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अष्ट प्रातिहार्य
(जोगीरासा)
वृक्ष अशोक महा सुखदाई दीखे सुन्दर भाई। शोक हरे सब जीवों का प्रभु यह महिमा अधिकाई।। प्रातिहार्य वसु जिनवर सोहे मन को अति ही मोहे। पूजों वसु विधि द्रव्य संजोकर अविनासी पद हो है।।
ऊँ ह्रीं अशोक वृक्ष प्रातिहार्य सहित अरहन्त देवेभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 35॥
देव भक्ति में आकर प्रभु की पुष्पों को वर्षा । स्तुति पढ़े, करे पद अर्चन निर्मल गुण को गावे || प्रातिहार्य वसु जिनवर सोहे मन को अति ही मोहे। पूजों वसु विधि द्रव्य संजोकर अविनासी पद हो है।
ऊँ ह्रीं पुष्प वृक्ष वृष्टि प्रातिहार्य सहित अरहन्त देवेभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 36॥
दिव्य ध्वनि शुभ वर्षे जिनवर सब जीवों सुखदाई | पाप विनाशे शुभ पथ भासे पुण्य बढ़े अधिकाई ॥ प्रातिहार्य वसु जिनवर सोहे मन को अति ही मोहे। पूजों वसु विधि द्रव्य संजोकर अविनासी पद हो है।।
ॐ ह्रीं प्रातिहार्य सहित अरहन्त देवेभ्योऽघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥37॥
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