Book Title: Vratya Darshan
Author(s): Mangalpragyashreeji Samni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 210
________________ है उनमें से एक स्थान भी भारत से बाहर नहीं है। प्रज्ञापना का यह उल्लेख स्पष्ट रूप से आर्यों के भारतीय होने का संकेत दे रहा है। प्रज्ञापना में उपलब्ध साढ़े पच्चीस आर्य देशों की सूची उत्तर भारत के प्रदेशों की सूची है। ऋग्वेद संहिता में भी आर्यों की राज्य सीमा में प्रायः उत्तर भारत के देश ही सम्मिलित है। अतः प्रज्ञापना का यह प्रसंग प्रस्तुत संदर्भ में विशेष महत्त्वपूर्ण हो जाता है। तत्त्वार्थभाष्य में पन्द्रह कर्म भूमी में उत्पन्न व्यक्तियों को तथा चक्रवर्ती के द्वारा विजित स्थानों में उत्पन्न व्यक्तियों को आर्य कहा है। इसके साथ ही भरत क्षेत्र के साढ़े पच्चीस देशों में उत्पन्न मनुष्यों को भी आर्य कहा है। इस संदर्भ में यह विमर्शनीय है कि भरतक्षेत्र भी पन्द्रह कर्मभूमिओं में समाहित है फिर भाष्य में इसका पृथक् उल्लेख क्यों किया गया? पन्द्रह कर्मभूमिओं का उल्लेख जैन भूगोल में हुआ है किंतु वे आज कहां पर हैं, यह ज्ञात नहीं है किंतु जिन पच्चीस आर्य देशों का उल्लेख है, वे उत्तर भारत में हैं अतः इस वर्णन से भी 'आर्यों' का भारतीय होना सिद्ध होता है। ___जैन परम्परा में आर्य-अनार्य क्षेत्रों की व्यवस्था के कई मानक उपलब्ध हैं। प्रज्ञापना के अनुसार इन साढ़े पच्चीस देशों में तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव की उत्पत्ति होती है अतः ये जनपद आर्य हैं। प्रवचनसारोद्धार में भी जिन क्षेत्रों में तीर्थंकरों की उत्पत्ति होती है उन्हें आर्य एवं शेप को अनार्य कहा गया है। आवश्यकचूर्णि में आर्य और अनार्य की व्यवस्था भिन्न प्रकार से उपलब्ध है। चूर्णि के अनुसार जिन प्रदेशों में यौगलिक रहते थे, जहां 'हाकार' आदि नीतियों का प्रवर्तन हुआ था, वे प्रदेश आर्य और शेष अनार्य हैं। इसके अनुसार आर्य जनपदों की सीमा बहुत बढ़ जाती है। __ जैन साहित्य में आर्य-अनार्य का भेद विभिन्न दृष्टिकोणों से प्रस्तुत किया गया है। वहां पर आर्य एवं अनार्य की अवधारणा मात्र जाति पर ही आधारित नहीं है अपितु भाषा, ऋद्धि, क्षेत्र, शिल्प, कर्म, ज्ञान आदि उसके अनेक हेतु माने गये हैं। इस प्रसंग में यह ध्यातव्य है कि जैन परम्परा में आर्य एवं अनार्य की व्युत्पत्ति एवं परिभाषा मुख्यतः गुणात्मक आधार पर प्रस्तुत की गयी है। प्रज्ञापना की टीका में कहा गया जो हेय धर्मों से दूर रहते हैं तथा उपादेय धर्मों को प्राप्त करते हैं वे आर्य हैं।' तत्वार्थभाष्यानुसारिणी में क्षेत्र, जाति, शिल्प, कर्म आदि से युक्त शिष्टलोकन्यायधर्म आदि से सम्मत आचरण से युक्त को आर्य कहा गया है।० प्रज्ञापना में अनार्य के स्थान पर म्लेच्छ शब्द का प्रयोग हुआ है। अनार्य, म्लेच्छ ये परस्पर पर्यायवाची शब्द हैं। अव्यक्त भाषा को बोलने व्रात्य दर्शन - १६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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