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कढीको डबरा छलक्यो तातें जामा भीजगयो और शत्रुभी। भाजगयो तातें वैष्णवजनको सत्संग और सेवा भजनमें जो तत्पर रहे तो लौकिक अलौकिक तब प्रभुकी कृपाते सिद्ध । होयजाय ऐसी ऐसी अनेक बातहैं कहाँ ताई लिखिये ग्रन्थको। विस्तार होजाय ॥ अस्तु ॥ . यह सातों घरोंकी रीत लिखीहै आगे जो जो घरके सेवक हाय ता ता घरकी रीत करनी। - अब याके आगे विस्तारपूर्वक श्रीहरिरायजी कृत आह्निक सब प्रतिदिनकी सेवा ताके आगे उत्सवसेवा विधिपूर्वक विस्तारसों दिनदिनकी लिखीहै ताके आगे क्रमसों उत्सव निर्णय ॥ तथा भाव भावना तथा सेवा साहित्यके चित्रादि लिखेगयेहैं।
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