ लोगो पाले कोति । जह एते तो ते विली दिक्लेमो ॥ २ ॥ अनाविषि एहिं चैव पडिसेह किं वदीयं ते? उलिहारी कति कत्थ जई कत्थ छलिताई ॥ ३ ॥ पुत्रावर वेगकरं सततमविरुद्धं पोराणमदमागमासाणियतं वति सुतं ॥४॥ जे मुत्तगुणाऽभिहिता विरीयाई गाहिओ पुद्धिं तेहिं चैव विवेगी जह एरियं भवति मुत्तं ॥ ५ ॥
[५/२] " पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं
बहुपमिवाचिचम्पिए। बोसिरणं बोच्छामी बिहीए जह कीरए तस्स ॥ ६ ॥ निष्णकहाओ भई चिंतीण पटति इदं तु एरिसयं परतिथिगादिपजदि बेती तुज्झ समर्पति ॥ ७॥ इय होती मोतृण निम्मतो मिक्समादिलक्खे भिक्खुगमादी छोई विपलायंती पुणो तत्तो ॥ ८॥ कावालिए सरकले तमादिवसमा किंतु सन्ति ॥४९॥ तिचिहो होति य जो भात सरीरे य करणजड्डी य भासा जडो उहा जल एल मम्मण दुमेह ॥ ३८ ॥ ३८० ॥ जह जलवुड मासति जलमूत्र एव भास अपने जह एलगोत्र एवं एलगमृगो बलबलेति ॥ १ ॥ मम्मणजी बोडखले बाया हु अविसदा जस्स दुम्मेहस्सन फिंची पोतस्थापि ठाय हु ॥ २ ॥ दंसणणाणचरिते तवे व समिती करणजोगे य उवणि मेहति जलमृगो एलमूग व ॥ ३ ॥ णाणादिऽडा दिखा भासाजड्डो अपचलो तस्स सो व बहिरोपणियमा माण उड्डाह अहिकरणं ॥ ४॥ तिविहो सरीरजड्डी पंथे मिक्ले तहेव वंदणए एतेहिं कारणेहिं सरीरज दिलेजा ॥ ५॥ अद्धा पतिमंत्री मिक्लायरियाए अपरियो उस्सासपरकम अहिअग्गीउदगमादीसु ॥ ६॥ आगाडगिलाणस्स य असमाही वाव होल मरणं वा जडे पावि लिए अपने य भवे इमे दोसा ॥ ७ ॥ सेदेण कसमादी कुछ दोसा णत्थि गलओ य चोरो गिदिया व जनवादी ॥ ८॥ गे सरीरजड्डे एमादीया हवंति दोसा तु तम्हा तं गनि दिवसे गच्छ महले वगुणाए ॥ ९ ॥ इरियासमिईभासेसणासु आदाणसमिइगुती पनि ठाति परणकरणे कम्मुद करणजी ॥ ३९० ॥ जलमूग एलयूगो अतिथूरसरीर करण जड्डो व दिक्संतस्से गुरु से माल ॥ १ ॥ भासा जड्डे मम्मण सरीरजइट च णातिपूरं च जावजिय परिय करणे जढं तु उम्मासे ॥ २ ॥ मोतुं मिला दुम्मे वादि पाटि उम्मासे । तासेदुम्मे जीऽविय करणम्मि सो जड़दो ॥३॥ छण्हुवरि तेसि दोहषि आयरिओ अन्य गाहें उम्मासा पच्छा अण्णो ततिओ सोऽविय उम्मास परियई ॥४॥ जोऽयि तं गाती सिस्सो तस्सेव सो पति ताहे । तहविण गिव्हे जदि है कुाणसं विचिणता ॥४५॥ दुविहो य होति को अभिभूओ चे अभिभूतो अभिभूतोऽविय दुवो लिनिमंत्रणाको १०७१ मायं -
मुनि दीपसागर
~ 11~