Book Title: Vidhan
Author(s): ZZZ Unknown
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 1395
________________ आराधना श्लोक असुरः कल्पसुराभवि क्रियो गिरिनद्या दिविहार लोलुपः। वरुणोपांत मही मुपाश्रितो भजतां लोहितमन्न मुत्तमम् ॥37॥ आह्वान ॐ आं क्रौं ह्रीं कृष्ण वर्ण सर्व लक्षण सम्पूर्ण स्वायुध वाहन-वधु चिन्ह सपरिवार हे असुर आगच्छ, आगच्छ स्व स्थाने तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्वाहा। बलि विधान ऊँ असुराय स्वाहा। असुर परिजनाय स्वाहा। असुरा अनुचराय स्वाहा। वरुणाय स्वाहा। सोमाय स्वाहा। प्रजापतये स्वाहा। ॐ स्वाहा । ॐ भूः स्वाहा। भुवः स्वाहा। भूर्भुव स्वाहा। स्वः स्वाहा स्वधा। अर्घ हे असुर इदमघ्यं पाद्यं जलं, गंध, अक्षतं, दीपं, धूपं, पुष्पं, चरुं, बलि, फलं स्वस्तिकं यज्ञ भागं यजामहे प्रतिगृह्यतां प्रतिगृह्यतां इति स्वाहा।37। बलिं - लाल भात। यस्यार्थं क्रियते पूजा तस्य शान्तिं भवेत सदा, शान्तिकं पौष्टिकं चैव सर्वकार्येषु सिद्धिदः ।। (शान्तिधारा) आराधना श्लोक संशुद्ध मार्ग प्रतिरोध वाहिनी शोषं सदा यः कुरुते प्रतापतः। शोषः सपक्षीकृत याद सांपति र्लातु प्रधौतं तिलमक्षतांश्च॥38॥ 1395

Loading...

Page Navigation
1 ... 1393 1394 1395 1396 1397 1398 1399 1400 1401 1402 1403 1404 1405 1406 1407 1408 1409