Book Title: Tulsi Prajna 1995 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 52
________________ जगत् में विरोधी युगल के सह-अस्तित्व को स्वीकार करता है, साथ ही इसी सहअस्तित्व को जीवन का आधार मानता है। इस का बोध हो जाने से जीवन में समन्वय, सह-अस्तित्व, सहिष्णुता, सम्प्रदाय-निरपेक्षता आदि जैसे आदर्श मूल्यों की स्थापना संभव हो सकती है । दृष्टिकोण परिवर्तन के लिए अनेकांत की सहायक - भूमिका अपेक्षित है, जिससे कि मानव में वैचारिक आग्रह का बोध समाप्त होकर दूसरे के विकास के प्रति भी समान भावना का विकास हो सके । संदर्भ १. सूत्रकृतांग टीका १।१२।१-१२ २. गौतम बुद्ध, धर्मानन्द कौशम्बी, पृ० ६७ ३. अनेकांत की जीवन दृष्टि, सौभाग्यमल, सागरमल जैन, पृ० ૬ ४. वही, पृ० ९ ५. सूत्रकृतांग टीका, १११।२।२३ ६. अनेकांत की जोवन दृष्टि, सौभाग्यमल, सागरनल जैन, पृ० ८ ७. वही, पृ० ९ ८. समयसार १०।२४७, आत्मख्याति अष्टशती कारिका, १०३ ९. देवागम १०. अनेकांत और स्याद्वाद पृ० १७ ११. अभिधानराजेन्द्र, १० १८५३ १२. समयसार टीका १३. पाश्चात्य दर्शन, चन्द्रधर शर्मा १४. अनेकांत की जीवन दृष्टि, सौभाग्यमल, सागरमल, जैन, पृ० २१ १५. जैन दर्शन में तत्व मीमांसा, मुनिश्री नथमल पृ० १६५ १६. वही, पृ० १६८ १७. वही, पृ० १६८ १८. वही. पृ० १६९ १९. वही, पृ० १७० २०. अनेकांत की जीवन दृष्टि, सौभाग्यमल सागरमल जैन, पृ० २१ २९. वही, पृ० १२ २२. वही, पृ० २४ २३. वही, पृ० २५ खण्ड २०, अंक ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only ३०७ www.jainelibrary.org

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