Book Title: Vratya Darshan
Author(s): Mangalpragyashreeji Samni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 233
________________ तैजस एवं कार्मण शरीर के साथ तुलना हो सकती है। जठराग्नि अन्न का परिपाक करती है। इससे ही स्थूल शरीर का निर्माण होता है। व्यष्टि रूप में जो विश्व होता है, समष्टि चिंतन में वही विराट् या वैश्वानर बन जाता है। तैजस क्रियाशील है। इससे ही क्रियाशीलता प्राप्त होती है। यह जैन मान्य तैजस शरीर से आंशिक समानता रखता है। समष्टि में तैजस को ही हिरण्यगर्भ कहा जाता है। प्राज्ञ व्यष्टि है इसकी समानता कार्मण शरीर से है तथा वेदान्त के अनुसार समष्टि विमर्श में प्राज्ञ ही सर्वज्ञ बन जाता है। जैन दर्शन में कार्मण शरीर को पौद्गलिक माना गया है जबकि वेदान्त प्राज्ञ को पौद्गलिक नहीं मानता किंतु यहां पर यह विमर्शनीय है कि जब प्राज्ञ को कारण शरीर कहा जा रहा है तो वह चैतन्य स्वरूप कैसे होगा? क्योंकि शरीर तो जड़ रूप है फिर कारण शरीर को भी जड़ रूप मानना चाहिये। इस प्रकार हम देखते हैं कि विभिन्न भारतीय दार्शनिक परम्पराओं में शरीर के संदर्भ में प्रभूत विचार हुआ है। सूक्ष्म शरीर आत्मा की विमोक्षावस्था की प्राप्ति में बाधक है। स्थूल शरीर आत्म-प्राप्ति में साधक बन सकता है यदि साधक शरीर में रहकर भी शरीरातीत अवस्था का अनुभव कर सके। उस शरीर को पूर्णतया आत्म प्राप्ति के लक्ष्य के लिए ही समर्पित कर दे । संसारी जीव अविद्या से युक्त है फलस्वरूप उसकी चेतना शरीर के आस-पास भ्रमण करती रहती है। शरीर के प्रति उसकी आसक्ति बनी रहती है। अविद्यावान् के शरीर केन्द्र में होता है। आत्माभिमुखता से वह दूर रहता है। शरीर सुख को ही वह अपने जीवन का लक्ष्य मानता है। उसका सारा आचार, व्यवहार शरीर की परिक्रमा करता रहता है। शरीरासक्ति के कारण वह विभिन्न प्रकार के संक्लेशों को प्राप्त होता है। अध्यात्म जगत् में शरीरकेन्द्रित चेतना बाधा उत्पन्न करती है, अतः साधक शरीर के प्रति मूर्छा का त्यागकर आत्मतत्व की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील बने, यह अभिलषणीय है। आधुनिक विज्ञान में शरीर 'शरीर विज्ञान' ने शरीर से सम्बन्धित अनेक रहस्यों का उद्घाटन किया है। विज्ञान के अनुसार कोशिका शरीर की इकाई है। उस छोटी-सी कोशिका में भी विभिन्न प्रकार के भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन होते रहते हैं। विज्ञान ने इन सबका अत्यन्त सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत किया है। शरीर में क्या-क्या तत्त्व है, उनका निर्माण कैसे होता है? शरीर के अवयव क्या-क्या करते हैं? कैसे करते २१४ . व्रात्य दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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