Book Title: Yogshastra Author(s): Dharnendrasagar Publisher: Buddhisagarsuri Jain Gyanmandir View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्राक्कथन विश्व में प्रचलित सभी धर्मों में योग का स्थान किसी न किसी प्रकार से अवश्य है । जैन दर्शन में भी योग की अपनी अलग महत्ता है । सभी तर्थंकर महान् योगी थे । योग के जरिये ही उन्होंने परम पद प्राप्त किया । I Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन - शास्त्रों में योग का विशद् विवरण मिलता है । प्राचार्यं. हरिभद्रसूरि हेमचन्द्राचार्य ने अपने योग-सम्बन्धित ग्रन्थों में बहुत सुन्दर ढंग से योग की प्रक्रिया पर प्रकाश डाला है । आज का मानव भी योग-रहस्यों को समझकर अपने जीवन का उत्थान कर सकता है, परन्तु वे ग्रन्थ सर्व साधारण या मुमुक्षुत्रों को उतना लाभ नहीं दे सकते, कारण कि आधुनिक वातावरण और उलझाव उसमें बाधक होते हैं- राजेन्द्र भवन १-११-१६८७ खरादियों का बास जोधपुर ऐसी परिस्थिति में सर्वसाधारण पाठकों की दृष्टि को ध्यान में रखकर प.पूज्य पन्यासजी म. सा. ने जो उन कठिन विषयों को सरल सुबोध भाषा एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से प्रदर्शित किया है यह मुनि श्री की विद्वता का तो परिचय देती है पर एक नया आयाम भी प्रकट करती है । पन्यासजी म. सा. भविष्य में भी ऐसे ही सुबोध गागर में सागर वाली छोटी-छोटी लेकिन गंभीर साहित्य-रचना कर हमें लाभान्वित करेंगे, ऐसी हो हम प्राशा रखते हैं । For Private And Personal Use Only मुनि जगतचन्द्र विजयPage Navigation
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