Book Title: Vallabhvrushti Prakash
Author(s): Gangavishnu Shrikrushnadas
Publisher: Gangavishnu Shrikrushnadas

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Page 6
________________ meaning । तथा दोहा । मोर मुकुट शिरपर धरो, कर मुरली गुन गान । शिवजीसुत रघुनाथ नित, धरत तिहारो ध्यान ॥ १ ॥ जैसे ब्रजवासियनकी, प्रतिदिन करी सहाय । तैसे कपाकटाक्ष कर, दीजे मार्ग बताय ॥२॥ “श्री हरिसेवा वल्लभकुल जाने " अर्थात् श्रीहरिकी सेवाको प्रकार श्रीमवल्लभ सम्प्रदायमें जैसो उत्तम और विधिपूर्वक है तैसो इतर सम्प्रदायादिकनमें नहीं है। यह बात सर्व वादी सम्मत है । अत एव अनन्य भक्तिकी सेवा पद्धतिको प्रकार भगवदीयनके उपकारार्थ तथा सर्व साधारण भक्तोंके कल्याणार्थ हमने ग्रन्थरूपमें श्री वल्लभपुष्टिप्रकाश नामसें प्रकाश करवेको पूर्णमनोरथ कियो है । और जा जा प्रकारसों या ग्रन्थमें सेवा सम्बन्धी मुख्य मुख्य विषयनको विस्तारपूर्वक समावेश कियो है, सो सब विगत नीचे लिखें हैं। ___ हमने श्रीवल्लभपुष्टिप्रकाश नामक अति अलस्य ग्रन्थके चार भाग कीने हैं। पुष्टिमार्गीय वैष्णवनके लिये छपवायो है। सो या ग्रन्थमें सातों घरनकी सेवापद्धति इन प्राचीन ग्रन्थनसों संगृहीत है, जैसे सेवाकौमुदी और श्रीहरिरायजीको आह्निक तथा भावना आदि ग्रन्थनके अनुसार क्रम है ता प्रमाण लिख्यो है । जैसे मङ्गलासों प्रारम्भ करके शयनपर्यन्तको क्रम नित्यकी सेवा तथा बरस दिनके सम्पूर्ण उत्सवनको क्रम, सामग्री तथा शृङ्गार तथा वस्त्र आभूषण आदि यह प्रथम | भागमें लिख्यो गयो है । तामें नित्यको शृङ्गार यथारुचि अर्थात् अपने मनमें जो आछो लगे सो करनो और सामग्री जो प्रमाण लिख्यो है तामें जहाँ जितनो नेग होय ता प्रमाण करनो, यहां एक अनुमानसो लिख्यो गयो है। -

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