Book Title: Vidhan
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 1392
________________ अर्घहे मृषदेव इदमध्यं पाद्यं जलं, गंध, अक्षतं, दीपं, धूपं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फलं स्वस्तिकं यज्ञ भागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतां इति स्वाहा।331 बलिं- उड़द की धूघरी। यस्यार्थं क्रियते पूजा तस्य शान्तिं भवेत सदा, शान्तिकं पौष्टिकं चैव सर्वकार्येषु सिद्धिदः।। (शान्तिधारा) आराधना श्लोकतपोधनाजन्य निवारणार्थं वनाश्रमद्वारि सदा निषण्णम्। दौवारिकं संवितयातु धानं संतर्पः येऽह वरशालि पिष्टैः।।34।। आह्वानॐ आं क्रौं ह्रीं सर्व राक्षस सम्पूर्ण स्वायुध वाहन-वधु चिन्ह दौवारिक आगच्छ, आगच्छ स्व स्थाने तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा। बलि विधानॐ दौवारिकाय स्वाहा। दौवारिक परिजनाय स्वाहा। दौवारिका अनुचराय स्वाहा। वरुणाय स्वाहा। सोमाय स्वाहा। प्रजापतये स्वाहा। ऊँ स्वाहा। ऊँ: भूः स्वाहा। भुवः स्वाहा। भू व स्वाहा। स्वः स्वाहा स्वधा। अर्घहे दौवारिक इदमध्यं पाद्यं जलं, गंध, अक्षतं, दीपं, धूपं, पुष्पं, चरुं, बलिं, फलं स्वस्तिकं यज्ञ भागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतां इति स्वाहा।34 1392

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