Book Title: Tulsi Shabda Kosh Part 02
Author(s): Bacchulal Avasthi
Publisher: Books and Books

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 558 तुलसी शब्द-कोश पछिताये : पछितानें । 'अवसर बीते का पुनि के पछिताये ।' विन० २०१.५ पछितायो : पछिताय+कए। पश्चात्ताप । 'तब वैहै पछितायो।' गी० ६.४.३ पछितावा : सं०० (सं० पश्चात्ताप>प्रा० पच्छित्ताव) । अनुताप । 'जौं नहिं जाउँ रहइ पछितावा ।' मा० १.४६.२ पछिताहि, हीं : आ०प्रब० । पछताते हैं । 'धु नहिं सीस पछिताहिं ।' मा० २.६६ पछिताहु, हू : आ०मब० । पश्चात्ताप करो। पहहु सीतहि जनि पछिताहू।' मा० ४.२५.५ पछितैहसि : आ०भ०मए । तू पछतायगी। 'पुनि पछितहसि अंत अभागी।' मा० २.३६.८ पछितहहु : आ०भ०मब० । तुम पछताओगे-गी । 'ब्याह समय सिख मोरि समुझि पछितहहु ।' पा०म० ५६ पछितैहैं : आ०भ०प्रब० । पछतायेंगे-गी। 'बिकल जातुधानी पछित हैं ।' गी० ५.५१.२ पछितैहै : आ०भ० (१) प्रए । वह पछतायगा । (२) मए० तू पछतायगा। 'तौ तू पछितैहै मन मीजि हाथ ।' विन० ८४.१ पछितैहो : पछितहहु । कवि० ७.१०२ पछिले : 'पछिल' का रूपान्तर । (१) ए.। पिछले । 'पछिले पर भूप नित जागा।' मा० २.३८.१ (२) ब० । पिछले। 'पछिले बाढहिं ।' मा० ७.३१ पछोरन : सं.पु. (सं० प्रक्षोटन>प्रा० पच्छोडण)। सूप से अन्न को स्वच्छ करना । 'कह्यो है पछोरन छूछो।' कृ० ४३ पट : सं०० (सं.)। (१) वस्त्र । 'भूषन मनि पट नाना जाती।' मा० १.३४६.२ (२) परिधान । 'तन बिभूति पट केहरि छाला ।' मा० १.१२.२ (३) आवरण । 'एक टक रहे नयन पट रोकी ।' मा० १.१४८.५ (४) किवाड़। 'धवल धाम मनि पुरट पट ।' मा० १.२१३ (५) पर्दा या चिलमन । 'ध्वज पताक पट चामर चारू। छावा परम बिचित्र बजारू ।' मा० १.२६६.७ (६) चिथड़ा, वस्त्रखण्ड । 'तेल बोरि पट बांधि ।' मा० ५.२४ (७) वह वस्तु जिस पर कलई की जाय । 'ग्रह भेषज जल पवन पट पाइ कुजोग सुजोग । होहिं कु बस्तु सुबस्तु ।' मा० १.७ क (८) (सं० पट्ट) रेशम । 'पट पावड़े परहिं बिधि नाना ।' मा० १.३१६.३ /पटक, पटकइ : (सं० पटत्करोति>प्रा० पटक्कइ) आ०ए० । पटकता है, ध्वनिविशेष पूर्वक पछाड़ता है, धराशायी करता है । 'गहि पद महि पटकइ भट नाना।' मा० ६.९८.१४ पटकत : वकृ.पु । पटकता-ते, पटकते समय । ‘महि पटकत भजे भुजा मरोरी।' मा० ६.६८.६ For Private and Personal Use Only

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