Book Title: Vairagya Shatak
Author(s): Amrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
Publisher: Dhurandharsuri Samadhi Mandir
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श्री वैराग्य शतक नथी पण · वीतराग-भगवंते उपदेशेल पूर्वाचार्योए रचेल ग्रंथोमांथी ज उद्धरी भाषामां योजेल छे. ते योजायेल एक पण वचनथी कोईपण आत्माने संसार उपरथी वैराग्य आवशे, ए आत्मा साचा सुखने पंथे पडशे, दःखथी मकाईने आत्माना आनंदने मेळवशे तो करायेल परिश्रम विशेषे सफळ थयो लेखाशे. सुवर्ण जेवा. विचारोने मनमां संग्रहो अने कथिर जेवा विचारोने तिलांजलि आपो, सारा सारा विचारोने शीघ्र वर्तनमां मूको ने मुक्त बनो ए ज अभिलाषा.
- मुनि-धुरन्धरविजय.

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