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जयमाला (दोहा) जिनके सुमरण से बने, अन्तःकरण निहाल। ऐसे पाश्व जिनेश की, यह विशाल जयमाल।। पाश्वनाथ करुणा अवतारी, भक्तजनों के संकटहारी। सुर किन्नर गणधर गुणगाते, पूजन मनवांछित फल पाते।। ज्ञाता दृष्टा रूप तुम्हारा, तुमने आत्मस्वरूप निखारा। विषयकषायों पर जय पाई, दर्लभ मुक्तिरमा परणाई।। जन्ममरण आवरण हटाया, उत्तम शुद्धातम प्रगटाया। जीवाजीव द्रव्य पहिचाना, इन्द्रियसेना से रण ठाना।। दिव्य नीलमणि छटा तुम्हारी धर्मामृतवषक त्रिपुरारी। भवदावानल अन्तर्खाला, तप से भस्मसात कर डाला।।
नवों लब्धियों के स्वामी हैं, ज्ञानानंद पारगामी हैं। वरदानी केवल ज्ञानी हैं, जिनवाणी वीणा पाणी है।। क्रूरकमठ ने वैर निकाला, धधकाई पिशाचने ज्वाला। जलकंकड पत्थर बरसाये, घोर भयंकर दृश्य दिखाये।। पद्मावति धरणेन्द्र पधारें तुम पर फणमण्डप विस्तारे। केवल ज्ञान हुआ यश पाया जय जयकार जगत् में छाया।। उस फल कमठाचर पछताया, चरण कमल में शीश नवाया। हम सेवक हैं रविव्रत धारी, सुनिये नाथ पुकार हमारी।। जो भी आया शरण तुम्हारी, पूजा की आरती उतारी।
सुनते हैं हे करुणाधारी, एक बन गये पूज्य पुजारी।। ऊँ ह्रीं रविवारव्रतोद्यापने नव क्षायिकलब्धि विभूषिताय श्रीपाश्वनाथाय जिनेन्द्राय पूर्णाऱ्या
निर्वपामीति स्वाहा।
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