Book Title: Yashojivan Pravachanmala
Author(s): Pradyumnasuri
Publisher: Shrutgyan Prasarak Sabha

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Page 109
________________ आचारंग भगवती चौद पूर्वका पाठी वचन खलाय जावे तो साधु तिसकी हासी न करे हीले नहीं, किस वास्ते नहीं हीले? हम छमस्त छे, उपयोग दिया विना भाषा निकल गई है तिम उपाध्यायजी महाराज इस कालमें भारी पंडित होवे छ । श्री उपाध्यायजी महाराजने तो ३६३ पाखंडिका तथा जैनी नाम धरावे छे. नाम मात्र संघ कहावे छे तेहना पिण उपाध्यायजीने तो घणा स्वमत परमतका निरणा किया है ते पुरुष आत्मगवेषी दिसा है तथा कोई कहे हैं उपाध्यायीको तपेगच्छका मोह दीसे है और गछानाल द्वेष दीसे है एह बात मिले नहीं. ते पुरुष ऐसे मत कदाग्रही नथी दीसत. ते पुरुष भले पखको निंदणेवाले दीसते नहीं तथा भुंडे पखको सराहणेवाले पिण सम्भव नथी होते ते पुरुष गुणग्राही दीसे है। श्री उपाध्यायजी महाराज जुठा कदाग्रह करणेवाले दीसते नथी ।" (भाश: मु२३व. अने. मार्श 200२' पृ. २५-२६) "...मेरेको तो उपाध्यायजी परम उपकारी पुरुष दीसे हैं. परन्तु मेरेको प्रतक्ष ज्ञान नथी । उपाध्यायजीके ग्रंथोकी रचना देखके मेरेको परम उपकारी उत्तम पुरुष दीसे हैं. तत्त्व तो केवलज्ञानी जाणे । मेरेको महाराजजी इस भवमें मिले नथी । परभवका सबन्ध तो ज्ञानी मिलसे तब पुछराँ. श्री उपाध्यायजीने सौ ग्रन्थ बणाया है इसी लोकाको पासों मैने सुणा है. तिना ग्रन्था विचो मैने अध्यातमसार १. द्रव्यगुणप्रजायका रास २. ज्ञानसार ३. देवतत्त्वनिर्णय गुरुतत्वनिर्णय धर्मतत्त्वनिर्णय ४. साडातिनसे गाथाका तवन ५. देढसे गाथाका तवन ६. सवासी गाथाका तवन ७. चौवीसी ८. वीसी ९. समाधितन्त्र १०. अढारपापस्थानकी सझाय इत्यादिक ग्रंथ बणाय है तिना बिचो मैने तो पाशो दस ग्रन्थ हरनारायण पंडित पासो वांचे छे. वांच कर मैने तथा हरनारायणने विचारया ।...." । (માર્ગદર્શક ગુરુદેવ અને આદર્શ ગચ્છાધિરાજ' પૃ. ૨૮-૨૯) “....मेरी सरधा तो जसोविजयजीके साथ घणी मिलेह. जिस उपाध्यायजी नाम मात्र तपेगच्छका कहीलाता था तिम मेरेको बी नाम मात्र तपगच्छका कही लाया जोइए. मैने उपाध्यायजीके अणुराग करके Sha ૧ ૦ યશોજીવન પ્રવચનમાળા Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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