Book Title: Yogshastra
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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योगशास्त्र. वली प्रकारांतरथी ते विद्या कहे . गुरुपंचकनामोत्था, विद्या स्यात् षोडशादरा ॥
जपन शतद्वयं तस्या, श्चतुर्थस्याप्नुयात्फलं ॥ ३५॥ अर्थः- गुरुपंचक केतां पंच परमेष्टिनां फक्त नामरूप शोल अक्षरोवाबी विद्या थाय, अने तेने बसो वार जपवाथी उपवास, फल मवे. तथा,
शतानि त्रीणि षड्वर्ण, चत्वारि चतुरदरं ॥ पंचवर्ण जपन योगी, चतुर्थफलमश्नुते॥४०॥ अर्थः- “श्ररहंत सिद्ध” ए ब अक्षरनी विद्या त्रणसें वार जपवाथी, "श्ररहंत" ए चार अक्षरनी विद्या चारसोवार जपवाथी, तथा "थसिआउसा” ए पांच अक्षरनी विद्या पांचवार जपवाश्री योगी उपवासर्नु फस मेलवी शके. तथा,
प्रत्तिदेतुरेवैत, दमीषां कथितं फलं ॥
फलं स्वर्गापवर्गों तु, वदंति परमार्थतः॥४१॥ ' अर्थ:-- आमनुं था फल तो फक्त प्रवृत्तिना हेतुरूप कयुं , पण पर___ मार्थथी तो तेनुं स्वर्ग श्रने मोक्षरूप फल ले.
____ वली प्रकारांतरथी पदमयी देवता विषे कहे जे.
पंचवर्णमयी पंच, तत्व विद्योद्धृता श्रुतात् ॥ .. अन्यस्यमाना सततं, नवलेशं निरस्यति ॥४२॥
अर्थः- "क्षा होरक्षाक्षः असिया उसा नमः"एवी रीतनी पांच श्रद रोवाली, तथा पांच तत्वोवाली, तथा वादनामना पूर्वमाथी उकरी कहाडेली, विद्या हमेशां अभ्यास कराती थकी थता क्लेशोने दूर करे . तथा, __ मंगलोत्तमशरण, पदान्यव्यग्रमानसः॥
चतुःसमाश्रयाएयेव, स्मरन् मोदं प्रपद्यते ॥४३॥ अर्थः- चार मंगल, चार लोकोत्तम, श्रने चार शरण तेनुं स्मरण करतो थको प्राणी मोक्षपदने पामे बे. तथा, . मुक्तिसौख्यप्रदां ध्याये, विद्यां पंचदशादरां ॥
सर्वज्ञानं स्मरेन्मंत्रं, सर्वज्ञानप्रकाशकं ॥ १४ ॥

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