Book Title: Vratya Darshan
Author(s): Mangalpragyashreeji Samni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 211
________________ वालों को अनार्य कहा जाता था। भाषा के आधार पर अनार्य को परिभाषित किया है यह तथ्य आधुनिक आर्य समस्या के संदर्भ में विशेष मननीय है। मैक्समूलर ने भाषा के आधार पर आर्य की अवधारणा को स्पष्ट किया है, वैसे ही प्रज्ञापना की टीका में अव्यक्तभाषा बोलने वाले को अनार्य कहा गया है। इसका तात्पर्य यही परिलक्षित होता है कि जो लोग एक विशेष प्रकार की स्पष्ट भाषा बोलते थे वे आर्य थे जो उस भाषा का प्रयोग नहीं करते थे वे अनार्य थे। यद्यपि उस टीका में भाषा ग्रहण के उपलक्षण से अन्य शिष्ट जन असम्मत व्यवहारों का संयोजन अनार्य के साथ हुआ है। किंतु यह तो स्पष्ट ही है कि यहां पर आर्य-अनार्य के विभाग का मुख्य हेतु भाषा ही है। भारतवर्ष के प्रायः सभी विशिष्ट धर्म सम्प्रदायों ने विभिन्न मान्यताओं, अवधारणाओं के मानकों से आर्य शब्द का मूल्यांकन किया है। आर्य शब्द का प्रयोग प्रारम्भ में एक जाति अथवा एक विशेष प्रकार की भाषा बोलने वालों के लिए होता था किंतु बाद में वह अपने संकुचित अर्थ को छोड़कर एक व्यापक अर्थ में प्रयुक्त होने लगा। _ आर्य शब्द सबसे पहले ऋग्वेद में दृष्टिगोचर होता है, जहां वह अपने को आदिवासी जातिओं से पृथक् करता है। समय के प्रवाह के साथ आर्य शब्द शक्तिशाली बनता गया। किसी का आर्य होना सम्मानजनक माना जाता था। जो व्यक्ति आर्यों के धर्म, जाति, भाषा आदि से सम्बद्ध होता था उसको आर्य कहा जाता था। तत्पश्चात् आर्य शब्द श्रेष्ठ एवं अनार्य अश्रेष्ठ अर्थ में प्रयुक्त होने लगा। श्रेष्ठ अर्थ में आर्य शब्द का प्रयोग विभिन्न धार्मिक परम्पराओं में हुआ है। बौद्ध दर्शन ने अपने मूल सिद्धान्तों को चार आर्य सत्य के रूप में स्वीकृत किया है। जैन परम्परा के आगम तथा आगमेतर साहित्य में श्रेष्ठ अर्थ में आर्य शब्द का प्रयोग बहुलता से हुआ है। जैनों के सबसे प्राचीन माने जाने वाले आचारांग सूत्र में तीर्थंकरों के लिए आर्य शब्द का प्रयोग हुआ है। 'यह मार्ग आर्यों (तीर्थंकरों) के द्वारा प्रज्ञप्त है।'१४ आचारांग की रचना के समय आर्य श्रेष्ठता एवं अनार्य अश्रेष्ठता का वाचक बन चुका था। हिंसा का प्रतिपादन करने वालों को अनार्य कहा गया है। आर्यों को अहिंसा धर्म का प्रवक्ता कहा है।१५ आचारांग के भाष्यकार ने इसके तात्पर्यार्थ को स्पष्ट करते हुए कहा है कि जो अहिंसा धर्म को नहीं जानता वह अनार्य है। इसका प्रतिपक्षी है आर्य अर्थात् जो अहिंसा धर्म को जानता है वह आर्य है।१६ आचारांग में नौ बार आर्य शब्द का प्रयोग हुआ है।१७ १६२ . व्रात्य दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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