Book Title: Vismi Sadini Viral Vibhuti Part 02
Author(s): Hemvallabhvijay
Publisher: Sahasavan Kalyanakbhumi Tirthoddhar Samiti Junagadh
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तपस्वी वंदना मावांजली
प.पू.आ. वारिषेण सू.म.सा.
गुगांजली
प.पू.आ.अरविंद सू.म.सा.
॥श्री वसंततिलकावृतम् ।। ऐदंयुगीनयतिभिः स्तुतसच्चरित्रः । कर्मक्षयाय सततं तपसि प्रवृत्तः,
संमेलनं च यतीनां हितकृत् प्रकृष्टम् । चारित्ररत्नममलं परिरक्षयंश्च;
संजायमानविविधैर्नियमेर्विशिष्टम्, क्षेमंकरो जयतु सूरिवरो हिमांशुः ।।१।।
वर्षेऽथ वेदयुगशून्यमिते द्विकेऽत्र; जन्माग्निषट्टिनधिशशांकमिते सुयोगे।
क्षेमंकरो जयतु सूरिवरो हिमांशुः ।।६।। येषां स्वपुण्यवशः स्वकुले शुभंयुः,
श्रीउज्जयन्तगिरिराजकृतप्रतिष्ठः । जैन च शासनमिदं बहुशः प्रकाशि; तीर्थे सहस्रसहकारवने सुरम्ये, क्षेमंकरो जयतु सूरिवरो हिमांशुः ।।२।।
श्रीनेमिनाथजिनराज सुपावितेऽत्र; दीक्षाय संसृतिवनी भ्रमनाशकीं।
क्षेमंकरो जयतु सूरिवरो हिमांशुः ।।७।। संवत्सरे खनिधिनंदसुचन्द्रयोगे,
चक्रेऽष्टकम् मधुरिमाश्रयशस्तवर्णम् । संपालिता समितिगुप्तिसुभावयुक्ता;
श्रव्यं वसंततिलकाभिध चारुगीतम्, क्षेमंकरो जयतु सूरिवरो हिमांशु : ।।३।।
प्रस्तौति सूरिविजयांकितचारविन्दः; आचार्यवर्यपदयुक् स बभूव सूरिः ।
क्षेमंकरो जयतु सूरिवरो हिमांशु ।।८।। नंद द्विशून्यनयने खलु वैक्रमेऽब्दे,
नमः श्रीसूरिराजाय, हिमांशुवर्णशालिने । चातुर्विधे सकलसंघसुदत्त मैत्रिः;
परोपकारभिष्ठाय, भद्रं हिमांशुसूरये ।।९।। क्षेमंकरो जयतु सूरिवरो हिमांशुः ।।४।। स्वर्वास नंद समिती गगने सुनेत्रे । संख्येऽ भवच्च सुसमाधिबलेन सम्यक्, स्वीयं च जन्म सफलीकृतवान् समग्र; क्षेमंकरो जयतु सूरिवरो हिमांशुः ।।५।।
* मानव आते चले जाते है।
पुष्प महकते मुरझा जाते है तपसम्राट हिमांशुसूरीश्वर के सद्गुण अपनी महक से जैन शासन गौरव लेते है! * उज्जवल संयम निर्मलश्रध्धा जिनका मन सदा शीतल है छल बिनाका हृदय कोमल
हीमांशुसूरि को वंदे पलपल *मधुर वचनो का भंडार थे
सभी के दिल के शणगारथे परहित काजे कष्ट सहते हिमांशुसूरि तपसम्राट थे *क्षणिक स्मित मुस्कान से
मुक्ति बोध हमे सदा होता है परोपकारी के नयनो से मजे
हिमांशु तपस्वी ज्योत दिखता है * तपसम्राट की श्रध्धा से हम
वंदना भाव जगाते आज हिमांशुसूरि चरणोमें सदा अंतर से शिर झुकाते है । * गुरुवर विश्वमंगल हो
सदा जैसी भावना बनो, अमित परहित नयनो से गुरुवर आशिष वरसाते रहो!
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