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श्रीगुसांईजी सात बालक प्रगटभये । प्रथम श्रीगिरधरजी - १ श्रीगोविन्दरायजी २ श्री बालकृष्णजी ३ श्रीगोकुलनाथजी ४ ( जिनको श्रीबल्लभ नाम है ) श्री रघुनाथजी ५ श्रीयदुनाथजी ६ जिनकों श्रीमहाराजजीहू कहे हैं श्रीघनश्यामजी ७ सो सात बालकके एक एकके बटमें एक एक स्वरूप पधराए । और श्रीनवनीतप्रियजी श्रीनाथजीक गोदके ठाकुरजी सो श्रीनाथजीके पासही विराजे । और श्रीनाथजी की सेवा तो सब बालक मिलके करते । और अपने अपने घर सेव्यस्वरूपकीहू सेवा करते । तासों यासम्प्रदाय में सात घर कड़े जायहैं । और श्रीयदुनाथजी तो श्रीनवनीतप्रियजीकी सेवामें आसक्त रहते । तासों न्यारो स्वरूप नहीं पघरायो । और श्रीबालकृष्णजी, श्रीनटवरलालजी, श्रीमुकुन्दरायजी, श्रीगोदके ठाकुरजी, सो श्रीनाथजी के पासही बिराजते । अब श्रीयदुनाथजीके बंसमें श्रीगिरधरजी महाराजकाशीवारे । श्रीमुकुन्दरायजीको अपने माथे पराये, ताते आठमों घर श्रीयदुनाथजीको श्रीमुकुन्दरायजीको मन्दिर बाजे । सो यहाँ सेवाकी रीति श्रीनवनीत प्रियजीके घरकी रीति अनुसार होयहै । और बोहोत करके सातों घरकी प्रनालिका तो एकड़ी है। जैसे प्रथम घण्टानाद, फिर शङ्खनाद होय है । पाछे श्रीठाकुरजी जागे मंगलभोग आवे, पीछे आरती होय तापाछे स्नान होय शृङ्गार होय । पीछे गोपीबल्लभ भोग आवे ग्वाल होय पीछे राजभोग होयके आरती होय पाछे अनोसर होय पाछे उत्थापन होय भोग सन्ध्या और शयन होय है याप्रमाण नित्यरीति तथा वर्ष दिनके उत्सव तथा तादिकको निर्णय ये सब जगे होय सोही मान्योजाय परन्तु कोई कोई सेवा की रीतिभाँति में अन्तर पड़े ताको कारण