Book Title: Vratya Darshan
Author(s): Mangalpragyashreeji Samni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 232
________________ को प्राप्त होता है। जीवात्मा इसी शरीर के माध्यम से कर्म तथा उनके फल का उपभोग करता है। वेदान्त दर्शन में स्थूल शरीर के चार प्रकार माने गये हैं१. जरायुज २. अण्डज ३. स्वेदज ४. उद्भिज्ज मनुष्य, पशु आदि के शरीर जरायुज, पक्षी, सर्प आदि के शरीर अण्डज, जूं, कीट आदि के शरीर स्वेदज तथा वृक्ष, लता आदि के शरीर उद्भिज्ज कहलाते हैं। वेदान्त के अनुसार पंचीकृत भूतों से ही भूः, भुवः, स्वः, महः, जनः तपः तथा सत्यम् इन सात ऊपरी भुवनों का तथा अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, महातल तथा पाताल नामक नीचे के सात लोकों का, ब्रह्माण्ड और उसमें स्थित चतुर्विध स्थूल शरीरों और उनके पोषणार्थ अन्न-पान आदि का प्रादुर्भाव होता है। यद्यपि इन चार शरीरों के धारकों के उल्लेख में मनुष्य, पशु, पक्षी, कीट, वृक्ष आदि का ही उल्लेख है, इनसे भिन्न देवयोनि अथवा पातालयोनि के जीवों के शरीर कैसा होता है? इसका उल्लेख नहीं है। जबकि जैन दर्शन में देव, नारक आदि के शरीरों का स्पष्ट उल्लेख है। वेदान्त ने जो चार शरीरों का उल्लेख किया गया है, जैन परम्परा में वे त्रसकाय जीवों के शरीर के भेद हैं। जैन दर्शन में उसकाय जीवों के वर्णन प्रसंग में उन्हें आठ प्रकार का बताया गया है। जिनमें चार प्रकार वेदान्त दर्शन में कथित चार शरीर के नाम से तुलनीय है। दशवकालिक में वर्णित, अण्डज, जरायुज, संस्वेदज एवं उद्भिज त्रस जीव के इन चार प्रकारों का ही वेदान्त में चार शरीर के रूप में उल्लेख किया गया है। दशवैकालिक में यह वर्णन शरीर के प्रसंग में नहीं है। त्रसजीवों के प्रकार वर्णन के प्रसंग में है। जैन के अनुसार शरीर दृष्टि से विचार करने पर इन चारों ही प्रकारों का समावेश औदारिक शरीर में हो जाता है। वेदान्त मान्य सूक्ष्म शरीर की आंशिक तुलना जैन के कार्मण शरीर से तथा स्थूल शरीर की औदारिक शरीर से हो सकती है। वेदान्त सूक्ष्म शरीर में ज्ञानमय, मनोमय, प्राणमय इन तीन कोशों को मानता है, जैन के अनुसार भी सूक्ष्मतम कार्मणशरीर में ही ज्ञान, सुख, दुःख आदि के संस्कार संचित रहते हैं। वेदान्त में विश्व, तैजस एवं प्राज्ञ की अवधारणा है। इनकी क्रमशः औदारिक, व्रात्य दर्शन - २१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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