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झूले हैं। और दान एकादशी तथा वामनद्वादशीभेलीहोंयतो श्रीगोकुनाथजी तथा श्रीगोकुलचन्द्रमाजी किरीटमुकुट धरे हैं और मन्दिरनमें केशरीबागा तथा केशरी कुल्हेही धरे हैं। और शरद पुन्योकों कोई मन्दिरनमें नित्यकी रीतिसों शयन आरती जलदी होय जाय है । और श्रीचन्द्रमाजी शरदमें नहीं बिराजे हैं। वादिना शयन बेगि होय जाय है। और कोई ठिकाने दिवारीको एक दिन हटरीमें विराजे हैं। और कहूं पाँच दिन शीस महल में शयनके दर्शन होय हैं। और श्रीगोकुलनाथजी ।श्रीगिरिराज पूजनमें स्नान दूधसों और जलसों होय हैं । और मन्दिरनमें दूध तथा दहीसों होय है। और श्रीगोकुलचन्द्रमाजीमें श्रीगिरिराजजीको पञ्चामृत स्नानहोय है। और अन्नकूटको भोग आवे तहाँ कोई मन्दिरनमें सिंहासनके आगे गली रहे हैं । और कोई मन्दिरनमें गली नहीं रहे है । और प्रबोधनीको और मन्दिरनमें देवोत्थापन करके श्रीबाल कृष्णजी अथवा श्रीगिरिराजजीकों पञ्चामृत स्नान करायके पाछे जडावर धरायके पाछे मण्डपको भोग आवे है।और श्रीगोकुलनाथजीमें पहेले पहेले पञ्चामृत स्नान होय पाछे जडावर धराय पाछे देवोत्थापन होय है । और वसन्तपञ्चमीको सब ठिकाने पागको शृङ्गार होय है। और श्रीगोकुलनाथजी तथा श्रीगोकुलचन्द्रमाजीमें और श्रीमथुरेशजीमें तथा श्रीमदनमोहनजीमें कुल्हेको शृङ्गार होय है। सोही डोलको भी होय हैं। सब ठिकाने राज भोग पाछे खेले हैं फिर उत्सवभोग आवे है और श्रीविठ्ठलनाथजीमें वसन्त पीछे छठते शृङ्गारमें वसन्त खेलेहै, सो होरीडाँडांताई । पाछे राजभोग पीछे खेलेहैं । और डोलमें शृङ्गारसमें बिराजें पाछे
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