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श्रीनवनीतप्रियजीके शयनके दर्शन। श्रीनवनीतप्रियजीके दर्शन और श्रीनवनीतप्रियजीके शयनके दर्शन चालीस दिन बसन्तले डोलताई होय हैं । और बीचमें हिंडोरा, फूलमण्डली आदि मनोरथ होय तब शयनके दर्शन होय हैं सोई रीति श्रीमुकुन्दरायजीके घरमें है। शयनके दर्शन सदा नहीं होय हैं। और मन्दिरमें शयनके दर्शन होय हैं। या प्रकार श्रीगुसांईजीकी सेवाको प्रकार सब घरनमें वर्तमान है। और श्रीगुसांईजीके पीछे श्रीगोकुलनाथजी (श्रीवल्लभ ) नव वर्ष पर्यन्त भूतलपर विराजे सो श्रीजीकी सेवाको प्रकार तथा आभूषण आदि अनेक प्रकारको वैभव बढायो
और पुष्टिमार्गके अनेक सिद्धान्त वचनामृतद्वार प्रगट करि प्रकाश किये। और चिद्रूप संन्यासीको जीतकर मालाको धर्म राख्यो और पुष्टिमार्गको विस्तार कियो । और फिर गोस्वामिबालकनने मनोरथकरके सब घरनमें कितनीक रीत अधिक बढाई । और कोई कारन करके कितनी कई प्राचीनरीत गुप्तहू होती गई है जैसे श्रीनाथजीमें अब वर्षोंवर्ष श्री दाऊजीमहारावे समयते मार्गशिर सुदी १५ को छप्पन भोग होय है । और श्रीद्वारिकानाथजी में फाल्गुनसुदि १३ को ८४ खम्भाको कुन बन्धे है और श्रीगोलनाथजी में राजभोगमें एक धूपही होय है दीप नहीं होय है ताको कारन कोई समय अग्निको उपद्रव भयो हतो तासों दीपकी रीत नहीं रहीं। ऐसेही घटती बढती होय जाय है अब एतन्मार्गमें चौबीस एकादशी और चार जयन्तिनको व्रत करनों यह आवश्यक करनो कह्यो है। और दशमीविद्धा एकादशीको व्रत सर्वथा निषिद्ध है । ताको तथा
१ बाबा आवे न घण्टा बाजे ।
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