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है। और मन्दिरनमें नहीं । और पादुकाजीकी पलङ्गड़ी कोई मन्दिरनमें दक्षिण भागमें बिराजे हैं । और शय्या सबजने बामही भागमें बिछवेकी रीति है। और तुलसीदल जोश्रीठाकुरजति चरणारविन्दमें राज भोग आये धरावे हैं सो श्रीगोकुलनाथकी तथा श्रीगोकुलचन्द्रमाजीके तुरतही बड़े होयजाय है। और ठिकाने राजभोगसरेपीछे बड़े होय । और राजभोग आरती भये पाछे माला सबजगे बड़ी होय है । सो बगली तकियापर अथवा तबकडीमें दाहिनी दिश रहे है।
और जादिन तिलक होय तादिन माला बडी नहीं होय है सो| उत्थापन समय बडी होय है। याप्रकार उत्सव मेंहूँ कितनीक रीतिभाँतिमें अन्तर पडे है।
अब जन्माष्टमीके दिन प्रातःकाल श्रीठाकुरजीको पञ्चामृतस्नान सब ठिकाने शंखसों होय है। और अमिदनमोहनजीमें कटोरीतूं होय है और जन्म समय श्रीगिरिराजजीतथा शालग्रामजीकों पञ्चामृत शंखसों होय है। और श्रीनवनीत प्रियजी। श्रीमथुरेशजी । श्रीगोकुलचन्द्रमाजी । जन्माष्टमीके दिन वागा केशरी और कुल्हे केशरी धरावे हैं।
और श्रीगोकुलनाथजी। श्रीविठ्ठलनाथजी। श्रीमदन मोहनजी ये केशरी बागा और सुपेत कुल्हे धरे हैं । और राधाष्टमीको सब ठिकाने बागा केशरी और कुल्हे केशरी धरावे हैं। श्रीनवनीतप्रियजी सदाही पालने झूले हैं । और श्रीविट्ठलनाथजी जन्माष्टमीते राधाष्टमी ताई पालना झुले हैं। और श्रीगोकुलनाथजी तथा श्रीगोकुलचन्द्रमाजी एकही दिन नवमीको पालना झूले हैं । और श्रीगोकुलचन्द्रमाजी दशमीके दिनाहूं झूले हैं । और श्री मदनमोहनजी छठी ताई पालना
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ROHTAS