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आगम
(३८/२)
“पंचकल्प” - छेदसूत्र-५/२ (भाष्य)
------------ भाष्यं [०००१] ----------- मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित...........आगमसूत्र - [३८/२], छेदसूत्र - [५/२] "पंचकल्प" संघदासगणिक्षमाश्रमण रचितं भाष्यं
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यसतो नाम तोयं भावाहुति
प्रत
ज मन्नति तस्स कारतो लो नामसगलमतं ॥२५ चरिमो अवधिमा
सूत्रांक [०००१]
दीप अनुक्रम [०००१]
श्रीपंचकल्पभाष्यम्
दामि मदमाई पाई परिमसगलसुपनानी। सुत्तत्यकास्ममिसि दसाण कणेयवहारे।..व्यास्येव ॥१॥कर्षति णामणिफणं, महत्वं बालकामतो।
पारमितहमरस मत्तीच, मंगलहाएँ संघति ॥२॥ नित्यमरणमोकारो सत्यरस आइए समक्खाओ।ह पूण जेणापर्ण मिशद तस्स कीरतित ॥३॥ सत्यागि मंगलपुरस्सराणि सुइसवणमहणधरणाणि । जहा मति जति व सिस्सपत्तिस्सेहिं पचयं (खाई)॥४॥ मत्ती व सत्यकनारि तत्तो (तं कय) उपयोगगोरख सत्ये। एएण कारणेणीत आरी गमोकारो ॥५॥ बदि अभिवादयुतीए सुभसदो मेगहा तु परिगीतो। वंदण पृथग ममणं पुणणं सकारमेगवा ॥६॥ महम्ति संवरन्ति यतात्यो जत्थ (स्स) सुंदरा बाई । सो होति भरमा गोणं जेणं तु बालते ॥७॥ पाएर्ण लक्सिजाइ पेसलमाबो तु बाजुबलरसा उपवनमतो जाम तस्सेयं भरपाहुत्तिदा अग्यवि भरवाह बिसेसणं गोल(व्यगण पाणी असि पाविसिट्टे (पिय सिदे)विसमर्थ चरिमसगलमुतं ॥९॥ चरिमो अपच्चिामो खलु पोरस पुत्रा उ होति सगरमसुतं । सेसाण पुलासमा सुत्तका जायणमे। यस्स ॥१०॥किण कर्य सुरज भन्मति तस्स कारतो सो उ । मणति गणघारीहिं सबसुर्य र पुत्रकत ॥ ११॥ तत्तोचिय गिजु अणुमहहाय संपवजातीला सो(तो) सत. कारओ खल स भवति इसकपपचहारे ॥१२॥ देव भगत बहुमासुभहसाओमद पक्यणहियमुय(ह)केतुं सुषणामपभावगं धीरे।..शालपुभाय ॥१३॥ पदिसडों पुजमणिमओ तरितीनपणामगोनहिराइसरियाद गुण भगो सो से अरिथति तो भगचं ॥ ४॥ मई कहाणति य एगह तप सुचायं जस्स। सो होति सुबहभहो सोमनभरी सुमहोति ॥५॥ | खीरासयमादीणित सुभाणि महाणि तस्स तुबहुणि। साउद परोए मह तो सबतोमहो॥६॥ आमोसहादिहतह परलोए हॉवडणुत्तरमुरादी। सुहप्पत्ती बतओ ततो य पच्छा यशार्ग ७॥ मातिति महमदचा माई गानादीएहिं सो जम्हा । सो होति भरणामो कुणेति महाणि मा जम्हा ॥८॥ पश्यन वारसंग तस्स हितो कोतसोमिति। संपो त पयर्ण हितोपदेस अतो तस्स ॥९॥केतृसदो उसिए उसिय तुम तु तस तु महंतुहलोए परलोए सो भगवं होति परमसही ॥२०॥ वाषणय पभाषणया सतणाणगणा AI बजे बदति लोए। विउसपरिसाएं मको सुतगाणपभाषणा एसा ॥१॥ किं कारण तस्स कत्रो मइया मत्तीय तू णमोकारी । जम्मा तेणं जूढा अम्ह हियाय सुत इसे ॥२॥ आया-11 रसा कप्पो पहारो णयमपुरणीसंबो। चारित्तरक्सट्ठा सूयकामुपरि ठपिता ॥३॥ अंगदसा अण्णावि उपासमादीण तेच उ विसेसो। आयारवसा उहमा जेणेश्य पग्णियाऽऽवारा ॥४॥ वसकापावहारा एगसुतासंध केहाति । केई व दसा एक कप्पापहार बीर्य तु॥५॥ स्यणागस्थानीयं गवर्म पुर्व तु तस्सा नीसन्दो। परिमाल परिस्साचो एते दसकम्पपवहारा ॥६॥किं कारण शिजूदा चरित्तसारस्त रक्खगडाए। खलियरस सहि सोही कीरइ तो होवि निस्वयं ॥७॥ सूपकटुवारि ठविता जम्हातू पंचयासपरियाए। सूयकामाहिजति न तो जोग्गो होति सो तेसि ॥८॥ अनुकंपाऽनुच्छेदो कुसुमा मेरी तिमिच्छ पारिच्छा। कप्पे परिसा यतहा विद्वता आदिसुत्तम्मि॥९॥ ओसप्पिणि समणार्ग हाणि पाऊण आउन गबनाना होहितपमहकरा पुषगतम्मी पहीणमि ॥३॥३०॥ खेलस्सय कालस्स य परिहाणि गहनधारणार्ण च । बलपिरिए संघयणे सदा उमारती ॥ १॥कि सेनं कालो वा संकृयती जेण तेण परिहाणी। भनाइन संकुयंती परिहाणी तेसि तु गुणेहिं ॥२॥ मणियं तु समाए गामा होहिंनि त मसाणसमा। इस कारण (खेने) गुणहाणी कालेविन उहोनिमा हाणीसमए समए णता परिहार्यते उमणमादीया । बादीपजाया जहारतं तत्तिय चेप ॥ ४ ॥ समजनभावेन साहुजोग्गा मामा सेलाकाटेविय इग्नि-5 क्सा अभिवसन होति उमरा य॥०२॥५॥ दुसमजणुभावेण व परिहाणी होति ओसाहिबलाणं । तेणं ममुपागंपितु आउगमेहादिपरिहाणी 8.30 संचयपिय हीया ततो यहाणी य चितिथलस भवे। पिरियं सारीख सपिय परिहानि स चल०४ाहायनिय सबाओ गहणे परिष(ब)दणे य मणुयाम । उच्छाहो उजोगी अणालसतंचएगहा:
ल०५॥८॥इय गाउँ परिहाणि अणुग्गहहाएँ एस साहूर्ण। णिजूढऽणुकंचाए वितहि इमेति ॥९॥ पगरणचेडणुकंपा बढविपददेहि होयगारीणं । जहओमें बीयभत्तं पणा बारिणं जायस।. ॥ एवं अन्यत्तचिय पुत्रगत केडमा हुमरिहति। तो उदारिकम ततो हेवा उत्तारियं हि ॥१॥मा यह मोच्छिनिहिनिपाणणभोगोजितेण मि।
बोमिठो बहु नम्मी चरणाभापो भोजाहि ॥२॥ कह पुण तेण गहेतु दिग्णाई वरिथमो तु विद्वतो । जह कोड दुसरोहो सुसुरभिकुसुमो नुकम्पामो ॥३॥ पुरिसा के असतात आरोदण कुसुमगहणा। तेसिं अणुकंपट्टा कोइ ससत्तो समारो॥४॥ धेनुं कुसुमा सहमहणहेतुर्ग मंपिउंदले नसि। तह चोहसपुतक जारूदो महवाहू ॥५॥ अणुकपडा गबिर्ड।
सूपमापरि ठसे धीरो । पुष सतोचएसेण चेच माहित ण सेण्डाए ॥६॥ अन्याह गहिए दोलो असाहस होति भागमाईन । केसवमेरीणात पासात पुत्रसामाए ॥ अना SI लिमिच्योतु ऊपहिय वापि ओलह विजा। तेहिं तु (तहिं न ) कजसिदी सिद्धी विवरीयए भवति ॥ ८॥ पारिच्छा परिच्छिन पापमादी दलनि जोगारसा परिणामादीण तपास गमारीहि जानेहि।..४९॥ पारिच्छ आदिसुले पुर्व मणिया तु जाउ विहिसुते। सेठपणादी परिसा पूरताई य भग्निहिती ॥५०॥ परिसावार मणित कापहार कमेण (२६) पपत्रकापमाबY
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