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तुलसी शब्द-कोश
पचास : संख्या (सं० पञ्चाशत् > प्रा० पंचास) ।
पचासक : (पचास + एक ) लगभग पचास । 'सुनि मन मुदित पचासक आए ।' मा०
२.१०६.३
पचि : : पूकृ० । पक कर, क्लेश उठा कर, कष्टपूर्वक प्रयास करके । 'कोटि जतन पचि पचि मरिअ ।' मा० ७.८६ ख
पचीस : संख्या (सं० पञ्चविंशति > प्रा० पंचवीसा = पंचईसा) । मा० १.३३३.६ पच्छ : सं०पु ं० (सं० पक्ष) । (१) पाख मास का अर्धभाग = शुक्लपक्ष या कृष्ण पक्ष । 'सुकुल पच्छ अभिजित हरि प्रीता । मा० १.१६१.१ ( २ ) प्रस्थान, दर्शन, सम्प्रदाय । 'भगति पच्छ हठ नहि सठताई ।' मा० ७.४६.८ (३) पंख । 'सिर के कि पच्छ बिलोल कुंडल ।' कृ० २३ ( ४ ) दल की मान्यता, स्थिति 1 'रिपु कर पच्छ मूढ़ तोहि भावा । मा० ५.४१.३ (५) तर्क में स्वपक्ष और विपक्ष के साथ पक्ष वह वस्तु है जिसमें साध्य और साधन की एकत्र स्थिति रहती है । 'पुनि पुनि सगुन पच्छ मैं रोपा ।' मा० ७.११२.१२-१५
पच्छजुत : (१) पंखों से युक्त ( २ ) प्रेरणापूर्ण पक्षपात (प्रोत्साहन से युक्त ) । 'भए पच्छजुत मनहुं गिरिदा । मा० ५.३५.३
पच्छधर : वि० (सं० पक्षधर ) । पक्ष लेने वाला, अनुकूल, पक्षपाती सहायक | 'हरि भए पच्छधर ।' दो० १०७
पच्छ्पात : सं०पु० (सं० पक्षपात) । (१) अपने मत आदि का समर्थन ( २ ) आत्मीय आदि के लिए (तर्क छोड़कर भी) समर्थन का भाव । ' इहाँ न पच्छपात कछु राखउँ ।' मा० ७.११६.१
पच्छ पातु: पच्छ्पात + कए । 'नाहीं कछु पच्छपातु ।' कवि० ७.२३ पच्छहीन : पंखों से रहित । पच्छहीन मंदर गिरि जैसा । मा० ६.७०.११ पच्छिउ : पक्षी भी । 'हित अनहित पसु-पच्छिउ जाना ।' मा० २.२६४.४ पच्छिम : सं० स्त्री० (सं० पश्चिमा > प्रा० पच्छिमा ) । सूर्यास्त की दिशा । मा० ७.७३.४
पच्छी: सं०पु० (सं० पक्षिन्) । (१) चिड़िया । मा० १.८५.४ (२) पक्षपाती, स्वमत का आग्रही । 'सठ स्वपच्छ तव हृदयँ बिसाला । सपदि होहि पच्छी चंडाला ।' मा० ७.११२.१५ ( यहाँ प्रथम अर्थ के साथ द्वितीय भी है)
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पच्छु : पच्छ+कए० । एकमात्र पक्ष, सहारा । 'गारो भयो पंच में पुनीत पच्छु पाइ के ।' कवि० ७.६१
पछारोह : आ०प्रब० । पटकते हैं, पटक कर आक्रान्त करते हैं । ' मारहि काहि धरहिं पछारहिं ।' मा० ६.८१.५
पछार : आ०म० । पटक दो । 'पद गहि धरनि पछारहु कीसा ।' मा० ६.३४.१०