Book Title: Yogshastra
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Lehar Kundan Group

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Page 2
________________ ये तीर्थनाथागमपुस्तकानि, न्यायार्जिताथैरिह लेखयन्ति । ते तत्त्वतो मुक्तिपुरी निवास-स्वीकारपत्रं किल लेखयन्ति ।। जो तीर्थंकरों के आगम पुस्तक न्यायद्रव्य से उपाजित द्रव्य से लिखवाते हैं, प्रकाशित करवाते हैं, वे तत्त्व से तो मुक्तिपुरी में निवास का स्वीकार पत्र लिखवाते हैं यानि सर्टीफिक्ट प्राप्त करते है। यादृशस्तादृशो वापि पूजनीयः पिता सताम् चाहे जैसे हो पिता वे पिता सज्जनों के लिए पूजनीय ही है। सर्वलोक विरुद्धं तु त्याज्यमेव यशस्विनः। यशस्वी मनुष्य को लोकविरुद्ध प्रवृत्ति को छोड देना चाहिए। स्वप्रशंसोवाऽन्यनिन्दा सतां लज्जाकारी खलु। 'सज्जनों को स्व प्रशंसा और परनिन्दा में लज्जा का अनुभव होता है। पाखण्डिनां हि पाण्डित्यं प्राकृतेष्वेव जृम्भते कहे जानेवाले साधुओं के पांडित्य का अबुध समाज में ही आदर मिले।।

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