________________
में शरीरशास्त्र के अनुसार अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्राव ही शारीरिक एवं मानसिक अवस्थाओं के नियामक माने जाते हैं। ग्रन्थियों से निकलने वाले स्राव शरीर और मन को जितना प्रभावित करते हैं, उतना प्रभावित हृदय, यकृत आदि स्नायु-संस्थान नहीं करते। ग्रन्थियों के स्राव की खोज ने चिकित्सा-जगत् में एक क्रान्ति उत्पन्न की है। इस अन्वेषण ने मानस विश्लेषण एवं शारीरिक विकास की विधा को एक नया आयाम प्रदान किया है।
ग्रन्थियां हमारे शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित करती हैं। थायराइड (कण्ठमणि) शरीर के समूचे विकास को प्रभावित करती है। यदि इसका स्राव सन्तुलित न हो तो आदमी अत्यधिक लम्बा या बौना रह जाता है। थायराइड से उत्पादित रस का नाम थायरेक्सिन है। यह शरीर की पुष्टि, वृद्धि और मन के विकास का घटक रस है। यदि यह रस समुचित रूप से उत्पन्न नहीं होता है तो शरीर कमजोर रह जाता है और बुद्धि तथा मन का विकास नहीं होता। भय और क्रोध के संवेगों की अवस्था में इसका स्राव समुचित नहीं होता फलतः अनेक शारीरिक बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं।
पीनियल की समुचित क्रिया के अभाव में प्रतिभा का विकास नहीं होता। इन ग्रन्थि के स्राव के अभाव में कोई भी व्यक्ति प्रतिभाशाली नहीं हो सकता।
___ एड्रीनल ग्रन्थि का असन्तुलित स्राव व्यक्ति को उद्दण्ड, क्रोधी, दब्बू आदि स्वभाव का बना देता है। अकारण ही भय, चिन्ता आदि की स्थिति इनके अनियमित स्राव के कारण होती हैं।
गोनाड ग्रन्थि से यौन उत्तेजना तथा शारीरिक यौन-चिह्न उत्पन्न होते हैं। कर्मशास्त्र की भाषा में जिसे वेद कहा जाता है, उससे इस ग्रन्थि का सम्बन्ध है। लिंग-परिवर्तन स्त्री से पुरुष अथवा पुरुष से स्त्री हो जाना यह सारा इस ग्रन्थि के स्राव पर निर्भर है।।
___ ग्रन्थियों के स्रावों के परिवर्तन के आधार पर अनेक प्रकार की विभिन्नताएं उत्पन्न होती हैं किन्तु ये ग्रन्थियां या इनके स्राव भी मूल कारण नहीं हैं। इनके पीछे भी सूक्ष्म कारण हैं, जिसको कर्म कहा जाता है। कर्म का सम्बन्ध स्थूल-शरीर से नहीं है। उसका सम्बन्ध सूक्ष्म-शरीर से है। कर्म के पुद्गल बहुत सूक्ष्म हैं। ग्रन्थियों के स्राव कर्म की अपेक्षा स्थूल हैं। कर्म चतुःस्पर्शी पुद्गल हैं, जबकि ग्रन्थियों के स्राव अष्ट-स्पर्शी हैं। चतुःस्पर्शी पुद्गल सूक्ष्म हैं। वे अभी तक निर्मित सूक्ष्मतम उपकरण के द्वारा अदृश्य है।
कर्म एक रासायनिक प्रक्रिया है। जैसे हमारी ग्रन्थियों की रासायनिक प्रक्रिया
१०२ - व्रात्य दर्शन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org