Book Title: Vidhan
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 1368
________________ अर्घहे नैऋत इदमध्यं पाद्यं जलं, गंध, अक्षतं, दीपं, धूपं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फलं स्वस्तिकं यज्ञ भागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतां इति स्वाहा।5। बलिंतिली का तेल, तिलपपडी। यस्यार्थं क्रियते पूजा तस्य शान्तिं भवेत सदा, शान्तिकं पौष्टिकं चैव सर्वकार्येषु सिद्धिदः। (शान्तिधारा) आराधना श्लोककरधृतफणि पासो मंडनोद्योति ताशाः करिम करक मूर्तिलोक संक्रांत कीर्तिः। सुरुचिर वरुणानी प्राणनाथः सयूथोवरुण इह समेतो लातु दुग्धान्य धान्यम्।।6।। आह्वानऊँ आं क्रौं ह्रीं स्वर्ण वर्ण सर्व लक्षण सम्पूर्ण स्वायुध वाहन-वधु चिन्ह सपरिवार हे वरुणदेव आगच्छ, आगच्छ स्व स्थाने तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा। बलि विधानॐ वरुणाय स्वाहा। वरुण परिजनाय स्वाहा। वरुणा अनुचराय स्वाहा। वरुणाय स्वाहा। सोमाय स्वाहा। प्रजापतये स्वाहा। ऊँ स्वाहा। ऊँ: भूः स्वाहा। भुवः स्वाहा। भूर्भुव स्वाहा। स्वः स्वाहा स्वधा। 1368

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