Book Title: Uttara Purana
Author(s): Gunbhadrasuri, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 2
________________ आचार्य जिनसेन और आचार्य गुणभद्र (9वीं शती) का भारतीय साहित्य में, विशेषकर जैन संस्कृत साहित्य में, एक अद्वितीय स्थान है । उनके द्वारा विरचित 'महापुराण' पुराण साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण निधि है जिसमें त्रेसठ शलाकापुरुषों के जीवनवृत्त का वर्णन है । सम्पूर्ण ग्रन्थ दो भागों में विभाजित है । इसका प्रथम भाग 'आदिपुराण' कहलाता है जो भारतीय ज्ञानपीठ से दो बृहद् जिल्दों में प्रकाशित है । आचार्य जिनसेन विरचित यह आदिपुराण आदि-तीर्थङ्कर ऋषभदेव तथा भरत और बाहुबली के पुण्यचरित के साथ-साथ भारतीय संस्कृति एवं इतिहास के मूल स्रोतों एवं विकासक्रम को विशदरूपेण तथा विस्तार से आलोकित करता इसी महापुराण का उत्तर भाग आचार्य गुणभद्र द्वारा रचित यह 'उत्तरपुराण' है । इसमें तीर्थङ्कर आदिनाथ और चक्रवर्ती भरत को छोड़कर शेष 23 तीर्थकरों, 11 चक्रवर्तियों, 9 बलभद्रों 9 नारायणों,9 प्रतिनारायणों तथा तत्कालीन विभिन्न राजाओं एवं पुराण-पुरुषों के जीवनवृत्त का सविशेष वर्णन है । इस महाग्रन्थ के सम्पादक हैं जैन धर्म-दर्शन तथा संस्कृत साहित्य के अप्रतिम विद्वान् डॉ. (पं.) पन्नालाल जैन साहित्याचार्य । ग्रन्थ में संस्कृत मूल के साथ-साथ हिन्दी अनुवाद, पारिभाषिक, भौगोलिक और व्यक्तिपरक शब्द-सूचियाँ भी दी गई हैं। इससे यह शोधकर्ताओं, विशेषकर पुराण एवं काव्य-साहित्य का सृजनात्मक दृष्टि से अध्ययन करनेवालों के लिए, अपरिहार्य ग्रन्थ बन गया है । समर्पित है प्रस्तुत ग्रन्थ का यह नवीन संस्करण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.ainelibrary.org

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