Book Title: Tulsi Prajna 1995 01
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 81
________________ था । नैतिक मूल्यों का पतन हो चुका था । मानव की गरिमा का कोई महत्त्व नहीं था । मनुष्य मानसिक, सांस्कृतिक तथा राजनैतिक दासता का शिकार था । सर्वत्र शोषण का बोलबाला था । धर्म के स्थान पर नास्तिकता पनप रही थी। अपनी नैतिक, धार्मिक और सादा जीवन तथा उच्च विचार की संस्कृति को युवक दीन हीन मान रहे थे, विदेशी संस्कृति की भी नकल जोरों पर थी । पश्चिम की भौतिकवादी सभ्यता ही सभ्यता का पर्याय माना जा रहा था । भारतीय संस्कृति खतरे में थी। अंग्रेजी शिक्षा अपनी धरती पर ही युवकों को विदेशी बना रही थी । शिक्षा में नैतिकता तथा चरित्र का कोई स्थान नहीं था । यह मात्र बौद्धिक विकास तक सीमित थी । उत्तम भावनाओं के विकास का शिक्षा से कोई सम्बन्ध नहीं रखता था । शिक्षा मात्र सूचना संग्रह का साधन थी । इसका लक्ष्य व्यक्ति का सर्वांगिण विकास नहीं बल्कि अंग्रेजी शासन का एक यंत्र तैयार करना था । शिक्षकों की दशा दयनीय थी। हम एक निराशा की स्थिति में जी रहे थे । सर्वत्र गरीबी और बेरोजगारी थी । आवश्यकता थी सबको आत्म निर्भर बनाने की और उनमें आत्म शक्ति तथा प्रेम शक्ति के विकास करने की । समाज में जाति-पांति, ऊंच-नीच और छुआछूत की प्रथा थी, नारी की स्थिति बहुत ही दयनीय थी । अतः आवश्यकता थी ऐसी शिक्षा की जो समाज के विभिन्न वर्गों को आपस में जोड़ सके और सामाजिक भावना का विकास कर सके । संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि गांधी के काल में मानवतावादी मूल्यों का ह्रास हो चुका था और स्वार्थवादी विषमतामूलक तथा वस्तुवादी संस्कृति का तेजी से विकास हो रहा था । अतः गांधी ने इस आवश्यकता का अनुभव किया कि ऐसी शिक्षा पद्धति का विकास किया जाए जिससे सम्पूर्ण मानव और मानवता का विकास हो सके तथा एक अहिंसक सर्वोदय समाज का निर्माण हो सके। इसके लिए उन्हें एक और गुरुकुल की मूल्यपरक शिक्षा से प्रेरणा मिली तो दूसरी और रस्किन ओर टाल्सटॉय से शिक्षा को समाजोपयोगी कर्म से जोड़ने का विचार सामने आया । अपनी अनुभूति से उन्होंने अपनी शिक्षा पद्धति में व्यक्ति और समाज के लिए सभी उपयोगी मूल्यों का प्रवेश कराया जिससे उनकी शिक्षा मूल्यपरक शिक्षा का पर्याच बनीं है । सामान्यतः शिक्षित व्यक्ति वह माना जाता है जो लिखना पढ़ना जानता है । जिसने विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण की है, वह व्यक्ति अधिक शिक्षित माना जाता है क्योंकि उसने पुस्तकों के अध्ययन से काफी ज्ञान अर्जित किया है । परन्तु गांधी की दृष्टि में साक्षरता न तो शिक्षा का शुभारम्भ है और न इसकी चरम परिणति । शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य चारित्रिक विकास करना है । चारित्रिक विकास का अर्थ है व्यक्ति में साहस, शक्ति, धैर्य, क्षमता, सद्गुण तथा महान् उद्देश्य के लिए अपने को समर्पित करने वाले गुणों का विकास करना । चारित्रिक विकास का वास्तविक अर्थ मानवीय गुणों का विकास है । इस दृष्टि से एक झोंपड़ी में रहने वाला किसान जो आचरण से पवित्र है तथा अपने परिवार और समाज के प्रति ईमानदारी से कर्तव्य का पालन करता है, निरक्षर रहने पर भी अधिक शिक्षित है वनिस्पत उस व्यक्ति के जो विश्वविद्यालय से सर्वोच्च डिग्री प्राप्त कर महलों में रहता है और तुलसी प्रज्ञा क ३३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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