Book Title: Yogshastra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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पंचमप्रकाश.
४०५ अवशेषांगुलीपर्वा, एयेवशेषतिथीस्तथा। पंचमी दशमी राका, पर्वाण्यंगुष्ठगानि तु ॥१३॥ अर्थः- अंगुगना पर्वोमां पांचम, दशम, अने पुनम कल्पवी, तथाबाकीनी श्रांगलीनां पर्वोमां बाकीनी तिथि कल्पवी. तथा,
वामपाणिं कृष्णपक्ष, तिथीस्तढच्च कल्पयेत् ॥ ततश्च निर्जने देशे, बपद्मासनः सुधीः॥१३॥ प्रसन्नः सितसंव्यानः, कोशीकृत्य करद्वयं ॥
ततस्तदंतः शून्यं तु, कृष्णवर्ण विचिंतयेत्॥१३३ ॥ अर्थः- तेवीज रीते डावा हाथप्रत्ये कृष्णपदनी तिथिउँने कल्पवी; पबी माणस विनानी को जगोपर जश्ने, बुद्धिमान् माणस पद्मासन वातीने, प्रसन्न थश्ने, तथा सफेद डुपट्टो राखीने, तथा बन्ने हाथोनो संपुट करीने, तेनी अंदर शून्य एवो कृष्णवर्ण चिंतववो. तथा,
उद्घाटितकरांनोज, स्ततो यत्रांगुलीतियो॥
वीदयते कालबिंदुः स, काल इत्यत्र कीर्त्यते ॥१३४॥ अर्थः- पनी ते हस्तकमलने उघाडतां थकां, ज्यां ांगलीनी तिथिमां कालबिंड देखाय, तेनुं नाम अत्रे काल कहेलु .
हवे ते कालज्ञानमां बीजा उपायो कहे . तुतविण्मेदमूत्राणि, नवंति युगपद्यदि॥ मासे तत्र तिथौ तत्र, वर्षांते मरणं तदा ॥ १३५॥ अर्थः- बीक, विष्ठा, वीर्यस्राव, तथा मूत्र, जो एकीज वखते थाय, तो ते मासमां, ते तिथिमा, अथवा ते वर्षने अंते मृत्यु थाय.
रोहिणीं शशनलदम, मदापयमरुंधतीं॥
ध्रुवं च न यदा पश्ये, हर्षेण स्यात्तदा मृतिः॥१३६॥ अर्थः- रोहिणी नक्षत्रने, चंजने, गयामार्गने, अरुंधतीने, अने ध्रुवने जो न जो शके, तो एक वर्षे मृत्यु थाय. तथा,
स्वप्ने स्वं नयमाणं च, गृध्रकाकनिशाचरैः॥ नामानं खरोष्ट्राद्यै, यंदा पश्येत्तदा मृतिः॥१३७॥

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