Book Title: Vairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 6
________________ २ ॥ जश विलास पद बीजुं ॥ ॥ राग सारंग ॥ कंत बिनु कहो कौन गति नारी ॥ टेक ॥ सुमति सखी जई वेगी मनावो, कहे चेतन सुन प्यारी ॥ कंत० ॥ १॥ धन कंन कंचन महल मालिए, पिउ बिन सबहि उजारी ॥ निद्राजोग बहु सुख नांही, पियु बियोग तनु जारी ॥ कंत०॥२॥ तोरे प्रीत पराई डुरिजन, ते दोष पुकारी ॥ घर जंजनके कहन न कीजें, कीजे काज बिचारी ॥ कंत० ||३|| विम मोह महामद बिजुरी, माया रेन - धारी ॥ गर्जित रति लवे रति दाडुर, कामकी ज सवारी ॥ कंत० ॥ ४ ॥ पिच मिलवेकुं मुक मन तलफे, में पि खिजमतगारी ॥ जुरकी देश गये पिउ मुऊकुं, न लहे पीर पीयारी ॥ कंत० ॥ संदेश सुनी आए पिउ उत्तम, जइ बहुत मनुहारी ॥ चिदानंद घन सुजस विनोदें, रमे रंग अनुसारी ॥ कंत० ॥ ६ ॥ ॥ पद त्रीजुं ॥ Jain Educationa International ॥ राग धन्याश्री ॥ परम गुरु जैन कहो क्यौं होवे, गुरु उपदेश बिना जन मूढा, दर्शन जैन बिगोवे ॥ परम गुरु जैन कहों क्यों होवे ॥ टेक ॥१॥ कहत कृ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 ... 164