________________
AIRRORDNEEDINDIAN
OTION
-
-
उत्सवको निर्णय आगे दूसरे भागमें विस्तारसों लिख्यो है तामें देखलेनों॥
चारों जयन्ती। अब चारयों जयन्तिनको व्रत श्रीमथुरेशजीके घरमें निराहार रहवेको आग्रह है और मन्दिरनमें फलाहारकयो है । और श्रीगोकुलनाथ में तथा श्रीगोकुलचन्द्रमाजीमें ये चारयों जयन्तिनमें जन्मभये पाछे पारणा, महाप्रसाद लेवेकी रीति है। तहाँ श्रीगोकुलचन्द्रमाजीमें जन्माष्टमीके अर्द्धरात्रीके समय जन्म भये पाछे पञ्जीरी आदि कछुक लेनो आवश्यक कह्यो है। सो या प्रकार जो जाघरके सेवन होंय ताकी रीतप्रमाणे सेवाविधिकी पुस्तक देखि विचारके अपने श्रीठाकुरजीकी सेवा करनी और पुष्टिमार्गीयजननकों भगवत्सेवा तथा भजन स्मरन तनजा, धनजा मनजा सोजितनो बनिओ सो अवश्य करनों कह्यो है कि" सेवायां वा कथायांवा यस्यां भक्तिहढा भवेत्।” यही मुख्य धर्म अरु परम पुरुषार्थहै तामों सेवा और भजन नहीं छोडनों जासों जो कछु श्रद्धापूर्वक शुद्धभावसों और प्रेमतें जो बनि आवे है सो सब श्रीमहाप्रभुजीकी काँनते श्रीठाकुरजी अङ्गीकार करें। और एतन्मार्गीय वैष्णवजनको भगवत्सेवा भजन छोडि अन्य धर्ममें प्रवृत्ति होनो सर्वथा बाधकहै । यह श्रीमहाप्रभुजीके वाक्यहैं.कि श्रीकृष्णसेवा सदा कार्या मानसी सा परामता" । यही सेवाको साधन करते करते मानसी सेवा सिद्ध होयजायहै। और ऐसे करतेकरते सब अनुभव होयवेलग जायहै । जैसे राजा आसकरनजीको साधन करते करते मानसी सिद्धि होगई। और रणमें घोडाऊपर सवार होय मानसी सेवा करते चल्यो जायहै। तहाँराजभोगधरतमें घोडाउछरयो सोही
-
%
D